शांत माहोल इतना भयावक की डर ही लग जाये,मानसून की हलकी फुहारे,भीगे हुए लोगो की भीड़ और भीगे हुए नयन,शमसान की सी शांति में कुछ सिसकते बच्चे और बिच में पड़ी हुई दो लाशे,ये वीर ठाकुर और उनकी पत्नी की लाश थी जो एक सडक हादसे का शिकार हो गये थे,वीर ठाकुर पुरे इलाके के सबसे ताकतवर और रुशुखदार व्यति थे,आज पूरा गाव अपने देवता के लिए आंसू बहा रहा था..लेकिन एक शख्स वहा मोजूद नहि था,बाली ठाकर,वीर ठाकुर का छोटा भाई,वीर और बाली की जोड़ी की मिशाले दी जाती थी,दोनों भाइयो कि सांडो सी ताकत वीर का तेज दिमाग और दयालुता न्याय प्रियता और बाली का भाई के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून इन दोनों को खास बनाता था,
इनके माँ बाप की जमीदार तिवारीओ से खानदानी दुश्मनी थी तिवारीयो ने उन्हें मरवा दिया,लेकिन बिन माँ बाप भी ये बच्चे शेरो जैसे बड़े हुए और जमीदारो के समानातर अपना वजूद खड़ा कर दिया…आज उनका सिक्का पुरे इलाके में चलता था,
वीर की शादी तिवारीयो के परिवार में हुआ था एक बड़े ही तामझाम के साथ और खून की नदियों की बाड में उनकी शादी हुई थी..सुलेखा रामचंद्र तिवारी की बेटी थी,दोनों में प्यार पनपा और वीर ने शादी के मंडप से ही सुलेखा को उठा लिया,इस बात पर खूब खून खराबा हुआ जिसका नतीजा हुआ सुलेखा के सबसे छोटे भाई वीरेंदर की मौत, आखिर कार मुख्यमंत्री के बीच बचाव और रामचंद्र की समझदारी से मामला शांत हो गया,समय के साथ मामला तो शांत हो गया पर दुश्मनी बरकरार रही…बाली लंगोट का कच्चा था जिसका सहारा लेकर तिवारियो अपने गाव की ही चंपा को बाली से जिस्मानी सम्बन्ध बनवाया और आखीर चंपा बाली के बच्चे की माँ बन गयी और उसके माँ बाप ने वीर के आगे गुहार लगायी आखीरकार मजबूरन वीर ने अपने वसूलो का सम्मान करते हुए बाली की शादी चंपा से करा दिया,चंपा ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरु किया और बाली को घर से अलग होने के लिए मजबूर करने लगी,बाली ने उसे मारा पिटा और प्यार से समझाने की कोसिस की पर सब बेकार बाली मजबूर था की उसके भाई की इज्जत का सवाल था वरना उसे कव का मर के फेक दिया होता,
वीर ने बाली को परेसान देख उसे अपने से ही लगा हुआ अलग घर बनवा दे दिया और चंपा से वादा किया की वो और बाली अलग अलग काम करेंगे…इस फिसले से किसी को कोई फर्क ना पड़ा क्योकि सभी जानते थे बाली और वीर अलग दिखे पर अलग नहीं हो सकते….
वीर और सुलेखा के 4 बच्चे थे जो इनके प्यार की निसानी थे सबसे बड़ा था अजय फिर सोनल और विजय जुड़वाँ थे फिर निधि ,बाली और चंपा के 2 बच्चे थे पहला उनकी हवास की निशानी किशन और दूसरी मजबूरी की निशानी रानी…तो क्रम कुछ ऐसा था की=अजय फिर 2 साल छोटे सोनल विजय फिर एक साल बाद किशन फिर एक साल बाद रानी फिर 2 साल बाद निधि…
अजय में पूरी तरह से वीर के गुण थे अपने भाई बहनों पे अपनी जान छिडकता था वही विजय और किशन बाली जैसे थे अपने भाई की हर बात को सर आँखों पर रखते थे,विजय तो पूरा ही बाली जैसा था अपने चाचा की तरह ही भाई भक्त और ऐयाश और बलशाली…
इस सन्नाटे में ये सब बच्चे ही थे किनके सिसकियो की आवाजे आ रही थी,बाली बदहवास सा आया और अपने भाई भाभी की लाश देख मुर्दों सा वही बैठ गया जैसे उसे समझ ही ना आ रहा हो क्या हो गया,अचानक से ही किशन और रानी अपने पापा को देख रो पड़े और बाली की और दौड़ पड़े की चंपा ने उन्हें पकड़ लिया और खीचते हुए ले जाने लगी,”अरे इतने काम पड़ा है घर का तुम लोग यहाँ तमाशा लगा रहे हो जो मर गया वो मर गया अब चलो यहाँ से ”
