You dont have javascript enabled! Please enable it! कैसे कैसे परिवार – Update 53B | Erotic Incest Family Story - KamKatha
कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 53B | Erotic Incest Family Story

अध्याय ५४: जीवन के गाँव में शालिनी
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दृश्य २: जीवन के गाँव में शालिनी:

बलवंत से गाँड मरवाने के पहले शालिनी:

इससे पहले कि जीवन उत्तर देता गीता शालिनी की गाँड पर अपनी जीभ घुमाने लगी और फिर आँखों से जीवन को देखा. जीवन मुस्कुराया और सिर हिलाता हुआ हट कर अपने पोतों के पास जा खड़ा हुआ.

“दादा जी , आपने दादी के लिए मस्त आइटम ढूँढा है. आपको मानना पड़ेगा.”

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. मानो मेरी झोली में आ गिरी है. न जाने मुझे लगता है कि ये मेरी स्वर्गीय पत्नी और उसके स्वर्गीय पति के आशीर्वाद से ही हुआ है. पलक झपकते ही हम यहाँ तक पहुंच गए. अन्यथा ऐसा कैसे सम्भव है?”

“हाँ, दादा जी, ये हो सकता है.” असीम ने कहा, फिर कुछ सोचकर बोला, “निर्मला नानी की विशेष डबलिंग करने का मन है. मम्मी को भी वैसे चोदे हुए बहुत दिन हो गए हैं.”

जीवन ने घूरकर उन दोनों को देखा, “जो भी करना नाना लोगों के सहमति से करना. नानियाँ तो तुम्हें कुछ मना नहीं करने वालीं, पर इन सब की सहमति भी ले लेना.”

कुमार: “आपका अर्थ है कि हम अन्य नानियों की भी विशेष डबलिंग कर सकते हैं?” उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई.

जीवन: “तुम क्या सोचते हो निर्मला के देखने के बाद ये दोनों रुकने वाली हैं? और गीता नानी को तो उनकी बेटी और अपनी माँ के सामने चोदना।”

कुमार: “दादा जी, यू आर ग्रेट. मैं सुशील नाना से पूछ कर आता हूँ.”

असीम: “अभी संयम रख, उधर देख नई दादी की गाँड को गीता नानी कैसे चाट रही हैं.”

बलवंत से गाँड मरवाने के बाद शालिनी:

पर गीता मुस्कुराई और शालिनी की गांड को खोलकर उसे अंदर से चाटने लगी. शालिनी अब ढेर हो चुकी थी. उसकी आँखें बंद थीं और वो जीवन से गाँड मरवाने की कल्पना में खो गई थी. कुछ देर बाद शालिनी को उठाया गया और वो लड़खड़ाती हुई जीवन के सीने से लग गई.

“अब हमें एक दूसरे से दूर रखने का अंतिम कारण भी समाप्त हो चुका है.”

“सच में. अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.” जीवन ने कहा तो वहां उपस्थित सब तालियाँ बजाने लगे.

सुशील ने असीम और कुमार को इसे उत्सव बनाने के लिए मदिरा पिलाने की आज्ञा दी.

अब आगे:

कुछ देर तक चुप रहकर असीम ने फिर अपनी पुरानी विनती दोहराई.

“चारों परिवारों के मिलने का कोई प्रबंध करो न दादाजी.”

जीवन ने घड़ी देखि फिर बोला, “ठीक है. देखता हूँ. मेरा फोन लेकर आ.”

असीम उठकर जीवन का फोन उठा लाया. जीवन ने गिरधारी को फोन मिलाया और स्पीकर पर कर दिया जिससे कि सभी सुन सकें.

“हैलो वैद्यराज!”

“अरे जीवन. कैसे हो?”

“अच्छा हूँ. आप कैसे हो?”

“अब तो मेरा जीवन सुखमय है. तुम सबका भला हो. बताओ कैसे फोन किया?”

“मैं इधर गाँव आया हुआ था. और…”

“तो मुझे क्यों नहीं ले गए. एक बार फिर से निरीक्षण कर लेता सबका.” ये कहते हुए गिरधारी हंसने लगे.

“यार, मुझे सूझा ही नहीं. अब आ जाओ.”

“देखता हूँ. क्या बात है?”

“क्या तुम अपने बेटे लोकेश से उस रिसोर्ट में हम सबको परिवार सहित कुछ दिनों के लिए कोई स्थान दिलवा सकते हो?”

“क्यों नहीं. रुको लोकेश यहीं है तुम स्वयं ही बात कर लो.” ये कहकर गिरधारी ने लोकेश को बताया कि जीवन का फोन है और उसे दे दिया.

