मां के हाथ के छाले
Part : 9
मां को ऐसे पैंटी में देख और ऊपर से उनकी ऐसी बातों से मैंने उनकी गांड़ मारने का मन बना लिया। फिर धीरे से मैनें उनकी पैंटी नीचे सरकाई और सामने का नजारा देख मेरे मुंह से लार टपकने लगी, सामने थी मां की पेशाब और उस अमृत रस से भीगी चूत जो अब तक गीली ही थी और शायद हमारी इन बातों से और गीली हो चुकी थी। पैंटी को उतारकर मैंने मां से कहा : मां, ये आपकी पजामी डालनी है अभी दोबारा या नहीं?
मां : अरे डालनी है बेटा, डालनी क्यूं नहीं, क्या मैं छोटे बच्चे की तरह घर में आधी नंगी घूमती फिरूंगी?
मैं और मां फिर हसने लगे और मैनें कहा : मां मेरा मतलब है के ये आपकी भीगी पड़ी है, इसलिए पूछा के डालूं अभी या नहीं?
मां : क्या भीगी पड़ी है?
मैं हंसते हुए : आपकी गांड़ और ये नीचे से भी
मां हंसते हुए बोली : अरे हां बेटा वो पेशाब से भीग गई थी ना, अच्छा हुआ तूने पूछ लिया पहले ही , वरना पजामी डालता तो वो भी भीग जाती। बेटा ऐसा कर इसे ना एक कपड़े से पोंछ दे पहले, फिर पजामी डाल देना।
मैं: ठीक है मां।
मैनें वही भीगी हुई पैंटी उठाई और उसी से गांड़ की दरार में फेरता हुआ चूत तक साफ करने लगा के मां बोली : अरे पागल है क्या.., ये तो पहले से ही भीगी है, कोई दूसरा कपड़ा ला
मैं हसने लगा और अपनी जेब से रुमाल निकल कर फेरने लगा और बोला : मां, आपका पेशाब इतना चिपचिपा आता है क्या?
मां : क्यूं, ऐसा क्यूं कहा तूने?
मैं: मां वो ये आपकी भीगी हुई जगह पर रुमाल लगाया ना तो चिपचिपा सा लगा मुझे, इसलिए।
मां सोचने लगी और हल्की सी हंसी को दबाके बोली : नहीं बेटा, शायद तेरा रुमाल ही ऐसा होगा।
मैं जानता था ये मां की चूत का रस है जो चिपचिपा और गाढ़ा है और मां को भी ये पता था पर वो जान कर भी अनजान बन ने का नाटक करती रही और मैनें भी मजे लेते लेते फिर से पूछा : बताओ ना मां, ऐसा पेशाब आता है क्या आपका?
मां : अरे नहीं बुद्धू ये तो बस…
मैं: ये तो बस, क्या मां?
मां : कुछ नहीं बेटा, छोड़ इसे अभी, फिर कभी बताऊंगी।
मैं भी सब्र के मीठे फल का ख्याल कर बोला : ठीक है मां
फिर रुमाल को धीरे से दरार से लेता हुआ पूरी चूत साफ करने लगा और साफ करके जब वो थोड़े से बाल टूट कर उस रुमाल में फसे तो मैं उन्हें मां को आगे की ओर दिखाने के लिए उनके पीछे झुका ही था के मेरा लोड़ा मां की नंगी गांड़ से जा टकराया और मां एकदम बोली : उई मां…आह
मैं रुमाल आगे करके बोला : क्या हुआ मां?
मां खुदको संभालते हुए बोली : कुछ नहीं बेटा, कुछ नहीं
मैं यूंही उनकी गांड़ से अपना लन्ड चिपकाए उनके पीछे झुका रहा और रुमाल दिखाते हुए बोला : देखो ना मां, आपके कितने बाल झड़ कर मेरे इस रुमाल में लग गए हैं।
मां मस्ती भरी आवाज में बोली : आ आ हां , बेटा टा, मेरे ये छाले ठीक हो जाएंगे ना तो मैं तेरा रुमाल साफ कर दूंगी और इन….
मैं भी उस गर्म गांड़ का एहसास लोड़े पे पाकर जन्नत की सैर करता बोला : और इन इन क्या मां , क्या मां?
मां : इन बालों को भी साफ कर दूंगी बेटा।
मैं: मां, आप कहो तो मैं कर दूं?
मां : जरूर बेटा।
हम दोनो बस एक दूजे के शरीर का मजा ले रहे थे बिना एक दूजे को जताए और हमारी ये बातें हम दोनो को ही मजबूर कर रही थी एक दूजे को चखने पर। इतने में मैं बोला : सच मां?
मां कुछ बोलती के इस से पहले डोरबैल बजी और हम दोनों की फट गई के कहीं पापा तो नहीं आ गए। हम दोनो एक दूसरे से तुरंत अलग हुए और
मां बोली : बेटा, कहीं तेरे पापा तो नहीं आ गए, हे भगवान।
मैं: मां, पापा ने सुबह तो कुछ कहा नहीं था के वो आने वाले हैं, आप रुको मैं देखता हूं।
मां इस वक्त नीचे से पूरी नंगी थी । वो अपनी झांटों वाली फुली हुई चूत और मोटी गांड़ लेकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी और बोली : जा बेटा देख और सुन, अगर पापा हुए तो तू उन्हे बताना नहीं के मैं तेरे कमरे में हूं, बोल देना के पड़ोस में गई हैं। अगर मैं अपने रूम के बाथरूम में घुसी तो मुझसे वहां की कुंडी बंद होगी नहीं और उन्होंने ऐसे देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी।इसलिए तेरे कमरे में ही छुप जाती हूं। तेरे कमरे में तो वो ज्यादातर आते ही नहीं हैं, जा अब जल्दी गेट खोल।