चंपा के ये बोल बाली को जैसे जगा गए उसकी आँखों में अंगारे थे,वो गरजा जैसे शेर को गुस्सा आ गया हो सारा गाव बार डर से कपने लगा,”मदेरचोद तेरे ही कारन मैं अपने भाई भईया से अलग रहा ,मेरे भाई ने तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की को इस घर की बहु बना दिया नहीं तो तुझ जैसी के ऊपर तो मैं थूकता भी नहीं,तेरे कारन मैं अपने भातिजो से नहीं मिल पता आज तक तुझे मेरे भाई ने बचाया था देखता हु आज तुझे मुझसे कोन बचाता है,” बाली ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठाई,और चंपा की तरफ दौड़ गया,उसको रोकने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी…उसने पुरे ताकत से वार किया.लेकिन ये क्या,,एक हाथ कुल्हाड़ी की धार को पकड़ के रोके है बाली ने जैसे ही उस शख्स को देखा उसका गुस्सा जाता रहा,वो अजय था,
बाली को उसकी आँखों में वही धैर्य वही तेज दिखा जैसा उसे वीर की आँखों में दिखता था,आज अचानक ही जैसे अजय जवान हो गया हो,
‘चाचा,चाची मेरा परिवार है,मेरे भाई बहन मेरे परिवार है ,इनपे कोई भी हाथ नहीं उठा सकता ,आप भी नहीं ,अब मेरे पापा के जाने के बाद मैं इनकी जिम्मेदारी लेता हु ‘अजय का इतना बोलना था की बाली उसके पैरो को पकड कर रोने लगा,
‘मेरे भईया ,मेरे भईया वापस आ गए ….’सारे गाव के आँखों में चमक आ गयी सभी बच्चे दौड़ते हुए अजय से लिपट कर रोने लगे चंपा स्तब्ध सी अपने जगह पर खड़ी थी ,उसने मौत को इतने करीब से छूकर जाते देखा की उसकी रूह अब भी काप रही थी ,और अजय ,अजय एक शून्य आकाश में देखता लाल आँखों से अब आंसू सुख चुके थे ,मन बिक्लुत शांत था और चहरे पर दृढ़ता के भाव उसके द्वारा ली जिम्मेदारी का अभाश दिला रहे थे ,…..
शांत माहोल इतना भयावक की डर ही लग जाये,मानसून की हलकी फुहारे,भीगे हुए लोगो की भीड़ और भीगे हुए नयन,शमसान की सी शांति में कुछ सिसकते बच्चे और बिच में पड़ी हुई दो लाशे,ये वीर ठाकुर और उनकी पत्नी की लाश थी जो एक सडक हादसे का शिकार हो गये थे,वीर ठाकुर पुरे इलाके के सबसे ताकतवर और रुशुखदार व्यति थे,आज पूरा गाव अपने देवता के लिए आंसू बहा रहा था..लेकिन एक शख्स वहा मोजूद नहि था,बाली ठाकर,वीर ठाकुर का छोटा भाई,वीर और बाली की जोड़ी की मिशाले दी जाती थी,दोनों भाइयो कि सांडो सी ताकत वीर का तेज दिमाग और दयालुता न्याय प्रियता और बाली का भाई के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून इन दोनों को खास बनाता था,
इनके माँ बाप की जमीदार तिवारीओ से खानदानी दुश्मनी थी तिवारीयो ने उन्हें मरवा दिया,लेकिन बिन माँ बाप भी ये बच्चे शेरो जैसे बड़े हुए और जमीदारो के समानातर अपना वजूद खड़ा कर दिया…आज उनका सिक्का पुरे इलाके में चलता था,
वीर की शादी तिवारीयो के परिवार में हुआ था एक बड़े ही तामझाम के साथ और खून की नदियों की बाड में उनकी शादी हुई थी..सुलेखा रामचंद्र तिवारी की बेटी थी,दोनों में प्यार पनपा और वीर ने शादी के मंडप से ही सुलेखा को उठा लिया,इस बात पर खूब खून खराबा हुआ जिसका नतीजा हुआ सुलेखा के सबसे छोटे भाई वीरेंदर की मौत, आखिर कार मुख्यमंत्री के बीच बचाव और रामचंद्र की समझदारी से मामला शांत हो गया,समय के साथ मामला तो शांत हो गया पर दुश्मनी बरकरार रही…बाली लंगोट का कच्चा था जिसका सहारा लेकर तिवारियो अपने गाव की ही चंपा को बाली से जिस्मानी सम्बन्ध बनवाया और आखीर चंपा बाली के बच्चे की माँ बन गयी और उसके माँ बाप ने वीर के आगे गुहार लगायी आखीरकार मजबूरन वीर ने अपने वसूलो का सम्मान करते हुए बाली की शादी चंपा से करा दिया,चंपा ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरु किया और बाली को घर से अलग होने के लिए मजबूर करने लगी,बाली ने उसे मारा पिटा और प्यार से समझाने की कोसिस की पर सब बेकार बाली मजबूर था की उसके भाई की इज्जत का सवाल था वरना उसे कव का मर के फेक दिया होता,
वीर ने बाली को परेसान देख उसे अपने से ही लगा हुआ अलग घर बनवा दे दिया और चंपा से वादा किया की वो और बाली अलग अलग काम करेंगे…इस फिसले से किसी को कोई फर्क ना पड़ा क्योकि सभी जानते थे बाली और वीर अलग दिखे पर अलग नहीं हो सकते….
