Update 76
मैने भी उसकी मनसा जान, ट्रिशा की परी के होठों को खोल्कर उसके लिए रास्ता बनाया और उसके छोटे से छेद पर अपना कड़क सोट जैसा लंड रख कर पुश करने ही वाला था कि मेरे फोन की बेल घनघना उठी…..!
इस वक़्त किस भेन्चोद की गान्ड में खुजली हुई है यार..! साला खड़े लंड पर हथौड़ा मारने जैसी हालत हो गयी मेरी तो.
फिर सोचा शायद कोई दोस्त मज़ाक करने के मूड में होगा तो उसको एक-आध गाली सुनाकर चुप करा दूं पहले.
यह सोचकर मैने फोन उठा लिया, पर जैसे ही मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लश हो रहे नंबर को देखा…मेरे सारे मसानों ने एक साथ पानी छोड़ दिया !!
मे ट्रिशा को सॉरी बोलकर, एक तौलिया लपेटा और बाहर बाल्कनी में आकर कॉल अटेंड की.
एनएसए चौधरी का फोन था, उन्होने मुझे जैसे ही परिस्थिति से अवगत कराया मेरा सारा सेक्स का मूड हवा हो गया, मेरा खड़ा लंड किसी डरपोक चूहे की तरह बिल में छिप गया.
उन्होने कहा – आइबी के हवाले से खबर मिली है, कि पड़ौसी मुल्क के पोर्ट से एक स्टीमर किसी बड़े टेरर अटॅक के लिए गुजरात के कोस्ट्ल एरिया जहाँ बीएसफ की निगरानी ना के बराबर होती है उस ओर निकल चुका है,
वैसे तो पूरे कोस्टल एरिया पर सेक्यूरिटी फोर्सस बढ़ा दिए गये हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि उन्हें रास्ते में ही रोक दिया जाए और हो सके तो उस स्टीमर को अपनी सामुद्री सीमा पर ही उड़ा दिया जाए.
हमारे 10 एजेंट्स को ये काम सौंपा गया है, जिनमें तुम भी शामिल हो, अति शीघ्रा तुमें कच्छ पहुँच कर कल शाम से पहले वहाँ रिपोर्ट करना है. आगे की सारी रिपोर्ट तुम्हें वही मिलेगी…!
मे कितनी ही देर अवाक अवस्था मे खड़ा उस फोन को देखता रहा, लगता है उपर वाले ने मेरी किस्मत गधे के लंड से लिखी होगी शायद.
तभी तो ऐसे मौके पर जो आदमी के जीवन में सिर्फ़ एक बार ही आता है, उसकी सुहागरात ,
और ये फोन ठीक उस वक़्त, जब हम एक होने जा रहे थे…
मे अपनी इन्हीं सोचों में खोया था, कि तभी ट्रिशा ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे चोंका दिया.
वो एक चादर लपेटे हुए मेरे सामने खड़ी थी.
मैने उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा – सॉरी जान ! मेरे फोन की वजह से तुम्हारा मूड ऑफ हो गया.. लेकिन क्या करता बॉस का फोन था उठाना ही पड़ा.
वो – इट्स ओके जानू मे समझ सकती हूँ..!
मे – अब मुझे इसी वक़्त निकलना होगा, ऑफीस में कुछ प्राब्लम हो गयी है,
ऑपरेशन रुका पड़ा है मुझे फ़ौरन बुलाया है, तुम थोड़ा अड्जस्ट कर लेना प्लीज़.
वो – इट्स ओके स्वीट हार्ट..! आप जाओ अपना काम देखो, अब तो हमें जीवन भर साथ रहना है, अपनी हसरतें तो हम कभी भी पूरी कर लेंगे.
आप मेरी चिंता बिल्कुल मत करो..!
मे – हो सकता है में कल भी ना लौट पाउ, ..? और तुम्हें तो कल शाम को निकलना था.
ट्रिशा मेरे हाथ अपने हाथों में लेकर बोली – कोई बात नही, हम निकल जाएँगे, आप अपना काम निपटाओ.. हमारी चिंता छोड़ दो.
अब जाओ ! लेट मत करो.
