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तेरे प्यार मे …. – Adultery Story by FrankanstienTheKount

तेरे प्यार मे… – Update 47 | FrankanstienTheKount

#47

कदम इतने भारी हो गए थे की क्या ही कहे. दुःख इस बात का नहीं था की निशा नाता तोड़ गयी थी दुःख ये था की जो हुआ गलत हुआ . बेशक वो एक डायन थी पर मेरे लिए वो बस एक दोस्त थी , एक साथी थी जिसके साथ रह कर मैंने जाना था की जिन्दगी कितनी खूबसूरत थी . वो चंद मुलाकाते इस जीवन का सबसे खूबसूरत दौर थी . जिस तरह से वो दिवाली की रात मेरे लिए आई थी . जिस तरह से वो मेरे कंधे पर सर रख कर बैठती थी .

भाभी की बातो से इतना आहत हो जाएगी निशा मैं ये जानता तो कभी नहीं कहता उसे वहां जाने को . जब मैं गाँव पहुंचा तो सब लोग अपने अपने घरो में दुबके हुए थे . बस मैं एक तनहा था . मैं उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठ गया जहाँ पर लाली को लटकाया था . मैं सोचने लगा चंपा-मंगू मेरे बचपन के साथी मुझसे न जाने क्या छिपाए हुए थे. मेरी भाभी जिसकी मुस्कान देखे बिना मैंने कभी अन्न ग्रहण नहीं किया था सब लोग पराये हो बैठे थे . और वजह क्या थी , की मैं अपनी जिन्दगी अपनी मर्जी से जीना चाहता था .

घर पहुंचा तो दरवाजा खुला हुआ था चाची शायद जाग गयी थी . मैंने चुपचाप रजाई ओढ़ी और सोने की कोशिश करने लगा. जब जागा तो देर हो गयी थी . मालूम हुआ की पिताजी रात को लौट आये थे और मेरे जागने का इंतज़ार कर रहे थे . मैं तैयार होकर उनके पास गया .

मैं- आपने याद किया पिताजी

पिताजी- बरखुरदार, समझ नहीं आता की तुमसे क्या कहे. तुमने तो जैसे कसम ही खा ली है की राय साहब के नाम को मिटटी में मिला ही दोगे

मैं- क्या भूल हुई मुझसे पिताजी

पिताजी- रुडा और उसके लड़के से झगडा करने की क्या जरूरत थी तुमको.

मैं- उन निचो को सबक सिखा रहा था मैं तो

पिताजी- रुडा हमारा बहुत सम्मान करता है कबीर.

मैं- इस बात से वो सही तो साबित नहीं हो जाता

पिताजी- सही तो तुम भी नहीं हो. राय साहब का लड़का दारू के नशे में नाचने गाने वाले भाँड़ो के साथ चुतड मटका रहा था कितने फक्र की बात है हमारे लिए. कब तक हम तुम्हारी गुस्ताखियों पर पर्दा डालते रहेंगे.

मैं- लड़ाई रुडा के लड़के ने शुरू की थी

पिताजी- तंग आ गए है हम ये बहाने सुन सुन कर

मैं- तो आप ही बताये आप की ख़ुशी के लिए मैं क्या करू.

पिताजी- सुधर जाओ. इस उम्र में अच्छा नहीं होगा की हम तुम्हारी खाल खींचे

मैं खामोश रहा . जानता था की बात बढाने का कोई फायदा नहीं है.

पिताजी- दूसरी बात. हमें कहना तो नहीं चाहिए पर कहना पड़ रहा है . ये जो तुम कहाँ भी अपनी राते काली कर रहे हो . ये याद रखना इस गाँव की तमाम बहन-बेटी-बहुओ को हम एक नजर से देखते है . जवान बेटे को काबू रखना थोडा मुश्किल जरुर होता है बाप के लिए पर मेरी बात याद रखना यदि कोई भी ऐसी-वैसी शिकायत आई की तुमने किसी भी बहन-बेटी को ख़राब किया तो हम ये भूल जायेंगे की तुम हमारा खून हो.

ये चुतिया बात सुन कर मुझे तैश आ गया .

