#106
मुझे अब एक दांव खेलना था जो यदि सफल हो जाये तो बहुत कुछ समझ में आ जाये. मैं सीधा अंजू के पास गया हो अभी भी किताब ही पढ़ रही थी .
मैं-एक बेहंद जुरुरी बात करनी थी
अंजू- चैन क्यों नहीं है तुमको
मैं- सुन एक सौदा करेगी मेरे साथ फायदा होगा तुझे .
अंजू- कैसा सौदा
मैं- प्रकाश के कातिल का नाम तुझे बता दूंगा बदले में तुझे मेरी मदद करनी होगी.
अंजू- कैसी मदद
मैं- पहले कसम खा की बात तेरे मेरे बिच रहेगी.
अंजू- किसकी कसम खाऊ मैं
मैं- वो नहीं पता पर तुझे कसम है अगर वादा तोडा तो
अंजू-बता भी दे अब
मैं- वो जो मेरा दोस्त है न मंगू तू उसे उठा ले , चाहे मार पिट कुछ भी कर उस से ये उगलवा ले की वो रेस साहब के कामो में उनका साथ क्यों दे रहा है और क्या राय साहब ने कविता को भी पेला था .
अंजू- अपने ही बाप की जासूसी करवाना चाहता है तू, और ये कविता कौन है
मैं- तुझे प्रकाश का कातिल चाहिए की नहीं
अंजू- मैं कैसे मान लू तू जो बताएगा वो सच ही होगा.
मैं- सबूत के साथ दूंगा तुझे कातिल का नाम सोच ले.
अंजू- पर मैं राय साहब के खिलाफ कैसे जाउंगी
मैं- मत जा मुझे क्या है फिर
अंजू- राय साहब के खिलाफ जाना , तू समझ रहा है न
मैं- राय साहब की ऐसी की तैसी तू उस आदमी के असली चेहरे को नहीं देख पाई है अभी . इसलिए कहता हूँ मेरा साथ दे
अंजू- सोचूंगी
मैं- सोच ले , प्रकाश के कातिल को तू जिन्दगी भर नहीं तलाश पाएगी.
अंजू ने अपना मुह वापिस किताब में घुसा दिया. दिल तो किया इसकी गांड पे दू पर फिर रोक लिया खुद को .मैं उसकी रजाई में घुस गया और सोने की कोशिश करने लगा. अब इतनी रात को जाते भी तो जाते कहा.
अंजू- नींद नहीं आ रही क्या
मैं- सोच रहा हूँ कुछ
अंजू- हमें भी बता दे क्या सोच रहा है तु
मैं- यही की तुम आदमखोर निकली तो कैसे मारूंगा तुमको
अंजू- सोच लो बढ़िया विचार है , वैसे मैं तडप तडप कर मरना पसंद करुँगी
मैं- तूने झूठ क्यों बोला की उस रात प्रकाश के साथ गाड़ी पर तुम थी
अंजू- देखना चाहती थी तुम क्या समझते हो उस बात से
मैं- और क्या समझा मैं
अंजू-कबीर हर किसी की जिन्दगी के कुछ निजी बाते होती है उन्हें निजी ही रहना चाहिए. बेशक तुम्हारे सवाल तुमको मुझ तक लाते है पर मैं चाहती हूँ की हमारे दरमियान एक फासला होना चाहिए. मैं नहीं जानती की तुम क्यों अतीत के पन्ने पलटना चाहते हो पर तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा . सब कुछ सही तो चल रहा है . तुम मौज में हम मौज में बताओ अतीत से क्या मिल रहा है तुमको , केवल अपनी उत्सुकता के लिए तुम किसी दुसरे के निजी जीवन में घुसना चाहते हो जबकि वो तमाम बाते तुम्हे कही से भी प्रभावित नहीं कर रही .
मैं- मुझे लगता है की ये सब जुड़ा है मुझसे.
