You dont have javascript enabled! Please enable it! कैसे कैसे परिवार – Update 33 | Erotic Incest Family Story - KamKatha
कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 33 | Erotic Incest Family Story

अध्याय ३३: आठवाँ घर – स्मिता और विक्रम शेट्टी ४

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मेहुल का कमरा:

मेहुल फोन पर सचिन से बात कर रहा था.

सचिन: “तुम्हारा क्लब में तीन दिन बाद ग्यारह बजे का समय निश्चित हुआ है. संचालिका जी तुम्हारी चुदाई की पारंगतता की परीक्षा लेंगी. उसके पहले तुम जाकर अपने टेस्ट करवा लो जिससे ये पता चल जाये कि कोई यौन रोग तो नहीं है. ये आवश्यक है.” सचिन ने जानकर संचालिका का नाम नहीं बताया.

मेहुल: “पर तुम तो देख चुके हो.”

सचिन: “यही नियम है. तुम्हें दो घंटे से कम में उनकी मुंह, चूत और गांड में अपना रस छोड़ना है. और ये उनकी संतुष्टि के अनुसार होना चाहिए. अगर उत्तीर्ण हुए तो फिर तुम्हें अनगिनत महिलाओं को चोदने के अवसर मिलेंगे, मेरी माँ को भी.”

इतने में श्रेया आ गई.

“भाभी, आप?”

“आज के लिए याद है न? मैं अभी आती हूँ, या तुम मेरे कमरे में आओगे?”

“भाभी, मैं ही आ जाऊँगा।”

“ठीक है आधे घंटे बाद. देर मत करना. और हो सकता है हम खाना देर से करें, तो तुम्हें कोई कठिनाई तो नहीं होगी?”

“भाभी, आपके साथ के लिए तो मैं दस दिन भी व्रत रख सकता हूँ.”

“मेरा प्यारा प्यारा बच्चा.” श्रेया ने भावुक होकर मेहुल का माथा चूमा. “अब चलती हूँ.”

“ओके, भाभी, मैं आधे घंटे में आता हूँ.”

सचिन: “कौन था?”

मेहुल: “मेरी भाभी, आज इनकी चुदाई करनी है.”

सचिन: तो क्या कोई समय सारिणी बनी हुई है?”

मेहुल: “ऐसा नहीं है, समय आने पर बता दूंगा.”

इसके बाद सचिन ने क्लब के नियमों से उसे परिचित कराया. फिर दोनों ने फोन रख दिया. मेहुल बाथरूम में गया और नहाकर श्रेया के कमरे में जाने लगा. घड़ी देखकर मेहुल श्रेया के कमरे के लिए चल पड़ा. स्मिता ने उसे देखा और बुलाया.

“देख तुझे बहुत प्यार करती है, तू भी उसे प्यार से ही चोदना। ठीक है न?”

“माँ मैं जानता हूँ. आप बिलकुल चिंता न करो. उन्हें भी मैं वही प्यार दूँगा जिसकी वे योग्य हैं.”

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श्रेया का कमरा:

ये कहने के बाद मेहुल श्रेया के कमरे में चला गया. श्रेया भी अभी नहाकर ही निकली थी और ड्रेसिंग टेबल पर बैठी अपने बाल सँवार रही थी. उसका सुंदर शरीर नहाने के बाद और भी लुभावना लग रहा था. मेहुल ठगा सा खड़ा हुआ अपनी भाभी के अप्रतिम सौंदर्य को निहार रहा था. श्रेया ने जान तो लिया था कि मेहुल क्या कर रहा है, पर कुछ बोली नहीं. बाल बनाने के बाद वो अचानक से मुड़ी तो उसके तेजस्वी मुखमण्डल देखकर मेहुल के मन में तार बज उठे.

“आ गया मेरा बच्चा?” श्रेया जब अधिक दुलार के मूड में रहती तो उसे यूँ ही पुकारती थी. मेहुल भी जानता था कि उसकी इस उपाधि में वैमनस्व तनिक भी न था, बल्कि प्रेम की असीम थाह थी. न जाने दोनों बहनों में इतना अंतर क्यों है. मेहुल ने मन में सोचा.

“उधर सोफे पर बैठ. मैं बस आई.”

मेहुल जाकर बैठा और कुछ ही देर में श्रेया आकर उसके साथ बैठ गई.

“तुझसे कुछ बातें भी करनी हैं.” श्रेया ने कहा.

“बोलो भाभी.”

श्रेया ने एक गहरी श्वास भरी, “ देख मेरी बात बुरी लगे तो मुझे सीधे बोल देना. मन में मत रखना. तुझे मेरी कसम.”

“इसकी कोई आवश्यकता नहीं भाभी. मैंने आपसे कभी अपने मन की बात नहीं छुपाई है.”

“तो ये बता कि तू स्नेहा को इतना चाहता है, उसके आगे पीछे घूमता है. उससे विवाह करना चाहता है या?”

“नहीं. विवाह के बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं. केवल वही है जो मुझे भोंदू समझती है इसीलिए मैं उसे बताना चाहता हूँ कि मैं वैसा नहीं हूँ.”

श्रेया के मन से ये बोझ उतर गया कि स्नेहा के अन्यत्र विवाह से मेहुल को ठेस नहीं पहुंचेगी.

“अब तो दो चार दिन बाद उसके साथ तेरा मिलाप है ही. तब मन भरकर ढेर सारी बातें कर लेना.”

“जी भाभी.”

“मम्मी जी तेरी बड़ी प्रशंसा कर रही थीं.”

“कौन सी?” मेहुल ने सावधानी से पूछा.

“दोनों, तेरी मम्मी जी भी और मेरी भी. तूने दोनों का मन मोह लिया. तो भाभी को भी वही सुख देगा?”

“भाभी आप जो कहेंगी, आपके लिए सब करूँगा। बस एक बार कह तो दीजिये.”

“ओह मेरा बच्चा.” श्रेया ने उसका माथा चूमा. “तुझे पता है न हम आज यहाँ क्यों साथ हैं?”

“जी भाभी.”

“हम्म्म, तो अपनी भाभी की बात मानेगा?”

“आप जानती हो कि मैं आपकी कोई बात नहीं टालता.”

श्रेया खड़ी हो गई और मेहुल की ओर देखकर बोली, “मेरी मन से चुदाई करना. तेरा प्रेम मुझे अनुभव होना चाहिए.”

मेहुल भी खड़ा हुआ और श्रेया को अपनी बाँहों में समेटते हुए बोला, “भाभी, आपके साथ मैं केवल प्रेम ही कर सकता हूँ.”

श्रेया ने इस बार मेहुल के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसका माथा चूमा, फिर आँखें और फिर अंत में होंठ. होंठ मिलते ही दोनों के शरीर में मानो बिजली सी कौंध गई. ये चुंबन जो केवल आत्मीयता दर्शाने के लिए आरम्भ हुआ था अब प्रगाढ़ हो चला था. मानो दोनों एक दूसरे के होंठ चबा जाना चाहते थे. मुंह खुले और लपलपाती जीभें एक दूसरे से स्पर्धा में जुट गईं. श्रेया ने ही अंत में इस बांध को रोका. हाँफते हुए उसने मेहुल का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर की ओर ले गई. मेहुल को बिस्तर पर बैठाते हुए उसने अपने वस्त्रों को निकालना आरम्भ कर दिया. समय की आवश्यकता के अनुसार अधिक वस्त्र पहने ही नहीं गए थे, तो पलक झपकते ही वो मेहुल के सामने निर्वस्त्र अपने सम्पूर्ण वैभव में खड़ी हुई थी. मेहुल उसे पलक झपके बिना देख रहा था. किसी अप्सरा का भी ऐसा सौंदर्य नहीं रहा होगा.

“भाभी, आप बहुत बहुत सुंदर हो. भैया की तो लॉटरी लग गई है.”

“पर तुम तो जानते हो कि हमारे परिवार में हर वस्तु मिल बाँट कर ही भोगी जाती है.”

“हम भी भाग्यशाली हैं.”

“अब अपने भी कपड़े उतार, हमें पूरा दिन थोड़े ही न मिला है.”

इस बार मेहुल को कुछ झिझक हुई. इसीलिए नहीं कि उसे नंगा होने में कोई संकोच था, अपितु इसीलिए कि उसके लंड को देखने के बाद भाभी उसके स्वांग को समझ न लें. वो उनसे झूठ भी नहीं बोल पायेगा. पर अब इस चिंतन का समय तो था नहीं. सर ओखली में था. उसने अपने कपड़े भी निकाल दिए. और जैसे ही श्रेया ने उसके लिंग को देखा तो समझ गई कि ये हो ही नहीं सकता कि ये अनुभवहीन हो चुदाई के क्षेत्र में.

“ओह, तो मेरा प्यारा बच्चा इसे छुपाये घूम रहा था. सच बता तुझे ये सब स्वांग करने की क्या पड़ी थी. यहां हमारी मम्मियाँ तुझे सिखाने की होड़ में थीं, और मैं भी यही सोच बैठी थी कि अपने बच्चे को अच्छे से प्रेम करना सिखाउंगी, पर इतना तो समझती हूँ कि ऐसे लौड़े के साथ तूने चुदाई न की हो ये सम्भव ही नहीं. है न?”

“भाभी, मुझे पहले तो पता नहीं था कि हमारा परिवार इस प्रकार से लिप्त है, तो बताने का कोई प्रयोजन ही नहीं था. फिर मुझे बाहर से बहुत अनुभव प्राप्त हो रहा था, पर मैं ये भी दर्शा नहीं सकता था. तो मैं चक्रव्यूह में फंस गया. हमारी मम्मियाँ ये जान चुकी हैं, पर मेरे निवेदन पर उन्होंने कुछ कहा नहीं. और मैं आपसे भी यही निवेदन करूँगा. एक बार महक और स्नेहा को स्वयं ज्ञात हो जाये फिर मैं ये मुखौटा भी उतार फेंकूँगा.”

