ममता और कविता दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा, जो कि चुदाई का भरपूर सुख लेेने के बाद कामुकता की चरम सीमा तक पहुंचने का संकेत दे चुकी थी। दोनों के ही आंखों में हल्की शर्म उतर आई थी, आखिर दोनों के बीच माँ बेटी का रिश्ता जो था। दोनों थोड़ी देर पहले तक बिल्कुल बेशर्मों की तरह जय से एक ही बिस्तर पर चुदवा रही थी। दोनों चुदाई के दौरान काफी कामुक हो चुकी थी। इतनी कामुक की दोनों को कुछ भी घिनौना या गंदा नहीं लगा। दोनों एक दूसरे की गाँड़ का स्वाद भी चख चुकी थी। पर अब चुदाई का तूफान थम चुका था, अभी के लिए तो ऐसा ही लग रहा था। ममता और कविता दोनों के काजल फैल चुके थे, लिपस्टिक भी उतर चुका था, बाल बिखरे हुए थे और दोनों के तन बदन से जय के रस की खुश्बू आ रही थी। दोनों के चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि थी। दोनों माँ बेटी अब एक दूसरे के नंगे बदन से अलग होने की कोशिश कर रहे थे, की तभी उनके मंगलसूत्र एक दूसरे से उलझ गए। दोनों की चुच्चियाँ आपस में टकरा रही थी। दोनों बिना एक दूसरे की ओर देखे, उसे निकालने की कोशिश कर रही थी। दोनों घुटने के बल बैठी हुई थी। दोनों उसे निकालने में नाकाम रही। दोनों इस वक़्त किसी तरह, अलग होना चाहती थी, पर शायद किस्मत ने, उन दोनों के मंगलसूत्र पर एक ही आदमी का नाम लिखा था, और इसलिए जब वो दोनों अलग होना चाहती थी, तो उस मंगलसूत्र ने दोनों को एक साथ उलझाए रखा। जय अब तक सब देख रहा था। उसने उन दोनों के पास जाकर, मंगलसूत्र को पकड़ा और खोलने लगा। जय ने उनकी आंखों में उतरी शर्म को साफ साफ भांप लिया था। दोनों नज़रें नहीं मिला रही थी, जबकि दोनों बिल्कुल नंगी थी। जय ने उन दोनों की चुटकी लेने के लिए बोला,” लगता, है ये ऐसे नहीं निकलेगा, तुम दोनों को मंगलसूत्र उतारना पड़ेगा।”
ममता और कविता एक साथ बोल पड़ी,” नहीं….”
जय- फिर ये कैसे निकलेगा, अगर नहीं उतारोगी तो?
ममता- ऐसे ही उतारो, चाहे जितना समय लगे।
कविता- हां, जय आराम से निकालो ना, हमको कोई जल्दी नहीं है।
जय- अच्छा, फिर ठीक है।”
आखिरकार जय ने दोनों के मंगलसूत्र अलग कर दिए और दोनों अलग होते ही सबसे पहले एक एक चादर अपने बदन पर लपेटने लगी। जय समझ गया, की चाहे दोनों एक साथ चुदी, पर थी तो भारतीय नारियां ही, जिसका एक गहना शर्म भी होता है। जय जो अब तक दोनों को बेशर्म देखना चाहता था, उसे आज इन दोनों को ऐसे देख बहुत अच्छा लगा। दोनों ने अपनी चूड़ियां उतारी, फिर कानों की बालियां, टीका, नथिया, हार, कमरबन्द, इस तरह सारे ज़ेवर उतार दिए। दोनों बिस्तर के दोनों किनारों पर रखे, ड्रावर पर ये सारी चीज़ें उतारकर रखने लगी। जय बिस्तर से उतरा, तो कविता बोली,” अरे तुम कहाँ जा रहे हो?
