You dont have javascript enabled! Please enable it! कैसे कैसे परिवार – Update 49 | Erotic Incest Family Story - KamKatha
कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 49 | Erotic Incest Family Story

अध्याय ४९
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दृश्य ७: सुरेखा:

अब तक:

“सब ठीक है बाबूजी. आप जाइये और मेरी सुरेखा को ले आइये. और इन दोनों को मेरे साथ छोड़ने के लिए धन्यवाद.”

कुछ और भावनात्मक पलों के बाद सुप्रिया और समर्थ चले गए. सुप्रिया की आँखों में आँसू थे. उसे अचानक ही अपने अकेले होने का आभास हुआ और एक पति की कमी का अनुभव हुआ. सुरेखा को समर्थ ने नागेश के पास छोड़ा तो कुछ देर और अश्रु-मिश्रित मिलन हुआ. फिर शनैः शनैः एक सामान्यता आ गई और मानो वो परिवार अपने पूर्व की स्थिति में आ गया.

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अब आगे:

सुरेखा समर्थ के घर पर थी. पूरा परिवार साथ बैठा चिंतन में डूबा था.

“मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि नागेश ने हमारा इतना आदर किया. ऐसा कैसे हो सकता है कि उसके मन में कोई भी द्वेष न हो?” समर्थ ने पूछा.

“मेरे विचार से उसने सुरेखा से विच्छेद इसीलिए ही स्वीकारा था क्योंकि इन तीनों को कोई क्षति नहीं पहुँचाना चाहता था. उसने इसे नियति माना होगा.”

“पापा पहले मम्मी पर गुस्सा थे कि उन्होंने उनसे बात भी नहीं की. पर बाद में कहने लगे थे कि पूरी सच्चाई नहीं बता सकता था. इसके बाद उनका व्यवहार भी अच्छा हो गया था.”

“अब क्या?” सुप्रिया बोली.

“प्रतीक्षा. दो महीने बाद ही वो अपना निर्णय बताएगा.” समर्थ ने कहा.

“पापा. डाइवोर्स अभी प्रक्रिया में ही है. क्या उसे हम रोक सकते हैं?” सुरेखा ने पूछा.

समर्थ को मानो एक झटका लगा.

“ये तो मैंने सोचा ही नहीं. भला हो हमारे देश की न्याय प्रणाली का जो इतनी धीमी चलती है. मैं अभी वकील से बोलकर इस पर रोक लगाता हूँ. अगर दो महीने बाद नागेश नहीं माना तो पुनः आरम्भ कर देंगे ” समर्थ ने अपने फोन पर किसी का नंबर ढूँढ़ते हुए बोला।

ये सुनकर सुरेखा ने सिर झुका लिया और मन ही मन प्रार्थना की. संजना जो उसके साथ बैठी थी उसका हाथ पकड़कर बोली, “मम्मा, आप चिंता न करो. मैं पापा को ले आऊँगी।”

सुरेखा ने अश्रु भरी आँखों से संजना को देखा और मुस्कुरा कर सिर हिला दिया. दूर बैठी सुप्रिया के मन में एक हूक उठी. जीवन में उसने इस प्रकार के संबंध का मूल्य नहीं समझा था. पर अपनी बहन और भतीजी को देख उसे अपनी क्षति का आभास हुआ. पर क्या अब इस क्षति की भरपाई की जा सकती थी? इसका उत्तर तो भविष्य के गर्भ में छुपा था.

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“मेरी पत्नी चाहती है कि मैं घर लौट आऊँ।“ नागेश ने अपने साथ लेटी स्त्री से कहा.

“मुझे इस बात का सदा भय था कि ऐसा किसी दिन ऐसा ही होगा. जिस दिन उन्हें इस बात का आभास होगा कि तुम्हारी स्थिति का उत्तरदाई मेरे पति थे, उन्हें अपने किये पर पश्चाताप होगा.”

“उसने इसका मूल्य चुकाया. न जाने किस गाड़ी ने उसे टक्कर मारी जो आज तक नहीं मिली पुलिस को.”

