You dont have javascript enabled! Please enable it! तेरे प्यार मे… – Update 135 | FrankanstienTheKount - KamKatha
तेरे प्यार मे …. – Adultery Story by FrankanstienTheKount

तेरे प्यार मे… – Update 135 | FrankanstienTheKount

#135

रात कितनी बीती कितनी बाकी थी नहीं जानता था . चबूतरे पर बैठे मैं उस पेड़ को देख रहा था जिस पर लाली और उसके प्रेमी को लटका दिया गया था . लाली की कही तमाम बाते मेरे कानो में गूँज रही थी . ये कैसा जमाना था कैसा समाज था जिसमे मोहब्बत को मान्यता नहीं थी थी पर चुदाई सब कर रहे थे . चरित्र किसी का नहीं बचा था पर दो दिलो के मिलने के खिलाफ थे. मैंने सोचा किस बेशर्मी से राय साहब ने लाली की मौत के फरमान को समर्थन दिया था . राय साहब कैसे रक्षक थे अगर वो रक्षक थे तो फिर भक्षक कौन था .

न जाने कितनी देर तक ख्यालो में खोया रहता अगर वो सियार उछल कर चबूतरे पर न चढ़ आया.उसे देख कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी .

मैं- वो है क्या जंगल में

उसने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप आकर मेरी गोदी में अपना सर घुसा दिया. मैंने अपनी बाहें उसके चारो तरफ लपेटी और थोड़ी देर के लिए आँखे बंद कर ली. रात कुछ जायदा ही लम्बी हो गयी थी मैं तहे दिल से चाहता था की बस ये खत्म हो जाये. पर ऐसे खुले में कब तक पड़े रहते. कुछ देर बाद मैंने अपने कदम घर की तरफ बढ़ा दिए सियार मेरे साथ साथ चलने लगा.

हमेशा खुला रहने वाला हमारा दरवाजा आज बंद था. सियार ऊपर चढ़ कर चबूतरे पर पड़े कम्बल में घुस गया . मैंने चाची के दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और अन्दर घुस गया .

“कौन है ” चाची ने पूछा

मैं- कबीर

चाची- कहाँ भटक रहा था तू इतनी रात तक

मैं- आ गया थोड़ी देर सोना चाहता हूँ

मैं चाची के बिस्तर में घुसा और उनसे लिपट कर सो गया . सुबह जब जागा तो राय साहब को आँगन में बैठे पाया. हमेशा के जैसे सुनहरी ऐनक पहने चेहरे पर ज़माने भर की गंभीरता लिए हुए. नलका चला कर मैंने ठंडा पानी मुह पर मारा और बाप के पास गया.

मैं- कुछ बताना था

पिताजी- हम सुन रहे है

मैं- आपके पालतू पिल्लै को कल रात मार दिया मैंने उसकी लाश खान में पड़ी है .

पिताजी ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा से पहन लिया .

पिताजी- एक न एक दिन ये होना ही था .

मैं- आपको फर्क नहीं पड़ा

पिताजी- रोज कोई न कोई मरता ही है

मैं- मौत का ये खेल क्यों खेला , चंपा को अपने पास रखना था तो वैसे ही रख लेते कौन रोक पाता राय साहब को . हजार बहाने थे उसे अपने साथ रखने का शेखर बाबु का और उन जैसे तमाम बेकसूर लोगो की बलि किसलिए ली गयी . माना की मंगू को नकली आदमखोर बना कर लोगो में डर पैदा करना ठीक था ताकि कोई जंगल में खान को न तलाश ले पर अपने ही आंगन को खून से रंग देना कहा तक उचित था .

पिताजी- हम तुम्हारे सवालो का जवाब देना जरुरी नहीं समझते .

मैं- क्योंकि कोई जवाब है नहीं , अय्याशियों का क्या जवाब होगा. कहे तो वो गा न जिसके पास कुछ होगा कहने को . मुझे शर्म आती है की इस आदमी का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है .

पिताजी- इस से पहले की हमारा हाथ उठ जाये, हमारी नजरो से दूर हो जाओ

मैं- कब तक नजरो से दूर करेंगे. वो समय नजदीक है जब हम दोनों एक दुसरे के सामने खड़े होंगे और मैं भूल जाऊंगा की सामने मेरा बाप है .

