*****************
दृश्य १: रूचि आहूजा का घर:
११ बजे जब रूचि के घर की घण्टी बजी तो रूचि ने आगंतुक का स्वागत किया. पीछे खड़े दो सुरक्षाकर्मियों को आगंतुका ने जाने का आदेश दिया. रूचि उन्हें लेकर अपने कार्यालय में ले आयी जहाँ पार्थ बैठा हुआ था.
“हैलो शिखा मैम!” पार्थ ने उठकर स्वागत किया. ये मंत्रीजी की पत्नी थीं जिनके रिसोर्ट में पार्थ और रूचि गए थे.
“हैलो पार्थ, कैसे हो? तुम्हें देखकर अच्छा लगा.” शिखा ने उससे हाथ मिलाया.
“अच्छा हूँ, मैम.”
“अरे ये क्या मैम बोले जा रहे हो? शिखा ही बोलो. रूचि को कैसे बुलाते हो, वैसे ही.”
“ओके, शिखाजी.”
शिखा ने अपने बैग में से एक लिफाफा निकाला और पार्थ को दिया.
“ये है, हमारा अनुबंध. मंत्रीजी ने दिया है. एक बार अपने वकील को भी दिखा दें और फिर हमारा साझा कार्य आरम्भ किया जाये.”
“अवश्य, क्या आप कुछ समय के लिए रुकी हुई हैं?” पार्थ ने अर्थ भरी मुस्कराहट के साथ पूछा.
“हाँ, कुछ समय रुक सकती हूँ. क्या तुम आज ही इसे पूर्ण कर लोगे?”
“मेरी इच्छा तो यही है.” पार्थ ने उठते हुए कहा. “मैं एक से डेढ़ घंटे में लौट आयूँगा अगर आप रुक सकें तो अच्छा होगा.”
“अरे! इनके रुकने का उचित प्रबंध है. तुम लौटो, ये यहीं मिलेंगी.” रूचि ने विश्वाश दिलाया. “परन्तु उसके पहले तुमसे कुछ विशेष बात करनी है.”
“जी कहिये.”
“ऑफिस में बैठते हैं.”
ऑफिस में जाकर रूचि ने दोनों को बैठाया और अपनी कुर्सी पर बैठ गई. उसने शिखा की ओर देखा और उसकी सहमति पाकर बताने लगी.
“पार्थ, मैं और शिखा एक दूसरे को कॉलेज के समय से जानती हैं. इससे पहले कि तुम आक्रोशित हो पूरी बात सुन लो.”
पार्थ ने अपने क्रोध को शांत किया और सुनने लगा.
“मंत्रीजी को तुम्हारे क्लब के विषय में किसी महिला ने बताया था.”
ये सुनते ही पार्थ खड़ा हो गया. शिखा ने उसका हाथ पकड़ा और बैठाया.
“बैठो और सुनो. प्रतिक्रिया बाद में देना.”
“तो उन्हें जब तुम्हारे क्लब के विषय में पता चला तो उन्होंने शिखा से बात की. उनके रिसोर्ट की महिला अतिथियों को संतुष्ट करना एक बड़ी जटिल समस्या थी. तो ये निर्णय लिया कि किसी प्रकार से तुमसे संबंध बनाया जाये. ये जाना जाये कि क्या ये व्यापार लाभकारी है ये नहीं? इसके लिए शिखा ने मुझे चुना क्योंकि मैं इस प्रकार के कार्यों में दक्ष हूँ.”
“जब मैंने देखा कि तुम्हारा क्लब कुछ आर्थिक कठिनाई में है, वो भी केवल इस कर कि तुम्हारी पूँजी की दर अधिक है तो मैंने उसमें निवेश करने का निर्णय लिया था. तुम्हें अपने तक पहुंचाने के लिए जो सम्भव उपाय था वो क्या और तुम मुझसे मिले.”
“इसके बाद जब शिखा से बात हुई तो हम दोनों को रिसोर्ट और सुरक्षा के संबंध में बुलाया और उसका अनुबंध तुम्हारे हाथ में है. अब तुम ये प्रश्न कर सकते हो कि ये पहले क्यों नहीं बताया या मंत्रीजी ने तुम्हें स्वयं क्यों नहीं बुलाया?”