“हाँ. और इस कारण मुझे अब तक बीमे का भुगतान नहीं हुआ है.”

“हो जायेगा. वैसे भी कम्पनी में भागीदारी के कारण तुम्हें किसी प्रकार की कोई कमी तो है नहीं.”

“हाँ. और जो कमी होती है वो तुम पूरी कर देते हो. वैसे कल घर में क्या कर रहे थे? हर दिन के समान यहाँ क्यों नहीं आये थे?”

“कुछ कपड़े और लेने थे. दो महीने के अनुसार. उनका आना अप्रत्याशित था.”

“तो अब क्या विचार है?”

“सोचा नहीं उतनी दूर. तुमसे बात किये बिना कुछ नहीं करूँगा, ये निश्चित है.”

“अच्छा जी!”

“हाँ, और अब आओ और इसे चूसो। एक बाद और तुम्हारी चुदाई अब हो ही जानी चाहिए.”

ये सुनकर वो स्त्री नागेश के लंड को चूसने लगी.

“मैं तुमसे दूर नहीं जाऊँगा,” अचानक नागेश ने उस स्त्री के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, “ऐसा मैं नहीं करूँगा, सुमन.”

लंड चूसना रोक कर सुमन ने नागेश की ओर देखा, “क्या हुआ?”

“मैं ये कभी नहीं भूल सकता कि जिस स्थिति में तुमने आकर मेरा साथ दिया था, उस समय में नितांत अकेला था. परिवार छूट चुका था और आत्मविश्वास भी अपने निम्नतर स्तर पर था. पता नहीं, पर ऐसा अंदेशा है कि अगर तुम न आतीं तो सम्भवतः मैं आत्महत्या ही कर लेता. नहीं, मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता. और अगर सुरेखा को ये स्वीकार्य नहीं होगा तो यथास्थिति बनी रहेगी. अब बच्चे भी मिलने आने लगेंगे.”

सुमन नागेश के चेहरे पर छाई पीड़ा को समझ गई. वो नागेश के सीने से लग गई.

“जब मुझे पता चला था कि मेरे पति ने तुम्हारे साथ क्या किया था तो मैं तुमसे क्षमा माँगने ही आई थी. तुम्हें सम्भवतः याद न हो, पर उस समय तुम्हारी टेबल पर डाइवोर्स पत्र पड़ा था. जिसे मैंने उस समय चोरी से देख लिया था. मेरे पति के पाप का प्रमाण मेरे सामने था. उस समय ही मैंने तुम्हारे दुःख को कम करने का बीड़ा उठाया था. पर ये भी वचन लिया था कि अगर कभी भविष्य में तुम्हारा परिवार एक होता है तो मैं बाधा नहीं बनूँगी।”

“पर मैं तुम्हें बाधा नहीं मानता। अब दो माह के लिए हूँ, कुछ प्रेम भी कर लो.”

“इस बार मैं हर शनिवार आऊँगी और दो दिन तुम्हारे ही साथ रहूँगी। पर आज के लिए तो बात सही लगती है.” ये कहते हुए सुमन फिर नागेश के लौड़े को चाटने में जुट गई.

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“उनके घर में कोई और महिला भी रहती है.” सुरेखा ने कहा. वो सुप्रिया के कमरे में उसके साथ बैठी थी. सुप्रिया ने उसकी आँखों में पीड़ा देखी तो उसे समझाया.

“देख, अगर उसे पाना है तो ये भूलना होगा. तुमने तलाक दिया था, चाहे वो पूर्ण हुआ हो या नहीं. पर उसे तुमने ही मुक्त किया था. और वैसे भी इतने महीनों से जो जीवन शैली तुमने अपनाई है उसे भी तुम्हें नागेश को बताना ही होगा. अन्यथा जैसे वो छुपा रहा था वही तुम करोगी. हालाँकि उसका आशय तुम्हें बचाने का था.”

“पर ये जानकर तो वो कभी नहीं लौटेंगे!” सुरेखा ने अत्यंत भावुक होकर कहा.

“क्या पता? जीवन में कुछ निश्चित नहीं होता. अगर वो इतने दिनों के व्यभिचार को क्षमा कर दे तो क्या तुम इस सबके बिना जीना चाहोगी?”