मैने फटाफट अपना बॅग पॅक किया, कपड़े पहने और ट्रिशा के होठों का चुंबन करके उसे बाइ बोला, और निकल गया अपनी कार लेकर.
अभी सुबह के 3:30 बजे थे, रोड तो सॉफ ही मिलने वाले थे सो भगा दी गाड़ी अपनी फुल स्पीड में, एक दो जगह पोलीस की चेकिंग मिली जो आम बात थी.
एक जगह बीच में एक रोड साइड ढाबे पर गाड़ी रोक कर फ्रेश हुआ, चाइ पी, जिससे आँखों से नींद की खुमारी थोड़ा कम हुई, और फिर चल पड़ा.
कोई 11 बजे में अपने गन्तब्य स्थान पर पहुँच गया.
वहाँ 9 लोग पहले से मौजूद थे जो मेरा ही वेट कर रहे थे, ये एक बीएसएफ का ही बेस कॅंप था जो विशेष पर्मिज़न से हमें मीटिंग के लिए मिला हुआ था,
हमारा परिचय वहाँ एनएसजी के कमॅंडोस के तौर पर दिया गया था.
हमारे सामने पाकिस्तान-हिन्दुस्तान की समुद्रि सीमा का मॅप रखा हुआ था, पता चला था कि वो स्टीमर सीमा पर पहुँच चुका है, और पड़ौसी मुल्क की नेवी की देख रेख में आज दिन भर वहीं रहेगा.
रात के अंधेरे में उसको वहाँ से निकाला जाएगा,
सीमा से हमारे तट तक पहुँचने में उसको दो घंटे से ज़्यादा समय नही लगेगा अगर कोई अड़चन नही आई तो.
इस तरफ चूँकि नमक का दलदल जैसा है, बहुत अंदर तक तो हमारी नेवी का कोई गस्ति शिप इधर नही आ सकता, इसलिए उन्होने इधर से घुसने का प्लान किया है.
यहाँ दूर-2 तक रेत और फिर नमक ही नमक है, तट पर भी बीएसएफ के अलावा और कोई सुरक्षा व्यवस्था नही है,
वो किसी तरह नमक के दलदल को पार करके घुसने की कोशिश करेंगे.
चूँकि उनका स्टीमर भी किनारे तक नही आ सकता तो वो उसे कुछ अंदर ही रखेंगे और वहाँ से लाइफ बोट्स के ज़रिए किनारे तक आएँगे जैसा कि हमारा अनुमान है.
मैने सवाल किया- तो हमारा प्लान क्या है..? हम कैसे रोकेंगे उन्हें..?
ग्रूप लीडर बत्रा ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पेन्सिल से निशान लगाते हुए बताना शुरू किया.
अगर मेरा अनुमान सही निकला तो वो इस पॉइंट तक अपना स्टीमर लाएँगे जो लगभग रात के दो बजे तक आ जाना चाहिए,
वजह ये है कि ये हमारे किनारे से नज़दीक भी है और यहाँ पानी की गहराई भी इस एरिया में सबसे अधिक है,
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है, कि यहाँ हमारी नेवी की कोई सेक्यूरिटी नही है.
फिर वो शायद कच्छ की तरफ सीधे तौर पर नही आएगे क्योंकि इधर बीएसएफ का बेस कॅंप है तो जाहिर सी बात है सेक्यूरिटी भी ज़्यादा होगी,
हमारे हिसाब से वो लाइफ बोट्स का इस्तेमाल करके राजस्थान बॉर्डर की तरफ रुख़ करेंगे, हालाँकि उधर रेत ज़्यादा है, लेकिन खारे पानी का दलदल कम है.
तो हमें शाम ढलते ही कच्छ के दलदल को पार करके वहाँ उन्हें किनारे पर पहुँचने से पहले उनकी बोट्स को रोकना होगा.
मैने बीच में अपनी नाक घुसेड़ते हुए कहा – इफ़ यू डॉन’ट माइंड ! तो मे कुछ सजेस्ट करूँ, सब लोग मेरी ओर देखने लगे.
लीडर बत्रा बोला – हां..हां ! श्योर ! यहाँ हम सबके व्यू लेने के बाद ही कोई डिसिशन लिया जाएगा, जो सबकी राय में उचित होगा वही एक्शन डिसाइड होगा.