पार्थ ने सिर हिलाया.
“क्योंकि तुम उन पर विश्वास नहीं करते और सम्भवतः क्लब बंद कर देते. मेरी इस नगर में ख्याति है कि मैं व्यापार में कभी विश्वासघात नहीं करती. समर्थ ने भी यही बताया होगा, है न?”
“इसीलिए अब तक पर अब तुम सफलता की सीढियाँ चढ़ रहे हो. अब तुम्हें अपने क्लब की सफलता का भी विश्वास है. और मुझ पर भी, जो इस बात से नहीं डिगना चाहिए. मैं चाहती तो स्वयं इस पर हस्ताक्षर करके अनुबंध कर सकती थी, पर मैं ऐसा नहीं करुँगी क्योंकि ये बिज़नेस तुम्हारा है और रहेगा। अब तुम जो चाहे पूछ सकते हो और जो चाहो निर्णय ले सकते हो.”
पार्थ कुछ देर तक सोचता रहा फिर मुस्कुराकर बोला, “ओह, आई ऍम फ़ाईन विथ इट. मैं डेढ़ घंटे में लौटता हूँ.”
पार्थ के निकलने के बाद रूचि और शिखा बैठ गयीं.
“तो कैसी लाइफ चल रही है? जीजाजी के क्या हाल हैं?” रूचि ने पूछा.
“एकदम मस्त. जीजाजी अपने कार्य में बहुत व्यस्त रहते हैं. अब तो अपने बंगले पर, कार्यालय और रिसोर्ट में ही समय बाँटना भी एक बड़ा कार्य हो गया है. वैसे अब हम सहेलियों के साथ साथ व्यवसायिक मित्र भी हो गए हैं.”
दोनों कॉलेज में एक साथ पढ़ी थीं और तब से ही सखियाँ थीं. पार्थ के क्लब के बारे में मंत्रीजी को सूचना मिली थी, केके के एजेंट के द्वारा. उन्होंने जब शिखा से बात की तो उन्होंने पार्थ के क्लब में रूचि से निवेश करवाने के बारे में विचार किया. शिखा और रूचि ने बात की तो उन्हें ये ठीक लगा. रूचि के भागीदार बनने के बाद मंत्रीजी के साथ अनुबंध करने से ये पूर्ण रूप से सुरक्षित निवेश बन गया है. रूचि, शिखा और मंत्रीजी को पार्थ के क्लब को हड़पने का कोई आशय नहीं था. आज रूचि और शिखा पार्थ को इस बारे में बता देने वाली थीं.
“आंटी कैसी हैं?” शिखा ने पूछा.
‘व्यस्त!” रूचि खिलखिला कर बोली. “इस सप्ताह क्लब में शोनाली ने तीन नए रोमियो जोड़े हैं. तीनों कालिया के देश के हैं और अच्छे मोटे लम्बे और भरी लौडों वाले हैं. और घंटों चुदाई करने के सक्षम हैं. हालाँकि कुछ अपरिपक्व हैं, पर क्लब की अनुभवी महिलाएं उन्हें तराश देंगी.”
“ओह! तो क्या आंटी तीनों ……?”
“हाँ, और तुम्हारे लिए भी प्रबंध किया है. जीजाजी को निराश नहीं कर सकती, तुम्हें सूखा भेजकर.”
“धूर्त! उनका नाम लेकर मुझे फँसा रही है.”
“चल झूठी! तेरी चूत से तो पानी बहने लगा होगा ये सुनकर.”
“हाँ सच में. चल दिखा क्या प्रबंध है.”
“पहले अपने सुरक्षा वालों को बोल दे, नहीं तो हर कुछ मिनटों में देखने आएंगे.”
शिखा ने अपना फोन निकाला और निर्देश दे दिया कि जब तक वो न बुलाये या कोई आपदा न दिखे उसके लिए चिंतित न हों. इसके बाद रूचि ने उसका हाथ लिया और अपनी माँ के शयनकक्ष की ओर चल दी. कमरे के अंदर जाते ही शिखा के रोंगटे खड़े हो गए. क्या विहंगम दृश्य था.