सुरेखा इतने दिनों के असीमित आनंद का स्मरण करने लगी. ये सच था कि इस आनंद का कोई पर्याय नहीं था. क्या करे? पति और पतन इनमें से एक का चुनाव करना था. सुप्रिया के होंठों पर एक मुस्कान थी. वो जानती थी कि ये निर्णय कितना कठिन है. उसने स्वयं इस शैली से दूर होने का कई बार प्रण किया था, पर हर बार हार गई थी. और जिन कारणों से हारी थी वे आज भी इस घर में उपलब्ध थे. अपने फोन से एक संदेश भेजकर वो ठहर गई. सुरेखा क्या उससे अधिक संयमी सिद्ध होगी? ये परीक्षण के परिणाम ही बताएगा कि नागेश के साथ सरल जीवन व्यतीत करने की क्षमता सुरेखा में है या नागेश को भी अपनी कामलीला में सम्मिलित करने का प्रयास करना होगा.

कमरे के अंदर तीन परछाइयाँ दिखीं तो सुप्रिया ने उस ओर देखा. सुरेखा अब भी आँखें बंद किया चिंतन में थी. सुप्रिया ने संकेत किया तो निखिल समझ गया कि आगे क्या करना है. वो अपने भाई के साथ अपनी माँ को इस प्रकार के संकट से कई बार निकाल चुका था. उसने और नितिन ने निःशब्द कपड़े उतारने आरम्भ किये तो सजल ने भी उनका अनुशरण किया. सुप्रिया ने उन्हें एक ओर जाकर खड़े होने का संकेत दिया. निखिल और नितिन इस भावनात्मक उलझन को कई बार देख चुके थे और उन्हें रुकने में कोई आपत्ति नहीं थी. सुरेखा को लग रहा था कि कमरे में कोई आया है. पर वो अपने अंतर्द्वंद में इतनी खोई थी कि इस ओर ध्यान नहीं दे पाई.

नागेश के साथ जीवन के इतने वर्षों के आनंद की तुलना इन कुछ महीनों से करने में उसे बहुत कठिनाई हो रही थी. वो दोनों को पाना चाहती थी. हो न हो, उसका परिवार उसे इस प्रयोजन में अवश्य सहायक सिद्ध होगा. वो नागेश को मनाने का भरपूर प्रयत्न करेगी. चाहे उसे नागेश की प्रेमिका को भी स्वीकार क्यों न करना पड़े. उसके चेहरे के बदलते भावों को सुप्रिया ध्यान से पढ़ रही थी और जान गई कि सुरेखा अब मन बना चुकी है. उसने तीनों भाइयों को देखा जो अपने लंड सहला रहे थे. सजल को ये पता न था कि उसे किसे चोदना है. वो तो अपने भाइयों की राह पर चल रहा था.

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समर्थ और शीला ने अपने कमरे से ये देखा और फिर एक दूसरे की ओर देखकर एक साथ बोल उठे, “काश, सब ठीक हो जाये.”

समर्थ ने शीला को चूमा, “विश्वास करो. सब ठीक ही होगा.”

शीला: “आप पता लगाओ न कौन है जो नागेश के साथ रह रही है.”

समर्थ: “मैंने अपने आदमी को काम पर लगा दिया है. मुझे भी नागेश के घर में एक इत्र की सुगंध का आभास हुआ था. चिंता न करो एक दो दिन में सब पता चल जायेगा.”

शीला: “फिर क्या करोगे?”

समर्थ: “कुछ नहीं. सुरेखा और सुप्रिया को बता दूँगा। इस बार पहले जैसी गलती नहीं करूँगा। इस बार सुरेखा को स्वयं निर्णय लेना होगा. वो वैसे भी इसके लिए स्वयं को ही दोषी मान रही है.”

शीला: “फिर संजना का क्या करोगे? वो आपसे चुदने के लिए उत्सुक है.”