मैने कहना शुरू किया – हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो अच्छे तैराक हैं..? मेरी बात पर तो मेरे अलावा 4 लोगों ने और हाथ खड़े किए.
और हमारे पास समुद्र के अंदर तैरने वाले सूट भी होंगे..मैने पुछा ! तो उसने हामी भर दी.
मैने आगे कहा – अब मेरे हिसाब से ये सही होगा कि अगर आपने जिस पॉइंट पर उनके स्टीमर को खड़ा रहने का अनुमान लगाया है वो अगर सही निकला तो हमें साउत की ओर से जहाँ पानी ही पानी है उधर से बोट द्वारा जाना चाहिए,
वो भी उनके वहाँ पहुँचने से पहले.
हम उनसे कुछ दूरी पर रह कर उनका इंतजार करेंगे,
पहले पहुँचने से एक फ़ायदा ये होगा कि अगर उनका स्टीमर हमारे अनुमान से थोड़ा इधर उधर भी हो जाता है तो हम उसे कवर कर सकते हैं.
स्टीमर को रुकने और लंगर डालने में, और फिर उसमें से लाइफ बोट उतारने में, उसमें समान ट्रान्स्फर करने में उनको कम-से-कम 1 घंटा तो लग ही ज्जाएगा,
इतनी देर में हम 5 लोग तैर कर उनके स्टीमर तक पानी के अंदर-2 पहुँच कर स्टीमर के आउटर सर्फेस में बॉम्ब फिट करके वापस आ सकते हैं.
इससे पहले कि वो लाइफ बोट में सिफ्ट हों, हम उस स्टीमर को ही उड़ा देंगे.
सब मेरी ओर देखते ही रह गये.. फिर कुछ देर बाद बत्रा बोला- प्लान तो सही है, लेकिन इसमें रिस्क बहुत है, बॉम्ब की इंटेन्सिटी हमें भी चोट पहुँचा सकती है.
मे – सर बिना रिस्क के हमारा कोई मिसन होता है क्या..? आप तो मुझसे ज़्यादा एक्सपीरियेन्स्ड हैं.
वो – सो तो है, फिर दूसरे लोगों की ओर देखते हुए बोला – आप लोगों की क्या राय है..
कुछ देर मिक्स डिसक्यूसषन के बाद यही तय हुआ कि हम उनके स्टीमर को बॉम्ब से ही उड़ाएँगे.
अब इस नये प्लान के मुताबिक हमें वहाँ से 150किमी साउत की तरफ जाना था, तो 4 बजे वहाँ से एक बीएसएफ की जीप में सारी ज़रूरत की चीज़ें लेकर निकल लिए,
उस किनारे के नज़दीकी कॅंप पर फोन करके एक बोट तैयार रखने को भी बोल दिया.
अचह्ी ख़ासी गाड़ी भगाने के बबजूद भी वहाँ पहुँचते-2 हमें काफ़ी अंधेरा हो चुका था…
प्लान के मुतविक दरिया किनारे पर हमें बोट खड़ी मिली, हमारी टीम जीप छोड़कर बोट की तरफ बढ़ने लगी, मैने उन्हें अभी बोट की तरफ जाने से रोक दिया.
मैने कहा – अभी हमारे पास काफ़ी समय है थोड़ा यहीं बैठ कर कुछ खा पी लेते हैं, जिसको जो करना है, यहीं निपटा लो.
तब तक मे इधर-उधर चक्कर लगाता हूँ, कोई कुछ प्राब्लम तो नही है.
उन लोगों ने वहीं एक घास के मैदान जैसी जगह में बैठ कर थोड़ा सा ड्रिंक वग़ैरह लिया, हल्का फूलका खाया पिया.
मे अपना बिनकलर गले में लटकाए हाथ में एक सॅंडविच लेकर निकल लिया थोड़ा जंगल की तरफ..
मे इधर-उधर नज़र मारते हुए आगे बढ़ता गया, थोड़ा दूर ही गया था कि मुझे दो लोग झाड़ियों के पीछे दिखाई दिए.
वो झाड़ियों के पीछे से हमारे ग्रूप पर नज़र रखे हुए थे.
