मां और मेरी शुरुआत की वो ठंडी रात – Update 4
मां ने मेरे शरीर पर अपना टॉवल उतार कर डाल दिया था और मैं उनकी गोद में बैठा था इसलिए मेरा चेहरा सामने की तरफ था और मैं उन्हें नहीं देख पा रहा था।
मां ने अगले ही पल मेरे गर्दन से होते हुए अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाया और जैसे अपने सिने में छुपा रही हो ऐसा करते ठंडी की सिसकी सी भरते हुए बोली – फू,…ये ठंड भी ना, बढ़ती ही जा रही है चीकू बेटे।
मैं – हां मां, देखो टाइम भी अभी लगभग 12 ही बजे हैं और अभी से ऐसा रहा तो मुझे लगता है कल सुबह तक तो हमारी हालत खराब हो जाएगी।
मां – मुझे भी यही लगता है चीकू बेटा।
मां ने अगले ही पल अपने हाथों को मेरे दोनों हाथों में डाल हथेलिया को घिसना शुरू कर दिया। ऐसा करने से हम दोनों को गर्माहट का एहसास मिल रहा था। हम दोनों अब थोड़ा थोड़ा कंपकपाने से लगे थे ठंड ही वजह से।
कांपते कांपते मां बोली – चीकू बेटा मेरी तो टांगें भी सुनन सी पड़ने लगी है।
मैं – ठंड ही इतनी बढ़ती जा रही है मां।
मां – हां ठंड भी और तेरा वजन भी थोड़ा ज्यादा है शायद इसलिए भी।
मैं ये सुनते ही उठ गया और घूम कर बोला – क्या मां, आप भी ना ,मेरी वजह से परेशान हो रही हो, आपने पहले क्यूं नहीं बोला, मैं नीचे बैठ जाता।
मां – नहीं ना, इतनी ठंडी में तुझे जमीन पर बैठा कर बीमार थोड़ी न करना है।
मैं घुटनों के बल बैठा और मां के दोनों टांगों को एक एक हाथ से उठा अपने घुटनों पर रख उनके पैरों की तलियों को अपने हाथों से घिसने लगा के मां को थोड़ी राहत मिले और पैर ठंड में सुन्न ना पड़े।
मां – अरे रहने दे बेटा।
मैं – रुको ना मां, आप बताओ थोड़ा आराम मिला?
मां – हां बहुत मिला बेटा, चल छोड़ अब इसे आजा मेरी गोदी में बैठ जा,आ।
मैं – नहीं मां, आपके ऊपर इतना वजन नहीं देना चाहता मैं। आप उठो एक बार।
मां – क्यूं?
मैं – अरे उठो तो सही।
मां स्टूल से उठी और मैं स्टूल पर बैठ गया और बोला – लो आप मेरी गोद में बैठो, आपको वजन भी नहीं लगेगा ऐसा।
मां – अरे नहीं बेटा? क्यूं तु इतना परेशान हो रहा है।
मैनें मां की बात को सुन उन्हें अपनी और खींचा और सीधा अपनी गोद में बिठा लिया । बहन चोद इतना गरम एहसास उस वक्त मिला ना के जैसे भूखे को भर पेट खाना मिल गया हो। मां की गांड इतनी गर्म थी के कुछ भी पलों में उन्होंने मेरे शरीर में भी अपनी गर्मी ट्रांसफर करनी शुरू कर दी।
मैनें भी मां की तरह ही उन्हें अपने सिने में भर लिया और उनकी हथेलियों पर अपनी हथेलिया रख कर उनके कान के पास पूछा – कैसा लग रहा है मां?
मां भी धीरे से बोली – अब अच्छा लग रहा है बेटा।
मैं – ठंड कम लग रही है ना।
मां – हम्मम।
मैं – आपके पैर भी करूं?
मां – हम्मम।
अब ठंड हम दोनों के दिमाग पर सवार होने लगी थी और हम दोनों बस किसी न किसी तरह से ये रात को जीते जी खत्म करना चाहते थे।
मैं थोड़ा सा आगे को झुका और अपने हाथों को उनकी हथेलियों से निकाल कर पैरों तक जैसे ही ले जाने लगा के मां ने फट से मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली – नहीं ये हाथों से मत निकल, मुझे ठंडी लगती है ज्यादा।
मैं – हम्मम।
फिर मैं हल्का सा पीछे हुआ और अपनी हथेलियां उनकी हथेलियों में डाल फिर से गर्म करने लगा और दूसरी तरफ मेरा चेहरा वक्त की नजाकत को समझते हुए खुद ब खुद उनके चेहरे के पास गया और मेरे मुंह से निकला – मां, हल्का सा ऊपर उठो ना एक बार।
मां भी हल्का सा ऊपर को उठी और इतने में मैनें अपनी टांगें सीधी कर दी और मां फिर से मेरी टांगों के ऊपर बैठ कर हाथों को घिसने लगी।
मैं अपने दोनों पैरों को मां के दोनों पैरों के ऊपर ले जा कर उन्हें भी घिसने लगा। करीब 5 मिनट तक हम चुप चाप यूंही एक दूसरे को घिसते रहे और नीचे लोवर में मेरा लोढ़ा ये सब में धीरे धीरे सख्त होता जा रहा था।
लोढ़ा मेरा ही था और वो सख्त होता जा रहा था, इस बात की तरफ मेरा ध्यान तब गया जब मां ने धीरे से मेरे कान के पास कहा – अब गरम गर्म लग रहा है।
मैं ये ये सुन कर जैसे होश में आया और लोडे को खड़ा महसूस कर अपनी थूक को अंदर निगल कर मां से बोला – क्या मां?
मां – तेरा हाथ और पैर।
मैं – अच्छा, अच्छा।
मैं और मां अब हाथों को हाथों से और पैरों को पैरों से जोड़ एक दूसरे को जिस्मानी गर्मी देते हुए वक्त गुजार रहे थे और ज्यादा एक दूसरे से कुछ भी नहीं बोल रहे थे।
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