“हम्म. बात तो सही है. एक झूठ अनेक झूठ बुलवाता है. तो अब बात हमारी. अब जब तू इतना अनुभवी है तो क्यों नहीं अपने अनुभव का लाभ अपनी भाभी को भी देता. तो आज जैसा तू चाहे वैसे चोद, मैं अपनी इच्छा बाद में पूरी कर लूँगी।”

“सच भाभी!” मेहुल ने श्रेया को बाँहों में लिया और ताबड़तोड़ चूमने लगा.

फिर मेहुल रुका और श्रेया को देखकर बोला, “भाभी सच कहूँ तो मुझे प्यार करना आता ही नहीं. केवल चोदना ही आता है. जिन्होंने भी सिखाया उन्हें केवल मेरे लंड से प्यार था और चुदाई से संबंध. इसीलिए मैंने कभी किसी को भी प्यार नहीं किया। पर आपके लिए मैं आपको आज उस प्रकार से चोदुँगा जैसा मैंने सीखा है, पर आप मुझे वचन दीजिये कि अगली बार से आप मुझे प्यार करना भी सिखाएँगी।”

“बिल्कुल मेरे बच्चे. पर आज तेरा ढंग भी तो देखूँ। वैसे कितनों को चोदा है अब तक?” श्रेया से पूछे बिना नहीं रहा गया.

“यही कोई दस को. सब विवाहित या विधवा ही थीं. आपकी आयु की कोई नहीं, न आप जैसी सुंदर. न मम्मी जैसी सुंदर, न ही आंटीजी जैसी. पर चुदाई की भूख बहुत थी.”

“हूँ. तब तो मेरी मम्मी को तूने खुश कर दिया होगा?”

“जी, मुझे तो लगता है.”

“तो अब क्या?”

“पहले आपकी चूत का स्वाद लेना है. फिर आगे देखेंगे. और भाभी एक बात और.”

“अब और क्या है?” श्रेया बिस्तर पर लेटती हुई पूछी.

“उन सबको गांड मरवाने में बहुत आनंद आता था.”

“तूने अपनी मम्मी की गांड मारी?”

“नहीं उन्होंने अगली बार के लिए बचा ली.”

श्रेया ने मेहुल के लंड को देखा. “और मेरी मम्मी की?”

“जी, मारी थी.”

“तो मेरी गांड भी मार सकता है. मुझे भी गांड मरवाने में बहुत आनंद आता है. हम ये क्यों न करें कि मेरी भी गांड आज छोड़ देते हैं और अगली बार में मम्मी जी और मेरी गांड एक साथ मारना. उस दिन तुझे केवल हम अपनी गांड ही मारने देंगी. क्या विचार है?” श्रेया ने अपने पैर फैलाये और अपनी चूत के पूरे दर्शन मेहुल को करवा दिए.

“मुझे आपका हर सुझाव स्वीकार है. तो अगले सप्ताह आप दोनों की गांड का आनंद मुझे मिलेगा.” मेहुल ने कहा.

भाभी की सुंदर खुली चूत को देखकर मेहुल के मुंह में पानी आ गया. उसने सामने बैठकर अपना मुंह चूत पर लगाते हुए जोर से चूसा. श्रेया की चूत से निकलते रस ने उसके मुंह में पदापर्ण किया और श्रेया ने भी एक गहरी श्वास भरी. इसके बाद तो जैसे मेहुल किसी उन्मत्त पशु के समान हो गया. वो श्रेया की चूत के हर रोम को चाट रहा था, चूम रहा था. उसने अपना विशेष ध्यान श्रेया के भग्नाशे पर भी रखा जिसे वो बीच बीच में अपने होंठों में लेकर मसलता, फिर चाटता और फिर चूसता.

श्रेया अब उन सभी स्त्रियों को धन्य कर रही थी जिन्होंने मेहुल का शिक्षण किया था. समुदाय में अनेक पुरुषों और कुछ स्त्रियों ने भी उसकी चूत को चूसा था. परन्तु मेहुल के जैसा अनुभव उसे किसी के साथ न हुआ था. उसे अपने समुदाय की उन स्त्रियों के भाग्य पर ईर्ष्या हुई जो मेहुल से संसर्ग करने वाली थीं. मेहुल ने अब चूत के साथ श्रेया की गांड के छेद को भी टटोलना आरम्भ कर दिया था. अपनी उँगलियों को चूत से गीला करने के पश्चात् वो श्रेया की गांड के ऊपर फिरा रहा था. परन्तु उसने अभी तक उसे भेदा न था.

उसने श्रेया की टांगों को ऊँचे उठाते हुए उन्हें मोड़ दिया। अब श्रेया की चूत और गांड दोनों उसके सामने प्रस्तुत थीं. इस बार उसने गांड पर अपनी जीभ चलाई. श्रेया ने अपने हाथों से अपनी टांगों को पकड़ लिया. मेहुल ने ये देखा तो उसने अपने हाथ हटा लिए और श्रेया की चूत में चलाने लगा. भग्न को अंगूठे से मसलते हुए उसके श्रेया की गांड के दोनों ओर हाथ रखे और गांड को खोलने में सफलता प्राप्त की. इस बार अपनी जीभ से श्रेया की गांड की बाहरी त्वचा को चाटते हुए उसने जीभ को अंदर प्रविष्ट कर दिया.

श्रेया मेहुल के इस कामक्रिया से अत्यंत चकित हुई. वो जिस सरलता से अपने हाथों, उँगलियों, अँगूठों और जीभ का समन्वय कर रहा था, वो किसी अनुसंधान का विषय बन सकता था. गांड में जीभ, भग्न पर ऊँगली श्रेया को अपने प्रथम चरम पर ले जाने के लिए सफल हुए. जैसे ही श्रेया के शरीर को मेहुल ने अकड़ते हुए अनुभव किया, उसने भग्नाशे पर चल रही ऊँगली से उसे तीव्र गति से मसलना और रगड़ना आरम्भ कर दिया. श्रेया का शरीर जड़वत हो गया, पर कमर के नीचे का भाग काँप रहा था. उसकी चूत से रस की धार निकलने लगी जिसने मेहुल के मुंह को सींच दिया.

परन्तु मेहुल रुकने वाला कहाँ था, उसने अपने कार्यकलाप को नहीं रोका और गांड में जीभ से और भीतरी वार करने लगा.

“बस, बस मेरे बच्चे, बस. अब मत चाट मेरी गांड. मैं अब तेरे लंड का भी स्वाद लेना चाहती हूँ. प्लीज मुझे छोड़.”

मेहुल ने अनमने होकर श्रेया की गांड से अपनी जीभ को निकाला और फिर श्रेया की टांगों को नीचे लाने में श्रेया की सहायता की. श्रेया कुछ देर लेटी रही और फिर बिस्तर के कोने पर बैठ गई. मेहुल अपने तने लौड़े को लेकर उसके सामने आ खड़ा हुआ. श्रेया ने उसके लंड को देखा तो वो फिर से आश्चर्य में आ गई. अब उसका आकार अपितु और बढ़ गया था. उसने अपनी जीभ से टोपे को चाटा। उसके बाद लंड पर थूकते हुए उसे कुछ चिकना किया और अपने मुंह में ले लिया. मेहुल को आज एक असीम शांति मिली. वो न जाने कब से अपनी भाभी की चुदाई के सपने देखता था. आज उन्हें पूरा होते देख उसे अपने भाग्य पर गर्व हुआ.

श्रेया लंड चूसने में महारथी थी. परिवार और समुदाय के सभी लौड़े उसके मुंह का आनंद ले चुके थे. हर आकार और आकृति के लंड उसके गले तक की थाह नापा था, और उसके मुंह में अपना रस बरसा चुके थे. मेहुल ने अपने हाथ श्रेया के सिर पर रख दिए. परन्तु पूरा क्रिया को श्रेया के ही ऊपर छोड़ दिया.

“भाभी, मैं अभी आपके मुंह में नहीं झड़ना चाहता. प्लीज बाद में चूस लेना. मुझे सच में अब चुदाई की इच्छा है.”

“ठीक है, जैसे मेरे बच्चे का मन है, वैसा ही करेंगे।” श्रेया ने लंड मुंह से निकाला फिर उसे अपने हाथ में थामे हुए देखा, “वैसे मेरा बच्चा है बहुत बड़ा. पर चाहे कितना भी बड़ा हो जाये, मेरे लिए तो तू मेरा लाडला ही रहेगा.”

“भाभी, मुझे भी आपसे यही आशा है. आपने सदा से मुझे इतना वातसल्य दिया है, एक माँ के समान, तो मैं सदा आपका बच्चा ही रहूँगा।”

“हम्म, बातें अच्छी बनाता है. चल अब अपनी भाभी को दिखा क्या सीखा है तूने.”

“भाभी आप सीधी लेट जाओ. इस प्रकार से हम दोनों एक दूसरे को देख सकेंगे.”

श्रेया ने सामान्य आसन ग्रहण किया और अपनी टाँगों फैला लीं. मेहुल ने झुककर एक बार चूत को चूमा, जीभ से चाटा और भग्न को भी छेड़ा. और फिर अपने लंड चूत पर रगड़ने लगा. भगनाशे को दबाते हुए कुछ समय तक वो इसी प्रकार से लंड को चूत पर घिसता रहा. फिर हल्के से चूत में उतार दिया.

मेहुल ने चूत में लंड इतनी शांति से डाला था कि पहले श्रेया को तो आभास ही नहीं हुआ. पर जैसे जैसे लंड अपनी यात्रा में आगे बढ़ा श्रेया को उसकी प्रगति का आभास होने लगा. एक स्थान को छू लेने के पश्चात श्रेया को मेहुल के लंड के आकार का अनुभव हुआ. मेहुल अनवरत अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लालायित था, परन्तु उसने भी शीघ्रता नहीं दिखाई. अंतिम पड़ाव पर पहुंचने के पश्चात वो रुका और उसने श्रेया को देखा, जिसके चेहरे पर एक शांत मुस्कराहट थी और वो भी उसे असीम प्रेम से देख रही थी.