रूचि की माँ राशि घुटनों के बल बैठी एक काले अजगर को चाट रही थीं. वो उसे अपने मुंह में लेकर भी चाटने का प्रयास कर रही थीं, परन्तु वो उनकी अपेक्षा से कहीं अधिक मोटा और लम्बा था. परन्तु जो देखकर उसे आश्चर्य हुआ वो ये था कि कमरे में वो अकेली स्त्री नहीं थी. एक और स्त्री थी जो पलंग पर घोड़ी बनी हुई थी और उसकी गांड में एक विदेशी मूल का उतना ही लम्बा मोटा लौड़ा चलायमान था. उस लौड़े के स्वामी के मुंह से निकलती कराहों से विदित था कि वो अब अंतिम पड़ाव था.
कमरे में सोफे और पलंग पर पाँच और रोमियो बैठे थे, जिनमे से चार भारतीय मूल के थे और सभी नंगे थे. उनमें से कुछ के लौडों को देखकर लग रहा था कि वे अभी किसी गुफा से निकले हैं जिसका रस उन पर लगा था. गांड मारते हुए रोमियो ने एक चीख के साथ झड़ने के बाद अपना लंड बाहर निकाला और गांड से वीर्य की पिचकारी बाहर को छूटी। लंड बाहर निकलते देख शिखा की चूत ने पानी छोड़ दिया. सम्भवतः कोई मूक सहमति रही होगी क्योंकि उस लड़के ने उठकर सीधे अपने लंड को राशि जी के मुंह के सम्मुख कर दिया. राशि ने लपककर उसके लंड को चाटा और पहले वाले के साथ उसे चाटने और चूमने लगी.
“वाओ! व्हाट हॉट पीसेस ऑफ़ आस मैन!” दोनों रोमियो ने हाथ मिलाकर बोला।
“याह टू गुड।”
दूसरी महिला अब उठ गई और अपनी गांड में ऊँगली डालकर रस को अनुभव करने लगी. फिर उसने अपने बाल अपने चेहरे से हटाए तो शिखा को झटका लगा. पर उसके शरीर पर अब रूचि के हाथ रेंग रहे थे और उसके मुख्य वस्त्र अब तक नीचे गिर चुके थे. रूचि ने ब्रा को मुक्त किया और पैंटी को भी निकाला.
“शुचि भी इन सबका आनंद उठाती है. आओ तुम्हे सबका परिचय दे दूँ.”
रूचि ने सबके नाम बताये मेहुल, सचिन, गौरव, फिलिप, ओडुम्बे, डिगबो, गातिमु। अंतिम तीनों अफ़्रीकी थे. शिखा को उनके नाम से कोई संबंध नहीं था, था तो उनके पैरों के बीच लटकते मासपिण्डों से.
“अरे शिखा! आ गई तू?” शुचि ने उसे देखकर पूछा.
“हाँ!” शिखा बोली. इसका अर्थ था कि सबको पता था कि वो आने वाली है.
“आ गई शिखा, देख तेरी सहेली ने मुझे कितना चुड़क्कड़ बना दिया है.” राशि ने दोनों लौडों को एक बार चाटकर हटाया और खड़ी हो गई. खड़े होते ही उनकी गांड और चूत से रस नीचे गिरने लगा. नीचे पहले ही अच्छी मात्रा में रस इकट्ठा हो चुका था. “मैं अभी आई, अभी तो रुकेगी न?”
शिखा ने रूचि से संकेत करके पूछा कि ये तो पांच रोमियो ही हैं और हम चार महिलाएं हैं. रूचि ने उसे संकेत में ही ढाढस बंधाया तो शिखा को सांत्वना मिली. इतने में ही राशि बाथरूम से नंग-धड़ंग ही बाहर आई और शुचि अंदर चली गई. राशि ने अपने लिए एक पेग बनाया और सबको आमंत्रित किया. सबने अपने प्रिय पेय ले लिए. शुचि आई तो एक तौलिये का आवरण पहने थी. उसने भी अपना पेग लिया. फिर रूचि ने रोमियो को बाहर जाने के लिए कहा. वे सब बाहर गए और अपनी बातें करने लगे. वहीँ कमरे में चारों महिलाएं व्यस्त हो गयीं.