“नमस्ते सर.”

“नमस्ते बेटा। हम सभी पुराने मित्र और उनके परिवार कुछ समय एक साथ बिताना चाहते थे. तो मैं जानना चाहता था कि क्या तुम्हारे रिसोर्ट में प्रबंध हो सकता है. और हाँ, ये परिवारिक मिलन का अवसर होगा.”

“बिलकुल. कितने लोग होंगे?”

जीवन ने मन ही मन गिना, “बीस”

लोकेश ने सीटी बजाई।

“ठीक है. हमने इस प्रकार के गुट के लिए भी कमरे इत्यादि बनाये हुए हैं. बहुत ही उत्कृष्ट प्रबंध है. आप सबको बहुत आनंद आएगा. आप कब आएंगे?”

“मैं कल तक बता पाउँगा. वैसे लोकेश कितना चार्ज होगा?”

“सर, आप सबने जो पापा के लिए किया है और उन्हें एक नया जीवन दिया है उसके सामने ये नगण्य है. आपसे मैं १०१ रूपये लूंगा हर दिन का. आप मुझे बस एक सप्ताह पहले बता दीजियेगा.”

“ये तो बहुत कम है लोकेश. तुम्हारा इससे अधिक व्यय होगा.”

“नहीं सर, पापा की प्रसन्नता के सामने पैसे का क्या मोल है. अब आप इस विषय में कुछ नहीं कहेंगे.”

“ठीक है लोकेश, जैसा तुम कहो. वैद्य जी को दो.”

“वैद्य जी?”

“अरे तुम्हारे पापा.”

“ओह!”

गिरधारी ने फोन उठाया तो जीवन ने पूछा, “क्यों घर पर अपने वैद्य बनने की चर्चा नहीं की?”

“जैसे ये मेरी बात पर विश्वास कर लेते. पर अब बता दूँगा।”

“गिरधारी, तुम भी आ जाओ न गांव, चाहो तो मधुजी को भी ले आना.”

“वो तो नहीं आ पायेगी. वैसे पूछ लूँगा।” फिर कुछ सोचकर, “चल मित्र परसों आता हूँ. कल कुछ कार्य हैं और मधु भी रिसोर्ट पर ही है और कल आएगी.”

“हम सब आपकी प्रतीक्षा करेंगी, वैद्यजी.” चारों स्त्रियों ने एक सुर में फोन में गीत गाया।

“ठीक है, मैं इंजेक्शन लेकर आता हूँ.” गिरधारी ने हँसते हुए कहा और फोन रख दिया.

जीवन ने अपने मित्रों को देखा.

“अब लगे हाथ बच्चों से भी पूछ ही लो.”

कँवल और बबिता के पुत्र उदय का विवाह सुशील और निर्मला की पुत्री सुरभि से सम्पन्न हुआ था. उन्हें एक पुत्री और एक पुत्र का सुख प्राप्त हुआ था. अब वो एक दूर नगर में रहते थे. उदय की अच्छी नौकरी थी और सुरभि ने दोनों बच्चों पर ही ध्यान देकर उन्हें बड़ा किया था. अब वो एक संस्था में अपना समय देती थी. जीवन द्वारा भी उन्हें हर वर्ष उनके विवाह की तिथि पर एक निश्चित राशि देता था. पहले कुछ वर्षों तक आपत्ति करने के पश्चात वे समझ गए कि ये रोकना सम्भव नहीं है. दूसरी ओर से जस्सी और पूनम भी उन्हें उपहार देते थे, पर जीवन के समझने के बाद वे भी एक राशि उनके नाम पर देने लगे. उनके बच्चे जब पाँच वर्ष के हुए तो जीवन ने वो राशि दोगनी कर दी थी. जब अठारह वर्ष की आयु पर करने पर पोते पोती के नाम से एक SIP चला दी थी.

फोन की बात सुनकर निर्मला असहज हो गई, “अरे ये कोई समय है? सब व्यस्त होंगे. कल सुबह बात करेंगे.”

बबिता बोली, “सब पता है किसमें व्यस्त होंगे. अपने माँ बाप चाचा चाची के लिए ठहर जाएँगे थोड़ी देर तो क्या प्रलय आ जाएगी?”

इन मित्रों में ये एक विशेषता थी. सबके बच्चे अपने माता पिता को छोड़कर अन्य को चाचा चाची ही बोलते थे. अब चूँकि सब एक ही आयु के थे तो ताऊ ताई बनने को कोई न माना था.