“बच्चा नहीं है रे तू, इतने अंदर तक सम्भवतः कोई और नहीं गया है अब तक. इतने धैर्य से तो कदापि नहीं. जितने बड़े लंड वाले मिले वो स्वयं पर इतना गर्व करते हैं कि ये भूल जाते हैं कि स्त्री, चुदाई प्रेम से ही करवाने की इच्छुक होती है. हाँ कई बार भीषण चुदाई की इच्छा होती, है जैसे मेरी मम्मी की होती है. तेरा लंड इतनी सरलता से तूने मेरी चूत में डाला है कि मुझे आभास भी नहीं हुआ. अब देखूं तुम चुदाई कैसे करते हो.”

“भाभी, आपको मैं उस प्रकार से तो चोद ही नहीं सकता. आज पहली बार तो कदापि नहीं. तो आज मैं आपसे प्रेम करने का प्रयास करूँगा, आता नहीं पर प्रयास करूँगा। अगली बार के लिए अन्य प्रकार की चुदाई को सुरक्षित रखते हैं.”

“जो तुम चाहो.”

मेहुल ने कोई शीघ्रता नहीं की, उसने धीमे धीमे ही श्रेया को चोदना आरम्भ किया. श्रेया को अपने पिता की याद आ गई, जो इसी प्रकार से उसे बड़े प्रेम से चोदते थे. श्रेया के चेहरे के भावों को देखते हुए मेहुल अपनी गति की कम और अधिक कर रहा था. उसे स्वयं पर भी ये आश्चर्य हुआ कि वो इस प्रकार की चुदाई के लिए सक्षम है. गति धीरे धीरे ही बढ़ रही थी, परन्तु श्रेया और मेहुल एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले हुए इस प्रेमलीला का आनंद ले रहे थे.

श्रेया की चूत से पानी रिस रहा था और मेहुल के लंड के लिए पर्याप्त चिकनाई प्रदान कर रहा था. मेहुल ने अपनी गति को इसी प्रकार से संतुलित रूप से बढ़ाते हुए उस गति पर ले आया जहाँ से वो अन्य स्त्रियों की चुदाई का आरम्भ करता था. श्रेया अब आनंद से किलकारियाँ ले रही थी और मेहुल को प्रेम से देखती हुई कभी बीच बीच में कुछ असहजता का प्रदर्शन करती थी. मेहुल भी इससे अवगत था परन्तु उसे ये भी ज्ञान था कि चुदाई का परम सुख केवल प्रेम से की गई चुदाई से प्राप्त नहीं होता, कुछ कड़ाई भी आवश्यक होती है. वैसे भी श्रेया ने उसे छूट दी हुई थी.

और इसी विचार के साथ मेहुल ने अपनी गति बढ़ानी आरम्भ की, श्रेया का शरीर और बिस्तर मेहुल के इन शक्तिशाली धक्कों के थपेड़ों से हिलने लगा. श्रेया अब मेहुल के चेहरे और आँखों में देखने में असमर्थ थी. हालाँकि मेहुल उसके चेहरे पर उभरते हर भाव को देख समझ रहा था. चुदाई का महारथी योद्धा अपने प्रतिद्वंदी के भाव देखकर अपने भाले का प्रयोग करता था. कब कितना चुभाना है, कितनी गहराई तक भेदना है और किस गति और शक्ति से उसका उपयोग करना है, ये मेहुल की शिक्षिकाओं के संसर्ग ने उसे भली भांति सिखाया था.

“भाभी, आपकी चूत से बहुत पानी बह रहा है.”

“हाँ मेरी जान, मेरे बच्चे! तूने इसे रुला ही दिया है. बस अब झड़ने की शक्ति नहीं रही मुझमें.”

श्रेया के ये वचन सुनते ही मेहुल ने उसके भग्नाशे से खेलना आरम्भ किया और गति असंभावित रूप से बढ़ा दी. श्रेया की चीख से कमरा और घर हिल गया और वो कांपते हुए धराशाई हो गई. उसकी चूत ने पानी का एक फौहारा छोड़ा और फिर हार स्वीकार कर ली. मेहुल ने गति धीमी की और श्रेया को चोदता रहा. कुछ पलों के बाद श्रेया ने चेतना पाई तो उसे देखने लगी.

“बहुत अच्छा चोदता है रे. मेरी तो जैसे जान ही निकाल दी. आ जा अब मेरी चूत में शक्ति नहीं बची है. मेरे मुंह में झड़ ले.”

मेहुल ने अपने लंड को श्रेया के मुंह में डाला और श्रेया उसे प्रेम से चाटने लगी. अपने रस से भीगे लंड को चाटने में श्रेया को बहुत आनंद आ रहा था. फिर मुंह में लेकर चूसा और कोई पाँच सात मिनट के बाद मेहुल ने उसके मुंह में अपना रस छोड़ दिया जिसे श्रेया ने प्रेम से स्वाद लेकर पी लिया.

मेहुल भाभी के बगल में लेट गया और दोनों एक दूसरे के शरीर को सहलाते हुए हल्की सी नींद में चले गए.

इधर श्रेया और मेहुल निद्रा में थे तो वहीं नायक परिवार में भोजन के उपरांत मंत्रणा चल रही थी. कुछ समय के विचार विमर्श के बाद ये निश्चित किया गया कि श्रेया के प्रस्ताव को मानने में कोई विशेष आपत्ति नहीं है. अगर शेट्टी परिवार कौटुम्बिक सम्भोग में लिप्त है तो आगे के लिए अनेक संभावनाएं खुल जाएँगी.

इसी के साथ मंत्रणा समाप्त हुई और अंजलि को श्रेया को अपना निर्णय बताने का दायित्व सौंपा गया. अंजलि ने इसे शाम को ही पूर्ण करने का बीड़ा भी उठा लिया.

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स्मिता का घर:

श्रेया और मेहुल जब उठे तो चार बजने को थे. दोनों ने बाथरूम में जाकर हल्का स्नान किया और फिर बैठक में आ गए. श्रेया ने चाय चढ़ा दी और वर्षा ने मेहुल की ओर देखकर आँखों से पूछा “क्या हुआ?”

मेहुल ने संकेत से बताया कि बहुत अच्छा रहा. वर्षा मुस्कुरा दी. श्रेया की चाय बन गई तो वो लेकर आ गई और तीनों बैठे चाय पीने लगे. वर्षा ने श्रेया को देखा तो उसके चेहरे को दमक से जान लिया कि वो भी प्रसन्न थी. तभी घर की घंटी बजी, मेहुल ने उठकर खोला तो सामने अंजलि थी.

“अरे दीदी, आप? आओ आओ.” उसने अंजलि का स्वागत किया.

अंजलि अंदर आई तो श्रेया समझ गई कि उसका तीर सही लक्ष्य पर लगा था. उसने अंजलि का हाथ पकड़ा और अपने कमरे में ले गई. बिस्तर अब तक ठीक नहीं किया था तो अंजलि ने भौहें सिकोड़ीं.

श्रेया: “अरे मेहुल से चुदवाकर हटी हूँ कुछ देर पहले. बिस्तर अभी भी ठीक नहीं किया. और तुम बताओ.”

अंजलि: “मैंने परिवार में बात की. उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. परन्तु ये होगा कैसे इसकी मुझे चिंता है. अब तक किसी को पता नहीं था हमारे विषय में. पर अब न जाने क्यों एक डर सा लग रहा है.”

श्रेया: “अंजलि, मेरा परिवार और मोहन का परिवार इस प्रकार से कई वर्षों से संलिप्त है. कुछ और लोग हैं जो इस विषय को जानते हैं, परन्तु वो भी अपने सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते कभी कुछ नहीं कहेंगे. हमारे घर सटे हुए हैं तो किसी को इतना संशय भी नहीं होगा. समय चलते तुम्हें कुछ अन्य परिवारों के बारे में भी पता चल जायेगा, परन्तु ये तुम सबको स्वयं निर्धारित करना होगा.”

श्रेया आगे बोली, “रही बात कि इसका प्रारम्भ कैसे होगा, तो मैं पापाजी से कहकर कोई रिसोर्ट में जाने के लिए आग्रह कर सकती हूँ, जहाँ हमें कोई और न जानता हो. वहाँ हम अपने मन के अनुरूप इसका आरम्भ कर सकते हैं. अगर तुम सब इसके लिए सहमत हो तो अगले शुक्रवार को हम चल सकते हैं.”

श्रेया ने ये बताना आवश्यक नहीं समझा कि ये वही रिसोर्ट है जहाँ उनके समुदाय के मिलन समारोह होते हैं. अंजलि ने कुछ देर चिंतन किया.

अंजलि, “मुझे परिवार वालों ने ये अधिकार दिया है कि जो मैं सही समझूँ वो निर्णय ले सकती हूँ, जो उन सबको मान्य होगा.”

श्रेया अंजलि को आशा से देख रही थी. अंजलि ने सिर उठाकर श्रेया को देखा और उसका आशय समझ गई.

अंजलि, “श्रेया, तुम अंकल से बात कर सकती हो. हम सब शुक्रवार को चलेंगे.”

श्रेया: “बहुत अच्छा निर्णय है. अब मुस्कुरा भी दो.” ये कहते हुए उसने अंजलि को बाँहों में ले लिया और उसके होंठ चूम लिए.

अंजलि भी मुस्कुरा दी और फिर उसने श्रेया के होंठ चूमे और अपने घर चली गई. श्रेया बाहर आई और अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी.

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समुदाय की मंत्रणा:

मधुजी ने अपनी प्रबंधन समिति को एक मंत्रणा के लिए अगले दिन अपने घर पर आमंत्रित किया. महिला सदस्याओं के लिए इसमें कोई अड़चन नहीं थी, परन्तु पुरुष सदस्य कुछ आनाकानी करने के बाद सहमत हो गए. अगले दिन सभी समय पर उनके घर पहुंच गए. घर के अन्य सदस्य बाहर थे, और उनके पति गिरी अपने नए मित्र जीवन राणा के घर गए हुए थे. इस बात की मधुजी को अत्यंत प्रसन्नता थी कि जीवन से मिलने के बाद जैसे गिरी में भी शक्ति का संचार हो गया था. अब वो भी अपने कमरे में बंद न रहकर परिवार की रात्रिकालीन क्रीड़ा में भाग लेने लगे थे.