शुचि ने बताया कि वो जा रही है क्योंकि उसका पति आज रात्रि में लौटने वाला है. कुछ समय में ही वो अपने कपड़े पहनकर निकल गई.
राशि: “और तेरा बॉबी कैसा है?” ये मंत्रीजी के घर का नाम था.
“वो बहुत व्यस्त रहते हैं अब. हर दिन तो मेरे लिए तो समय मिलता नहीं है पर अब विशेष दिनों में मेरी भरपूर सेवा करते हैं.” ये बताते हुए शिखा ऑंखें चमक गयीं.
राशि ने अपना पेग समाप्त किया, “और अन्य समय तुझे छूट है दूसरों से सेवा करवाने की.”
“जी, आंटीजी. और उसका मैं अब भरपूर लाभ उठाऊँगी।”
“वैसे तुमने ठीक किया इस क्लब में पैसा लगकर. हर प्रकार से लाभ में रहोगी. पैसा तो मिलेगा ही, साथ में युवा लौंडों के मोटे लम्बे लंड भी पर्याप्त सँख्या में मिलेंगे. पूरी चाँदी होगी अब तो.”
“जी आंटीजी. आज पहला अनुभव रहेगा इनके साथ.”
“अच्छे लड़के है. मस्त चुदाई करते हैं. जैसे बोलोगी वैसे चोदेंगे, जितना चाहोगी उतना. मेरी तो आत्मा तृप्त कर देते हैं. “
“देखते हैं. मुझे भी यही आशा है.”
“तो चलो फिर बुला लो.”
“पर पार्थ आया तो?”
“वो भी पंक्ति में लग जायेगा. मैंने उसे कहा है कि वो भी रहे.”
“ओह!, तब ठीक है, बुला लो उन्हें अंदर.”
रूचि गई और सबको अंदर बुला लाई।
दृश्य २: जीवन के गाँव में शालिनी:
जीवन और शालिनी गाँव पहुंचे तो १२ बज रहे थे. गर्मी की तपन बढ़ चुकी थी. इस बार भी जीवन ने शराब की पेटी ली थी, पर उसके साथ बियर की भी पेटियाँ रखी थीं. शालिनी ये देखकर चकित रह गई, पर कुछ बोली नहीं. जीवन और शालिनी पूरी राह इधर उधर की बातें करते रहे थे. शालिनी को भी घर से और नगर से बाहर आने में एक नयापन लग रहा था और वो इसके लिए जीवन की आभारी थी. उसके शालीन व्यक्तित्व ने भी शालिनी को लुभाया था. गीता और बलवंत के घर पहुँचने पर दोनों बाहर ही आ गए. एक दूसरे से गले मिलने के बाद शालिनी के साथ परिचय हुआ. गीता शालिनी को लेकर घर में चली गई, ड्राइवर सामान अंदर रखने लगा. जीवन और बलवंत वहीँ एक पेड़ की छाँह में बैठ कर बतियाने लगे. खेतों में इतने वर्षों काम करने के कारण उनके लिए पेड़ की ओट भी चांदनी सी थी.
असीम और कुमार भी सलोनी के साथ दो बजे के पहले आ धमके. बलवंत के पैर पड़ने के बाद दोनों ने गीता की ओर ध्यान दिया. उन्हें दोनों ने अपनी गोद में उठाया और प्यार करने लगे. गीता भी उनके इस आशय से प्रेम विभूत हो गई. बलवंत और जीवन हंस रहे थे. शालिनी देख रही थी और उसे एक बात का आभास हुआ कि इसमें मिलन पूर्ण रूप से नानी नाती वाला नहीं लग रहा था. परन्तु ये केवल उसकी अनुभवी दृष्टि ही देख सकती थी. किसी भी और को ये साधारण मिलन ही लगता।
बलवंत के मित्र और उनकी पत्नियाँ भी आ गयीं और समस्त महिलाएं रसोई में घुस गयीं. अन्य सभी अपने घर से भी कुछ बना के लाई थीं तो अधिक कुछ करना नहीं था. सलोनी को उन्होंने बाहर कर दिया, जिसे देख शालिनी को अच्छा लगा कि थकी हारी आई हुई सलोनी को काम में नहीं लगाया. अब उसे पता होता कि सलोनी को किस कार्य में लगाने का षड्यंत्र है तो ऐसा कदापि न सोचती. कँवल, जस्सी, और सुशील ने बियर की बोतलें निकालीं और सभी मित्रों में बाँट दीं.
