पूर्णिमा की रात्रि – Update 3
दोपहर की भयानक धूप में सड़के आग की तरह गर्मी उगल रही थी.. कुछ लड़के पेड़ की चाव में दीवार पे बैठे हुए लूडो खेलने में इसे व्यस्त हो गई थे जैसे उन्हें गर्मी का कोई असर ही नही हो..
दीवार से बाद एक सड़क और उसके आगे था हमारा घर और घर के आगे के हिस्से में मां का छोटा सा क्लिनिक.. यहां के बाकी घरों में कोई नही रहता था सब दूसरी अच्छी जगह रहने चले गई थे और हम ने भी यह घर किराए पे ले रखा था.. एक लाइन में 4 से 5 बड़े बंगले थे और सड़क की दुसरी और भी उतने वाली जगा पे जैसे तैसे कही पर भी घर बने हुए थे छोटी छोटी गलियां उसके दोनो तरफ घर और कुछ दुकानें…हमारे घर वाली सड़क की दोनो और पेड़ लगे थे जिनकी चाव में पास पास के लड़के भरी दोहपर में बैठने आते और बच्चे खेलने…
एक काले रंग की बुलेट मां की क्लिनिक के आगे आके रुक गई.. सामने बैठे लड़को में से एक इस और देख बोला “देखो बे रंगाभाई” वही दूसरा लड़का बुलेट से उत्तर रही महिला की अर्ध नंगी पीठ को घूरते बोला “क्या माल़ है यार भाभी पीली सारी में क्या कयामत लग रही हैं उफ्फ यार देख तो सही कितनी गोरी है एक बार मिल जाए तो कच्चा खा जाऊं”

वही तीसरा लड़का दबी आवाज में बोला “चुप भोसडीके रंगा भाई सुन लिए तो तेरे साथ हमारी मां भी चोद देंगे” पहला लड़का अपने खड़े ओजार से परेशान होकर उसे मसलते हुए बोल पड़ा “क्या गलत बोल रहा है बे वो हे माल़ तो है वो रंगाभाई खुद प्रतिज्ञा भाभी को कितना छेड़े ही याद नही उनके पूरे परिवार का जीना हराम कर दिए थे तभी तो अंकल ने एक आवारा गुंडे से न चाहते हुए भी अपनी बेटी की सादी करावा दी नही.. ये तो भाभी की खूबसूरती का कमाल है की ये चुतीया शांत हुए बैठा है पता नही तूझे भाभी की मां को भी नही बक्शा साले ने”
रंगा और भाभी गेट से होते हुए क्लिनिक में घुस गई…