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अपनों का प्यार या रिश्तों पर कलंक [ ड्रामा + सस्पेंस ] - Pariwarik Chudai Ki Kahani

अपनों का प्यार या रिश्तों पर कलंक [ ड्रामा + सस्पेंस ] – Update 16

धर्म–जुगल किशोर जी…..कैसे है आप….

जुगल किशोर इस शोरुम का मालिक था और ऐसे ही कितने सारे शोरूम्स पूरी दुनिया में फैले हुए थे….

जुगल–अरे आओ आओ धर्मदास भाई कैसे आना हुआ…

धर्म–मुझे एक लाजवाब चीज़ दिखाओ…

जुगल–अरे लेकिन बताओ तो सही इतनी जल्दी में क्यो हो…

धरम–जुगल भाई मेरे साथ आए बच्चे को तुमने शायद पहचाना नही…..

अब जुगल किशोर मेरी तरफ़ देखने लगते….मुझ पर पहली नज़र डालते ही वो मुझे पहचान जाते है…वो तुरंत अपनी सीट से खड़े होते है और मुझे अपने गले से लगा लेते है….

जुगल–जय बेटा मुझे माफ़ करना इस धर्म के चक्कर मे में तुन्हे देख भी ना पाया….ऐसे धड़धड़ाते हुए ये मेरी कॅबिन में घुसता है जैसे ये कोई डाकू लुटेरा हो…अब बोलो कैसे आना हुआ…क्या चाहिए तुम्हे…

धर्म–बात इज़्ज़त की है यार….कुछ ऐसी चीज़ निकाल जो जय के पापा की इज़्ज़त बाज़ार में और भी बढ़ा दे…
वैसे जय बेटा तुमने बताया नही तुम किस की शादी में जा रहे हो….

में–में कोई नंदू भाई है सीड्स और खाद का काम करते है….यही पास में ही उनका बंगलो है….

जुगल–अब समझ में आया नंदू ने तुम्हे शादी में क्यो बुलाया…

में–मुझे भी बताइए ऐसी क्या बात है…

जुगल–तुम्हारे पापा यहाँ के व्यापार संगठन के बॉस थे….जबकि नंदू बॉस बनना चाहता था…शायद इसीलिए तुम्हारे पापा के जाने के बाद वो तुम्हे शादी में बुला कर बेइज्जत करना चाहता हो….

में–तब तो कुछ ऐसा गिफ्ट देना होगा जिस से नंदू के साथ साथ वहाँ आए हर इंसान की आँखे चोंधिया जाए….

जुगल–बेटा माना तुनहरे पापा जितना पैसे वाला यहाँ कोई भी नही है….लेकिन अगर तुम नंदू जैसे कुत्तो पर अपना पैसा पानी की तरह बहाओगे तो तुम्हारे पापा की आत्मा को तकलीफ़ ही होगी…..

में–आप सही कह रहे है अंकल….लेकिन ये पैसे में बहुत जल्दी नंदू से वसूल भी कर लूँगा अगर आप मुझे अपने व्यापार संघ का बॉस बना दो….

जुगल–बेटा तुम्हारे पापा इस संघ के राजा थे….और वो मरने के बाद भी आज राजा ही है…और राजा का बेटा ही असली वारिस होता है….तुम्हारे बिज़्नेस और प्रॉपर्टी के हिसाब से तुम्हे इस संघ का बॉस बनने से कोई नही रोक सकता…

धर्मदास और जुगल अंकल मुझे संघ का बॉस बनाने के लिए राज़ी हो गये थे….और एक मीटिंग फिक्स कर ली गयी थी जो हफ्ते भर बाद होने वाली थी….

जुगल–बेटा तुम एक काम करो मेरे पास जो सब से एक्सपेन्सिव आइटम्स है तुम उनमे से कुछ पसंद कर लो….

उसके बाद वो मुझे काफ़ी सारे आइटम्स दिखाते है उनमें से दो चीज़े मुझे बेहद पसंद आती है….एक सोने से बनी रोलेक्स घड़ी और एक नेकलेस जो शानदार कारिगिरी से बना हुआ था….

में–अंकल आप इन्हे पॅक करवा दो….

जुगल–लेकिन बेटा ये गिफ्ट नंदू की ओकात से कही ज़्यादा मह्न्गे है ये लगभग 5 करोड़ का माल है….इतने में तो नंदू अपने बेटे की शादी 50 बार कर सकता है….

