Update 142
अबतक उसके कमॅंडर को मेसेज मिल चुका था सो जैसे ही ये बात उसने सुनी, उसने फ़ौरन ऑर्डर दिया कि उनको सेक्यूरिटी में लेकर कॅंप तक सुरक्षित पहुँचाओ.
उसने मुझे सेलूट करने की कोशिश की तो मैने इशारे से उसे रोक दिया, हमने अपने हाथ नीचे किए और उनके पीछे-2 चल दिए.
थोड़ी दूर पर उनकी जीप खड़ी थी, उन्होने हमें उसमें बिठाया और कॅंप में सुरक्षित पहुँचाने का ड्राइवर को बोल कर वो लोग फिर से अपनी ड्यूटी पर लग गये.
पूरे रास्ते शाकीना मुझे अजीब सी नज़रों से घूरती रही, मैने उसके लवो को चूमते हुए कहा – ऐसे क्या देख रही हो जानेमन, अब हम एकदम सेफ हैं.., अब डरने की कोई वजह नही रही.
उसने मुझे अजीब सी नज़रों से घूरते हुए सवाल किया – आप पाकिस्तानी नही हो..? अब तक आपने जो बताया क्या वो सब झूठ था..?
मैने थोड़ा झिझकते हुए कहा- हां ये सच है, कि मे पाकिस्तानी नही हूँ,
लेकिन ये भी सच है, कि मे तुम सब लोगों का हितेशी हूँ, और दिल से चाहता था, कि तुम लोगों को मूषिबतों से बचाऊ.
वो मेरी बात सुनकर चुप रह गयी और गुम-सूम सी मेरी बगल में बैठी रही, फिर उसने कॅंप में पहुँचने तक कोई बात नही की.
ना जाने इस समय उसके मन में क्या चल रहा था..? सो मैने भी उसे इस वक़्त छेड़ना उचित नही समझा…
मैने एक दो बार उसको पुछ्ने की कोशिश भी की, लेकिन उसने मेरी बात का कोई जबाब नही दिया…!
कॅंप पहुँच कर में वहाँ के कमॅंडर इन चीफ से मिला जो हमारा ही इंतजार कर रहा था,
हमारी हालत ठंड की वजह से बहुत खराब थी, कपड़े गीले हो रहे थे, जिनमें से अभी भी पानी टपक रहा था…
उसने हमें फ़ौरन एक कॅंप में भिजवा दिया और हमारे लिए गरम कपड़ों का भी इंतेज़ाम करवाया.
कॅंप के अंदर पहुँच कर हमने अपने कपड़े चेंज किए और फिर एक अलाब के पास बैठ गये, जिसकी आग की गर्मी से हमें कुछ राहत मिली.
मैने शाकीना को अपनी ओर खींचने की कोशिश की, तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और अपना मुँह दूसरी ओर करके आग सेंकने लगी.
मैने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर सहलाया और बोला – क्या हुआ शाकीना ? क्या मेरे साथ आकर तुम खुश नही हो..?
मेरी बात सुनकर उसने पलट कर मेरी ओर देखा, उसकी आँखों से दो बूँद पानी की टपक पड़ी, फिर अपने आपको संभालते हुए बोली –
मैने आपके उपर अपनों से भी कहीं ज़्यादा यकीन किया, लेकिन आपने मुझे उस यकीन के काबिल नही समझा और अपनी पहचान छुपाये रखी.
यकीन मानिए, अगर आप अपनी हक़ीक़त पहले मुझे बता देते तो मुझे आपसे कोई शिकवा- शिकायत नही होती,
बल्कि और ज़्यादा फक्र होता..की मैने एक सच्चे इंसान से मुहब्बत की है.
मे – तो अब क्या तुम्हें अपनी मुहब्बत पर एतवार नही रहा..? या तुम्हें मेरी मंशा पर शक है, अगर समझ सको तो मे अब भी मजबूर था,
क्योंकि अगर मे ऐसा करता तो ये मेरे अपने मुल्क के साथ गद्दारी होती, जो मे अपने जीते जी तो नही कर सकता था.
क्या तुम यही चाहती हो कि मे अपने मुल्क के साथ गद्दारी करूँ..? या कभी तुम्हें मेरी नीयत में खोट नज़र आया..?
वो – नही ! कभी नही, और मे भी ये कभी नही चाहूँगी की आप अपने मुल्क के साथ गद्दारी करो..,
ये कहकर वो फिर से मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी और आगे बोली –
लेकिन अब मुझे अपनी अम्मी और बाजी की फिकर हो रही है, आपने कहा था कि आप उनको सब कुछ बता देंगे.. तो..
मैने कहा – बिल्कुल ! अभी लो और फिर मैने अपने स्पेशल नंबर से रहीम चाचा को कॉल लगाई, कुछ देर बेल जाने के बाद कॉल पिक हुई..
दूसरी ओर से उनकी आवाज़ आई – हेलो ! कॉन..?
मे – रहीम चाचा ! सलाम बलेकुम. ! मे अशफ़ाक़ बोल रहा हूँ.
वो – हां अशफ़ाक़ मियाँ बोलिए कहाँ से बोल रहे हैं आप..?
मे – चाचा मे इंडिया से बोल रहा हूँ..
वो – इंडिया से…? ओ…तो ये जो यहाँ सुबह-सुबह पूरे शहर में जो हंगामा बरप रहा है, वो तुम्हारी देन है…
मे – क्या हंगामा बरप रहा है वहाँ चाचा..?
वो – खालिद की लाश बहुत ही बुरी हालत में उसके ऑफीस में मिली है, तभी से पोलीस कातिल को पूरे शहर में शिकारी कुत्तों की तरह खोज रही है…
खबर है, कि देर रात कोई उसके सेक्यूरिटी चीफ के भेस में उसके ऑफीस गया था… और उसी ने उसको कत्ल कर दिया है…
मे – और कोई बात तो नही चल रही..?
वो – मुझे लगता है, कि असल बात दबाई जा रही है, वैसे तुम्हारा मक़सद क्या था उसे कत्ल करने का..?
मे कुछ देर चुप रहा, फिर मैने उन्हें सारी दास्तान कह सुनाई…,
फिर उनसे शाकीना के बारे में उसकी अम्मी और दूसरे परिवार के लोगों को इत्तला करने को कहा, इस हिदायत के साथ कि ये बात आम ना होने पाए…, अपने लोगों तक ही सीमित रहे…
बस आप उनको इतना समझा देना कि कंपनी के किसी ज़रूरी काम की वजह से मैने दोनो को दुबई भेज दिया है, अब वो दोनो वहाँ का काम संभालेंगे…