जय- कविता दीदी, हम थोड़ा बाथरूम से होक आते हैं। तुम दोनों यहीं रुको, हम तुरंत आते हैं।” ये बोलकर वो बिस्तर से उठकर दरवाज़े से बाहर निकल गया। अब कमरे में ममता और कविता अकेले थी। दोनों सर नीचे झुकाए बैठी थी। कनखियों से कभी कभी एक दूसरे को देख रही थी। यूं तो दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते पहले भी बन चुके थे। और ऐसा भी नहीं था कि दोनों, ने कुछ गुनाह किया था, आखिर दोनों ने अपने पति के साथ ही सुहागरात मनाई थी। पर फिर भी, दोनों आज खामोश थी। शायद पहली बार एक साथ एक ही मर्द से चुदने की वजह से एक अजीब सा तनाव पैदा हुआ था। दोनों अपने अपने नाखून चबा रही थी। शायद यही सोच रही थी कि, थोड़ी देर पहले तक सेक्स के नशे में, दोनों कितनी घिनौनी, गंदी और घटिया हरक़तें बिस्तर पर कर रही थी। दोनों जय को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकने को तैयार थी, और गयी भी थी। ममता शायद ये सोच रही थी, कि कविता के सामने कैसे बेशर्मी से जय के लण्ड पर कूद कूदकर बुर और गाँड़ चुदवा रही थी।
कविता सोच रही थी, कैसे अपनी माँ के सामने ही भाई के साथ, बेहयाई से बुर और गाँड़ पेलवा रही थी। आखिर जय के लण्ड में ऐसा क्या जादू था, जो दोनों माँ बेटी अपने ही बेटे और भाई की दुल्हन, रंडी और रखैल बन बैठी थी। आज से उनकी दुनिया बदल चुकी थी। अब जय उनका कर्ता धर्ता या यूं कहें कि मालिक था, अब उनके लिए सारे फैसले जय ही लेगा।
तभी ममता सर झुकाए बोली,” कविता, बत्ती बुझा दो, हमको नींद आ रहा है।”
कविता बिस्तर से उचककर, बत्ती बुझा दी। दोनों ने जैसे राहत की सांस ली कि अब एक दूसरे को देख नहीं पाएंगी। अभी थोड़े ही देर हुआ था, कि जय आ गया।
जय- ये बत्ती क्यों बुझा दी हो? वो बिस्तर के करीब आया, और वापिस बत्ती जला दी।
ममता और कविता दोनों, आंखे बंद कर लेटी थी। जय तो वैसे ही नंगा घूम रहा था। जय बिस्तर के बीच आकर लेट गया। उसने ममता के ऊपर से चादर हटानी चाही, पर ममता ने हटाने नहीं दी।
जय- क्या बात हो गया? हम कुछ गलत कर रहे हैं क्या?
ममता- तुम कुछ गलत नहीं कर सकते हो, हमारे साथ चादर के अंदर आ जाओ।
जय- क्यों, इस चादर के नीचे ऐसा क्या है जो हमने ये दीदी ने आज नहीं देखा है? फिर ये पर्दा क्यों?
ममता- जय, हम औरतें भले ही कितनी भी बेशर्म होकर चुदवाती हैं, पर आखिर चुदाई के बाद शर्म की परत हमें ढक ही लेती हैं। अब हमको ही देख लो, अपनी सगी बेटी के साथ सुहागरात मनाए वो भी अपने बेटे के साथ में। इसके बावजूद शर्म आ रहा है, तुमसे और कविता से। और कविता को भी ऐसा ही लग रहा होगा। अब तक तो चुदाई के नशे और जोश में, हम दोनों ने खूब हंसते खेलते, वो सब कुछ किया जो कि एक पत्नी सुहागरात पर अपने पति के साथ करती है। पर उस पत्नी को भी अपने पति से सुबह शर्म आने लगती है। और यहां तो, तुम्हारे साथ साथ हमारी बेटी, भी एक ही बिस्तर पर लेटी है। और उसके लिए उसकी माँ जो कि अब उसकी माँ ही नहीं हमबिस्तर हो चुकी सौतन है। तुम पुरुषों को इसमें कोई परेशानी नहीं होता, पर हम औरतों को ये सब करने के बाद काफी, शर्म आता है।