मेरा अंदाज़ा सही निकला, ज़रूर ये किनारे की रेकी करके यहाँ का अपडेट दे रहे होंगे.
बोट को यहाँ देख कर चोन्कन्ने हुए होंगे और अब यहाँ आने-जाने वालों पर नज़र रख रहे हैं.
मे दबे पाँव उनके पीछे पहुँचा और गन हाथ में लेकर उनको ललकारा.. कॉन हो बे तुम लोग ? यहाँ छुप कर क्या कर रहे हो..?
उनमें से एक हड़बड़ाते हुए बोला – क.क.कुछ नही,,! त्तुम कॉन हो..? और इतने अंधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो..?
मे उनको गन पॉइंट पर लेकर बोला – साला उल्टा चोर कोतवाल को डान्टे..! हैं ऐसे नही मनोगे तुम लोग और मैने आगे बढ़के एक के जोरदार चाँटा रसीद कर दिया,
वो पीछे की तरफ उलट गया, तब तक दूसरे ने अपनी गन निकाल कर मेरे उपर तान दी और बोला-
साला हमसे पंगा लेगा तू..! अब देख साले तेरा भेजा कैसे उड़ाता हूँ मे, ये कहकर उसने गोली चला ही दी.
मे तैयार था, सो साइड में हटके उसकी गोली को बेकार कर दिया और उसके हाथ पर एक केरट जमा दी,
गोली की आवाज़ सुनकर मेरे दूसरे साथी भी उधर को दौड़े,
तब तक दूसरा वहाँ से खिसकने लगा तो पीछे से आकर मेरे एक साथी ने उसको दबोच लिया.
अब वो दोनो हमारे कब्ज़े में थे, थोड़े से इलाज़ से ही बक दिए कि वो इस किनारे की इन्फर्मेशन अपने स्टीमर तक दे रहे थे,
उनमें से एक का नाम मुस्ताक़ था, जिसके पास फोन थे और वो उन्हें टाइम टू टाइम इन्फर्मेशन पास ऑन कर रहा था.
ज़रूरत की जानकारी लेके हमने उन दोनो को शूट कर दिया और उनको बॉडी वहीं जंगल में पड़ा छोड़कर अपनी बोट की तरफ बढ़ गये.
बत्रा – तुम्हें कैसे पता लगा कि ये लोग हम पर नज़र रख रहे हैं..?
मे – यहाँ आने के बाद मेरे सिक्स्त सेन्स ने कहा कि कुछ तो गड़बड़ है, इसलिए आप लोगों को मैने रुकने के लिए बोला,
मे लिट्रली जंगल की तरफ आ गया और देखो ये लोग मिल गये, अब इसके फोन से उनकी स्थिति भी पता लग जाएगी.
बत्रा मेरी तारीफ किए बिना ना रह पाया और बोला – ब्रिलियेंट.. ! सच में तुम एकदम सटीक सोचते हो…
हम ये बातें करते-2 बोट तक पहुँचे ही थे कि तभी मुस्ताक़ का फोन बजने लगा..
मैने फोन पिक किया और मुस्ताक़ की आवाज़ निकाल कर बोला- हां भाई सलाम वलेकुम..!
मेरी आवाज़ सुनकर मेरे सभी साथी चोंक गये.. मैने मुस्करा कर उनकी ओर देखा.
उधर से पुछा गया – क्या स्थिति है अब उधर की, और कुछ पता लगा कि वो बोट किसलिए लगाई गयी है..
मे – लाइन एक दम क्लियर है भाई, वो तो पता नही कोई ऐसे ही खड़ी छोड़ गया होगा, शायद फ़्यूल ख़तम हो गया होगा इसका.
उधर से फिर बोला गया – तो इसका मतलब अभी तक ऐसा कुछ नही है ना उधर..!
मे – नही भाई इधर सब ठीक है, अब आप बताओ हमारे लिए क्या हुकुम है.
उधर से – ठीक है तुम वहीं रहो अब हमलोग भी वही आते हैं, कॉन साला वहाँ दलदल और रेत में मरेगा रात को, तब तक तुम लोग हमारे निकलने का पुख़्ता इंतज़ाम कर लो ठीक है,
अगर सब कुछ अच्छे से कर दिया तुमने, तो तुम लोगों को स्पेशल इनाम मिलेगा ओके. बाइ..