“गर्मी बहुत है.” सुशील ने कहा तो सब हंसने लगे.
“हाँ अब तू पूरी बियर पीने जो वाला है. फिर निर्मला बेचारी तुझे उठाती रहेगी.” जस्सी बोला।
जीवन ने भी अपनी बात जोड़ दी, “अरे इसके उठने की प्रतीक्षा ही क्यों करेंगी, जब मैं आ गया हूँ.”
सब ठहाका मार के हँसे पर अचानक रुक गए. उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि शालिनी साथ में है. शालिनी का चेहरा लाल हो गया था.
निर्मला बोली, “अरे दीदी, इन दुष्टों की बातों पर ध्यान न दो, ये मुए तो यूँ ही बोलते रहते हैं.”
शालिनी बोली, “समझती हूँ, बचपन के मित्र हैं तो ये सब बातें सामान्य ही होती हैं. मुझे भी मेरे और मेरे दिवंगत पति के साथ का समय स्मरण हो आया.” उसका गला रुँध गया.
निर्मला ने उसे अपनी बाँहों में समेटा. “अब हमारे घर आई हो तो हम में से ही एक हो. जीवन भाई साहब को देखो. दीदी के जाने के बाद एकदम बुढ़ा गए थे. पर हम सबने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा. और आप भी स्वयं को अकेला मत समझो. जब तक मन लगे यहीं रहो. ये जाते हैं तो जाएँ, आप ठहर कर चले जाना. और जो गया उसकी स्मृति अच्छी है यही सौभाग्य है. आप अब अपने जीवन को अच्छे से जियो, यही उनकी भी इच्छा होगी.”
बबिता बोली, “दीदी और आपके पति भी ऊपर से देख रहे होंगे कि आप दोनों प्रसन्न रहें. उन्हें मन में रखें परन्तु उनके लिए जीना न छोड़ें.”
शालिनी की आंखें भर आयीं. कितनी सादगी के साथ कितनी गूढ़ बात कह दी थी. और लोग गाँव वालों को मूर्ख और न जाने क्या क्या सोचते हैं. अगर नगरवासी इनके ज्ञान का एक अंश भी अपने जीवन में उपयोग करें तो कई रोगों से मुक्ति पा सकते हैं. परन्तु उसे ये भी आभास हुआ कि सबके मन में उसे और जीवन को मिलाने की योजना बन रही है. उसने जीवन को देखा तो वो फिर उसके चेहरे पर खिली मुस्कराहट को देखकर आकर्षित हो गई.
“हम्म्म, विचार बुरा नहीं है. पर वो क्यों इस बुढ़िया को भाव देगा?” उसने मन में सोचा.
इतने सारे लोगों की उपस्थिति से गीता और उनके नातियों की अनुपस्थिति का किसी को ज्ञान भी नहीं हुआ. लगभग आधे घंटे के बाद जब गीता आई तो उसका चेहरा लाल था परन्तु खिला खिला था. उसे देखते ही इस लालिमा का कारण भी पता चल गया. शालिनी भी ताड़ गई. कुमार और असीम फिर अपनी बियर लेकर आये तो जीवन उन्हें देखकर मुस्कुराया. पूनम से रहा नहीं गया और उसने शालिनी के रहते हुए भी गीता को छेड़ दिया.
“लगता है नानी नातियों को कमरा दिखा कर आ रही है. तभी तो लाल टमाटर हो गई है. अब नाती ऐसे मुश्टण्डे हों तो बेचारी को सब कुछ खोल खोल के दिखाना पड़ा होगा कमरे में.”
“क्या बकवास कर रही तू, पूनम?” गीता ने ऑंखें तरेरीं.
“मैंने ऐसा क्या कहा जो तूने उल्टा सीधा समझ लिया?” पूनम में पूछा तो गीता को अपनी भूल का आभास हुआ.
“तेरी बिना सिर पैर की बातें करने का स्वभाव जो ठहरा, तो मैंने ही कुछ और समझ लिया.”