जीवन ने आना तर्क जोड़ा, “अगर व्यस्त हैं तो मेरे फोन से वीडियो कॉल करते हैं. देखें किस खेल में व्यस्त हैं रात में इतनी देर तक.”

निर्मला ने हार मान ली, “लगा लीजिये. आपको तो अपनी बेटी और पोती को ताकने का अवसर चाहिए है न?”

“क्यों नहीं? और तुझे अपने दामाद और नाती को.” जीवन ने उदय को वीडियो कॉल मिलाया। कुछ समय बाद उसी का पसीने से लथपथ चेहरा सामने आया.

“नमस्ते चाचा.” उसने हाँफते हुए कहा. “आप कैसे हो?”

“मैं ठीक हूँ, उदय. पर तुम क्यों हाँफ रहे हो?” जीवन ने हँसते हुए पूछा.

“अरे चाचा, अभी उतरा हूँ शुभि की सवारी कर के. आप कहाँ हो और इस समय कैसे मुझे फोन कर लिया?” शुभि उदय और सुरभि की बेटी थी. अभि उनका बेटा था जो शुभि से एक वर्ष छोटा था. दोनों से मिले हुए सबको लगभग एक वर्ष से ऊपर हो चुका था.

“और अगर मेरा अनुमान सही है तो अभि सुरभि की सवारी कर रहा होगा.”, एक हल्की सी चिंघाड़ सुनाई दी, “वैसे मैं गाँव आया हुआ था. हम सब बैठे बात कर रहे थे. इस बार असीम और कुमार भी आए हैं मेरे साथ.”

“अभि भी उतर गया है चाचा. ये तो बहुत अच्छा है जो आप गाँव इतने नियमित रूप से जाते हो. हम तो यहीं फँसे रह गए हैं.”

“तो आ जाओ, लाओ सुरभि की बात करवाओ निर्मला से, वो कुछ कहना चाहती है.”

थोड़ा फोन इधर उधर घुमा जिससे ये ज्ञात हो गया कि सब चुदाई ही कर रहे थे. फिर सुरभि का चेहरा दिखाई दिया तो जीवन ने निर्मला को फोन थमा दिया.

“नमस्ते अम्मा! कैसी हो?” सुरभि आज भी निर्मला को अम्मा ही पुकारती थी. हालाँकि उनके बच्चे उसे मम्मी कहते थे. “वैसे जीवन चाचा आये हैं तो मस्त ही होगी.” सुरभि हंस पड़ी.

“हाँ. इस बार तो वो असीम और कुमार को भी लाये हैं. हम सब सोच रहे थे कि क्यों नहीं तुम सब कुछ दिन के लिए आ जाते?”

“हमने भी यही सोचा है. आज ही इनकी दो सप्ताह की छुट्टी स्वीकृत हुई है. तो उसमें से पाँच दिन आपके साथ रहने का मन बनाया है और अन्य किसी रिसोर्ट इत्यादि में.”

“हम्म, हम सोच रहे थे कि यहाँ गाँव में न मिलकर हम किसी रिसोर्ट में ही मिलें. जीवन चाचा के एक मित्र हैं जिनका अपना रिसोर्ट है. हम वहीँ जाने का विचार बना रहे हैं.”

“पर अम्मा, वहां हमारा ये सब खेल कैसे होगा?”

“वो वैसा ही रिसोर्ट है.”

“सेक्स रिसोर्ट?”

“हाँ, पारिवारिक सेक्स रिसोर्ट.”

“ओह! ये पहली बार सुना है.:

“देश बहुत आगे बढ़ चुका है. बस हम ही पीछे रह गए.”

उदय ने फोन लिया, “चाची हम आ जायेंगे. आप बताना कहाँ है. मेरी छुट्टी अगले माह के पहले सप्ताह से है. आप बताना मैं टिकट कर लूँगा।”

“चलो, ये अच्छा हुआ. लो जीवन चाचा से पूछो.”

जीवन ने स्थान का नाम बताया और कहा कि वो उन्हें लेने छोड़ने का प्रबंध कर देगा. या स्वयं आ जायेगा. जीवन फोन रखने लगा तो निर्मला बोली, “अरे बच्चों के मुंह तो दिखा दो.”

अपने पोते पोती से दो एक मिनट बात करने के बाद फोन काट दिया. अभी कुछ और करने के पहले जीवन ने गिरधारी को फोन लगाया और तिथि बता दीं.