मधुजी ने सबको अपने ऑफिस में बैठाया।

“आपसे मैंने कल बात की थी, एक नए परिवार को जोड़ने के विषय में. मैंने उनके बारे में छानबीन आरम्भ कर दी है. मेरे विचार से तीन चार महीने में हमें उनके बारे में विस्तृत सूचना मिल जाएगी.”

“परन्तु मेरा आपको इस विषय में अपने एक संशय को दूर करने के लिए ये मंत्रणा की है. नया परिवार स्मिता शेट्टी और सुनीति राणा के पड़ोसी परिवार हैं. वर्षा और समीर नायक.”

एक सदस्य ने सीटी बजाई।

“तो मेरा संशय यही है कि इतने निकट रहने वाले परिवारों को जोड़ना सही है या नहीं? आप जानते हो कि हमारे अन्य परिवार नगर में फैले हुए हैं.”

तनीषा (एक सदस्या) बोली, “मुझे इसमें कोई विशेष समस्या नहीं दिखती. वैसे भी हमारे समुदाय में इस वर्ष केवल राणा परिवार ही जुड़ पाया है. नए परिवार को आने में वैसे भी छह महीने तो लग ही जायेंगे. फिर उन्हें भी अपनी समाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होगी.”

अन्य सब भी उनके इस विचार से सहमत थे. उन्हें भी इस बात की चिंता थी कि नयी पीढ़ी की सोच पृथक थी और कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर समुदाय का खंडन हो जाये.

“मुझे नहीं लगता कि ऐसा होने की अधिक संभावना है. हाँ, हमें विवाह के विषय में अपने नियम बदलने पर भी विचार करना चाहिए. समुदाय के बाहर विवाह करने पर, परिवार के केवल उस सदस्य को ही एक वर्ष के लिए अलग करना पूरे परिवार को अलग करने से अच्छा होगा. अगर आप सहमत हो तो इस बिंदु पर अगले मिलन समारोह में वोट लिए जा सकते हैं.” मधुजी ने कहा.

“ये उत्तम विचार है. विवाह की संख्या बढ़ रही है. ऐसा न हो कि इस नियम के कारण समुदाय ही समाप्त हो जाये.” एक पुरुष सदस्य ने कहा.

“अब हमें आने वाली नई समिति के विषय में भी सोचना होगा. आप सबने बहुत अच्छा कार्य किया है और इसके लिए हम सभी आभारी हैं. परन्तु नियम यही है कि अगले मिलन पर नए चुनाव होंगे और उसके अगले मिलन में नयी समिति शपथ लेगी.”

सबने सिर हिलाकर सहमति दी.

“जैसा आप जानते हैं आप अपनी ओर से दो सदस्यों का नाम मनोनीत कर सकते हैं, उनकी स्वीकृति होने पर. अन्य सदस्य एक का ही नाम दे सकते हैं. उसके बाद कौन चुना जाता है ये तो चुनाव पर ही निर्भर है. तो मैं चाहूंगी कि आप अपने नाम सोच कर उनसे परामर्श कर लें. अन्य सदस्यों को भी सूचना कर दें ताकि इस समारोह में चुनाव पूर्ण हो सकें. समय अधिक नहीं है, पर हम एक बहुत छोटा समुदाय हैं.”

“हाँ, मेरे विचार से इस सप्ताह में ही नाम निर्धारित हो जायेंगे. इस मिलन पर चुनाव किये जा सकते हैं.”

इसके बाद आर्थिक स्थिति पर चर्चा हुई. फिर मंत्रणा समाप्त करने के पश्चात सब सदस्य अपने घर या कार्य पर चले गए.

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स्मिता का घर:

श्रेया मोहन के आने के बाद उसे कमरे में ले गई और अंजलि से हुई बात बता दी. मोहन ने सोचा कि ये बात सबके साथ साझा करना अत्यंत आवश्यक है. उसने इसका दायित्व उठाया और रात्रिभोज के उपरांत इसके विषय में चर्चा करने का समय चुना. शाम को एक दो ड्रिंक्स के बाद भोजन किया गया और फिर मोहन ने कहा कि वो सबके साथ एक बात बाँटना चाहता है. तो सब लोग वहीँ बैठक में बैठ गए. मोहन ने उस रात को सुनाई देने वाली चीखें और फिर श्रेया का अंजलि के घर जाना और फिर आज अंजलि का उनके घर आना सबको बताया. विक्रम उसकी ओर ध्यान से देख रहा था. अंत में उसने श्रेया द्वारा प्रस्तावित रिसोर्ट की योजना अपने पिता को बताई.

“तो अब हमें ये निर्णय लेना है कि हम उन्हें अपने साथ ले जायेंगे या नहीं?”

“अगर बात इतनी आगे बढ़ा ही चुके हो तो न कहने का प्रश्न ही कहाँ बचता है.” विक्रम ने श्रेया की ओर देखकर कहा.

“पापा.” श्रेया कुछ बोलती उसके पहले ही विक्रम ने उसे रोक दिया, “क्या बात यहीं तक सीमित है या कुछ और भी है.”

“हमने मधुजी को उनके बारे में जाँच करने के लिए निवेदन किया है.”

“तेरी माँ का… कभी कुछ पूछ भी लिया करो.”

“सॉरी, पापा.” मोहन और श्रेया ने कहा. इस पूरे वार्तालाप में महक और मेहुल मौन ही थे.

“सुनिए.” स्मिता ने कहा, “मुझे इसमें कोई विशेष समस्या नहीं लग रही है. आप क्यों इतना चिंतित हो रहे हैं?”

“अगर अंजलि ने श्रेया से झूठ कहा हो तो?”

“आप श्रेया की बुद्धिमता पर शंका कर रहे हैं. और अंजलि कभी इस घटना को स्वीकार नहीं करती.”

“ओके, तो क्या चाहते हो?”

“रिसोर्ट बुक कर दो. कितने कमरे चाहिए पड़ेंगे?” स्मिता ने अब बागडोर अपने हाथ में ले ली.

“छह हम और वहां से सात. तेरह लोग.”

“किसी को जोड़ लो, मुझे ये अंक अच्छा नहीं लगता.”

“मम्मी को ले लो!” श्रेया ने तुरंत अपना सुझाव दिया.

“अविरल मानेगा तीन दिन के लिए?”

“ओह, उन्हें मनाया जा सकता है. स्नेहा तो रहेगी ही उनके साथ.”

“हाँ सुजाता ही ठीक रहेगी.”

इसके बाद विक्रम ने रिसोर्ट के एक तल पर चार बड़े कमरे बुक कर दिए. उसी तल पर बने एक समारोह कक्ष को भी बुक कर दिया. लोकेश जो मधुजी का पुत्र और रिसोर्ट का स्वामी था उसने विक्रम को उत्तम सेवा का आश्वासन दिया. बाद में जब लोकेश ने अपनी माँ मधुजी को बताया तो उन्होंने लोकेश से अपनी ओर से कुछ अन्य निवेदन भी किये. लोकेश ने बिना कारण जाने उन्हें स्वीकार किया. मना करता भी तो कैसे? मधुजी उसे अपनी गांड मरवाते हुए जो समझा रही थीं.

***************

मेहुल दुविधा में था. परसों उसका महक के साथ का समय था, फिर अगले दिन दिंची क्लब में और फिर उसके अगले दिन स्नेहा के साथ. और अब ये नया बखेड़ा उनके पड़ोसियों के साथ का. वैसे अंजलि मस्त थी और जब वो मिलती थी, जो कम ही होता था, उसे चोदने का विचार उसके मन में कई बार आता था. उसकी माँ वर्षा की बात कुछ और ही थी. पका हुआ फल थी जिसकी जवानी अब तक ढली नहीं थी, कुछ उसकी अपनी माँ के समान. और उसे इस आयु की स्त्रियों को चोदने में असीम आनंद आता था. उसे सिखाने वाली हर स्त्री लगभग इसी आयु की जो थीं.

वो महक या स्नेहा के साथ बनी योजना को बदलना चाहता था, विशेषकर महक क्योंकि वो किसी भी कारण से क्लब में जाकर विफल नहीं होना चाहता था. पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो करे भी तो क्या? पर इसका समाधान स्वयं ही हो गया. जिस दिन उसका महक से समय तय हुआ था, राणा परिवार ने महक को शॉपिंग के लिए बुला लिया. महक मेहुल की ओर देखकर मना करने ही वाली थी कि मेहुल ने उसे रोका और जाने के लिए सहमति देने का संकेत किया. फोन रखकर महक मेहुल की और मुड़ी.

“क्यों?”

“मैं कहीं भागा नहीं जा रहा हूँ, पर जिस घर में तुझे जाना है वहाँ अगर अभी से टाल मटोल करेगी तो नकारात्मक व्यवहार माना जा सकता है. मेरी मान, मन लगाकर शॉपिंग करना और उन सबको अपने निर्मल व्यवहार से जीत लेना. फिर मैं तो यहीं हूँ.”

महक मेहुल के सीने से लग गई. उसकी आँखों में आंसू थे.

“आप संसार के सबसे अच्छे भाई हो!”

मेहुल ने इधर उधर देखा, स्मिता और श्रेया उन्हें देखकर भावुक हो रहे थे.

“क्या देख रहे हो?”

“मैं देख रहा था कि दादा (मोहन) का नंबर मैंने कैसे काट दिया.”

महक हंसने लगी.

“ओके, भाई, आप दोनों वर्ल्ड के बेस्ट भाई हो. अब ठीक.”

“हम्म, वर्ल्ड की बेस्ट बहन जब बोल रही है तो मान लेता हूँ. क्यों मम्मी और भाभी?”

“बिलकुल सही. और हमारा परिवार वर्ल्ड का बेस्ट परिवार.”

स्मिता और श्रेया ने आगे बढ़कर उन दोनों को बांध लिया और चारों एक दूसरे से लिपट गए.

मेहुल की एक समस्या हल हो गई थी. उसने भाभी से कहा कि स्नेहा को और दो दिन आगे बढ़ा दो.