समर्थ: “नहीं. वो चुदने के लिए उत्सुक है, आवश्यक नहीं है कि मुझसे. मेरे विचार से नागेश के लौटने तक हमें कुछ नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से स्थिति बिगड़ सकती है और नागेश फिर कभी क्षमा नहीं करेगा. ध्यान रहे संजू के कारण ही वो अब तक हमसे बंधा हुआ है.”

शीला: “अपने सही कहा. उसे समझा देंगे.”

समर्थ: “सम्भवतः उसकी आवश्यकता ही न पड़े.”

शीला: “मैं उसे देख कर आती हूँ.”

समर्थ: “जाओ. पर देर मत लगाना.”

शीला संजना के कमरे में गई तो वो लेटी हुई कोई पुस्तक पढ़ रही थी. शीला को देखकर वो बैठ गई.

शीला: “कैसी है, गुड़िया?”

संजना: “अच्छी हूँ नानी. और अब लगता है और अच्छी हो जाऊँगी। पापा लौट आएँगे।”

संजना के दृढ़विश्वाश को देखकर शीला को अचरज हुआ.

“एक समस्या है,” शीला ने कहा, “तुम्हारे पापा के पास कोई और भी रहता है.”

“हाँ. वो सुमन आंटी हैं. क्यों?”

“तुम जानती हो उन्हें?”

“मुझे पापा के विषय में सब पता है.” संजू गर्व से बोली.

“ओह! कौन हैं ये सुमन आंटी?”

“पापा के पिछले बॉस की पत्नी. उन्हें जब पता चला था कि उनके पति के कारण हमारा घर टूटा तो वे प्रायश्चित करने आई थीं. फिर पापा की अवस्था देखकर उन्होंने ही पापा को सँभाला था. वैसे वो पापा के घर कम रहती है. पापा ही वहाँ रहते हैं. इस घर में तो कभी कभार ही आते हैं अब.”

“तो वो तुम्हारे घर क्यों आएँगे?”

“सुमन आंटी ने मुझे बोला था कि अगर पापा हमारे पास आना चाहेंगे तो वो रोकेंगी नहीं. सच कहूँ नानी तो बस यही एक कारण है जिससे मैं दुविधा में हूँ. व् न होतीं तो सम्भवतः पापा आज जीवित ही न होते, और हम उन्हें ही पापा से दूर करना चाहते हैं. समझ नहीं आता क्या करूँ.”

“तुम चिंता न करो. तुम्हारे नाना सब ठीक कर देंगे. हम सब कल सुबह मिलकर बात करेंगे.”

“ओके, नानी.”

शीला कमरे से निकलने को ही थी तभी संजना बोली, “नानी. अब मैं नाना से अपना कौमार्य भंग नहीं कराऊँगी। कौन होगा पता नहीं. पर नाना से मेरी ओर से सॉरी बोल देना.”

“चिंता न करो. नाना ने मुझे अभी कुछ देर पहले यही कहा है. अब तुम सो जाओ. सुबह देंखेंगे.”

शीला ने जाकर समर्थ को पूरी बात बताई तो वो घर चिंतन में पड़ गया. फिर उसने शीला से कहा कि कल सुबह ही बात करना ठीक है. ये एक दुविधा है जिसका समाधान सुरेखा को ही करना होगा.

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सुरेखा ने जब आँखें खोलीं तो सुप्रिया को ही सामने बैठा देखा. सुप्रिया को देखकर उसकी आँखों में आँसू भर आये.

“मैं क्या करूँ, दीदी?”

सुप्रिया का मुँह खुला रह गया. सुरेखा ने उसे न जाने कितने ही वर्षों बाद दीदी पुकारा था. इसका अर्थ यही था कि सुरेखा ने जो निर्णय लिया था वो उसे स्वयं ही स्वीकार्य नहीं था.

“वो उसे नहीं छोड़ेंगे.” सुरेखा के मन की पीड़ा ने सबको हिला दिया, “मैं क्या करुँगी?”

“श्श्श्शश, इतना नहीं सोचते। पापा कुछ प्रयास कर रहे हैं. फिर हम दोनों चलेंगी उसके पास. उससे विनती करेंगी कि वो नागेश को मुक्त कर दे. पर तुम इससे अधिक कोई और प्रलोभन मत देना. और अब मन को थोड़ा विश्राम दो. देखो तुम्हें मिलने कौन आया है?”