मे – ओके बाइ ! खुदा हाफ़िज़ भाई.. !
सब एकदम शॉक्ड रह गये.. ! एक तो मुझे मुस्ताक़ की आवाज़ में बात करते देखा, और अब वो लोग भी इधर ही आ रहे हैं, तो अब क्या करें, ये सवाल सबके चेहरे पर था.
सोचा क्या था और क्या होगया…!!
अचानक मेरे मुँह से निकल पड़ा- ये मारा पापड वाले को..!! सब लोग मेरे मुँह की तरफ देखने लगे..
बत्रा बोला- अब कौनसा आइडिया आ गया तुम्हारे इस कंप्यूटर में..?
मैने कहा – अरे यार ये तो साला मज़ा ही आ गया, वो कहते हैं ना कि हल्दी लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही चोखा..!
बत्रा – अबे साले सस्पेंस में ही मार डालेगा क्या..? कुछ बताएगा भी या ये पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा..!
मैने कहना शुरू किया – तो सुनो ! अभी क्या टाइम हुआ है, घड़ी देखते हुए..
हन ! 9:30 बजे हैं, आप फोन करके पास के ही किसी सोर्स से दूसरी बोट का इटेज़ाम करो 1 घंटे में.
वो – फिर..!
मे – पहले आप फोन करो फिर बताता हूँ..!
उसने बीएसएफ कॅंप में फोन किया और दूसरी बोट के लिए पुछा जो कि मौजूद थी, फ़ौरन एक घंटे में भेजने को बोला, तो उधर से कन्फर्म किया कि पहुँच जाएगी.
मे – अब सुनो, हम इस बोट में बॉम्ब फिट कर देते हैं और में इस बोट को ड्राइव करके उनके स्टीमर की ओर ले जाउन्गा,
आप लोग दूसरी बोट को मेरे से करीब 500 मीटर दूर रखकर फॉलो करना,
मे उन लोगों को फोन करके बोल दूँगा कि मे उनकी हेल्प के लिए अपनी बोट लेकर आ रहा हूँ.
वो लोग निश्चिंत हो जाएँगे और मेरी बोट पहुँचने तक इंतेज़ार करेंगे..
वो – फिर.. !
मे – वो लोग कुछ दूरी तक चेक करेंगे कि में बोट पर हूँ या नही लेकिन जब में उनके बेहद करीब मतलब150-200 मीटर पहले तक पहुँचुँगा.
वो निश्चिंत हो जाएँगे और चेक करना बंद करके मेरे पहुँचने का इंतजार करेंगे.
तभी में बोट की स्टेरिंग लॉक करके उसमें से पानी में कूद जाउन्गा, बोट फुल स्पीड में स्टीमर से टकराएगी और फिर भाड़ामम्म… बूमबब्ब्…!
सब भौचक्के मुझे ऐसे घूर्ने लगे जैसे में कोई भूत-वूत हूँ.
मे – क्यों क्या हुआ भाइयो..? आइडिया पसंद नही आया..?
बत्रा – नही मे तुम्हें ये ख़तरा मोल नही लेने दे सकता.
मे – अरे यार कोई ख़तरा नही है इसमें..! पानी में 150 मीटर तक बॉम्ब की इंटेन्सिटी इतनी ज़्यादा नही होगी और फिर आप लोग हो ही बॅक-अप के लिए मुझे सर्च कर लेना जल्दी ही अगर में ना पहुँच पाया तो..!
वो – नही मेरा मन नही मान रहा आक्स्पेट करने को..!
मे – देखो अब हमारे पास ज़्यादा समय नही है बर्बाद करने के लिए, और रही बात रिस्क की तो इतनी सारी जानें बचाने के लिए ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा,
देश ने हमें रखा ही ऐसे रिस्क लेकर देश की रक्षा करने के लिए.. अब ज़्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत नही है.
इतने में वो बोट भी आ गई, और प्लान के हिसाब से हमने उस बोट में बॉम्ब फिट कर दिया, उस बॉम्ब की पॉवर ओपन सर्फेस पर इतनी थी कि एक बड़े से माल को भी उड़ा दे.