“ओह हो हो, मेरे बच्चे का साथ पाने के लिए अब अपॉइंटमेंट लेना पड़ रहा है.”

“भाभी, आप भी!” मेहुल शर्माते हुए बोला।

“चल मैं उसे कहे देती हूँ.” श्रेया ने कहा और फिर सब अपने कार्य में लग गए.

****************

दिंची क्लब में मेहुल:

मेहुल निर्धारित दिन और समय पर सचिन द्वारा दिए पते पर पहुंच गया. घर से कुछ दूर था, नगर की सीमा से बाहर. अपनी गाड़ी को खड़ा करने के बाद वो अंदर गया जहाँ एक सुंदर मध्यम आयु की स्त्री बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी. मेहुल को देखकर वो मुस्कुराई और उसका स्वागत करने के बाद उसके आने का उद्देश्य पूछा. मेहुल ने उसे बताया तो उसने मेहुल से उसका पहचान पत्र माँगा. मेहुल ने अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिया जिसकी उस महिला, जिसका नाम नूतन लिखा हुआ था, ने प्रति बनाई और मेहुल को लौटा दिया.

उसी समय वहाँ एक और आगंतुक का पदापर्ण हुआ. एक पचास पचपन वर्ष की महिला ने आकर नूतन से बात की और अपना नाम बताया. नूतन ने उससे भी उसका पहचान पत्र लिया और फिर प्रति बनाकर लौटा दिया. उस महिला को देखकर मेहुल का लंड टनटना गया. महिला ने जिस प्रकार से मेकअप किया था और स्वयं को प्रस्तुत कर रही थी, उससे ये विदित था कि वो धनाढ्य परिवार की है. सचिन के द्वारा बताई हुई फ़ीस का ध्यान आते ही उसे समझ आ गया कि ये महिला भी अपनी चुदाई के लिए ही आई है. ये कुछ सीमा तक सच था. रूचि मैडम की माँ राशि ने अपनी सहेलियों में से कुछ को चुनकर इस क्लब के विषय में बताया था. उसका अपनी बेटी के इस नए व्यवसाय में कुछ सहायता करने का उद्देश्य था. रूचि ने पार्थ से बात की और फिर कुछ चिंतन के बाद उनमें से दो महिलाओं को ही चुना गया. अगर इनमे से कोई पारित नहीं होती तो किसी और को अवसर दिया जा सकता था.

नूतन ने उस महिला, जिसका नाम सोनी था, पास के एक कमरे में बैठाया और फिर मेहुल को लेकर चल पड़ी. एक कमरे के आगे जाकर उसने उसे खोला और मेहुल को अंदर आने को कहा. कमरा बहुत अच्छा सजाया हुआ था और किसी भी पाँच सितारा होटल के कमरे को मात कर सकता था. नूतन ने मेहुल को आवश्यक निर्देश दिए. कपड़े उतारकर कहाँ रखने हैं, स्नान करने के बाद गाउन पहनना है और फिर उसके परीक्षण के लिए संचालिका की प्रतीक्षा करनी है. मेहुल के पूछने पर नूतन ने बताया कि वे भी बीस मिनट में पहुंच जाएँगी. नूतन ने मेहुल को एक प्रपत्र भी दिया और उसे भरने के लिए कहा. उसमें गोपनीयता की शपथ और अन्य कुछ विवरण भरने थे. इसके बाद उसने कमरे को बंद किया और चली गई. मेहुल ने अपने कपड़े बताये अनुसार रखे और स्नान के लिए चला गया. वहाँ पर उपलब्ध गाउन को पहना, कोई अंतर्वस्त्र की आवश्यकता नहीं थी. मेहुल ने उस फॉर्म को भरा और अपने हस्ताक्षर करने के बाद उसे टेबल पर रख दिया. फिर वो सोफे पर बैठकर कमरे के दरवाजे की ओर देखते हुए अगले पड़ाव की प्रतीक्षा करने लगा.

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दिंची क्लब में सोनी:

मेहुल को छोड़कर नूतन सोनी के पास आई और उन्हें अपने साथ एक दूसरे कमरे में ले गई. सोनी भी कमरे की भव्यता से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. नूतन ने मेहुल के ही समान सोनी को समझाया, फॉर्म भरने के लिए दिया और चली गई. सोनी ने स्नान किया और फॉर्म भरा. क्लब की फ़ीस पर अवश्य उसे कुछ शंका थी परन्तु राशि (रूचि मैडम की माँ) ने उसे समझाया था कि उसे हर पैसे की कीमत कई गुना मिलेगी. सोनी के पति एक बड़े व्यवसाई थे और महीने में कई दिन बाहर ही रहते थे. जब राशि ने उनके साथ जाना छोड़ा तो सोनी को आश्चर्य हुआ था.

कुछ दिनों पहले उसने राशि से बात की तो राशि ने बताया कि उसने अपनी अलग व्यवस्था कर ली है और अब उसकी चुदाई नियमित रूप से जवान, मोटे, कड़े और बड़े लौडों से होती है. सोनी के निवेदन पर कुछ दिन पहले राशि ने उसे अपने घर बुलाया और उसे इस क्लब के बारे में बताया. यहाँ की गोपनीयता को बनाये रखने के लिए उसने हमारे मुंबई में किये गए अनाचारों के वीडियो दिखाए. अगर सोनी गोपनीयता नहीं बना पाई तो वो उन्हें सोनी के पति के पास भेजने में कोई संकोच नहीं करेगी. क्लब की फीस अधिक थी, पर राशि ने पाई पाई का मोल बताया. आज सोनी यहाँ पहली बार आई थी. राशि ने उसे ये तो समझा दिया था आज उसकी भरपूर चुदाई होगी और हर प्रकार से संतुष्ट हो कर ही लौटेगी.

अब वो उस व्यक्ति की राह देख रही थी जो उसकी परीक्षा लेने वाला था. “इतने लौड़े खाये हैं कि ये लौंडा भी मेरे तलवे चाटेगा.” ये सोचते हुए सोनी मन ही मन मुस्कुरा उठी.

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दिंची क्लब में शोनाली और पार्थ:

शोनाली और पार्थ एक की कार में कुछ ही देर में पहुंचे. शोनाली अपने नए रोमियो को लेकर कुछ उत्सुक थी, पर पार्थ ने उसे कुछ भी नहीं बताया था.

शोनाली: “रूचि मैडम के जुड़ने से हमारा क्लब अब हानि से उठकर लाभ में आ चुका है. अब उनकी माँ भी हमें नए सदस्य देकर सहायता कर रही हैं. हमें उनका कृतग्न होना चाहिए.”

पार्थ: “बुआ, वो तो हम हैं. इसी कारण उन्हें घर पर सेवा दी जा रही है, जो अन्य किसी भी सदस्य को नहीं मिलतीं.”

शोनाली: “ये भी ठीक है. तो चलो आज के लिए शुभकामनायें.”

पार्थ: “आपको भी बुआ. मम्मी के लिए माल संभाल के रखियेगा.”

शोनाली: “ये भी कोई बोलने की बात हुई? आज तक दीदी को मैंने कभी निराश किया है?”

पार्थ ने शोनाली के होंठ चूमे और फिर कार से बाहर निकला, शोनाली भी निकली और क्लब में चली गई. नूतन ने उन्हें उनके कमरों का नंबर दिया और दोनों एक नए अनुभव के लिए चल पड़े. नूतन उन दोनों को जाते हुए देख रही थी.

“ये अच्छा काम है, नयी चूत और नया लंड इनको ही पहले मिलता है.” उसने सोचा. अब उसकी आवश्यकता पड़ने में कुछ समय था. उसने नापने का फीता निकलकर अपने साथ रख लिया.

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दिंची क्लब में सोनी और पार्थ:

पार्थ ने कमरे में प्रवेश किया तो सोनी ने उसे सिर उठाकर देखा. और देखती रह गई. उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. अगर ये मेरी चुदाई करने वाला है तो बहुत आनंद आएगा.

“नमस्ते सोनी जी, मैं पार्थ हूँ.”

“न न न नमस्ते, पार्थ!”

“आपको आने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई न? ड्राइवर लाने ही यहाँ मनाही है.”

“नहीं, राशि ने अच्छे से बताया था.”

“मुझे क्षमा करें, मैं भी स्नान करके आता हूँ.”

सोनी ने केवल सिर हिलाया. पार्थ ने झटपट स्नान किया और गाउन पहन लिया. आते समय उसने बिस्तर के पास उपस्थित वस्तुओं का निरीक्षण किया. जैल की ट्यूब नई थी, और अन्य वस्तुएं भी नयी ही थीं.

“जी सोनी जी, तो इसके पहले कि मैं आपको हमारे नियम इत्यादि बताऊँ क्या आपको कोई प्रश्न पूछना है.”

“आपके क्लब के सभी लड़के आप जैसे हैंडसम हैं क्या?”

पार्थ हंसने लगा. “अधिकतर हैं. पर आपको पता है कि यहां हम लड़कों को सुंदरता के कारण नियुक्त नहीं करते. आपको पता है न?”

“कुछ कुछ.”

पार्थ: “इस क्लब में रोमियो बनने के हेतु, चार योग्यताएँ आवश्यक हैं. लंड दस इंच से अधिक होना चाहिए, रोमियो को चुदाई में पारंगत होना चाहिए, रोमियो को स्वयं पर अतिरिक्त गर्व नहीं होना चाहिए, और अंतिम पर सबसे मुख्य कि उसे गोपनीयता रखना आना चाहिए.”

सोनी: “द द द दस इंच!”

पार्थ सोनी की आँखों में झांककर बोला: “जी. कम से कम. अब मैं आपको कुछ नियम बताता हूँ. आज के लिए और कुछ आगे के लिए.”

“पहला नियम केवल आज के लिए है: आज आपकी चुदाई जैसी मैं चाहूँगा वैसे ही करूँगा. अगर आपको किसी भी समय अड़चन या किसी भी प्रकार की कठिनाई हो, आप तुरंत बता दीजियेगा. हमारे क्लब में सदस्याएं आनंद लेने के लिए आती है, बलात्कार का यहाँ कोई प्रयोजन नहीं है.”