जय उसकी बातें बड़े गौर से सुन रहा था। कविता ये सब बात सुन रही थी और अपनी माँ की मनोदशा समझ गयी जो बिल्कुल उसके जैसी थी। वो उठकर चादर लपेटे ही फर्श पर पड़े, उन दोनों के लहँगा चोली, को उठाकर, कमरे के बाहर जाने लगी। कविता को बाहर जाता देख, जय उसको आवाज़ देने को हुआ तो ममता ने उसका मुंह अपने हाथों से बंद कर दिया, और धीरे से बोली,” जाने दो उसको।” कविता कमरे के बाहर चली गयी और मुस्कुरा रही थी। आखिर उसकी और ममता की सुहागरात पूरी हो चुकी थी। कविता को गाँड़ में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था। पर उस मीठे दर्द को वो दिल से लगा चुकी थी। वो हल्का लंगड़ाते हुए चल रही थी।
उसके जाने के बाद, जय ने ममता के चादर को अलग कर दिया। और ममता को नंगी कर दिया। ममता ने अपने हाथों से बुर और चुच्चियों को ढक लिया। जय- अरे वाह अब तक खुलके चुद रही थी, और अभी ढक लिया।”
ममता मुस्कुरा उठी,” तुम नहीं मानोगे।
जय- जो मान जाए वो जय नहीं।
ममता हंसते हुए- जिद्दी हो तुम। और फिर जय ने ममता के होंठों पर होंठ रख दिए। दोनों एक दूसरे को चूमने लगे। चुम्बन ऐसा जैसे एक दूसरे के होंठों को चूसकर ही जीवित थे। अचानक से जय को ममता की ये शर्मो हया अच्छी लग रही थी, हालांकि उसे बेबाक बेशर्म औरतें पसंद थी। पर इस तरह अपनी माँ के शर्म को देख, उसे और मज़ा आ रहा था। जय ने ममता को अपने एक दम करीब चिपका लिया और बोला,” माँ, क्या हम थोड़ी देर अपनी पत्नी से बात कर सकते हैं?
ममता उसके सीने को चूमकर बोली,” आपकी बीवी हाज़िर है, हुक़्म तो कीजिये?
जय- ममता… तुम हमारी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत सच्चाई हो, तुमने हमको अपनाकर, बेटे से पति बना लिया। ये अपनेआप में अद्भुत है। कल तक हम ये सोच भी नहीं सकते थे, पर आज तुम हमारे साथ सुहागरात के सेज पर हमारी दुल्हन बनी लेटी हो। तुमको हमसे क्या चाहिए बोलो ना?
ममता उसकी आँखों में देखते हुए बोली,” कितना प्यारा लगता है, हमारा नाम जब आप अपने मुंह से हमको बुलाते हैं। ऐसा लगता है कि, हर जन्म हम आपकी ही थे। तो क्या हुआ कि, इस बार आप हमारे बेटे बनकर पैदा हुए। हमारा आपका रिश्ता, हर जन्म में प्रेमियों का रहा है। और इस जन्म में भगवान हमारी परीक्षा ले रहे हैं, हमको आपकी माँ बनाके। वो देखना चाहते हैं कि, हम एक दूसरे को पहचानते हैं कि नहीं? शुरू में थोड़ी परेशानी हुई, पर अब हमने एक दूसरे को पहचान लिया है। इस बंधन को हम अब कभी टूटने नहीं देंगे। और हमको आपसे कुछ नहीं चाहिए, आप अब हमारे सब कुछ हैं। और जिसके पास सबकुछ हो, उसे भला और क्या चाहिए?
जय- ममता तुमको हम अपना दिल जान सब दे चुके हैं और तुम भी हमको स्वयं को अर्पित कर चुकी हो। फिर भी सुहागरात में हर पत्नी पति से कुछ मांगती है, वो हक़ हम तुमसे छीनना नहीं चाहते। बोलो ना…
ममता- सुनिए, अगर आप कुछ देना चाहते हैं, तो दो वादा कीजिये हमसे। बोलिये करेंगे?
जय- बेहिचक बोलो जानेमन।
ममता- पहला आप कभी भी कविता को छोड़ना मत, उसके अब सबकुछ आप ही हैं। बाप, भाई और पति। बोलिये वादा?
जय- जानेमन ये भी कोई पूछने की बात है, कविता और तुम हमारे दिल मे बसती हो। तुम दोनों अब हमारे दिल से तब जाओगी जब ये आत्मा इस शरीर को छोड़ चलेगी।
ममता ने जय के मुंह पर हथेली रख दी,” क्या बोलते हैं आप, आपको ये बातें नहीं बोलनी चाहिए।”
जय ममता की ठुड्ढी पकड़ बोला,” अच्छा चलो नहीं बोलेंगे, तुम दूसरी चीज़ बताओ।”
ममता सुनकर शर्माने लगी,” वो…. वो…. आअन..”