ये कहते हुए उसने तीनों भाइयों को संकेत दिया जो आगे आ गए. सुरेखा ने उन्हें देखा तो उसके मन की व्यथा को लालसा और कमलौलुपता में परिवर्तित होने में अधिक समय नहीं लगा.

“अब तुम इनके साथ अपना दुःख भूलने का प्रयास करो. मैं चली अपनी संजू पास.”

ये कहकर सुप्रिया उठी और जब तक द्वार खोला तब तक तीनों भाई सुरेखा को घेरकर अपनी बाँहों में बाँधने लगे थे.

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अपने कमरे पर एक ही रात में दो बार खटखट सुनकर संजना मुस्कुरा उठी. उसके पापा ने आज सबकी नींद उड़ा दी थी. कमरा बंद तो था नहीं तो उसने अपनी मौसी को अंदर आते देखा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. वो मौसी को देखकर मुस्कुराई तो सुप्रिया ने भी उसे प्रेम भरी दृष्टि से देखा.

“मौसी! आओ न!”

“मैंने सोचा आज अपनी संजू के ही पास क्यों न सो जाऊँ।”

“सच मौसी. तब तो बहुत मजा आएगा.”

“मेरा भी यही विचार है.” सुप्रिया ने नँगे होते हुए कहा तो संजना को ध्यान आया कि वो उचित पोशाक में नहीं है. उसने तुरंत खड़े होकर अपने वस्त्र त्यागे तो सुप्रिया के सामने जा खड़ी हुई.

“मेरी मिश्री की डली.” सुप्रिया ने उसके होंठों को चूसने के पहले कहा और दोनों प्रेमालिंगन में लिपट गए.

कुछ ही देर में संजू पलंग पर लेटी अपनी मौसी के सिर को अपनी चूत पर लगाए हुए सिसकियाँ ले रही थी और सुप्रिया उसके रस को चूस चूस कर पी रही थी. संजना के रस को पीने के बाद वो उसे बाँहों में लेकर लेट गई.

“नानी आईं थीं. पापा के बारे में बात करने.”

“अच्छा!” सुप्रिया ने संजना के उभरते हुए स्तनों के छेड़ते हुए पूछा.

“हाँ, मैंने उन्हें सुमन आंटी के बारे में भी बता दिया.”

“सुमन आंटी कौन?”

इसके बाद संजना ने वही कथा सुनाई और सुप्रिया को सुरेखा का कार्य और जटिल लगने लगा. उसने निर्णय लिया कि वो जाकर सुमन से बात करेगी. सम्भवतः वो नागेश से दूर हो जाये. उसकी प्रतिक्रिया जानकर ही वो सुरेखा को आगे के लिए कुछ सलाह देगी. वो ये नहीं जानती थी कि कल अपना चक्र चल चुका था. नियति ने अपना निर्णय ले लिया था. और वो निर्णय उन सबके जीवन को अस्त व्यस्त करने वाला था.

कुछ देर के विश्राम के बाद इस बार संजना ने सुप्रिया की चूत चाटी। वो अब इस कला में पारंगत होने लगी थी. अपना कौमार्य खोने के पहले ही वो एक चतुर चूत चटोरी बनने वाली थी. दोनों इसी प्रकार से एक दूसरे की बाँहों में सिमट कर सो गए.

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नागेश पूरी शक्ति और सामर्थ्य से सुमन की चुदाई में जुटा हुआ था. आज उसकी चुदाई में एक नई ऊर्जा थी. सम्भवतः अपनी पत्नी और परिवार से मिलने का सुख उसे प्रेरित कर रहा था. सुमन की घुटी हुई चीखों ने उसके मन में एक शांति का उद्बोध कराया था. दोनों इस समय पसीने से लथपथ थे और चुदाई के अंतिम चरण पर थे. नागेश के काम पर जाने के पहले की ये अंतिम रात थी और दोनों इसका भरपूर लाभ उठा रहे थे. कुछ और मिनटों की चुदाई के पश्चात नागेश झड़ गया और सुमन के ऊपर ही लेटकर हाँफने लगा. सुमन ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसे चूम लिया.