“दूसरा भी केवल आज के लिए ही है: आज मैं आपके मुंह, चूत और गांड तीनों में अपना रस गिराऊँगा। आपको हर बार उसे पीना होगा.”

“इसके बाद से अगर आप सदस्य बनती हैं तो आपकी चुदाई जैसा आप चाहेंगी वैसे की जाएगी.”

इसके बाद पार्थ ने कुछ और नियम भी उसे बताये. “तो आप क्या आगे बढ़ना चाहेंगी?”

सोनी ने स्वीकृति में सिर हिलाया. पार्थ ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और सोनी के हाथ को थामा, फिर उसे खड़ा कर दिया. सोनी की आयु ५५ वर्ष के लगभग थी, परन्तु उसने स्वयं को बहुत संभाल कर रखा था और इसीलिए उसका शरीर उसकी आयु को छुपा रहा था. पर पार्थ की पैनी दृष्टि ने इस छलावे को भांप लिया था. फिर उसे सोनी के लंड के आकार के बारे में आश्चर्य होने से भी ये विश्वास हो गया था कि आज की चुदाई सोनी भूलेगी नहीं. हाँ, क्लब में उसे चोदने के लिए और भी रोमियो मिलेंगे, पर पहला बड़ा लंड उसका ही होगा.

सोनी के चेहरे को उठाकर पार्थ ने अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए. सोनी मानो पिघल गई. उसने भी पार्थ का साथ दिया और क्षण भर में दोनों के चुंबन की ऊर्जा से कमरा तपने लगा. सोनी के शरीर में मानो अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी. उसने ऐसा कभी अनुभव नहीं किया था. पार्थ ने उसे चूमते हुए उसके गाउन को उतार फेंका. अब सोनी नग्नावस्था में पार्थ से लिपटी हुई उसके चुंबन का आनंद ले रही थी. उसने भी अपने हाथ बढ़ाये और पार्थ के गाउन को निकाल दिया. अब दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके हुए चुंबन का आनंद लेने लगे.

“बैठिये.” पार्थ ने सोनी से कहा. सोनी आज्ञा मानकर बैठ गई और उसके सामने पार्थ का लंड आ गया.

“ओह माँ, ये लंड है?” सोनी अचरज से देख रही थी. “मेरी चूत में कैसे जायेगा?”

“आप इसकी चिंता न करें, चूत में भी जायेगा और गांड में भी. और आपको आनंद भी आएगा. पर पहले आप इसे अपने मुंह से चूसकर आनंदित करें.”

“मुझे डर लग रहा है, पार्थ.”

“सोनी जी, मैंने इसी लंड से लड़कियों की भी चुदाई की है और उनकी गांड भी मारी है. कुछ की तो मैंने गांड की सील भी इससे ही खोली है, यहीं, इसी कमरे में और इसी बिस्तर पर. आपको सच में डरने की आवश्यकता नहीं है.” इस बार पार्थ ने लंड को सोनी के होंठों से लगा दिया.

सोनी ने मुंह खोला और पहले जीभ से पार्थ के लंड को चाटा। हर कोण से चाटने के बाद उसने लंड मुंह में लिया और चूसने लगी. यहाँ उसका वर्षों का अनुभव था, और इसमें वो निपुण थी. पार्थ भी खड़ा हुआ यही सोच रहा था कि सोनी के लंड चूसने का ढंग बहुत भिन्न था और कामोत्तेजक भी. बीच बीच में लंड निकालकर सोनी उसे हर ओर से चाटती और फिर चूसने लगती. धीरे धीरे वो पार्थ के लंड को अपने मुंह में अधिक अंदर तक लेने में सफल हो रही थी. पर एक व्यवधान के बाद वो रुक गई और फिर उतनी ही गहराई तक लंड को चूसने और चाटने में लगी रही.

पार्थ जानता था कि इस बार अगर वो जल्दी झड़ेगा तो चूत और गांड में अधिक समय तक टिक पायेगा. इसीलिए वो भी स्वयं भी शीघ्र झड़ने के लिए आतुर था. सात आठ मिनट की चुसाई के बाद पार्थ ने सोनी को बताया कि अब वो झड़ने वाला है और उन्हें पूरा पानी पीना होगा. सोनी बिना रुके अपने काम में लगी रही और जब पार्थ ने अपना पानी छोड़ा तो सोनी ने बिना संकोच या कठिनाई के उसके लगभग पूरा रस पीने में सफलता पाई. जो उसके मुंह से बाहर निकला, उसे उसने उँगलियों के माध्यम से इकट्ठा करने के बाद चाट लिया.

“बहुत सुंदर! सोनी जी, इस पड़ाव में तो आप उच्च कोटि से भी ऊपर निकल गयीं.”

सोनी अपनी प्रशंसा सुनकर चहक उठी.

“तो अब मुझे भी आपके इस प्रयास का उत्तर देना होगा, चलिए बिस्तर पर ही चलते हैं, आगे का खेल वहीँ खेलेंगे.” पार्थ ने सोनी को बिस्तर पर बैठा दिया. फिर उसके पाँव खोले और चूत की ओर देखा जो अब पसीजी हुई थी.

“मुझे इसका स्वाद लेना है, आप लेट जाएँ तो अच्छा है.”

सोनी बिस्तर पर उचित स्थिति में लेट गई और अपने पाँवों को फैला दी. पार्थ ने कुछ ही क्षणों में सोनी को अपनी प्रतिभा से अवगत करा दिया. सोनी वैसे तो कई लोगों से चुदवा चुकी थी, परन्तु उनमें से अधिकांश चूत चाटने के क्षेत्र में अनुभवी नहीं थे. वे एक प्रकार से नौसिखिये थे जो चोदना तो भली भांति जानते थे पर चाटने और चूसने में निपुण नहीं थे. पर जिस प्रकार से पार्थ उसकी चूत से खेल रहा था, जिस प्रकार से उसके होंठ, जीभ और उँगलियाँ अपना संगीत बना रही थीं उसका स्तर ही भिन्न था. सोनी की चूत से पानी बहे जा रहा था और पार्थ निःसंकोच उसे पी भी रहा था.

जब पार्थ को ये लगा कि सोनी अब चुदने के लिए पर्याप्त रूप से आतुर हो चुकी है तो वो हटा और अपना आसन सोनी के पैरों के बीच में लगाया. सोनी ने उसके मोटे लम्बे लंड को देखा तो सिहर उठी. क्या सच में वो इस दैत्य को अपनी चूत में ले पायेगी? क्या ये उसके जीवन का अंतिम दिन है? परन्तु उसने सोचा कि अंतिम हो या नहीं, इस लंड से चुदे बिना मरना भी ठीक नहीं होगा.

“थोड़ा प्यार से डालना, पार्थ। मैंने इतने बड़े लंड से कभी चुदवाया नहीं है. प्लीज.”

“सोनी जी, मैंने आपको विश्वास दिलाया था और फिर से कहता हूँ, कि कुछ क्षणों के लिए आपको अवश्य कष्ट हो सकता है, हालाँकि मैं प्रयास करूँगा कि वो भी न हो, परन्तु उसके बाद आपको आनंद की ऐसी ऊंचाई पर ले जाऊँगा जिसे अपने अब तक अनुभव नहीं किया है. परन्तु कुछ संयम अवश्य रखना होगा.”

“मैं तुम पर विश्वास कर रही हूँ. राशि ने भी यही कहा था. वो मुझसे झूठ नहीं बोलती. मैं तुम्हारी शरण में हूँ. ले चलो जहाँ मैं आज तक नहीं पहुँची।” सोनी ने कुछ साहस से कहा, हालाँकि उसका मन अभी भी विस्मित था.

पार्थ ने अपने लंड से सोनी की चूत को घिसना आरम्भ किया. सोनी की चूत ने आशय समझकर आने वाले आगंतुक के लिए रस से अपनी गुफा को भिगाया. पार्थ ने बहुत ध्यान और संयम के साथ अपने लंड को सोनी की चूत में डालना आरम्भ किया. पक्क की हल्की ध्वनि के साथ उसके सुपाड़े ने अपना स्थान सोनी की चूत में ग्रहण कर लिया. सोनी साँस रोके अपनी चूत के संहार की प्रतीक्षा कर रही थी. पर अब तक सब ठीक था. पार्थ ने लंड पर उसी प्रकार से दबाव बनाये रखा और उसके लंड का प्रयाण भी आगे चलता रहा. लगभग आधे लंड के अंदर जाने के बाद पार्थ रुका और सोनी के चेहरे को देखा. उसे देखकर वो मुस्कुराया.

“कुछ पता लगा?” पूछने पर सोनी ने न में सिर हिलाया.

“ठीक है, अभी लंड पूरा अंदर नहीं है, मैं इसी लम्बाई से आपकी चुदाई करूँगा, धीरे धीरे आपको स्वयं ही और गहराई से चुदने की इच्छा होगी.”

पार्थ ने सधी ताल से सोनी की चुदाई आरम्भ की, सोनी को ये आभास नहीं हुआ कि हर कुछ धक्कों के बाद पार्थ अपने लंड को कुछ और गहराई तक डाल रहा था. वो तो इस चुदाई से इतना उत्तेजित हो चुकी थी कि अब उसे पार्थ के कहे अनुसार और अधिक गहरी चुदाई की इच्छा होने लगी.

“थोड़ा और डालो, बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसा मुझे कभी नहीं लगा. प्लीज, थोड़ा और.”

पार्थ कब मना करने वाला था. उसने कुछ और अंदर तक लंड डाला और कुछ गति भी बढ़ा दी. सोनी को अब आनंद की परिभाषा समझ आने लगी थी. अब उसकी लंड की चाह और तीव्र होने लगी थी. और जैसे जैसे वो पार्थ को प्रोत्साहित करती, पार्थ उसे और तीव्रता से चोदने लगता. अचानक सोनी की साँस मानो रुक गई. उसकी आँखें फ़ैल गईं। उसे लगा कि अब उसका अंत आ गया है. पार्थ ने अचानक ही अपने पूरे लंड को उसकी चूत में उतार दिया था और रुक गया था. पार्थ भी सोनी के चेहरे के भाव देख रहा था. कुछ देर तक सोनी यूँ ही निष्चल पड़ी रही, फिर सचेत हुई और उसने पार्थ को देखा.