मैं- पिताजी , ये कहना गुस्ताखी ही होगी पर मैं ये गुस्ताखी करूँगा जरुर. आपको अपनी औलाद पर इतना भरोसा तो रखना चाहिए . मैं उलझा हूँ अपने आप में मुझे बस थोडा सकूं चाहिए . मिले तो मेहरबानी इस परिवार की . मेरा किसी भी औरत-भाभी- बहन से कोई ऐसा रिश्ता नहीं है . मेरे कुछ सवाल है जिनका जवाब की तलाश है बस

पिताजी- काम में मन लगाओ उलझने अपने आप सुलझ जाएँगी. कितनी बार कहा है अभिमानु के काम में हाथ बंटाओ या कहो तो कोई और काम धंधा जो भी तुम करना चाहो खोल दू

मैं- किसान हु पिताजी . गुजारे लायक आमदनी धरती दे देती है मुझे और फिर मेरी ख्वाहिशे है ही कितनी

पिताजी- तेरी इस सादगी ने ही मुझे पशोपेश में डाला हुआ है . खैर कल हम शेखर बाबू के घर जायेंगे और हो सका तो विवाह की तारीख पक्की कर आयेंगे. तुम अभी मलिकपुर जाओ सुनार के पास और पूछो की चंपा के गहने कब तक तैयार होंगे.

मैं- चंपा ने गहनों के लिए मन कर दिया

पिताजी ने अपना चश्मा उतारा और बोले- जा जाकर उसे बुला ला.

मैंने चंपा को संदेस दे दिया और वापिस से चाची के घर चला गया जहाँ पर भाभी भी मोजूद थी .

मैं- पिताजी गुस्सा है मुझसे, तुम्हारे पास मौका है और कान भर दो उनके

भाभी- देख रही हो चाची . अब हम पराये हो गए इसके लिए . हम तो इसका भला ही चाहते है न

मैं- काश मैं तुमको बता सकता की मेरे मन में कितनी व्यथा भरी है इस समय . ये रात जो बीती कितनी लम्बी थी मैं ही जानता हूँ.

भाभी- चाची लड़का आशिक हो गया है तुम्हारा

मैं- आशिकी तो अभी शुरू ही नहीं हुई भाभी, जिस दिन उसने कहा मुझसे की थाम ले हाथ मेरा. तुम्हारी कसम इस चोखट पर दुल्हन बना कर खड़ी करूँगा उसे. और कोई भी रोक नहीं पायेगा मुझे.

चाची- तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो बात क्या है और ये किसका जिक्र है मुझे बताओ जरा

भाभी- हमारे कुवर का दिल लग गया है और जिस से लगा है वो एक डाकन है .

मैं- वो डाकन ही मेरी दुल्हन बनेगी

चाची इस से पहले की कुछ कहती चंपा अन्दर आ गयी और बोली- राय साहब ने कहा है की अभी मलिकपुर चलो .

मैं चंपा संग बाहर निकल गया उसे साइकिल पर बिठाया और मलिकपुर की तरफ चल दिए. थोड़ी देर में ही गाँव छूट गया .

चंपा- खामोश क्यों है कुछ तो बोल . क्या नाराज है मुझसे

मैं- नाराज तो हूँ .

चंपा- और ये नाराजगी कैसे दूर होगी

मैं- तू दे देगी तो दूर हो जाएगी .

चंपा- ये तू कह रहा है . ये तू कह ही नहीं सकता तू मुझे जलील करना चाहता है न कबीर.

मैं- जलील तो मेरी जिन्दगी मुझे कर रही है चंपा

चंपा- मैं जानती हूँ . तू जानना चाहता है की मैंने झूठ क्यों बोला पर यकीन कर मेरा

मैं- मुझे फर्क नहीं पड़ता ,

चंपा -तेरी यही जिद है तो तू वादा कर मुझसे तुझे जो मैं बताउंगी वो बात किसी भी तीसरे को मालूम नहीं होगी. ऐसा हुआ तो तू मेरा मरा हुआ मुह देखेगा .

मैंने साइकिल रोकी .

मैं- उस रात तेरे बाहर जाने की वजह क्या थी .

चंपा की आँखों में आंसू भर आये.

“तू यकीन करेगा न मेरा . ” चंपा की रुलाई फूट पड़ी .

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