में–अंकल आप चिंता मत करो….में बिज़्नेस की दुनिया से दूर रहना चाहता था लेकिन मुझे लग रहा है….में ऐसा कर नही पाउन्गा…

ये 5 करोड़ में अपने बिज़्नेस में हे इनवेस्ट कर रहा हूँ….और मीटिंग से पहले नंदू सड़क पर होगा अगर उसने अपनी ग़लती की माफी नही माँगी तो…..

जुगल–मुस्कुराते हुए….तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो….वो भी बिल्कुल इसी तरह बाते करते थे….

धरम–लगता है हम लोगो को अपना बॉस फिर से मिल गया अब धन्दे में फिर से ट्रॅन्स्परेन्सी आज़एगी जिस से छोटा बड़ा सभी व्यापारी आराम से कमा सकेगा…..

में–अंकल ये में ले जा रहा हूँ….में अपने साथ चेक बुक नही लाया कल सुबह में चेक भिजवा दूँगा…..

जुगल–कोई बात नही बेटा कभी भी भिजवा देना….वैसे भी ये सब में तुम्हारे पापा की वजह से ही कर पाया हूँ….तुम्हारा जब मन करे तब इसके पैसे दे देना….

में–नही अंकल….मन करे तब नही, में कल सुबह ही आपको वो चेक पहुचा दूँगा….

जुगल–ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…मुझे कल फोन कर देना में किसी को घर ही भिजवा दूँगा…..

में–वैसे तो मुझे आपसे काफ़ी सारी बातें करनी है लेकिन अभी मुझे जाना होगा…

जुगल–एक काम करो कल शाम को मेरे फार्महाउस पर मिलते है….वही पर इतमीनान से सारी बाते कर लेंगे….

में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ….

में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ….कुछ देर पहले में सिर्फ़ एक साधारण लड़का था….लेकिन उस शोरुम से निकलते समय में एक बिज़्नेसमॅन बन चुका था….और जा रहा था अपनी पहली सीढ़ी की तरफ….जो मुझे रुतबे और दौलत के ढेर तक पहुचाएगी…..

में अब नंदू के बंगलो के बाहर पहुँच गया था….काफ़ी अच्छा सजाया गया था बंग्लॉ को अभी दिन के दो बज रहे थे….लेकिन मुझे ये समझ में नही आया ये दिन में कौनसी शादी हो रही है….क्योकि जो कार्ड मुझे दिया गया था उसमें 2 बजे आशीर्वाद समारोह का टाइम दिया हुआ था….लेकिन बंगलो के बाहर भी ज़्यादा चहल पहल दिखाई नही दे रही थी….कुछ 15 20 गाड़िया बंगलो के बाहर ज़रूर खड़ी थी….जो कि सभी बीएमडब्ल्यू और स्कोडा जेसी गाड़िया थी….यानी कोई फंक्षन तो चल ही रहा होगा अंदर,
लेकिन क्या…..

बंग्लॉ के मेन गेट से अंदर घुसते ही मुझे कुछ आवाज़े आने लग गयी थी जैसे कही घूंघुरू बज रहे हो तब्ब्ले पर थाप पड़ रही हो…

में जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा 2 दरबानों ने वो दरवाजा खोल दिया…..जैसे ही में अंदर पहुँचा.. में बस एक टक लगातार बस एक ही जगह देखने लग गया जिसके होंठो से ये गीत छलक रहा था….

शब-ए-इंतजार आख़िर……,
शब-ए-इंतजार आख़िर………!

कभी होगी मुख़्तसर भी…..,
कभी होगी मुख़्तसर भी……!!

शब-ए-इंतजार आख़िर….कभी होगी मुख्त्सर भी……

ये चिराग बुझ रहे है…..ये चिराग बुझ रहे है…..ये चिराग बुझ रहे है…

मेरे साथ जलते….जलते….मेरे साथ जलते जलते

ये चिराग बुझ रहे है….मेरे साथ जलते जलते….

यूँ ही कोई मिल गया था… सरे राह चलते चलते

वही थम के रह गयी है…………………. मेरी रात ढलते ढलते…………
चलते चलते यूँही कोई मिल गया था….सरे राह चलते चलते…. चलते चलते….सारे राह चलते चलते….!!

इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा….मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था….लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे… वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही.

इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा….मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था….लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे… वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही….

तभी मेरे कंधे पर मुझे किसी का हाथ महसूस हुआ….जय साहब बड़ी देर कर दी आते आते ……कहाँ खो गये थे चलते चलते…..

में–माफ़ कीजिएगा इस लड़की की आवाज़ बहुत अच्छी है जैसे माँ सरस्वती इसके गले में विराज रही हो….

नंदू–मुझे शायद आपने पहचाना नही….मेरा नाम नांदेश्वर है….और प्यार से लोग मुझे नंदू भाई कह कर बुलाते है…

में–में आपको पहचान कैसे पाता नंदू अंकल….हम आज से पहले कभी मिले ही नही है…..

नंदू–बेटा मिलना जुलना ऐसे ही चलता रहेगा अब में तुम्हे अपने बेटे और बहू से मिलवाता हूँ उसके बाद बाते करेंगे….

में–ठीक है अंकल जैसा आप चाहे….

उसके बाद वो मुझे अपने बेटे और बहू से मिलवाते है….में जैसे ही अपने साथ लाए बेग को खोलकर वो गिफ्ट्स निकालने की कोशिश करता हूँ नंदू मेरा हाथ पकड़ के मुझे वो निकालने से मना कर देता है….

नंदू–जय बेटा अभी वक़्त नही आया है कि तुम्हे कुछ भी देने के लिए अपना बॅग खोलना पड़े….दोनो बच्चो को आप अपने पास से 10-10 रूपाए नेग के दे दो इनके लिए यही तुम्हारे पापा के आशीर्वाद से कम नही होगा….

में समझ नही पा रहा था नंदू आख़िर कहना क्या चाहता था….

में–लेकिन में इन दोनो के लिए अलग से गिफ्ट्स लाया हूँ….उनका में क्या करूँ….

नंदू–आप बस इन्हे नेग के रूप में 10 10 रुपये दे दो और कुछ भी देने की ज़रूरत नही है……..

में अपनी जेब में 2 हज़ार के नोटो की गॅडी निकालता हूँ और उसमे से आधे नोट में लड़की के हाथ में रखता हूँ और आधे लड़के के….

में–नंदू अंकल ये तो हुआ बस नेग….लेकिन दूल्हा दुल्हन के लिए जो में गिफ्ट्स लाया हूँ वो दिए बिना नही जाउन्गा….

नंदू–हम भी तो यही चाहते है आप कहीं ना जाए ये घर भी आपका ही है….आप जब तक चाहे यहाँ रहे….लेकिन पहले कुछ ज़रूरी बाते करले ताकि आपके दिमाग़ में उठ रहे सारे सवालो को शांति मिल सके….

उसके बाद हम एक रूम में आजाते है….नंदू अंकल मेरे लिए एक पेग बढ़िया स्कॉच का बनाते है और मुझे देकर खुद के लिए भी बनाने लग जाते है….

नंदू–तुमने कभी सोचा नही तुम्हारे पापा की डॅत हुए अभी हफ़्ता भर भी नही हुआ और तुम्हारे पास शादी का इन्विटेशन क्यो पहुँच गया….जबकि इस शहर का बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यापारी तुम्हारे पापा की डॅत के बारे में जानता था….

में–ये इन्विटेशन मेरे चाचा जी अपने साथ ले कर आए थे….उनके बार बार कहने पर हे में जाने के लिए राज़ी हुआ था….
लेकिन मुझे आपकी बातो से लग रहा है आपको ज़रूर कोई ख़ास काम होगा….

नंदू–काम तो वाकाई मेरे लिए काफ़ी ख़ास है….मेरे पास तुम्हारे पापा की अमानत पड़ी है वो तुम्हे देने के लिए इस से अच्छा दिन मेरे पास कभी हो भी नही सकता था….

में–अंकल जो भी है वो सॉफ सॉफ कहिए ना….कौनसी अमानत की बात कर रहे हो आप….कौन्से सही समय की बात कर रहे हो आप जो भी है सॉफ सॉफ बोलिए….

नंदू– तुम्हारे पापा की डॅत से 6 महीने पहले….में उनसे मिला था…..