ये सब करते-2, 12:30 हो गये, उस पॉइंट तक पहुँचने के लिए 1 घंटा लग सकता था,
मैने मुस्ताक़ के फोन से स्टीमर वाला नंबर डाइयल किया, लाइन मिलते ही जैसा सोचा था वैसे ही बोलकर फाइनल कर दिया,
वो लोग 2 बजे तक वहाँ पहुँचने वाले थे सो कुछ देर बाद हमने भी बोट स्टार्ट करली.
आधे रास्ते तक तो दोनो बोट्स साथ-2 चलाते रहे फिर करीब 1:30 को मैने अपनी बोट आगे बढ़ा दी,
धीरे-2 दोनो बोट की डिस्टेन्स 500 मीटर रखकर हम आगे बढ़ते रहे.
कुछ देर बाद ही हमें स्टीमर की तरफ से एक पतली सी लाइट की रेखा जैसी दिखने लगी, जो धीरे-2 बड़ी होती जा रही थी.
मुझे पता था कि स्टीमर से मेरी बोट को देखा जा रहा होगा सो मैने एक कपड़े से अपने सर को ढक लिया जो मेरे आधे फेस को भी ढके हुए था.
सच कहूँ तो मौत से सबको भय लगता है, जैसे-2 मेरी और स्टीमर की दूरी कम होती जारही थी, मेरे शरीर में कंपन जैसा होने लगा,
लेकिन कुछ कर गुजरने के जज़्बे ने मुझे हमेशा ही सपोर्ट किया है, और मेरे डर को कम किया है.
मैने बोट की स्टेरिंग को लॉक कर दिया और स्पीड बढ़ा दी,
तकरीबन हम दोनो के बीच 150-200 मीटर की ही दूरी बची थी कि मैने पानी में जंप लगा दी और जितनी देर में बोट स्टीमर तक पहुँचती और उससे टकराती मैने अपने तैरने की दिशा पकड़ ली और अपने साथियों की बोट की तरफ तेज़ी से तैरने लगा.
जैसे-2 बोट स्टीमर के नज़दीक पहुँचती जा रही थी, फिर्भी उसकी स्पीड में कोई अंतर आया ना देख स्टीमर में मौजूद आतंकवादियों में हड़कंप मच गया,
लेकिन तब तक उनके लिए बहुत देर हो चुकी थी, इससे पहले कि वो कुछ कर पाते बोट स्टीमर से फुल स्पीड में टकराई और फिर एक कर्नभेदी बिस्फोट समुद्र के सीने पर हुआ.
एक आग का बहुत बड़ा सा गोला, पानी से कोई 25-30 मीटर उँचाई तक उच्छलता चला गया…
बोट और स्टीमर के परखच्चे उड़ कर समुद्र के पानी के साथ हवा में उड़ते नज़र आने लगे.
स्टीमर में मौजूद बिस्फोटक की वजह से और कई जोरदार धमाके हुए, और कितनी ही देर तक समुद्र के पानी पर दूर-2 तक आग ही आग फैलने लगी.
पता नही पानी का इतना फोर्स कैसे पैदा हुआ, कि उसने 200 मीटर से भी ज़्यादा दूरी पर मेरे शरीर को हवा में उछाल दिया.
और जब मेरा शरीर फिर से वापस पानी से टकराया, तो मेरे शरीर को इतना तेज झटका पड़ा कि मेरा पोर-2 हिल गया,
स्टीमर की तरफ से आग का एक सैलाब सा मेरी ओर बढ़ता चला आ रहा था.
मरता क्या ना करता, ना चाहते हुए भी मे अपने हाथ पैर हिलान पर मजबूर था, जिससे कम-से-कम अपने को डूबने से बचा सकूँ,
इधर फ़्यूल समुद्र के पानी में घुलने से आग तेज़ी से मेरी ओर लॅप-लपाती हुई चली आ रही थी…
कुछ देर तक तो मैने पानी की लहरों से लड़ने की कोशिश की, लेकिन जल्दी ही मेरा होश जबाब दे गया और मे अंधेरे की गर्त में डूबता चला गया.…..!!