वीर और सुलेखा के 4 बच्चे थे जो इनके प्यार की निसानी थे सबसे बड़ा था अजय फिर सोनल और विजय जुड़वाँ थे फिर निधि ,बाली और चंपा के 2 बच्चे थे पहला उनकी हवास की निशानी किशन और दूसरी मजबूरी की निशानी रानी…तो क्रम कुछ ऐसा था की=अजय फिर 2 साल छोटे सोनल विजय फिर एक साल बाद किशन फिर एक साल बाद रानी फिर 2 साल बाद निधि…
अजय में पूरी तरह से वीर के गुण थे अपने भाई बहनों पे अपनी जान छिडकता था वही विजय और किशन बाली जैसे थे अपने भाई की हर बात को सर आँखों पर रखते थे,विजय तो पूरा ही बाली जैसा था अपने चाचा की तरह ही भाई भक्त और ऐयाश और बलशाली…
इस सन्नाटे में ये सब बच्चे ही थे किनके सिसकियो की आवाजे आ रही थी,बाली बदहवास सा आया और अपने भाई भाभी की लाश देख मुर्दों सा वही बैठ गया जैसे उसे समझ ही ना आ रहा हो क्या हो गया,अचानक से ही किशन और रानी अपने पापा को देख रो पड़े और बाली की और दौड़ पड़े की चंपा ने उन्हें पकड़ लिया और खीचते हुए ले जाने लगी,”अरे इतने काम पड़ा है घर का तुम लोग यहाँ तमाशा लगा रहे हो जो मर गया वो मर गया अब चलो यहाँ से ”
चंपा के ये बोल बाली को जैसे जगा गए उसकी आँखों में अंगारे थे,वो गरजा जैसे शेर को गुस्सा आ गया हो सारा गाव बार डर से कपने लगा,”मदेरचोद तेरे ही कारन मैं अपने भाई भईया से अलग रहा ,मेरे भाई ने तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की को इस घर की बहु बना दिया नहीं तो तुझ जैसी के ऊपर तो मैं थूकता भी नहीं,तेरे कारन मैं अपने भातिजो से नहीं मिल पता आज तक तुझे मेरे भाई ने बचाया था देखता हु आज तुझे मुझसे कोन बचाता है,” बाली ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठाई,और चंपा की तरफ दौड़ गया,उसको रोकने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी…उसने पुरे ताकत से वार किया.लेकिन ये क्या,,एक हाथ कुल्हाड़ी की धार को पकड़ के रोके है बाली ने जैसे ही उस शख्स को देखा उसका गुस्सा जाता रहा,वो अजय था,
बाली को उसकी आँखों में वही धैर्य वही तेज दिखा जैसा उसे वीर की आँखों में दिखता था,आज अचानक ही जैसे अजय जवान हो गया हो,
‘चाचा,चाची मेरा परिवार है,मेरे भाई बहन मेरे परिवार है ,इनपे कोई भी हाथ नहीं उठा सकता ,आप भी नहीं ,अब मेरे पापा के जाने के बाद मैं इनकी जिम्मेदारी लेता हु ‘अजय का इतना बोलना था की बाली उसके पैरो को पकड कर रोने लगा,
‘मेरे भईया ,मेरे भईया वापस आ गए ….’सारे गाव के आँखों में चमक आ गयी सभी बच्चे दौड़ते हुए अजय से लिपट कर रोने लगे चंपा स्तब्ध सी अपने जगह पर खड़ी थी ,उसने मौत को इतने करीब से छूकर जाते देखा की उसकी रूह अब भी काप रही थी ,और अजय ,अजय एक शून्य आकाश में देखता लाल आँखों से अब आंसू सुख चुके थे ,मन बिक्लुत शांत था और चहरे पर दृढ़ता के भाव उसके द्वारा ली जिम्मेदारी का अभाश दिला रहे थे ,…..