वैसे तो में उनके लिए हमेशा से एक मुसीबत ही था लेकिन उस दिन मैने उन्हे अपना भगवान मान लिया….

मेरे बेटे को ब्लड कॅन्सर था….में पैसे पैसे के लिए मोहताज होचुका था अपने बेटे के इलाज की खातिर….लेकिन जब में तुम्हारे पापा के पास हाथ फैलाए पहुँचा….एक पल का भी समय नही लगाया उन्होने सोचने के लिए….

उसी वक़्त उन्होने अमेरिका के बड़े से बड़े डॉक्टर को फोन लगा दिया….और हमे वहाँ भिजवा भी दिया पूरे 3 करोड़ रुपये मेरे बेटे के इलाज में खर्च हो चुके थे अमेरिका में….लेकिन उन्होने कभी मुझ से हिसाब नही माँगा….में जब अमेरिका से वापस भारत आया तब में उनसे एक बार मिला था…तब उन्होने मुझे कहा….एक समय था जब में किशोर गुप्ता अपने धंधे की शुरूवात पर था….तब किसी ने मेरी मदद नही करी….मैने अपना सब कुछ खोकर ये मुकाम हासिल किया है….और जब तुम मेरे सामने अपने बेटे की जिंदगी के लिए कुछ रुपये माँगने आए तब….मेरे सामने वही पुराने दिन आ गये थे….जो मैने खोया वो अब दुबारा नही होगा,,तुम्हारे बेटे के इल्लज में जो भी खर्चा आएगा वो में भरुन्गा….और जिस दिन ये ठीक हो जाय उस दिन मुझे बुलाना मत भूल जाना…..

ये कहते कहते नंदू अंकल की आँखो में आँसू आगये और साथ ही साथ मेरे पापा की ये बात सुनकर गर्व से मेरी भी आँखे छल्छला गयी थी….

नंदू–एक बेग मेरी तरफ बढ़ाते हुए….बेटा ये 50 लाख रुपये है….बाकी पैसे भी में जल्दी ही चुका दूँगा….आज मेरा बेटा पूरी तरह से ठीक हो गया है काश तुम्हारे पिता यहाँ होते….इसीलये मैने तुम्हे यहाँ बुला लिया….शायद तुम्हारे पिता की मेरे से जताई गयी आख़िरी इक्षा भी यही थी…..

इसीके साथ वो फूट फूट के रोने लगते है….में उन्हे अपने गले से लगाकर उन्हे धाँढस बांधने की कोशिश करने लगता हूँ….थोड़ी देर बाद वो कुछ नौरमल होते है….उसके बाद में वो बेग उठाता हूँ और बाहर उनका हाथ पकड़ कर ले आता हूँ….

उनके बेटे और बहू के सामने में वो बेग रख देता हूँ और अपने साथ लाए हुए गिफ्ट भी उनके सामने रख देता हूँ….

में–नंदू अंकल से…..मेरे लिए आपके दिए हुए ये 50 लाख भी अनमोल है….और जो गिफ्ट में इन दोनो के लिए लाया हूँ ये भी…

आप अपने बेटे और बहू से इनमें से एक अपने पास रखने के लिए बोल दीजिए ये मान लेना ये पापा की तरफ से वर वधू को तोहफा है….

नंदू अपने बेटे बहू को वो 50 लाख वाला बेग उठाने के लिए बोल देता है….

नंदू–बेटा ये 50 लाख तो में वापस ले रहा हूँ लेकिन बाकी की रकम तुम मुझ से लेने के लिए कभी मना नही करोगे….में एक कर्ज़दार की तरह कभी मरना नही चाहूँगा…

में–अंकल में वो रकम तो आपसे ज़रूर लूँगा….क्योकि अब आपको भी अपना वादा जो पूरा करना है….

नंदू–बेटा तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो….तुम्हारे बड़े भैया तुम्हारे पापा की परच्छाई थे….लेकिन तुम तुम्हारे पापा की आत्मा हो….

उसके बाद वो मुझे अपने गले से लगा लेते है और मेरे सिर पर अपना हाथ फेरने लग जाते है….

नंदू–बेटा तुम्हारे पापा की कुर्सी खाली पड़ी है उसे सम्भालो….उस कुर्सी पर किसी और का हक़ नही है वो अब से तुम्हारी ही रहेगी….

में–जैसा आप चाहे अंकल….अब में जाने की इजाज़त चाहूँगा….