जय- हां हां बोलो ना
ममता- वो.. उफ़्फ़फ़ कहते हुए शर्म आ रही है। हमको… आअननन… जल्दी से अपने बच्चे की माँ बना दीजिये।”
जय ममता के पेट पर हाथ फेरने लगा, और मुस्कुराते हुए बोला,” इस पेट में तुमने हमको नौ महीने पाला है, और अपने सीने से लगाकर अपने दूध से सींचा है। अब हमारा बच्चा तुम्हारे पेट में पलेगा ममता। तुमको हम फिरसे माँ बनाएंगे।
ममता- ये तो हर पत्नी का कर्तव्य और अधिकार होता है, कि पति को बाप बनने का सुख दे। और आपके प्यार की निशानी,जब अपने पेट में पालेंगे तो, हमको नारीत्व और मातृत्व का सम्पूर्ण आनंद महसूस होगा।
जय ममता के ऊपर चढ़ गया, और बोला,” अच्छा, फिर तो तुमको उसके पहले नारीत्व का और फ़र्ज़ निभाना होगा। अपने पतिदेव को सम्पूर्ण शारीरिक सुख देकर।”
ममता ने जय को बांहों में भर लिया और बोली,” अब तो आपकी हो चुकी, अब क्या पूछते हैं?
और फिर जय ने ममता को चादर के नीचे खींच लिया। उस कमरे से ममता की आँहें, लगातार आ रहीं थी।
कविता सीधा उस कमरे में गयी थी, जहां सुहागरात के कमरे में लगे कैमरे की रिकॉर्डिंग मॉनिटर पर आ रहे थे। उसने रिकॉर्डिंग रोक दी। उसने देखा कि ममता और जय आपस में बात करके चादर के नीचे समा गए। उसने सारी बातें सुन ली थी। कविता ने इस वक़्त ममता और जय को अकेले ही छोड़ दिया। वो दूसरे कमरे में जाकर सो गई। उसकी नींद तब खुली जब सूरज चढ़ आया था। उसने अपना मोबाइल चेक किया सुबह के साढ़े नौ बजने वाले थे। कविता के बदन में हल्का दर्द था। अचानक दरवाज़े पर ज़ोर से दस्तक हुई, वो चौंक गई। उसने कमरे के अंदर झांका वहाँ जय और ममता एक दूसरे की बांहों में सोए हुए थे। शायद वो दोनों 2 3 घंटे पहले ही सोए थे। कविता ने उन दोनों को बिना डिस्टर्ब किये एक मैक्सी डाल ली और दरवाज़े की ओर बढ़ी। दरवाज़ा खोला तो देखा, सामने एक 15 साल का लड़का हाथ में थैली लिए खड़ा था। उसने थैली बढ़ाकर बोला,” B 11/ 3 ?
कविता- हां!
लड़का- ये लीजिए आज का नाश्ता।” वो थैली कविता के हाथ में थमाकर चलता बना। सत्यप्रकाश ने इसी लड़के को नाश्ता के लिए बोला था। कविता दरवाज़ा बंद कर अंदर चली गयी। वो सबसे पहले नई नवेली दुल्हन की तरह फ्रेश होकर, नहाने चली गयी। वो नहा धोकर एक सुंदर सी लाल साड़ी पहन ली। फिर पूजा की और सारे घर में धूप और अगरबत्ती दिखाने लगी। जब वो सारे कमरे घूम गयी, तब फिर सुहागरात वाले कमरे में पहुंची। कमरे में धूप और अगरबत्ती की खुश्बू से ममता की आंख खुल गयी। जय वहीं बिस्तर पर बेधड़क लेटा हुआ सोया था। ममता उठी और चादर से खुद को ढक ली। कविता ने ममता की ओर देखा और मुस्कुरा दी। ममता के होंठों पर भी शर्म भरी मुस्कान तैर उठी। ममता बिस्तर से उठी और बाथरूम चली गयी। वो चुदाई से थक गई थी और इसीलिए धीरे धीरे चल रही थी। ममता फ्रेश हुई, फिर नहाने लगी।
आज उसे नहाने में और दिनों की अपेक्षा ज्यादा समय लगा। पूरे बदन से काम रस की बू आ रही थी। जय ने तो सुबह भी उसको दो बार चोदा था। पूरी रात में अकेले वो, छः बार चुदी और कविता चार बार। जब वो बाहर आई, तो टॉवल बांधे थी। अंदर कविता नहीं थी, और जय सोया हुआ था। ममता ने तौलिया नीचे गिरा दिया और पूरी नंगी हो गयी। उसने भी लाल रंग की ही पेटीकोट, साड़ी, ब्लाउज पहनी। फिर वो मेक अप करने लगी। जब मन भर श्रृंगार हो गया, तब पूजा करने चली गयी। वो पूजा कर ली, फिर कविता और ममता एक साथ जय के कमरे में गयी। 21 साल का जय अभी भी थकान से चूर सोया हुआ था। अब तक 11 बज चुके थे। ममता और कविता ने उसके पैर छुवे, लेकिन उसे उठाया नहीं ताकि उनके पति की नींद ना खुल जाए। फिर ममता और कविता कमरे के बाहर चली आयी। दोनों एक दूसरे की ओर देख नहीं रही थी। लेकिन अंत में कविता बोली,” माँ, भूख लगी है, खाओगी?