पिताजी- दुआ करना वो वक्त जल्दी आये.

चहचहाती चिडियों के शोर ने मुझे बताया की दिन चढ़ने लगा है . मैं गली में आया सुबह की ताजगी ने मेरे अन्दर में उर्जा का संचार किया . आज का दिन एक खास दिन था या शायद ख़ास होने वाला था सूरज की लालिमा धीरे धीरे हट रही थी . जैकेट की जेब में दोनों हाथ घुसाए मैं गाँव से बहार की तरफ चल दिया. कुवे पर आकर मुझे चैन मिला. कल रात बहुत कुछ खो दिया था मैंने . क्यों खोया ये नहीं जानता था . बरसो की दोस्ती एक झटके में खत्म हो गयी. इसे अपना भाई समझा था , जिसके साथ न जाने कितने लम्हे जिए थे अपने हाथो से गला दबा दिय था उसका. ये कैसा इम्तिहान लिया गया था मेरा. आँखों से आंसू बह चले थे . वो गलत था उसने क्यों नहीं मानी गलती अपनी. मुझ पर हमला किया मुझे मारना चाहता था वो . पर आज का दिन ख़ास था इसे और खास बना देना चाहता था मैं.

मैंने अपने कदम उस तरफ बढ़ा दिए जहाँ मेरी मंजिल मुझे पुकार रही थी . जंगल आज बदला बदला सा लग रहा था . इतना शांत इसे मैंने कभी नहीं पाया था . होंठ अपने आप गुनगुनाने लगे थे . चलते चलते मैं आखिर वहां तक आ ही गया था . आसमान हरे-नीले-पीले-लाल रंग से रंग था . आदमी-औरत जिसे देखो हाथो में पिचकारी या अबीर की थैलि लिए एक दुसरे संग रंगों के रंग में रंगे थे. हँसते मुस्कुराते चेहरे . आज फाग का दिन था , आज मेरे अरमानो का दिन था . आज मैं अपनी सरकार को हमेशा के लिए अपनी बनाने के लिए आया था . आज कबीर निशा का हाथ थामने आया था .

उड़ते गुलाल को अपने जिस्म पर महसूस करते हुए . पानी के गुब्बारों से बचते हुए मैं चलते हुए ठीक उस जगह पर आ पहुंचा था जहाँ पर वो थी , जहाँ पर निशा थी. जहाँ पर मेरा आने वाला कल था . जहाँ पर मेरा आज , अभी था.

“जी कहिये, क्या काम था किस से मिलना था आपको ” नौकरानी ने मुझसे पूछा

मैं- जाकर कहो मालकिन से की उसे लेने कोई आया है .

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और अन्दर चली गयी मैं हवेली के आँगन में खड़ा रहा . उफ्फ्फ्फ़ ये पल पल बढती उसके दीदार की हसरत . नजरे उस बड़े से दरवाजे पर जम सी गयी थी . और जब दौड़ते हुए वो आकर चोखट पर रुकी . उसका सरकता आंचल बता रहा था की धड़कने हमारी सरकार की भी बढ़ी हुई है . नजरे बस नजरो को देख रही थी. सब कुछ भूल कर मैंने अपनी बाहों को फैला दिया और वो दौड़ कर मेरे सीने में समां गयी.

“कब से राह देख रही थी बड़ा इंतज़ार करवाया ” उसने कहा

मैं- मैं देर करता नहीं देर हो जाती है .

निशा- मुझे ले चल.

मैं- लेने ही तो आया हूँ

मैंने उसका हाथ पकड़ा उसने मेरी तरफ देखा

मैं- मुझे हक़ है .

उसने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया और हमने हवेली के बाहर कदम बढ़ा दिए. गाँव के बीचो बीच बिखरे रंग-उड़ते गुलाल से खेलते हुए मैं अपनी जान को लेकर चले जा रहा था. गाँव के दुसरे छोर से हम थोड़ी ही दूर थे की एकाएक हमारे सामने जीप आकर रुकी ………………………..

निशा ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया …………

Please complete the required fields.




Leave a Comment

Scroll to Top