गिरधारी: “ठीक है, लोकेश सब कर देगा. जब तक चाहो रह लेना. और मैंने मधु से बात की तो मैं गाँव तो नहीं आ रहा हूँ. वो कह रही थी कि एक दिन के लिए रिसोर्ट ही आ जायेंगे तुम सबसे मिलने.”

“ये तो और भी अच्छा होगा. चलो फिर मिलेंगे.”

जीवन ने फोन रखा और असीम को एक पेग बनाने के लिए कहा. तुरंत अगला पेग सबको बाँटा गया.

असीम ने जीवन को देखकर संकेत दिया. जीवन समझ गया उसने बोला कि अपने नाना लोगों से पूछ लो. पर असीम सकुचा रहा था. जीवन ने उसकी सहायता करने का निर्णय लिया.

“चलो यारों! दो मिनट बाहर की सैर कर लेते हैं. असीम, कुमार तुम दोनों भी आओ.” सभी पुरुष अपने ग्लास लेकर बाहर चले गए.

बाहर पहुंचते ही जस्सी बोला, “क्या बात है जीवन? बाहर क्यों बुलाया?”

“असीम और कुमार तुम सबसे अनुमति चाहते हैं.”

“इन्हें अनुमति की क्या आवश्यकता है. ये जो भी चाहें उसके लिए हमारी स्वीकृति है.” सुशील ने कहा.

“पहले सुन लो.” जीवन ने कहा तो सब असीम और कुमार को देखने लगे.

“क्या हुआ बच्चों? ऐसा क्या है जो तुम अपनी नानियों के सामने नहीं कह सकते थे?” ये कँवल था.

असीम दो पल के लिए निशब्द हो गया. फिर साहस जुटाकर बोला, “नाना, मारना मत, चाहे मना कर देना और अगर गलत लगे तो क्षमा कर देना.”

किसी ने कुछ न कहा.

असीम: “मैं और कुमार ने दुहरी चुदाई का नया ढंग अपनाया है. मम्मी पर तो कई बार इसका उपयोग भी कर चुके हैं. एक दो बार सलोनी काकी पर भी. मम्मी को तो बहुत आनंद आता है और सोनी काकी भी उतना ही आनंद लेती हैं.”

“अच्छा तो फिर इसमें समस्या क्या है? तुम अपनी नानियों पर भी प्रयोग करना चाहते हो? तो ठीक है. क्यों भाई, किसी को कोई समस्या है? जस्सी फिर बोल पड़ा.

“नाना, उसमें चूत में दो लंड एक साथ डालते हैं. और गाँड में भी.” असीम ने अपनी बात कही और सिर नीचे कर लिया.

उसकी बात सुनकर सब सकते में आ गए.

जीवन: “मैंने भी सुनीति को आशीष के साथ ऐसे चोदा है. हम सबको बहुत आनंद आया था. इन्हें आज्ञा दे दो. वो सब भी नयी चुदाई का रस लेंगी और हमें भी नए ढंग से उन्हें चोदने का अवसर मिलेगा.”

सुशील: “चोट तो नहीं लगेगी? बुढ़िया रही हैं. ऐसा न हो कि चोटिल हो जाएँ.”

“नहीं नाना, हम बहुत ध्यान से करते हैं. इसमें उतनी गति नहीं बढ़ा सकते पर समंजस्य बहुत अधिक रखना होता है. पापा और नाना इसीलिए एक बार के बाद दोबारा मम्मी को ऐसे नहीं चोदे क्योंकि उनकी ताल नहीं मिल रही थी.”

चारों मित्र एक दूसरे को देखने लगे.

“हमें स्वीकार है. पर बहुत ध्यान से. उनकी आयु का ध्यान रखना. पहले किसे चोदने वाले हो?”

असीम और कुमार की बाँछें खिल गयीं.

“जिसे आप चाहो, नाना.”

“पूनम।” सबके मुँह से एक साथ ही निकला.

“जी.”

“चलो भीतर, हम उन्हें बता देते हैं. पूनम तो वैसे भी दिन में चुदवा कर भी ठंडी नहीं हुई है.”

सब अंदर आ गए. महिलाओं ने उन्हें प्रश्न भरी दृष्टि से देखा. जस्सी ने गला खँखारा और बाहर हुई बात बता दी. दो पल के लिए तो सारी महिलाएं विस्मित हो गयीं. फिर पूनम उठी और असीम और कुमार के सामने आ खड़ी हुई.

“तुम दोनों मेरी आँखों के तारे हो. अब आज रात मुझे नए तारे दिखा दो.”