ममता- नहीं, जब तक जय नहीं खायेगा, तब तक हम नहीं खाएंगे। तुम कहा लो।
कविता- अच्छा, क्यों?
ममता- पति भगवान होता है, जब तक वो भोग नहीं लगाते हम कैसे खा सजते हैं।
कविता- फिर तो हम भी नहीं खाएंगे।
ममता- हमको आदत है, तुमको नहीं है। तुम खा लो।
कविता – नहीं माँ, हम भी नहीं खाएंगे।
और दोनों खामोश हो गयी। फिर ममता आखिर कविता के करीब आ गयी और दोनों सोफे पर बैठ गए। दोनों बिल्कुल बहनें लग रही थी। ममता कविता की ओर देख बोली,” तुम ठीक हो ना, कहीं कोई दर्द, तकलीफ तो नहीं है। पहली रात के बाद अक्सर औरतों को थोड़ी दिक्कत होती है।”
कविता- हां, थोड़ा सा दर्द हुआ, पर सब ठीक है। कोई चिंता की बात नहीं, उतना तो सबको होता है।”
फिर अचानक दोनों की नजरें मिली, एक सेकंड को दोनों बिल्कुल खामोश थी, और अगले ही पल दोनों की हंसी छूट गयी। दोनों एक दूसरे को पकड़कर हंस रही थी। तभी कविता की नज़र ममता के गर्दन पर बनी लव बाईट पर पड़ी। वो हंसते हुए ममता को दिखाई तो ममता ने भी उसके गालों पर, वैसा ही निशान दिखाया। दोनों फिर हंसी। दो सौतन का ऐसा मेल शायद ही किसीने देखा होगा। आखिर में दोनों शांत हुई, और कविता ने ममता की ओर देखकर कहा,” हम दोनों अब माँ बेटी से सहेलियां बन चुकी हैं, फिर भी कल रात हम दोनों को शर्म आ रही थी। जबकि दोनों पहले सब कुछ खुल्लम खुल्ला कर रही थी। हम दोनों ने ही जय को अपना माना है, फिर भी। ऐसा क्यों??
