जगदीश राय ने लूँगी पहनकर दरवाज़ा खोला। सामने आशा को देखकर मन ही मन उदास हो गया।
आशा: अरे पापा… यह क्या…कहीं रेसलिंग करने चले हो क्या… इतना तेल लगा हुआ है…
जगदीश राय: अरे…यह…यह…तो बस…मैं…यु ही…नहाने जा रहा था…
तभी निशा सीडियों से उतार आयी।
निशा (मैक्सी पहने): पापा को डॉक्टर ने कहाँ है तेल लगाकर नहाने के लिए इसलिए…
आशा: अच्छा…तो क्या डॉक्टर ने पेशेंट के बेटी को भी बोला है साथ में तेल लगाने को?… तुम भी तो दीदी तेल लगायी हुई हो…चेहरे पे…हाथ पे…
निशा (झेंपते हुए): वह…तो।।मैं…
जगदीश राय:वह तो मुझे देख्कर।।मेरे साथ…इसने भी लगा दिया।।मेडिकल आयल है न…इसलिये।।
आशा: अच्छा।।स्ट्रँग।।दोनो मिलकर तेल मलो शाम के 4 बजे …मैं तो चली अपनी रूम…
निशा (मन में): साली का दिमाग…कुछ ज्यादा ही फास्ट चलता है…इससे छुपकर रहना एक चैलेंज होगा…
फिर थोड़े देर में सशा भी आ गयी। निशा अपने किचन के कामो में लग गायी।
जगदीश राय जब जब मौका मिलता किचन के सामने से गुज़रता। और निशा को नज़र मारता।
निशा जान-बुझकर कोई रिस्पांस नहीं देती। उसे पता था की पापा उसके लिए बैचैन है।
खाने के टेबल पर भी निशा और जगदीश राय एक दूसरे को देखते और मुस्कराते।
जगदीश राय कभी कभी उसके हाथो और जाँघो को हल्के से छु देता , पर निशा उससे दूर रहती।
रात को सोने से पहले , निशा पापा को दूध देने आयी।
जगदीश राय: बेटी…आशा-साशा 11 बजे तक सो ही जाते है…तुम चुपके से कमरे में आ जाना।।ठीक है…
निशा (हँसती हुई): नहीं पापा…मैं नहीं आऊँगी…आप आराम कीजिये…
जगदीश राय: पर…क्यों…बेटी…कुछ नहीं होगा…डरो मत…।
निशा (फिर हँस्ते हुए): अब आप एक बच्चे की तरह सो जाईये…चलिये।।
जगदीश राय: पर…
निशा(दरवाज़ा बंद करते हुए): गुड नाईट…स्वीट ड्रीम्स।।हे हे…
जगदीश राय रात भर करवटें बदलता रहा।
दिन में हुई घटनाओ, निशा की गिली चूत, उसपर लगी लाल बड़ी क्लिटोरिस, चूचे, गुलाबी निप्पल , मुलायम चमड़ी उसे सोने नहीं दे रहे थे।
वह खुद निशा के रूम में जाना चाहता था। कोई 4 बजे उसकी आँख लगी।
सूबह 8 बजे जगदीश राय की नींद बर्तनो की आवाज़ से खुली।
जगदीश राय मुह हाथ धोकर हॉल में पहूंच गया। निशा एक लूज मैक्सि, जो पैरो तक ढकी हुई थी, पहनी नास्ता बना रही थी।
निशा ने अपने गीले बाल एक सफ़ेद टॉवल में बांध रखे थे। और पानी की कुछ बूँदे बालों से गिरकर निशा के गर्दन पर फिसल रहा था।
जगदीश राय निशा का यह रूप देखकर बहुत उत्तेजित हो गया था।
निशा: अरे पापा।।आ गए…रुको मैं अभी चाय लेकर आती हूँ।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्हह
जगदीश राय , रूठे हुए अंदाज़ में निशा की तरफ देखा।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्या हुआ पापा…नाराज़ हो…मुझपर…
जगदीश राय: और नहीं तो क्या…।कल सारी रात मुझे नींद नहीं आई।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्यूँउउ?