“मैं मरी नहीं?”

“नहीं.”

“तो फिर चोदो मुझे. मरने तक चोदो। पूरा लंड डाल दिया है न? तो अब मुझे उसका प्रताप भी दिखाओ.”

“ये हुई न बात, अब आप उस शिखर पर पहुंचेंगी जिसकी अपने कल्पना भी नहीं की होगी.”

इसके साथ ही पार्थ ने अपने शक्तिशाली कूल्हे हिलाये और सोनी की चूत को अपने लंड की पूरी लम्बाई से चोदने लगा. सोनी को सच में कुछ नए ब्रम्हांड के दर्शन होने लगे. वो जैसे आकाश में रंग बिरंगे तारों के मध्यस्त थी, हर रंग नया था, अनूठा था. उसके शरीर का हर अंग आनंद की तरंग में बह रहा था. विशेषकर उसकी चूत जिसे किसी बलशाली वस्तु से प्रताड़ित किया जा रहा था. उन्हीं रंगों में अचानक परिवर्तन हुआ. सब एक दूसरे में मिलने लगे, फिर अलग हुए, फिर मिले. उसका शरीर एक नया अनुभव कर रहा था जो जीवित होने पर सम्भव नहीं था.

उसकी आँखे उसके सामने किसी को देख रही थीं, जो एक अत्यंत सुंदर और बलशाली पुरुष था. और उन दोनों का शरीर जुड़ा हुआ था. सोनी की आँखों में एक बार रंग मिल गए पर इस बार वे जुड़े रहे, उसे लगा कि उसका शरीर उसके वश में नहीं था. वो छटपटा रही थी, आनंद से. उसकी एक तीव्र किलकारी या चीख ने उसे इस तंद्रा से जगाया. उसके शरीर के स्पंदन रुक नहीं रहे थे. सामने वो पुरुष अभी तक उससे जुड़ा हुआ था. धीरे धीरे वो लौटी तो पार्थ को पहचान गई. उसे ये भी आभास हुआ कि अब पार्थ का लंड उसकी चूत में अवश्य था, पर कुछ कम कड़ा था. पार्थ उसे देखकर मुस्कुराया.

“कैसा लगा, सोनी जी?”

“क्या, मैं अभी भी जीवित हूँ. मुझे तो समस्त ब्रम्हांड के दर्शन हो गए.”

पार्थ ने अपना लंड बाहर निकाला. सोनी को हाथ पकड़कर उठाया और उसके मुंह को लंड पर लगा दिया. सोनी स्वतः ही उसे चाटने लगी और फिर थोड़ी देर चूसी भी.

“पार्थ तुमने सच कहा था, मुझे ऐसा अनुभव कभी भी नहीं हुआ है.”

“धन्यवाद, और अब अपनी चूत से रस निकालकर चाटिये. फिर कुछ देर विश्राम करते हैं.”

सोनी अपनी चूत में ऊँगली डालकर पार्थ और अपने रस के मिश्रण को चाटने लगी. विश्राम के समय सोनी ने अपने विषय में कुछ कुछ बताया. उनके पति के व्यवसाय के कारण अधिकतर बाहर जाना पड़ता था. पहले वो भी उनके साथ जाती थीं, परन्तु अकेली वहाँ भी ऊब जाती थीं. फिर सहेलियों के साथ किट्टी पार्टियों में सम्मिलित हो गयीं. कुछ ही वर्ष पहले उनकी किट्टी की सहेलियों ने मुंबई जाने की योजना बनाई. उनमें से एक ने किसी एक एजेंसी के द्वारा युवा साथियों की व्यवस्था कर ली. उस यात्रा में सोनी ने पहली बार अपने पति के सिवाय किसी और से सहवास किया था. एक शारीरिक अपेक्षा की संतुष्टि हो गई.

इसके बाद ये एक सामान्य प्रक्रिया हो गई. आनंद तो आता था, परन्तु इसका मुख्य ध्येय शरीर की आवश्यकता ही रही. कुछ महीनों पहले राशि ने जाना बंद कर दिया. पूछने पर इस क्लब के बारे में बताया, और आज वो अपने इस निर्णय से पूर्णतया संतुष्ट थी. पार्थ ने कुछ अधिक नहीं बताया. और अब समय अंतिम चरण को विधिवत पूरा करने का था. पार्थ मन में तो सोनी को सदस्यता दे ही चुका था, परन्तु सोनी की गांड का भोग किये हुए वो उन्हें छोड़ भी नहीं सकता था. पार्थ के लंड ने अंगड़ाई ली तो सोनी से छुपा न रहा. उसकी आँखों में भय की परछाईं देखकर पार्थ ने उन्हें आश्वासन दिया.

“पार्थ, अब तक मेरी गांड केवल मेरे पति ने ही मारी है, वो भी इन ३२ वर्षों में कुल आठ से दस बार. गांड मरवाये हुए मुझे एक लम्बा समय हो चुका है. हालाँकि मैं जानती हूँ कि तुम मुझे अधिक कष्ट नहीं दोगे, पर अगर मैं कहूँ रुकने के लिए तो कृपा करके बुरा न मानना।”

“ये विश्वास मैं आपको पहले भी दिला चुका हूँ.” पार्थ के मन में लड्डू फूट रहे थे. सोनी के कहने का ये तात्पर्य था कि उसकी गांड इस आयु में भी एक सीमा तक अछूती ही थी. गांड की कसावट के बारे में सोचकर पार्थ का लंड फनफना गया और सोनी की आँखें फट गयीं.

“आइये, पहले आपकी गांड को इस क्रिया के लिए उचित स्थिति में लेकर आते हैं. इससे आपको न केवल आनंद ही आएगा, बल्कि आगे आने वाले आनंद की भी कल्पना हो जाएगी. इसके बाद सच मानिये आप गांड मरवाने के लिए सदा उतावली रहेंगी. और इस क्लब के हर रोमियो से आपको इस आनंद की प्राप्ति होगी.”

सोनी का शरीर सिहर उठा. पार्थ ने अनजाने में ही उसकी सदस्यता की पुष्टि कर दी थी. पार्थ सोनी को देखकर ये सोच रहा था कि आज के बाद ये चुदाई के लिए इतनी आतुर रहेंगी कि दो तीन महीने में ही डबल चुदाई के लिए भी मान जाएँगी. पार्थ ने शोनाली बुआ से ये निश्चित करने का प्रण किया कि जब भी सोनी का इस प्रकार का निवेदन आएगा, उसे अवश्य बताया जाये. अन्यथा तीन महीने के बाद वो स्वयं ही इस कांड को पूरा करेगा. पार्थ ने सोनी का हाथ पकड़कर उन्हें बिस्तर पर घोड़ी का आसन लेने का आदेश दिया. घोड़ी बनकर भी सोनी के हाथ पाँव काँप रहे था.

पार्थ ने सामने के मनोरम दृश्य को देखा तो उसका तना लंड ऊपर नीचे होने लगा. सोनी की चिकनी गांड पर हाथ फिराते हुए उसने अपनी जीभ से उसके गांड के फूल को छेड़ा. सोनी को गुदगुदी सी हुई और वो मचल गई.

“क्या कर रहे हो?”

“ओह, इतनी सुंदर और मनभावन गांड को देखकर स्वाद लेने का मन किया.” पार्थ ने उत्तर दिया और फिर से जीभ से सोनी की गांड को चाटा। सोनी खिलखिलाने लगी. पार्थ अपने पथ पर अग्रसर रहा. सोनी की गोलाइयों को अपने हाथों से अलग किया और सामने उभरी गांड पर अपने मुंह से लार टपका दी. अँगूठे से लार को सोनी की गांड के छल्ले पर रगड़ा. अब सोनी का भय न जाने कहाँ खो गया. सोनी की गांड को अब पार्थ ने फिर से चाटना आरम्भ किया. इस बार उसकी इस क्रिया में लालसा थी. सोनी की गांड केवल उसके पति ने ही मारी थी. उसकी गांड को किसी ओर ने कभी स्पर्श भी नहीं किया था, चाटना तो दूर ही बात रही.

पार्थ सोनी को उस सीमा तक ले जाना चाहता था जहाँ सोनी का भय समाप्त हो जाये. अगर वो तनाव में रही तो उसकी गांड मारने में बहुत कठिनाई होनी थी, और सम्भवतः सोनी को आनंद के स्थान पर इस कृत्य से अरुचि हो जाती. उसे किसी भी प्रकार की शीघ्रता नहीं थी. दो घंटे की सीमा केवल रोमियो के लिए होती है. पार्थ अपने पूरे ध्यान के साथ सोनी की गांड का रसास्वादन कर रहा था. सोनी की गांड भी अब तनावमुक्त हो चुकी थी. गांड के अंदर जीभ डालकर पार्थ ने सोनी को विस्मित किया और वो झड़ गई. पार्थ मुस्कुराया, ये किला अब मेरे आगे हार मान ही लेगा.

अपनी जीभ से कई मिनट तक पार्थ सोनी की गांड का भोग करता रहा. इसके बाद उसने जीभ निकाली और अपनी छोटी ऊँगली पर जैल लगाया और हल्के से गांड को भेद दिया. सोनी की सिसकी निकली, पर उसने आपत्ति नहीं की. कुछ देर तक उस एक ऊँगली से ही पार्थ गांड मारता रहा. फिर उसने ट्यूब से भारी मात्रा में जैल सोनी की गांड में उड़ेला. फिर गांड के दोनों पाटों को भींचकर जैल को अंदर तक जाने दिया. दोबारा इसी को दोहराने के बाद फिर ऊँगली से गांड को चिकना किया. फिर दूसरी ऊँगली को भी उसमे जोड़ दिया.