“आई लव यू.” सुमन ने कहा.

“आई लव यू टू.” नागेश ने कहा तो सुमन की आँखें भीग गयीं. आज पहली बार दोनों ने अपने प्रेम की अभिव्यक्ति की थी.

नागेश फिर उसके साथ लेट गया और दोनों एक दूसरे को देखते हुए मुस्कराने लगे.

“इस बार जब मैं आउंगी तो अपना अंतिम कौमार्य भी तुम्हें सौंप दूंगी.” सुमन ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा.

“तुम जानती हो कि इसकी आवश्यकता नहीं है.”

“तुम्हें न हो. पर अब मैं सम्पूर्ण रूप से तुम्हारी होना चाहती हूँ. इन दिनों मैं उसके लिए तैयारी करूंगी और फिर तुम मेरी गाँड का उपहार प्राप्त करोगे.”

नागेश समझ गया कि अब व्यर्थ बात करने से कुछ न होगा. सुमन हठी थी और अगर उसने अपनी गाँड मरवाने का निर्णय लिया था तो उसे इससे डिगाना असम्भव था. एक नई कुँवारी गाँड मारने के अवसर से उसका सोया लौड़ा फिर जाग उठा.

“मेरे विचार से तुम्हारा नाग मेरे विचार से सहमत है. अब इसे कुछ प्रतीक्षा करनी बस.”

ये कहते हुए वो इस बार नागेश के ऊपर चढ़ी और उसके लंड को अपनी चूत में लेकर चुदवाने लगी. नागेश का मन कुछ पलों के लिए सुरेखा की ओर गया. क्या कर रही होगी सुरेखा?

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जो सुरेखा कर रही थी वो नागेश ने अपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. सुप्रिया के बिस्तर पर बैठी वो तीनों लौडों को एक साथ चूस रही थी, एक के बाद एक. अब उसके मन का दुःख कही जाकर छुप गया था. वो अपना सिर भी उठाएगा या नहीं ये अनिश्चित था.

सुरेखा के थूक से गीले लौड़े अब उसके हाथ से फिसल रहे थे. और मुँह में भी अधिक नहीं टिक पा रहे थे. निखिल ने अपनी मौसी के सिर पर हाथ रखा.

“मौसी, अब कुछ परिश्रम हमें भी करने दो.”

सुरेखा खड़ी हुई तो निखिल उसके सामने ही बैठ गया और चूत पर अपनी जीभ चलाने लगा. नितिन ने सजल को संकेत दिया और वो सुरेखा के पीछे जाकर उसकी गाँड पर जीभ घुमाने लगा. दोनों भाइयों का ये बहुत पुराना खेल था. लगभग एक ही समय में दोनों की जीभों ने अपने सामने के छेद में प्रवेश किया. सुरेखा इतने समय से कामोत्तेजना से व्यथित थी निखिल के मुँह में झड़ गई. निखिल पर इसका कोई प्रभाव न हुआ. वो अपने कार्य पर निरंतर लगा रहा. चूत और गाँड में घूमती जीभों के प्रताप से सुरेखा के हाथ पैर काँपने लगे.

नितिन ने अपना हाथ बढ़ाया और सजल के हाथ से ट्यूब ले ली. फिर ट्यूब से पर्याप्त मात्रा में जैल निकाल कर अपनी मौसी की तंग गाँड में डालकर ऊँगली से फ़ैलाने लगा. सुरेखा के पैर अब टिक नहीं रहे थे. निखिल ने उठकर उसकी कमर में हाथ डाला और उन्हें अपनी सशक्त बाँहों में उठा लिया. सुरेखा के होंठों को चूमा और उसे विश्वास दिलाया कि आज की रात की चुदाई उनके जीवन की अविस्मरणीय चुदाई होगी. सुरेखा उसके होंठों को चूसते हुए आश्वस्त हो गई कि कल उसका हर अंग एक मीठी पीड़ा का अनुभव करेगा.