जगदीश राय: अब बनो मत…तुम जानती हो…क्यो?
निशा (मुस्कुराते हुए): अच्छा जी…तो सारी रात किया क्या …हे हे…
जगदीश राय (बच्चे की तरह रूठे हुए): और क्या …तुम्हारा हर अंग मेरे आखौं के सामने झलक रहा था।।नीन्द कैसे आती…
निशा (चिढ़ाते हुए):ओह ओह …सो सैड।।।
जगदीश राय: वह छोडो।।नाशता तैयार है या नहीं…
निशा: आपके लिए तो दो दो नाश्ता तैयार है…
जगदीश राय: दो दो नाश्ता है…
निशा: एक जो कढाई में उबल रही है… और दूसरे जो यहाँ नीचे उबली हुई है।।
यह कहकर निशा ने अपनी मैक्सी घूटनों तक उठा ली।
जगदीश राय , कुछ पल तक मतलब नहीं सम्झा। और युही निशा को ताकता रहा।
निशा: सोच लो…यह ऑफर की लिमिटिड वैलिडिटी है।। एक बार आशा-सशा उठ गई तो आज सैटरडे तो कुछ नहीं मिलेंगा।
जगदीश राय की हालत प्यासे-को-कुवाँ-मिलने लायक हो गयी।
उसने बिना एक सेक्ण्ड गवाये निशा के सामने झूक गया और मैक्सी में घूस गया।
निशा अपने पापा का यह उतावलापन देखकर हँस पडी।
निशा: ओह ओह …धीरे धीरे पापा।।मैं यही हु…हे ह
और फिर निशा ने मैक्सी को गिरा दिया और जगदीश राय अंदर समां गया।
जगदीश राय मैक्सी के अंदर घूसते ही , थोड़ी बहुत रौशनी से जाना की निशा ने पेंटी नहीं पहनी है।
चूत से बहुत ही मादक सुगंध आ रहा था जो निशा की चूत की गंध और कोई मॉइस्चराइजिंग लोशन का वीर्य था।
जगदीश राय एक भूखे कुते की तरह निशा की गुलाबी चूत पर टूट पडा।
पर निशा के पैरो के बीच ज्यादा जगह न होने के कारण , जगदीश राय , कोशिश करने के बावजूद, सिर्फ निशा की जाँघे ही चाट पा रहा था।
निशा: रुक जाओ पापा…जो आपको चाहिये वह देती हु…
और फिर निशा , अपने दोनों पैर फैलायी और अपने हाथो को किचन प्लेटफार्म पर सहारा देते हुए, अपने दोनों पैरो को घूटने से मोड़ दिया।
निशा: अब ठीक है पापा।
जवाब मैं जगदीश राय ने अपने कापते होटों से निशा की खुली हुई गिली चूत को दबोच लिया।
निशा: ओह…।आआह्ह्ह्ह…पापा…धीरे…।
जगदीश राय निशा की चूत को पागलो की तरह खा रहा था, चाट रहा था। क्लाइटोरस को होटों से खीच खीच कर उसने लाल कर दिया था, सुजा दिया था।
वहाँ चाय उबल रहा था और यहाँ निशा अपने पापा से चूत चुस्वाकर झडने के कगार पर थी।
अब जगदीश राय ने अपनी जीभ को निशा के चूत के अंदर सरका दिया, निशा से रहा नहीं गया।
उसके लिए अब अपने पैरो को फैलाकर और मोड़कर खड़ा रहना , मुश्किल हो चला था। पैर कांप रहे थे।
वही जगदीश राय रुक्ने का नाम नहीं ले रहा था।
निशा: पापा मैं अब रोक नहीं सकती…।
यह सुनते ही जगदीश राय और तेज़ी से चूत के अंदर होठ घुसाकर चूत चाटना शुरू किया।
निशा: पापपपपपआ…।।यह गूऊऊऊड…।।आआअह्हह्ह्ह्हह्हआआह्ह्ह।