मुझे नही पता कि मे कितनी देर बेहोश रहा, लेकिन जब मेरी आँख खुली तो मे एक हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ था,
आँखों के धुधल्के में मुझे एक-दो मानव आकृतियाँ सी दिखाई दी,
जैसे-2 मेरी देखने की क्षमता समान्य हुई, तो मैने अपने पास खड़े एक आर्मी डॉक्टर और उसकी एक असिस्टेंट को पाया.
कॉंग्रुलेशन्स यंग मॅन आख़िर तुमने अपनी मौत को मात दे ही दी – उस डॉक्टर ने मेरे से कहा, तो मैने उससे पूछा.-
मे इस समय कहाँ हूँ डॉक्टर और मेरे साथी कहाँ हैं..?
डॉक्टर – वो लोग तो चले गये.. और तुम इस समय भुज के आर्मी हॉस्पिटल में हो, आज इस बेड पर लेटे हुए तुम्हें 12 दिन हो गये..!
मे – 12 दिन..? आख़िर हुआ क्या था मुझे..?
डॉक्टर – पहले का तो मुझे भी नही पता, लेकिन जब तुम्हें यहाँ लाया गया था, तो तुम्हारे शरीर के बाहरी हिस्से पर तो मामूली सी ही चोटें थी,
परंतु जब तुम्हारी पूरी बॉडी को एग्ज़ॅमिन किया गया, तो पता चला कि तुम्हारे शरीर को इतना जबेर्दस्त झटका पड़ा था कि बॉडी का पूरा स्ट्रक्चर ही हिल गया था,
एक-2 जॉइंट हिल चुका था, सारे लिगमेंट फट चुके थे.
फिर तुम्हारी पूरी बॉडी को प्लास्टर से कवर कर दिया गया जिससे तुम ग़लती से भी किसी हिस्से को हिला ना सको.
इंजेक्षन दे-देकर तुम्हें बेहोश रखा गया, खुराक भी इंजेक्षन के फॉर्म में या बोटेल चढ़ा कर दी जाती रही.
जब सारे लिगमेंट ओर जायंट्स पूरी तरह ठीक हो गये तब आज तुम्हारा प्लास्टर हटाया गया है और तुम्हें होश में लाया गया है,
अब सिर्फ़ तुम्हारी लेफ्ट लेग में फ्रॅक्चर है, तो वही पर प्लास्टर है जो कि अभी एक महीने और रखना पड़ेगा.
मे – मेरे दोस्त कब और क्यों चले गये..? मेरा समान कहाँ है..?
डॉक्टर – तुम्हारे एक दो दोस्तों को भी मामूली सी चोटें थी, जो दो दिन में ठीक हो गयी और वो चले गये,
उन्होने ये सामान दिया था तुम्हें देने के लिए जिसमें शायद ये वॉच तो शायद बंद हो गयी थी, सेल हमने चेक नही किया है, शायद उन लोगों ने ही स्विच ऑफ कर दिया होगा या हो गया होगा.
मैने अपना सेल लिया बेटर्री, सिम वग़ैरह निकाल कर चेक की और दुबारा डाल कर ऑन किया तो वो ऑन हो गया.
बेटर्री थोड़ा कम थी, चारजर भी नही था, सो उसका ज़्यादा यूज़ भी नही कर सकता था.
अभी मे कुछ और पुछ पाता या कर पाता, की मेरा सेल बज उठा, देखा तो ट्रिशा की कॉल थी,
मैने जैसे ही फोन पिक किया, वो शेरनी की तरह बिफर पड़ी.
ट्रिशा – कहाँ हो आप..? फोन क्यों बंद था इतने दिनो से..? जब से गये हो बात ही नही की..? क्या हुआ था..?
मे – ओ मेरी माँ साँस तो लेले..! मुझे कुछ नही हुआ, मे अब ठीक हूँ.
वो – अब ठीक हूँ मतलब.. कुछ हुआ था..? बताओ जल्दी क्या हुआ था आपको..?
मे- कुछ नही एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया था बस..
वो – आक्सिडेंट..? कब..? कैसे…? अभी कहाँ हो आप..? मुझे बताओ प्लीज़ मे अभी निकलती हूँ यहाँ से..!