ममता- क्योंकि, सहेलियां तो हम बाद में बनी, पहले तो हम दोनों माँ बेटी थी। और इस रिश्ते को हम दोनों चाहकर भी भुला नहीं सकते। तुम्हें भले ही हमारे सामने कुछ नहीं महसूस होता, पर हमको तुम्हारे सामने किसी से चुदवाते हुए शर्म तो आएगी ही।
कविता- माँ, ऐसा नहीं है हमको भी थोड़ा शर्म आ रहा था। जय के जादू ने हम दोनों को करीब तो ले आया, पर उसकी बीवी बनकर भी एक बिस्तर पर सोना शर्मनाक लगता है।
ममता- ये सोचकर तो हम शर्म से गड़ रहे थे, की हम माँ बेटी घर के मर्द की ही दुल्हन बन, एक साथ उसी मर्द जे साथ सुहागरात मना रहे थे। पर जब रात में चुदाई का नशा, चढ़ा था तो चुदाई के अलावा कुछ सूझ ही नहीं रहा था। बस लण्ड की प्यास लगी थी।
कविता- सछि बोली हो तुम माँ, बिल्कुल जब लण्ड की प्यास लगती है, तो औरत को काबू करना आसान हो जाता है। उस वक़्त मर्द हमसे कुछ भी करवाते हैं। और हम भी काम पिपासी हो, सब भूल कुछ भी करने को तत्पर हो जाती हैं।
ममता- इसमें हमारा दोष नहीं है। हम औरतों को भगवान ने बनाया ही है कि, हमने, शर्म का गहना शुरू से पहना हुआ है। और मर्दों को ज़ोर जबरदस्ती कर इस गहने को उतारने में बड़ा मजा आता है। ये तब ही उतरता है, जब बुर को लण्ड का स्वाद मिल जाए। हम तो इसको खूब समझते हैं, पर अब तुम भी समझ जाओगी।
कविता- माँ, जय ने घर में ही एक मिनी जिम खोला है। जिसमे ट्रेडमिल, एब्स से संबंधित एक दो उपकरण है। हम दोनों के फिट रहने के लिए। तुमको अभी वजन गिराना होगा और हमको भी। फिटनेस बहुत ज़रूरी है।
दोनों इसी तरह गप्पें मारती रही। तब तक 12: 30 हो चुके थे। जय अभी तक सोया था। आखिर में दोनों एक साथ, अंदर जाकर जय को उठाने का फैसला किया। कविता और ममता दोनों, बिस्तर पर चढ़ गई और जय के कानों के पास आकर बोली,” आई लव यू, उठिए ना।” जय ने उन दोनों की आवाज़ जैसे सपने में सुनी हो, वैसे सोचकर नींद में ही मुस्कुराया। पर तभी दोनों ने जय के आज बाजू जय की ओर करवट लेकर लेट गयी और उसके गालों पर चुम्मा देने लगी। जय आखिरकार उठ गया। अपनी दो नई खूबसूरत बीवियों को देख वो, मुस्कुराया और उनको अपनी बाहों में भर लिया। फिर ममता बोली,” जय, उठो हम दोनों को भूख लगी है, जल्दी उठो अपनी बीवियों को इस तरह भूखा नहीं रखते। जब तक तुम नहीं खाओगे, तब तक हम दोनों नहीं खाएंगे। इसलिए जल्दी तैयार हो जाओ।
जय- अच्छा ठीक है। हम जाते हैं, पर तुम दोनों ऐसे भूखी ना रहो। कुछ खा लो।
कविता- ये नहीं हो सकता, हमने तुम्हारी बात रखी, अब तुम हम दोनों को अपना धर्म निभाने दो।
जय- ठीक है, फिर हम तुरंत गए और आये।”
वो बिस्तर पर नंगा ही खड़ा हो गया। ममता और कविता वो देख हसने लगी। जय अपना लौड़ा कमर की चाल से हिला रहा था। जय उन दोनों को देख, मुस्कुरा रहा था।
कविता- जाओ ना जल्दी।
ममता- रात को जो हुआ काफी नहीं था, क्या?
जय- ये तो शुरुवात है, अभी तो ये सिलसिला लंबा चलेगा।” जय ने बोलकर कविता के मुंह पर अपना लण्ड चिपका दिया। ममता उठकर वहाँ से जाने लगी तो जय ने उसका हाथ थाम लिया और जबरदस्ती बैठा दिया। अब तक कविता के मुंह में उसने अपना लण्ड घुसा दिया था। कविता ने जय के लण्ड, को समा लिया। जय वहीं उसके मुंह को चोदने लगा। कविता लण्ड को उसके सुपाडे को अपनी जीभ से सहला रही थी। थोड़ा सा चूसने के बाद कविता बोली,” ये इतनी जल्दी शांत नहीं होगा। तुम जल्दी से बाथरूम से आओ, फिर हम देखते हैं।” जय एक बार बोलने पर ही समझ गया कि कविता सच बोल रही है और, जय फ्लाइंग किस देकर चला गया। दोनों ममता और कविता बाहर खाना लगाने लगी। जय आधे घंटे में नहाकर बाहर आया। उसने एक तौलिया ही लपेटा था। जय सीधा टेबल पर पहुंचा, जहां खाना लगा था। ममता और कविता दोनों उसके पास खड़ी थी, और उसको खाना पड़ोस रही थी। दोनों ने पहला निवाला जय को बारी बारी से बड़े प्यार से खिलाया। जय दोनों के ओर देख मुस्कुराते हुए खाना खाने लगा। जय को हाथ जूठा करने की जरूरत ही नहीं थी।