नंदू–बेटा घर पर आए हो कुछ खा पी कर तो जाओ…

में–नही अंकल आज नही फिर किसी और दिन सही….

नंदू–जैसा तुम चाहो बेटा ये घर तुम्हारा ही है आते रहा करना….

उसके बाद में वहाँ से निकल कर जाने लगता हूँ….में हॉल के दरवाजे के बाहर ही निकला था और अपनी जेब में से चाबी निकालने की कोशिश में वो डीयेने वाले लिफाफे नीचे गिर जाते है…..लेकिन किसी की नज़र उन पड़ जाती है और जैसे ही वो दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है उसकी एक उंगली दरवाजे के बीच में आजाति है….और उसकी उंगली से खून की धारा फूट पड़ती है…..वो मेरा लिफ़ाफ़ा उठाए मेरे पीछे पीछे बाहर सड़क पर आजाती है….

सुनिए……सुनिए……

में अपनी तरफ आती उस सुरीली आवाज़ की तरफ अपनी एडियों के बल घूम जाता हूँ मेरे सामने वही लड़की खड़ी थी घूँघट में….एक दम दूध से धुला हुआ रंग….होंठ पर जैसे गुलाब रख दिए हो किसीने….

में–जी आप मुझे आवाज़ लगा रही है क्या…..

लड़की–जी ये आपकी जेब में से कुछ गिर गया था वही देने आई हूँ…

में जैसे ही उसके हाथ की तरफ देखता हूँ मुझे वो डीयेने सॅंपल वाले लिफाफे नज़र आजाते है साथ ही साथ उसकी उंगली से निकलता हुआ खून भी जो उन लिफाफो को भिगोएे जा रहा था….

आज कुछ अजीब सा लग रहा था सीने में….उसके चेहरे को देखे बिना ही….वो शक्श मुझे अपना सा लगने लगा था….कुछ तो बात है उसमें….वरना किसी को जानने की बेचेनी मेरे दिल ने कभी महसूस नही करी थी….

में बाइक आगे दौड़ाए जा रहा था उसकी उंगली से अभी भी खून बह रहा था उसके खून से…मेरा बाँधा हुआ रुमाल पूरी तरह से सन चुका था…..उस से काफ़ी ज़िद करने के बाद में उसे डॉक्टर के पास चलने को मना पाया था….

उसके होंठो पर पानी की कुछ बूंदे आ गयी थी जो ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबो पर किसीने मोती रख दिए हो…ये बूंदे उसके आँसू थे जो उसकी आँखो से बह रहे थे….

मैने जल्दी ही एक क्लिनिक के बाहर अपनी बाइक रोक दी और लगभग उसे खिचते हुए अपने साथ वहाँ बने एमर्जेन्सी रूम की तरफ बढ़ गया….

डॉक्टर ने उसके घाव पर स्टिचिंग कर के दवा लगाकर बॅंडेज बाँध दी…

उसके बाद वहाँ की फीस भरने के बाद हम लोग फिर से बाइक पर बैठ चुके थे….उसने अपना नाम मुझे शमा बताया था….,

में–शमा जी अब आप को दर्द तो नही हो रहा…..

शमा–नही दर्द नही होता मुझे….दर्द की आदत पड़ चुकी है….

में–ऐसा क्यो कह रही है आप….क्या मुझे आप अपने बारे में कुछ बता सकती है….

शमा–मेरे बारे में जानकार आप क्या करेंगे साहब….ना मेरा कोई जीवन है और ना ही कुछ ऐसा जिसे बताने में मुझे खुशी मिले….

में–अगर आप नही बताना चाहती तो ठीक है…लेकिन सुना है दिल का दर्द बाटने से दर्द कम हो जाता है…इसलिए में आपके दर्द को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ….

शमा–पेशे से में एक तवायफ़ हूँ….गाना सुनाकर लोगो का मन बहलाती हूँ….अभी कुछ दिन पहले ही मैने अपना अट्ठरवा साल पूरा किया है….

अब कुछ दिनो बाद में गाने के साथ साथ अपना जिस्म लोगो को देकर उन सब का मन बहलाउन्गि….कुछ दिनो बाद मेरी नथ उतराई की रस्म होने वाली है….में चाह कर भी ये सब होने से नही रोक सकती…

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