निशा जोर से झडी। निशा के चूत से इतना पानी निकल गया की जगदीश राय का मुह पूरा भर गया और बाकि जगदीश राय के शर्ट पर गिर गया।
निशा वही किचन के फ्लोर पर गिर पडी। जगदीश राय मैक्सी में से बाहर आ गया।
निशा के पैर थर-थर कांप रहे थे। और मैक्सी ऊपर चढ़ने के कारण चूत पूरी खुली पड़ी थी। जगदीश राय ने देखा कैसे चूत के होठ निशा के हर सास के साथ अंदर बाहर हो रही है और थोड़ा पानी उगल रही है।
जगदीश राय ने तुरंत अपना लंड बाहर निकाल लिया और निशा की चूत के पास ले गया।
निशा: पापा…अभी।।नही…प्लीज नही…मैं और सह नहीं सकती…ओह गॉड…आह।
जगदीश राय के चेहरे पर निराशा झलक उठी। निशा यह समझ गयी।
निशा (तेज़ सास लेते हुए): आज रात…मैं …पक्का ।।आउंगी…प्रॉमिस…
जगदीश राय मुस्कराया।
जगदीश राय: ठीक है।।तुम प्रॉमिस दे रही हो तो…मैं जानता हु अपने पापा से किया हुआ वादा नहीं तोडोगी।।
यह कहते हुए जगदीश राय ने निशा की चूत में 2 उँगलियाँ घूसा दी और उँगलियों को मोड़कर ढेर सारा पानी बाहर खीच लिया।
निशा: आअह्हह्ह्ह्ह।
जगदीश राय उँगलियों को चाटते हुए हॉल की तरफ चल दिया।
जगदीश राय: बेटी चाय लेके आ जाना।
फिर सारा दिन गुज़र गया। निशा और जगदीश राय एक दूसरे को जब चाहे घूरते रहते और मौका मिलते ही निशा पापा की लुंगी के ऊपर से लंड को दबा लेती।
रात को जगदीश राय तैयार हुए बेठा था। ठीक 12 बजे निशा उनके रूम पर घूस गयी।
निशा पूरी नंगी थी।
जगदीश राय: अरे वाह…आज मेरे कमरे में अप्सरा पधार रही है…
निशा: हाँ…आज आप मेरे इंद्रा भगवन है।।हे हे।।
जगदीश राय बिना कोई समय गवाये निशा पर टूट पड़ा।
कम से काम 4 बजे तक निशा को हर पोज़ में चोदता रहा।
निशा पापा की इस ताकत से वाक़िफ नहीं थी। वह 4 घंटे में कम से काम 6 बार झड चुकी थी।
निशा: पापा… प्लीज रुक जाओ…अब मैं और नहीं…
जगदीश राय: क्यों बेटी… क्या मजा नहीं आ रहा…।
निशा: मजा तो बहुत…आ रहा है… पर चूत दर्द कर रहा है… देखो तो कितना सुजा दिया है…।आपने।
जगदीश राय (तेज़ धक्का मारते हुए): अरे बेटी…यह तो आम बात है…नयी नयी चूदी हुई चूत थोड़ा सूज जाती है…खुद ब खुद संभल जाएगी…
निशा: नहीं पापा…और नहीं…।मैं थक गयी हूँ।।।
जगदीश राय: पर…मेरा क्या होगा।।क्या तुम मुझे ऐसे ही…
निशा: क्या मैं मेरे प्यारे पापा को तड़पती छोड सकती हु…।
निशा तुरंत 69 पोजीशन में कुद गयी। और अपने पापा का विशाल लंड मुह में ले के चूसना शुरु किया। लंड पर लगे अपने चूत का रस भी उसे भा गया था।
निशा अपने जीभ और होंठ से पापा के लंड को दबा दबा कर ज़ोर लगा कर चूस रही थी। जगदीश राय को ऐसे चूसाई ज़िन्दगी में नहीं मिली थी।
जगदीश राय: निशा बेटी…मैं झडने वाला हूँ…।