“चल कोई नहीं. लड़के भी सोच रहे हैं कि हो क्या गया?”
कुमार और असीम मुस्कुराये. उन्हें गीता के साथ अधिक समय नहीं मिला था और चुदाई का तो अवसर ही नहीं था. बस मुख मैथुन का लाभ तीनों ने उठाया था. गीता ने रात्रि में उन्हें और आगे बढ़ने का आश्वासन दिया था. पर उन दोनों के मन में अन्य तीन नानियाँ थीं. गीता की चुदाई के तो उन्हें अपने घर पर भी अनगिनत अवसर मिलने वाले थे. ये बात गीता को नहीं पता थी, वो तो उन दोनों से चुदने के लिए लालायित थी.
भोजन के लिए व्यवस्था हुई और सबने सप्रेम भोजन किया. गर्मी, बियर, यात्रा की थकान और उत्तम भोजन के बाद कुछ समय की नींद लेना ही उचित था. शालिनी जब उठकर जाने लगी तो उसने पूनम को असीम और कुमार की ओर कोई संकेत करते हुए देखा. अपने कमरे में जाकर वो लेटी और उसे तुरंत ही नींद भी आ गई.
शाम को फिर उसी छेड़छाड़ और शराब का खेल प्रारम्भ हो गया. बबिता और निर्मला शालिनी को लेकर बाहर आंगन में बैठी हुई थीं.
“दीदी के जाने के बाद भाई साहब बहुत दुखी रहे. ये तो भला हो उनके बेटे और बहू का जो उन्हें लेकर अपने साथ चले गए. सुनीति जैसी बहू भाग्यशाली लोगों को ही मिलती हैं. कुछ ही दिनों में जब लौटे तो लगभग पुराने वाले जीवन हो चुके थे. आज वो प्रसन्न हैं. हम सबसे से अथाह प्रेम करते हैं. बताते नहीं हैं, पर हम सबको पता है कि वो समय समय पर हमारी और हमारे बच्चों की सहायता भी करते हैं. पर एक टीस उन्हें अभी भी खाये जा रही है.”
ये कहते हुए बबिता ने शालिनी को देखा, “अम्भ्वतः आप उसे दूर कर सको. क्योंकि आप भी एक प्रकार से उसी नौका में सवार हो.”
शालिनी उनका तात्पर्य समझ गई. निर्मला ने उसकी उलझन समझी.
“स्वयं तो आप आगे नहीं बढ़ना चाहेंगी. है न?” पूछने पर शालिनी ने सहमति में सिर हिलाया.
“और अगर हम कुछ सहायता करें और वो आगे बढ़ें तो?”
शालिनी ने फिर सिर हिलाया पर इस बार उसका चेहरा लाल था.
“ठीक है. अब आप सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दो. बस जब जैसा कहें बिना प्रश्न उसे करना होगा. क्या पता आप दोनों की शहनाई ही हमें सुनने को मिले शीघ्र ही.”
दोनों ने शालिनी को गले से लगाया।
“एक बात पूछूँ अगर आपको बुरा न लगे?”
“क्यों नहीं?”
“पूनम दीदी कुमार और असीम को क्या संकेत कर रही थी?”
“सब कुछ आज ही जान लोगी तो शेष क्या रहेगा. पर अगर आप कुछ अनुमान किये बैठी हो तो वो सही हो सकता है.” निर्मला ने कहा तो शालिनी को उत्तर मिल गया और उसकी चूत से पानी छूट गया.
कुछ समय पश्चात शालिनी के अतिरिक्त अन्य सभी महिलाएं एक मंत्रणा करने में व्यस्त थीं. बबिता, गीता, सलोनी, पूनम और निर्मला ने एक योजना बनाई. और अब उसे कार्यरत करने का समय था.
शालिनी को भी इस मंडली के अंतरंग संबंध समझ आ रहे थे. और उसे शंका, नहीं शंका नहीं विश्वास था, कि ये सब सामूहिक व्यभिचार में लिप्त हैं. असीम और कुमार के व्यवहार से भी उसे कुछ अचरज था. पर उसके अपने पोते गौतम के विषय में सोचकर उसे लगा कि सम्भवतः यही उनके घर में भी घटित हो रहा होगा. दोनों युवाओं के विषय में सोचते हुए उसे उनके शक्तिशाली शरीर का ध्यान आया और मन में उनसे चुदने की इच्छा स्वयं ही जाग्रत हो उठी.