“जी नानी.” कुमार ने उन्हें बाँहों में भर लिया.

पीछे से असीम ने भी उसे बाँहों में लिया और उसके मम्मे भींच दिए.

“दुष्ट, ऐसे दबाता है कोई? अब मैं जवान नहीं रह गई जो इतनी जोर से दबाओ.”

“अरे नानी, दोपहर में तो आपकी जवानी बड़ी निखर रही थी चुदते हुए. अब क्या हो गया?”

गीता बलवंत के पास आ बैठी, शालिनी जीवन के, बबिता कंवल और जस्सी के बीच में बैठ गई और निर्मला सुशील और जस्सी के बीच. जस्सी को दोनों ओर से घेर लिया था. क्योंकि उसकी ही पत्नी थी जो इस नए ढंग से पहले चुदने वाली थी.

“बच्चों से हमें सीखने होगा यारों. मैंने देखा है इन्हें सुनीति को चोदते समय. बहुत अच्छा तालमेल चाहिए. एक बार देखो फिर हम सब भी प्रयास करेंगे. बाद में.” जीवन ने कहा.

गीता बलवंत से बोली, “अपनी सुनीति तो हमसे भी आगे निकल गई.”

बलवंत केवल मुस्कुराया. जीवन ने भी यही किया.

शालिनी ने जीवन से पूछा, “ऐसी भी चुदाई होती है क्या?”

“हाँ. और भी बहुत ढंग हैं. साथ रहोगी तो आपका भी ज्ञान बढ़ेगा, जिसका उपयोग आप अपने परिवार में कर सकती हैं.”

शालिनी ने कोई उत्तर नहीं दिया. सबकी आँखें असीम और कुमार के बीच में पिसती पूनम पर केंद्रित थीं.

पूनम कसमसाते हुए उनसे बचने का स्वांग कर रही थी. और इस स्वांग में कुमार और असीम भी पूरा साथ दे रहे थे. शालिनी को नहीं पड़ रहा था.

“अगर वो छूटना चाहती है तो ये दोनों उसे छोड़ क्यों नहीं देते?” उसने जीवन से पूछा.

“किसने कहा कि वो छूटना चाहती है?”

“देखिये, आपको दिखाई नहीं दे रहा है?”

“ओह! ये तो नौटंकी है. ऐसा करने से सबकी ऊर्जा बढ़ेगी और चुदाई में अधिक शक्ति का संचार होगा. देखिये उन दोनों के लौड़े क्या तने हुए हैं. और पूनम की जाँघों पर आपको उसका पानी बहता हुआ दिख रहा है न?”

शालिनी ने ध्यान दिया तो जीवन की बात सही थी. उसे इस अठखेली का अर्थ समझ में आ गया. असीम जिस प्रकार से पूनम के मम्मे मसल रहा था उसके कारण वो लाल हो गए थे. कुमार ने असीम के हाथ हटाए और उन्हें जीभ से चाटने लगा और फिर मुँह में लेकर चूसने लगा. पूनम आनंद से दूभर हो गई. असीम ने हाथ मुक्त होने पर पूनम की चूत पर धावा बोल दिया. पूनम की चूत से पानी बहकर नीचे जमा होने लगा था. असीम की उँगलियों सरलता से उसमें अंदर बाहर आ जा रही थीं. कुमार ने अपना चेहरा उठाया और पूनम को चूमा. मानो पूनम किसी तंद्रा में चली गई. वो इतनी शक्ति साथ कुमार को चूमने लगी जैसे उसके होंठ ही चबा जाएगी. कुछ देर बाद पूनम ने हाँफते उसे चुंबन तोड़ा।

कुमार ने असीम से कहा, “लगता है नानी की चुदास बहुत उमड़ रही है. लौड़े लेने के लिए तड़प रही है.”

असीम ने अपने नानाओं को देखा और फिर जस्सी की ओर देखकर मूक आज्ञा माँगी। जस्सी ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी. बबिता और निर्मला ने जस्सी की जाँघों पर हाथ रखा और धीरे से दबाया. जस्सी का लौड़ा फुँफकारने लगा.

“अपने नाती पोतों से अपनी पत्नी की चुदाई देखने का सुख कितने ही लोगों को मिलता है. है न?” बबिता ने कहा तो जस्सी ने सहमति में सिर हिलाया.

“नानी, अब असीम नीचे लेट रहा है. आपको उसके लंड पर बैठना है, पर उलटे. लंड चूत में लेना है. मैं आपके सामने रहूँगा।” कुमार ने बताया तो पूनम बोली.