अब तक सोनी पूर्ण रूप से तनावमुक्त हो चुकी था. उसका पार्थ पर अथाह विश्वास बन गया था. जितनी देर उसने उसकी गांड को उचित स्थिति में लाने में लगाया था, उसका यही अर्थ था कि वो उसकी बलि तो नहीं ही चढ़ाएगा. अचानक सोनी की आँखें भीग गयीं. उसने निर्णय लिया कि चाहे उसे कितनी भी पीड़ा हो, वो पार्थ को अपनी गांड की भेंट पूरी श्रध्दा से चढ़ायेगी. उसकी गांड ने उसके इस निर्णय का सम्मान किया और पार्थ ने ये अनुभव किया मानो सोनी की गांड की तंग गली कुछ ढीली हो गयी है.

समय आ चुका था. पार्थ ने अपने लंड पर जैल लगाया, गांड में फिर और जैल डाला. और सोनी को बताया कि वो अब गांड मारने जा रहा है. अगर उसे किसी भी प्रकार की असहजता हो तो वो रुक जायेगे. सोनी के मौन का अर्थ पार्थ ने समझ लिया. वो अपनी गांड की आहुति दे रही थी. और पार्थ इसे स्वीकार करने के लिए कर्तव्यबद्ध था.

गांड के संकरे छेद पर अपने लंड को लगाकर पार्थ ने हल्के दबाव के साथ सुपाड़े को अंदर धकेल दिया. सोनी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की. पार्थ ने दबाव बनाये रखा और जब लंड लगभग तीन इंच के लगभग अंदर चला गया तो वो रुक गया. फिर इसी गहराई तक उसने गांड मारना आरम्भ किया. सोनी को इस गहराई तक कोई कष्ट नहीं था. पार्थ के हल्के धक्के उसकी गांड को खोलने में सफल हो रहे थे. सोनी भी इस नए संवेदन सानन्दित हो रही थी. तीन चार मिनट तक इस गहराई को नापने के बाद पार्थ ने फिर लंड को अंदर धकेला और इस बार आधा लंड गांड में समा गया.

पार्थ का इस प्रक्रिया का ढंग ही कुछ ऐसा था कि सोनी को फिर कोई पीड़ा या कष्ट नहीं हुआ. पर उसे अपनी गांड भरी भरी अवश्य लगने लगी. पार्थ ने अब इस गहराई तक गांड मारने का कार्यक्रम आरम्भ किया. गांड ने उसका स्वागत किया और कुछ ही देर में उपयुक्त खुलापन मिल गया. इस गहराई तक भी पार्थ ने तीन चार मिनट गांड मारी. अब सही परीक्षा का समय था. लंड को दबाते हुए पार्थ इस बार आठ नौ इंच तक की गहराई पर जाकर रुका.

सोनी को अब अपनी गांड पैक होने का आभास होने लगा. पार्थ ने पूर्व प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए इस गहराई को भी जीत लिया. अब अंतिम पड़ाव था. उसने सोनी की गांड पर हाथ फिरते हुए उसके कूल्हे पकड़े और फिर लंड को अंदर बाहर करते हुए एक झटके में पूरा अंदर पेल दिया. सोनी अचम्भित सी रह गई. इस बार उसे अपनी गांड में एक तीव्र जलन सी हुई, पर पल भर में जैसे वो जलन से खुजली में परिवर्तित हो गई. गांड के अंदर कुनमुनाहट होने लगी. तब उसे उस सत्य का आभास हुआ कि पार्थ के पूरे मूसल ने उसकी गांड में अपना झंडा गाड़ दिया है.

सोनी अचंभित थी कि पार्थ ने कितने संयम का परिचय दिया था. उसकी गांड में एक ऐसा संवेदन हो रहा था जिसका उसे पहले कभी अनुभव नहीं किया था. एक पूर्ति का आभास था. उसे जिस बात का डर था उसने तो अपनी उपस्थिति नहीं दिखाई थी.

“पूरा लंड ले लिया आपने, सोनी जी. बधाई हो. अब मैं आपकी गांड मारने का कार्यक्रम करूँगा। वैसे अब कोई भी कठिनाई नहीं होने चाहिए, पर अगर हो तो बताइयेगा अवश्य.”

पार्थ ने बहुत हल्की गति से अपने लंड का प्रयत्न सोनी की गांड में आरम्भ किया. इस धीमी गति के कारण सोनी को भी लंड के संचालन का पूरा आभास हो रहा था. उसका शरीर एक भिन्न उत्तेजना से कांप रहा था. पार्थ गांड मारने की कला का विशेषज्ञ था. क्लब की कुछ महिलाओं की तो गांड की सील भी उसने ही तोड़ी थी. आज वो स्त्रियाँ हर सम्भव प्रकार की चुदाई में दक्ष हो चुकी थीं. उसे विश्वास था कि सोनी भी उसी राह पर अग्रसर है. एक बार उसे इस प्रकार की चुदाई का आनंद मिल गया तो शीघ्र ही वो अपनी सारी झिझक छोड़कर चुदवाया करेगी.

हल्की गति से जब सोनी की गांड अभ्यस्त हो गई तो पार्थ ने अपने लंड की गति बधाई. सोनी कूँ कूँ की ध्वनि से सिसकारियां लेने लगी. अब गति अवरोधक की आवश्यकता नहीं थी, पर पार्थ ने नियंत्रण नहीं खोया और शनैः शनैः गति बढ़ाता रहा. एक सीमा पर आकर वो रुक गया. उसे इस बात का भान था कि अत्यधिक तीव्र गति से सोनी को चोटिल होने की संभावना थी. और उसने यही गति अंत तक बनाये रखी.

सोनी आनंद के सागर में तैर रही थी. उसे अविस्मरणीय आनंद प्राप्त हो रहा था. अपितु ऐसा सुख उसे आगे जीवन में कभी दोबारा नहीं प्राप्त होगा क्योंकि उसकी गांड मारने वाला हर रोमियो पार्थ के समान संयमी तो नहीं होने वाला. उसके कामांध मन ने जैसे ये पुष्टि कर दी कि वो अब क्लब में सदस्या तो बनेगी ही, पर अन्य रोमियो भी उसकी चूत और गांड का मंथन करेंगे.

“ओह, पार्थ. तुमने मुझे आज जीत लिया. मेरी गांड में न जाने क्या हो रहा है?” सोनी बड़बड़ाई.

इस खेल का पारखी पार्थ उसकी इन भावनाओं को समझ गया. अब उसने अधिक परीक्षा न लेने का विचार मन में लाया और अपने एक हाथ से सोनी के भग्नाशे को मसलने लगा. सोनी के शरीर से मानो ज्वालामुखी फूट पड़ा. शरीर की छटपटाहट ऐसी बड़ी जैसे पानी से निकालने पर मछली तड़पती है. पार्थ को अपने हाथ पर सोनी के रस की फुहार ने अवगत करा दिया की अब इस खेल का अंत करना ही उचित है.

सोनी की चूत को सहलाते हुए, उसके भग्न को छेड़ते हुए पार्थ ने कुछ कुछ गति बधाई और सोनी को आनंद की उस पराकाष्ठा तक ले गया जहाँ वो जीवन में कभी नहीं गई थी. सोनी को फिर उसी ब्रम्हांड के दर्शन हुए, चाँद, तारे और न जाने कितने रंग उसकी आँखों के आगे चलायमान हो गए. अपने शरीर पर उसका वश न रहा. कुछ समय उपरांत उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके शरीर में कहीं कोई पानी भर रहा हो. अपने शिखर से उतरते हुए इस संवेदना का कारण पता चल गया.

पार्थ के लंड से रस की धार उसकी गांड को भर रही थी. गांड में ठंडे और गर्म का सम्मिश्रण हो रहा था. एक अनूठी अनुभूति थी. पार्थ ने लंड पूरा गाड़कर अपना रस छोड़ा था. अब उसके वीर के किले से बाहर निकलने का समय था. संभालते हुए उसने अपने लंड को सोनी की खुली गांड से बाहर निकाला. सोनी एकदम वहीँ पर ढह गई. पार्थ मुस्कुराया. उसे अब अपने क्लब के लिए एक और सदस्या मिल गई थी.

चेतना लौटने पर सोनी ने स्वप्निल आँखों से पार्थ को देखा, “थैंक यू. तुमने आज मुझे पूर्ण रूप से बदल दिया. मैं इसे सदा याद रखूँगी.”

इसके बाद सोनी ने अपनी गांड में ऊँगली डाली और कुछ रस एकत्रित किया. “हालाँकि मुझे ये सोचकर पहले घिन आई थी की मुझे ये भी करना होगा, पर तुम्हारे इस उपकार के लिए मैं इसे भी पूरी रूचि के साथ ग्रहण करुँगी.” सोनी ने अपनी उँगलियों को चाटा और पार्थ को दिखाया.

“इतना ही पर्याप्त है. इसका अभिप्राय केवल इतना ही है कि आप आगे से किसी भी इस कृत्य को घिनौना नहीं समझेंगी. अब आप जाकर स्नान कर लें.” पार्थ ने कहा और सोनी को हाथ से उठाया.

सोनी नहाने चली गई, पार्थ ने उसकी सदस्यता के आवेदन को स्वीकृति दी. सोनी के बाहर आने पर उसने भी स्नान किया और बाहर आया तो सोनी कपड़े पहन चुकी थी. पार्थ ने टेबल के अंदर से एक लाल कंगन निकाला और सोनी को दिया.

“आप अभी गांड मरवाने में इतनी अनुभवी नहीं हैं. क्लब में आने पर आप ये पहन लिया कीजिये. इससे हमारे रोमियो को पता चल जायेगा कि आपके साथ कैसा व्यवहार करना है. जब आप पूर्ण रूप से आश्वस्त हो जाएँ तब इसे पहनना बंद कर सकती हैं.”

सोनी ने कंगन अपने पर्स में रख लिया और पार्थ का एक बार फिर धन्यवाद किया.

“आपको कार चलने में अगर असुविधा हो तो मैं आपकी कार चला सकता हूँ.”

सोनी ने इसके लिए स्वीकृति दी तो पार्थ ने कहा कि वो उसी कमरे में रुकें और जब निकलने का समय होगा तो वो उन्हें ले चलेगा.

इसके बाद पार्थ आवेदन पत्र लेकर चला गया और सोनी अपनी कल्पना में खो गई.

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