ममता- कल से बाहर का खाना नहीं मंगवाएँगे। हम दोनों हैं, ही घर का खाना ही चलेगा। तुम्हारी सेहत के लिए ठीक रहेगा।
कविता- तुम ठीक बोलती हो, माँ जब हम दोनों हैं ही तो खाना बाहर से क्यों मंगाना।
जय- हमको तो कोई भी खाना चलेगा, पर तुम दोनों के हाथ का बना हो तो हमको और क्या चाहिए।
ममता- शादी के बाद दो दो पत्नियां होते हुए आप बाहर का खाना खाएं, ये तो हमारी लिए शर्म की बात है।
जय- माँ, ये बात बोलके तुम दिल जीत ली हो। ज़रा पास आओ हमारे क़रीब।” ममता उसके चेहरे के पास आई। जय ने उसके गालों को पकड़के होंठ पर होंठ चिपका दिए। दोनों चुम्बन में लीन थे। कविता ये देख मुस्कुरा रही थी। ममता उस चुम्बन का आनंद ले रही थी, जय के मुँह से खाने का स्वाद उसके मुंह में उतर आया। जय ने ममता को खींचकर अपने गोद मे बिठा लिया। कविता वहीं खड़ी थी।
कविता- जय पहले खाना खा लो, बाद में माँ के होंठों का रस चूस लेना।
ममता ये सुन शर्मा गयी और जय के होंठों से खुद को छुड़ाया। वो जय के गोद से उठना चाहती थी। पर जय उसकी नंगी कमर को जोर से पकड़े थे। ममता उसके कानों में बोली,” जाने दो ना, छोड़ो हमको।” जय ने उसको खुद से और चिपका लिया और बोला,” नहीं जानेमन, इतना आसानी से नहीं छोड़ेंगे, तुमको।” ममता ने अपना सर उसके कंधों पर झुका लिया।
कविता- हम तो खाने जा रहे हैं। जय तुम अपनी इस बीवी के साथ थोड़ा समय बिताओ।” जय – तुम कहाँ जा रही हो, कविता दीदी? तुममें और माँ में अब कोई फर्क है क्या? तुम भी बीवी हो और माँ भी। तुम भी हमारे गोद में बैठो, यहाँ हमारी जांघ पर। वैसे मज़ा तो तब आएगा, जब तुम दोनों नंगी होकर इन जांघों पर बैठोगी।”
कविता- ओहहो, ये बात है। तो ठीक है हम भी बैठ जाते हैं, पर अभी नंगी करोगे हमको तो चोदे बिना कहां रह पाओगे। और अभी तुमको ताक़त की जरूरत है, ताकि रात में जो मर्ज़ी आये वो करो। हम दोनों भी भूखी हैं।” कविता उसकी दूसरी जांघ पर चूतड़ टिकाते हुए बोली।
जय- मानना पड़ेगा कि तुम बहुत दूर का सोचती हो, जान। चलो हम तो बहुत खा चुके, तुम दोनों भी, ऐसे ही बैठ के खाओ। तुम दोनों को ऐसे बैठाके खिलाने से देखो ना लण्ड कितना कड़क हो गया है।
ममता- ये तो कल रात से हम दोनों की इतनी खबर ले चुका है। अब भी इसका मन नहीं भरा क्या?
जय- आये हाये माँ, तुम दोनों जैसी खूबसूरत औरतें हो, तब ये कहां शांत होगा। अभी तो पता नहीं कितना दिन ये ऐसे ही रहेगा।” और ज़ोर से हंसा।
ममता और कविता उसी तरह जय के गोद में बैठ खाना खाने लगी। बीच बीच में जय उनकी अधनंगी पीठ सहलाता, तो कभी उनकी पल्लू में छिपी नाभि को छेड़ता। जय के साथ वो दोनों भी फुल मस्ती कर रही थी। इसी तरह छेड़ छाड़ करते हुए, तीनों खाना खत्म किये। दोनों उठकर किचन में चली गयी। जय ने दोनों की लचकती गाँड़ को देख, एक लंबी सांस ली और मन मे कुछ सोचकर मुस्कुराया। शायद, वो ये सोच रहा था कि, कब रात होगी और वो इनको नंगा करके मज़े लेगा। वो अपने कमरे में चला गया, वहां उसने हनीमून के लिए कुछ लोकेशन अपने लैपटॉप पर चेक किये। वो काफी देर, चेक करता रहा, पर उसे कुछ समझ में नहीं आया। वो उन दोनों के इंतज़ार में था। पर दोनों अब तक नहीं आयी थी। वो बाहर, निकलकर देखा तो दोनों, दूसरे कमरे में लेटी थी। दोनों आपस में कुछ बातें कर रही थी। तभी जय वहां आकर बोला,” यहां क्या कर रही हो तुम दोनों, चलो अपने कमरे में। वहां आराम करना।”
ममता बिस्तर से उठी और उसको कमरे से बाहर निकाल दी। दरवाज़ा बंद कर ली। जय अवाक सा रह गया,” ये क्या है? ऐसा क्यों??