“ऐसे तो मैं गाँड और चूत एक साथ मरवा चुकी हूँ. कर लूँगी।”

असीम नीचे लेटा और पूनम उसके सिर की ओर पीठ करते हुए उसके लंड पर बैठती गई जब तक कि लंड पूरा समै नहीं गया. चूत इतनी गीली थी कि लंड गप्प से चला गया. कुमार ने पूनम को कुछ उछलने का संकेत किया तो पूनम असीम के लौड़े पर उछलकूद करने लगी. फिर कुमार ने उसे रोका.

“नानी, अब आप संयम रखना। इधर उधर मत हिलना.” कुमार ने कहा तो असीम ने पूनम के सीने को हाथों से घेरा और उसे थोड़ा सा अपनी ओर खींच लिया. अधिक खींचने से लंड बाहर निकल सकता था. अब कुमार आगे बढ़ा और पूनम की चूत पर लौड़ा रखा.

“नानी. अब आप देखना कितना आनंद आएगा. मम्मी की चीखें निकल जाती हैं ऐसी चुदाई में.”

कुमार ने धीमे से अपने लंड को अपने भाई के लंड के समतल अंदर धकेलना आरम्भ किया. पूनम श्वास रोके इस नए संवेदन को अनुभव कर रही थी. चौथाई लंड डालकर कुमार ने लंड बाहर निकाला और असीम ने भी अपना लंड आधा बाहर कर लिया. कुमार फिर असीम के लंड के साथ साथ पूनम की चूत में उतरने लगा. इस बार आधे से अधिक लंड अंदर चला गया और असीम का पूरा लंड अंदर ही था.

“ओके. अब तक कैसा है नानी?” कुमार ने पूछा.

“पूरा भरा भरा. चूत पूरी फ़ैल गई है. पर अच्छा भी लग रहा है.”

“ठीक है. आप अब एक नयी यात्रा पर जा रही हो.”

असीम और कुमार अपने लंड एक साथ अंदर बाहर करने लगे. कुमार का लंड इस क्रिया से धीरे धीरे पूरा अंदर चला गया. दोनों भाई एक ताल में पूनम की चुदाई करने लगे. दर्शक ध्यान से देख रहे थे. आयु के इस पड़ाव में भी वे नई युक्तियाँ सीखने के लिए उत्सुक थे. उन्हें कुछ ही पलों में ये स्पष्ट हो गया कि इस चुदाई में संयम और लयबद्धता की अत्यधिक आवश्यकता थी. संयम से उन्हें कोई समस्या नहीं थी. परन्तु लय बैठाना कुछ कठिन था. असम्भव नहीं परन्तु कठिन अवश्य था. महिलाएं भी पूनम की इस विशिष्ट चुदाई को देखकर अपनी चूतें मसल रही थीं. वो देखना चाहती थीं कि पूनम इस प्रकार की चुदाई में कितना सुख पाती है, या उसे कष्ट होता है. अभी तक दोनों में से किसी का कोई प्रमाण नहीं था.

पूनम को अपनी चूत वर्षों बाद पूरी भरी हुई अनुभव हो रही थी. इतने वर्षों की निरंतर चुदाई ने चूत के पाट खोल दिए थे. उसके पति और मित्रों सामर्थ्य, शक्ति और क्षमता के कारण उन्हें सम्भोग में आज भी लगभग उतना ही आनंद मिलता था. कुछ विशेष तैल इत्यादि के प्रयोग ने उनकी चूत और गाँड की संकीर्णता को एक सीमा तक सुरक्षित रखा था. परन्तु आज का अनुभव अविस्मरणीय होने वाला था. असीम और कुमार अकेले ही सम्पूर्ण चोदू थे, साथ में उनकी चुदाई में आनंद दोगुना हो जाता था.

पूनम की चूत मानो बीस वर्ष पूर्व जैसी अनुभव कर रही थी. दोनों लंड सरलता से अंदर बाहर आ जा रहे थे और उसे आशा थी कि अब से उन्हें इस प्रकार का सुख अपने पति और मित्रों से भी मिलेगा. कुमार ने लंड बाहर निकाला तो पूनम ने उसकी ओर अचरज से देखा.

“नानी, अब अपनी चूत खुल गई है. आप पलट जाओ. मैं पीछे से लंड डालूँगा। आपको और भी अधिक आनंद आएगा.”