अंजू- बताओ क्या जुड़ा है , कुछ भी तो नहीं जुड़ा तुमसे. राय साहब, जरनैल सिंह, अभिमानु, रुडा , कुछ भी तो नहीं जुंडा तुमसे. माना की सूरजभान से तुम्हारे पंगे है वो चलते रहे किसी को क्या लेना देना बताओ बाकि के अतीत से क्या लेना देना है तुम्हारा. तुम बस उस कहानी को पढना चाहते हो जिसके पन्नो पर अब कुछ नहीं बचा
मैं- फिलहाल मुझे सोने दो , कुछ रातो से मेरी नींद पूरी नहीं हुई.
अंजू ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और बोली सो जाओ सबको आराम की जरुरत होती है .
मैं- बस एक बात बता दो. परकाश को किस चीज की तलाश थी
अंजू- मामा जरनैल के पास कुछ ऐसा था जो प्रकाश का था, उसी को तलाशता था वो .
मैं- क्या थी वो चीज
अंजू- मालूम नहीं , पर प्रकाश कहता था की उस पर हक़ था उसका .
मैं- ऐसी क्या चीज हो सकती थी .
अंजू- कुछ भी , जमीन के कागज, गहने, प्रोपर्टी .पैसे कुछ भी . कुछ भी हो सकता है कबीर.
मैं- तुम क्या तलाशती हो जंगल में
अंजू- सकून जो मेरा खो गया है .
उसका हाथ पकड़ा और मैं सो गया. न जाने कितने बजे थे जब मेरी आँख खुली . बिस्तर पर अंजू मेरे साथ नहीं थी . प्यास के मारे मेरा गला सूख रहा था. पानी का जग खाली पड़ा था . कम्बल ओढ़ कर मैं बहार आया , सब कुछ सन्नाटे में डूबा हुआ था , आँगन का बल्ब ही जल रहा था . मैं जग लिए निचे आया. मटके से जग को भर ही रहा था की तभी मेरी नजर ऊपर आसमान में गयी. आसमान में सितारे नहीं थी . पर जो मैंने देखा दिल धक् से रह गया .
चौबारे की मुंडेर पर वो साया, वो साया , वो आदमखोर वहां बैठा था . एक पल मैंने खुद को देखा, इस घर को देखा और फिर उसे देखा. यदि ये यहाँ हमला कर देगा तो कितने ख़ाक होंगे कौन जाने. सीढिया चढ़ते हुए मैं ऊपर पहुंचा . दो पल में ही मैं उसके सामने था. अपनी जुगनू सी पीली आँखों से उसने मुझे देखा . हम दोनों एक दुसरे के इतने पास आ गए थे की उसकी सांसे भबकाने लगी थी मुझे .
मैं उसे देख रहा था वो मुझे देख रहा था. पर वो शांत था इतना शांत की न जाने क्या चल रहा था उसके मन में. उसने मुझे हल्का सा धक्का दिया और मुड़ने को ही था की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
मैं- ऐसे नहीं जाने दूंगा तुझे . तुझे बताना होगा कौन है तू.
पर शायद मैंने उसकी ताकत को कम समझा था , उसने तुरंत अपना हाथ छुड़ा लिया और छत से कूदकर अंधेरो में गुम हो गया.
“आज नहीं तो कल तेरा राज भी मैं जान ही लूँगा ” मैंने कहा और निचे आने लगा. कमरे की तरफ गया ही था की अंजू से टकराते टकराते बचा .
अंजू- चैन क्यों नहीं है तुझे
मैं- कहाँ गयी थी तुम .
अंजू- क्यों बताऊ तुमको
मैं- मैंने पूछा कहाँ गयी थी तुम
अंजू- मूतने गयी थी , कहे तो मूत की धार दिखा दू तसल्ली के लिए
मैं- अगर तू वो निकली न तो वादा है मेरा तेरी खाल खींचने से भैया भी नहीं रोक पाएंगे मुझे
अंजू- जितनी तेरी औकात है न कबीर उस से ज्यादा बोल रहा है तू. अभिमानु का भाई न होता तो अब तक तेरी जुबान मेरे पैरो में पड़ी होती .
अंजू ने मुझे दिवार से लगा दिया…………..