नितिन बिस्तर पर लेट गया और निखिल ने सुरेखा को उसके ऊपर स्थापित किया. सुरेखा ने स्वयं ही नितिन के मोटे लौड़े को पकड़ा और अपनी चूत पर लगाते हुए उसपर बैठती चली गई. सजल आज पहली बार अपनी माँ का ये रूप देख रहा था. अब तक उसे अपनी माँ को इस प्रकार से चुदते देखने का अवसर नहीं मिला था. सुरेखा अपनी चूत में पूरा लौड़ा लेने के बाद रुक गई.

“जा भाई, अब मौसी की गाँड मार. पर बहुत धीरे से अंदर जाना. अभी बहुत संकरी गली है. कुछ देर में खुलेगी तब मस्ती से गाँड मारना. आज तुझे पता चलेगा कि दुहरी चुदाई का आनंद क्या होता है.” निखिल ने सजल को समझाया. सजल के मन में आया कि वो बता दे कि वो सुप्रिया मौसी की डबल चुदाई कर चुका है, पर उसने ये समय व्यर्थ के विवाद में खोने से टाला. अपने लंड को सुरेखा की गाँड के छेद पर रखा तो सुरेखा ने अपनी गाँड मटकाई।

“अच्छे से चोदना मेरी गाँड मेरे बच्चे. अपनी पापी माँ को उसके पापों का दण्ड दे. तुम्हें तुम्हारे पिता से दूर करने का दण्ड दो.”

“मौसी, बकवास मत करो. नहीं तो यूँ ही बिना चोदे छोड़ देंगे. सजल, मौसी की बात पर मत ध्यान दे. जैसा कहा है वैसे ही करना.” निखिल ने बड़ा भाई होने का कर्तव्य निभाया, और सजल ने आज्ञाकारी भाई और लाडला बेटा होने का और अपने लंड को सुरेखा की मखमली संकरी गाँड में धकेलने लगा.

नितिन इस समय शिथिल लेटा था. सुरेखा मचल रही थी पर कुछ कर न पा रही थी. चूत में गढ़े नितिन के मोटे लंड के कारण सजल को गाँड भेदने में बहुत अड़चन आ रही थी. गाँड अत्यधिक कस गई थी. उस पर सुरेखा की चपलता भी कठिनाई बढ़ा रही थी. उसने एक बार निखिल को देखा जो उसके लंड की प्रगति को ही था. निखिल के सिर के संकेत को समझ कर उसने लंड बाहर निकाला और इस बार कुछ अधिक बल के साथ गाँड में धकेला. सुरेखा आगे की ओर झुक गई और लंड ने अपना रास्ता बनाते हुए एक तिहाई यात्रा पूरी कर ली.

“ओह माँ. मेरी गाँड!” सुरेखा ने कहा तो निखिल हंस पड़ा.

“अरे मौसी, नानी की गाँड तो इससे भी ताबड़तोड़ हमले झेल लेती है. उनको क्यों बुला रही हो.” फिर सजल को देखकर बोला, “भाई अब कूट दे मौसी की गाँड। मम्मी बोल कर गई हैं कि आज की चुदाई इन्हें कभी नहीं भूलनी चाहिए.”

“ऐसा बोली मौसी. ओके.” इसके साथ ही सजल ने अपने लंड को पूरा निकाला और सुरेखा की गाँड में पूरा डालने का प्रयत्न किया. अधूरी सफलता मिली, तो फिर प्रयास किया और अंततः चौथे धक्के में सजल का लंड उसकी माँ की गाँड में पूरा जा बैठा.

“गुड बॉय!” निखिल ने कहा, “पर अब मेरे लंड को भी कुछ ध्यान चाहिए.”