कुमार ये बताना भूल गया कि अब उसकी चुदाई की गति तीक्ष्ण होने वाली है. उसने सहारा देकर पूनम को पलटने में सहायता की. जब पूनम पलट गई तो उसे आगे झुकाया और असीम में उसके मम्मों को अपने मुँह में ले लिया. कुमार ने फिर लंड अपने भाई के लंड के साथ अंदर डाल दिया. कुछ मिनट की धीमी चुदाई के साथ उनकी ताल मिल गई. और इसी के साथ उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी. पूनम की अब सिसकारियों ने हल्की धीमी चीखों को स्थान दे दिया था. उसका आनंद उसकी संतुष्टि की कथा उसकी बढ़ती हुई चीखें सुना रही थीं.

असीम और कुमार को इस प्रकार की चुदाई का बहुत अनुभव था. अपनी माँ पर तो वो इसका उपयोग करते ही थे, पर अन्य स्त्रियों को जो उनके प्रेम या वासना में अभिभूत होती थीं, उन्हें भी इसका सुख देने से हिचकते नहीं थे. विवाहित और विधवा महिलाएं इसमें अधिक रूचि रखती थीं. बबिता, निर्मला, गीता और शालिनी उसकी आनंद भरी चीखों से स्वयं इस प्रकर की चुदाई के लिए लालायित हो रही थीं. गीता को पता था कि उसे ये सुख अपनी बेटी के घर जाने पर ही प्राप्त होगा. शालिनी के विषय में भी उसे शंशय था. उसे बबिता और निर्मला के लिए विश्वास था कि वो उसके नातियों को छोड़ने वाली नहीं थीं.

बहुत समय तक इस प्रकार से चुदाई के बाद असीम और कुमार ने घोषणा की कि वो अब झड़ने वाले हैं. परन्तु उन्होंने रुकने का कोई प्रयत्न नहीं किया. एक के बाद लगभग एक ही समय दोनों ने अपना रस पूनम की चूत में उढ़ेल दिया. कुछ समय अपना लंड अंदर रखने के बाद कुमार ने लंड बाहर किया और खड़े होकर पूनम को असीम के लंड से उतारा, पूनम वहीँ लेट गई. उसकी आँखों में तारे चमक रहे थे. गीता ने बबिता को देखा और उन्होंने ने शालिनी और निर्मला को लिया और पूनम की ओर चल दीं।

शालिनी को कुमार के लंड की ओर करते हुए उसने स्वयं अपने नाती असीम के लंड को मुँह में लिया और चाटने लगी. बबिता और निर्मला ने पूनम की जाँघों और चूत पर धावा बोल दिया. सब चट करने के बाद उन्होंने पूनम को उठाया और प्रश्नों की झड़ी लगा दी. पूनम ने अपने अनुभव को स्वर्ग से भी सुंदर बताया और उन्हें भी इसे अनुभव करने की सलाह दी. पूनम न कहती तो भी ये तो होना ही था. निर्मला और बबिता ने असीम और कुमार की ओर देखा.

“आज आप दोनों को भी हम चोद सकते हैं. और अवश्य ही आपको चोदे बिना नहीं सोने देंगे. और कल इसका दूसरा भाग होगा.” कुमार शालिनी के मुँह में लंड डालते हुए बोला।

“दूसरा?” पूनम धीमे से पूछ बैठी.

असीम: “नानी, अपने क्या सोचा कि आपकी गाँड ऐसे ही मारे बिना हम घर लौटने वाले हैं?”

पूनम: “क्या? गाँड भी मारोगे एक साथ?”

असीम और कुमार ने एक साथ कहा, “बिलकुल.”

गीता ने सुशील और जस्सी की ओर देखा. उसका प्रयोजन था कि इतनी घनघोर चुदाई देखकर जस्सी की चुदाई की इच्छा भड़क चुकी होगी. और सुशील इसीलिए क्योंकि उसे विश्वास था कि अब असीम और कुमार निर्मला की ही चुदाई करने में इच्छुक होंगे क्योंकि बबिता को तो चोद ही चुके थे. उसने शालिनी का हाथ पकड़ा.

“जाओ अपने होने वाले पति को पूर्ण रूप से अपना लो. अब कोई बाधा नहीं है.”

पूनम की अब चुदने की शक्ति नहीं थी. असीम और कुमार को भी कुछ विश्राम चाहिए था. बबिता अब फिर से चुदने के लिए उत्सुक थी और उसने बलवंत और कँवल के बीच बैठकर अपना अधिकार जमाया. शालिनी को जीवन ने अपनी गोद में बैठा लिया और उसके मम्मों से खेलने लगा. गीता जस्सी और सुशील के बीच जा बैठी. असीम और कुमार सबके लिए पेग बनाने लगे. उन्हें इसकी अधिक ही प्यास थी. और उनके अनुमान में पूनम नानी को भी. पेग लेकर सब पूनम की ओर देखने लगे तो वो शर्मा गई.