और अगर अन्य स्त्रियां अपना षड्यंत्र कर रही थीं तो शालिनी ने भी अपना एक षड्यंत्र करने की ठान ली. उसे सीधे रूप से तो उनके सामूहिक सम्भोग में बुलाया नहीं जा सकता था, तो उसे ही इस दिशा में कुछ करना होगा. ये सोचते हुए वो सो गई.
शाम हुई, फिर से मदिरा का सेवन हुआ. आठ बजे के पूर्व उत्तम भोजन हुआ और सब बैठे बातों में लगे रहे. इस बार विषय उनके बच्चों के बारे में था जो अन्य और भिन्न नगरों में जाकर बसे हुए थे. पिछली भेंट के विषय में बात करने पर पता कि वे सब भी आने के लिए उत्सुक हैं परन्तु स्कूल और कॉलेज के अवकाश के समय ही ये सम्भव था. ये अवकाश अगले मास होने थे.
इतने सब लोगों का गाँव में एक साथ मिलकर रहना कुछ कठिन था. जीवन की आँखों में एक स्थान का ध्यान आया. उसने कहा कि वो इन छुट्टियों को किसी और रूप में बिताना चाहेगा, पर वो इसका निर्णय घर लौटने पर ही कर सकेगा. तो उसने बच्चों को अवकाश पर आने की पुष्टि करने के लिए कहा. अपनी योजना के स्वरूप नौ बजे सोने का सुझाव दिया गया. इस पूरे समय कुमार और असीम अबोध बने हुए सुनते रहे और यदा कदा ही कुछ बोले थे. पीने के लिए उन्हें किसी ने मना नहीं किया था पर वो बहुत संयम दिखा रहे थे.
जब सोने का सुझाव दिया गया तो शालिनी ने अपना पत्ता फेंका, “मुझे भी अपनी नींद की गोली लेनी होगी. क्या मुझे एक ग्लास दूध मिलेगा.”
अपनी योजना पर पानी फिरते देख तीनों स्त्रियों ने इसका विरोध किया. उनका कहना था कि इस प्रकार की औषधि हानिकारक होती है. फिर बबिता ने कहा कि वो उसे अन्य औषधि देगी जिससे कि उसकी नींद बहुत अच्छी और शांतिपूर्ण रहेगी.
“पर उसके लिए आपको कुछ प्रतीक्षा करनी होगी.” पूनम ने कहा और हंस पड़ी. कुछ समय के बाद सब उठने लगे तो शालिनी अपने कमरे में चली गई. अभी वो बैठी ही थी कि बबिता आ गई.
“दीदी, मैं आपकी औषध भेज रही हूँ. अगर आपको ठीक न लगे तो बुरा न मानना और अपनी बहनों को क्षमा कर देना. परन्तु मुझे विश्वास है कि आपको वो उपयुक्त लगेगी. पर दीदी, कुछ भी हो बुरा न मानना। “
“अरे नहीं, मुझे कुछ बुरा नहीं लगेगा.” शालिनी ने उत्तर दिया, “पर क्या जो मैं सोच रही हो औषध वही है? जो पूनम को दिन में मिली थी, बस देने वाला कोई और होगा.”
बबिता हंस पड़ी, “दीदी, आप बहुत चतुर हो. आप समझ गई हो तो मैं बीच में क्यों बाधा बनूँ ?”
ये कहकर वो उठी और बाहर चली गई.
कुछ ही देर में द्वार पर किसी ने खटखटाया और बिना प्रतीक्षा किये हुए खोलकर खड़ा हो गया.
“क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
शालिनी खिलखिलाई, “अवश्य, जितना चाहें और जहाँ चाहें.”
ये सुनकर जीवन के चेहरे पर मुस्कान आ गई. उसने द्वार बंद किया तो उसके दूसरी ओर से कुछ स्त्रियों की दबी हंसी की ध्वनि और दब गई.
रात अभी शेष थी.