मे – अभी मे घर पर नही हूँ, ईवन अपने शहर में भी नही हूँ, तुम्हें बाद में बताता हूँ, ओके.
वो – नही मुझे अभी बताओ कोन्से हॉस्पिटल में हो मे वहीं आती हूँ आपको लेने.
मे – सबर कर मेरी माँ, अच्छा मुझे 1 घंटे का समय देदो में बताता हूँ, ठीक है, ये कहकर मैने फोन कट कर दिया.
फिर मैने डॉक्टर से पुछा कि मे अपने घर कब जा सकता हूँ, तो उसने कहा कि कभी भी जाओ,
ये प्लास्टर ही है जो कुच्छ दिन और रहेगा, फिर उसे किसी भी फिज़ीशियान से कन्सल्ट करके निकलवा सकते हो.
मे – क्या आप मेरा जाने का अरेंज्मेंट करवा सकते हैं, तो उसने अपनी नर्स को भेजा किसी को बुलाने के लिए.
कुछ देर में ही एक आर्मी का कर्नल अंदर आया, और मेरे से बोला- व्हाट कॅन आइ दो फ़ॉर यू मिस्टर. अरुण. ?
मे – कर्नल मुझे अपने घर जाना है, क्या आप अरेंज कर सकते हैं..?
कर्नल – राइट नाउ..?
मे – यस..!
कर्नल – ऑफ कोर्स..! हमें उपर से आपकी हर संभव मदद करने की इन्स्ट्रक्षन्स हैं, सो यू बी रेडी, वी कॅन मूव विदिन अवर टाइम.
मे देखता हूँ कोना सा हेलिकॉप्टर रेडी है.
मैने फिर डॉक्टर से पुछा- डॉक्टर अब खाना खा सकता हूँ, तो उसने कहा श्योर कुछ भी खाओ, तो मे बोला- तो फिर खिलाओ ना डॉक्टर पेट में चूहे कूद रहे हैं.
डॉक्टर ने हसते हुए नर्स को खाना अरेंज करने के लिए बोला.
खाना खा कर मैने ट्रिशा को फोन करके बता दिया कि मे आज शाम तक अपने घर पहुँच जाउन्गा.
कुछ घंटों में ही हम मेरे शहर के मिलिटरी कांटोनमेंट के हेलिपॅड से फिर से मुझे चेक अप के लिए उस कॅंप के हॉस्पिटल ले जाया गया. और फिर एक नर्स को मेरे साथ भेज कर मिलिटरी की जीप मेरे घर तक छोड़ गयी.
घर आकर नर्स ने मुझे बेड रेस्ट की हिदायत दे थी, और खुद ने सब कुछ मॅनेज कर लिया.
मैने आते ही एनएसए चौधरी को कॉल किया, तो उन्होने मेरा हाल-चाल पूछा, और फिर मेरी तारीफ़ करते हुए बोले- .
चौधरी – सच में तुम कमाल हो अरुण, तुम्हारी मिसन रिपोर्ट बत्रा (ग्रूप लीडर) ने भेज दी है,
मे तुम्हें अभी मैल करता हू, पढ़ लेना क्या-2 हुआ था सारा डीटेल है उसमें, तुम्हारे बेहोश होने से लेकर हॉस्पिटल तक का भी.
मैने अपना लॅपटॉप ऑन किया, मैल चेक किए, बहुत सारे मैल पेंडिंग थे रीड करने को,
मैने-2 मैल ओपन करके देखे, जिसमें ट्रिशा के भी डेली के हिसाब से एक-दो, एक-दो मैल थे जिनमें वही उसकी चिंता झलक रही थी.
तब तक एनएसए का भेजा हुआ मैल आ गया, जिसमें वो रिपोर्ट थी, उसको मैने ओपन किया, और पढ़ने लगा,
वो हमारे मीटिंग से लेकर आक्षन तक सारा डीटेल था, सरसरी तौर पर देख कर मे अपने बेहोश होने के बाद के मॅटर पर आ गया, जो मेरा मैं क्न्सर्न था जानना कि क्या-2 हुआ था उसके बाद.