अंततः जस्सी ने ही उसे छेड़ा, “मैं तो समझा था कि ये बुढ़ा गई है, मुझे क्या पता था कि ये अभी भी चुदाई में झंडे गाढ़ सकती है. सच में पूनम, तुम पर मुझे गर्व है. अब देखना तेरी चुदाई ऐसे भी करेंगे हम.”

“न मैं बुढ़ाई हूँ जी, न आप. अब बलवंत भाई साहब न जा रहे होते तो अच्छा होता, पर अब आप कँवल और सुशील भाईसाहब को ही संभालना होगा.”

“अरे हम आते रहेंगे, जैसे जीवन आता है. अब तो शालिनी भाभी भी आएँगी साथ में. ये न सोचना कि हम जायेंगे तो लौटेंगे ही नहीं. जीवन जैसे अभी आता है, वैसे ही आते रहेंगे. तुमने क्या सोचा हम तुम सबसे दूर रह पाएंगे?” बलवंत ने रुंधे कंठ से बोला तो सबका मन भर आया.

“हाँ नानी. और हम भी आएँगे दो दिन की हो तो बात है. आ जाया करेंगे अपनी प्यारी प्यारी नानियों चोदने के लिए.”

“हाँ हाँ, बस चोदने ही आना. जैसे और कोई संबंध ही नहीं है.” बबिता ने कहा तो असीम उसके पैरों में लोट गया.

“नहीं नानी. ऐसा नहीं है. अब बात जिस संदर्भ में चल रही थी उसी संदर्भ में मैंने कहा है. आपका प्रेम, आपके हाथ का खाना, बहुत कुछ है जिसके लिए आएँगे।”

बबिता ने उसके बालों को सहलाया।

“आ जाया करो. मेरे बच्चे तो न जाने क्यों नहीं आते. मेरा मन रोता है उनके लिए.”

जीवन ने ये सुना तो उसने मन में कुछ निर्णय लिया. अपने मित्रों से दूर रहना उसे भी रास न आता था. उसने आशीष से इस विषय में बात करने की ठान ली.

जीवन: “मैं उनसे बात करूँगा. उन्हें इतनी दूर रहने की आवश्यकता नहीं है. मेरे मन में एक विचार है. एक बार मुझे नायक परिवार से बात करनी होगी. समीर और पवन का भी खेती का ही कार्य है. देखते हैं अगर हम मिलकर कुछ कर सके तो. ऐसा हुआ तो उदय और सुरभि भी निकट ही आ सकेंगे. परन्तु अभी इस विषय में कुछ कह नहीं सकते. मैं प्रयास अवश्य करूँगा।”

ये सुनकर पूनम, बबिता और निर्मला की आँखों से ऑंसू निकल पड़े. यही कारण था कि वे जीवन से इतना प्रेम करते थे. उसके मित्रों ने भी उसे अपनी बाँहों में भर लिया. उनकी आँखें भी भीगी हुई थीं. जीवन के मन में संकल्प लिया कि वो इसे सम्भव करने का भरसक प्रयत्न करेगा. इस समाचार से सबके मन फिर से प्रफुल्लित हो गए और एक पेग और बनाया गया. सबके चेहरे दमक रहे थे. शालिनी जीवन के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थी.

जब तक सबके पेग समाप्त हुए तब तक एक नई स्फूर्ति भर गई थी. उत्कृष्ट मदिरा ने भी इसमें उचित योगदान किया था. निर्मला किसी युद्द में जा रही वीरांगना के समान उठी और जहाँ पूनम की गाँड मारी गई थी वहाँ जाकर बैठ गई. कुमार और असीम उसके सामने खड़े हुए और उनके लौड़े उसके मुँह में समा गए. गीता ने सुशील और जस्सी के लंड मुँह में लेकर चूसना आरम्भ किया तो बबिता ने कँवल और बलवंत के लंड मुँह में ले लिए. जीवन ने हाथ बढ़ाकर शालिनी को उसी बिस्तर की ओर अग्रसर किया जहाँ बलवंत ने उसका स्वागत किया था.

किसी ने घड़ी की ओर देखने का कष्ट भी नहीं किया. आज की रात भरपूर चुदाई की रात थी. और इसका अंत सुबह सूर्योदय से पूर्व नहीं होना था.

रात अभी शेष थी.

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