निखिल पलंग पर चढ़कर सुरेखा के सामने जा खड़ा हुआ. सुरेखा की आँखें बंद थीं पर लंड की महक ने उसकी आँखें खोल दीं और उसने मुँह खोलकर निखिल के लंड का स्वागत किया. अब सुरेखा के तीनों छेदों में लौड़े थे और चुदाई का महासंग्राम आरम्भ होने वाला था. और इसकी दुंदुभि सजल ने बजाई जब अपने लंड को बाहर निकालकर फिर से गाँड में पेल दिया. इसके उत्तर में नितिन ने चूत में यही कार्य किया. और फिर एक समन्वय के साथ दोनों भाई सुरेखा की चूत और गाँड की पिलाई में जुट गए. निखिल ने ये निश्चिन्त किया कि सुरेखा के मुँह से उसका लंड न निकले और जितना सम्भव हो सके उसका लंड सुरेखा के मुँह के उतने अंदर तक जाये.

कुछ देर इसी गति और ताल से चुदाई के बाद निखिल ने कहा, “मौसी, अब तुम अपनी गाँड का स्वाद चखो!” और सजल से कहा, “आजा भाई, मौसी को उनकी गाँड का स्वाद चखा दे!”

सजल ने निसंकोच कि वो अपनी माँ को उसकी ही गाँड से निकले लंड को चटाने जा रहा है अपना लंड निकाला और निखिल के उतरते ही उसके सामने जा खड़ा हुआ. सच है वासना मनुष्य का विवेक हर लेती है. और ये मात्र सजल के साथ नहीं था जो अपनी माँ के सामने उसके रस से ओतप्रोत लौड़े को लेकर खड़ा था, बल्कि यही स्थिति सुरेखा की भी थी. उसने केवल एक बार सिर उठाकर अपने बेटे को देखा और फिर मुँह खोलकर उसके लंड को चाटने लगी.

“मस्त स्वाद है न मौसी?” निखिल ने छेड़ा. सुरेखा ने सजल के लंड को मुँह में लेकर निशब्द ही उत्तर दे दिया. और फिर उसका मुँह खुल गया क्योंकि पीछे से निखिल ने अपना मुसल उसकी गाँड़ में पेल दिया था. पर कुछ ही क्षणों की रूकावट के बाद वो सजल के लंड को चाटने और चूसने में जुट गई. आज पूरी रात वो तीनों से भरपूर चुदने वाली थी. तीनों युवा इसके सक्षम थे. और वो भी इसके लिए उत्सुक थी.

कुछ दस मिनट तक इस स्थिति के बाद निखिल ने सजल को लेटने के लिए कहा और फिर सुरेखा को उसके लंड पर चढ़ा दिया. उसने नितिन से पूछा तो उसने पहले अपना लंड चुसवाने की इच्छा बताई तो निखिल फिर गाँड मारने में जुट गया. इसी प्रकार तीनों भाई भिन्न भिन्न जोड़ों में कई घण्टों तक सुरेखा को चोदते रहे. जो झड़ जाता वो कुछ देर विश्राम करता और फिर रिक्त स्थान की भरपाई कर देता. सुरेखा को भी आसन बदल कर चोदा जिससे कि अकड़ न जाये. पर एक पल भी ऐसा नहीं निकला जब सुरेखा के किसी छेद में लंड न हो. हर छेद से वीर्य टपकता रहा पर तीनों उसे अनवरत चोदते रहे. कई बार सुरेखा अचेत हो गई, पर फिर जाएगी और चुदाई का आनंद लेने लगी.

अंततः सुबह के चार बजे भाइयों के इंजन में तेल समाप्त हो गया. कुछ देर तक स्वयं विश्राम करके उन्होंने सुरेखा को उठाया और स्नान करवाया. बिस्तर अब सोने के योग्य न था तो तीनों सुरेखा को उसके कमरे में ले गए और लिटा दिया. सुरेखा अब भी उस सुख का अनुभव कर रही थी और थकान के बाद भी उसके चेहरे पर मुस्कान थी. वो लेटते ही नींद में खो गई. सजल उसके ही पास लेट गया और उसे अपनी बाँहों में लेकर सो गया. निखिल और नितिन अपने कमरे में चले गए और सो गए.

जब तक ये सोये तब तक शीला और सुप्रिया उठ चुकी थीं. आज का दिन बहुत निर्णायक था.

और दिन का अभी आरम्भ ही हुआ था.

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