ममता- तुम्हारे पास रहेंगे, तो हम आराम नहीं कर पाएंगे। तुम सोने ही नहीं दोगे। इसलिए हम अभी से शाम के सात बजे तक आराम करेंगे। फिर हम दोनों तुम्हारे पास आएंगे। रात भर फिर तो हम तीनों को जागना ही है।”
कविता- हां, जय तब तक तुम भी आराम करो। रात को मिलते हैं।
जय- पर,…. हम तो तुम दोनों को हनीमून डेस्टिनेशन चुनने बुला रहे हैं।
कविता- तुम उसकी फिक्र मत करो, हम वो सब सोच चुके हैं। जाओ आराम करो। और हां, तुम्हारे लिए औषधि वाला दूध रखा हुआ है। वो पी लेना।
जय का तो जैसे खड़े लण्ड पर धोखा हो गया। आखिर वो उन दोनों को अपने साथ सुलाना चाहता था। वो मन मसोस कर रह गया, और वापिस अपने कमरे में चला गया। जय ने मन में सोचा कि अब रात का इंतज़ार करने के अलावे और कोई चारा नहीं हैं।
ममता बिस्तर पर आकर, कविता के पास लेट गयी।
कविता- अरे हमारी सौतन माँ, एक बात बताओ, तुमने शेर को भूखा छोड़ दिया है। वो तो बाहर पागल हो रहा होगा। पता नहीं रात को हम दोनों का क्या हाल करेगा??
ममता- शेर जितना तड़पेगा, उतना ही शिद्दत से हम दोनों हिरणियों का शिकार करेगा। ऐसा शेर का शिकार होने में बहुत मज़ा आएगा। तुम इस बात को रात में समझ जाओगी। वो औषधि वाला दूध पीकर वो, और भी मस्त और मतवाला हो जाएगा। फिर देखना, रात को कितना मज़ा आएगा। वो हम दोनों को चैन से साँस तक नहीं लेने देगा। और आज तो दूध भी ज़्यादा पियेगा, उसमें वो औषधि भी ज़्यादा मिली हुई है।
कविता- मगर शेर कहीं ज़्यादा खूंखार हो गया तो, हम दोनों की हालत खराब कर देगा। हम कोमल हिरणियां उसके शिकार के दौरान घायल ना हो जाये।”
ममता- घायल हो गए, तो समझो हमारा मकसद पूरा हो गया। हमारे शेर में दम है, तभी तो ऐसा होगा। तुम बस तैयार रहना, बाकी हम हैं ना।
दोनों इसी तरह बातें करते हुए सो गए। उधर जय दो तीन गिलास दूध पी गया। दूध पीने के घंटे भर के अंदर उसका लण्ड खड़ा हो गया। और अभी रात होने में चार घंटे बाकी थे। पर उसने अपने लण्ड को हाथ नहीं लगाया। वो मन में सोचने लगा, कि ममता और कविता को आज रात बहुत बेरहमी से चोदेगा। वो सोने की कोशिश करने लगा, पर सो नहीं पा रहा था। पर किसी तरह थोड़ी देर में उसे नींद आ गयी। जब उसकी नींद खुली, तो उसने देखा कि लण्ड अभी भी कड़क है। अभी शाम के 6 बजे थे। मतलब अभी एक घंटा बाकी था। वो अब बहुत तेज़ तड़प रहा था। किसी तरह उसने 45 मिनट काटे, पर अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वो उन दोनों के कमरे के बाहर खड़ा हो गया, और अंदर की बातें सुनने लगा। अंदर कमरे में चहल पहल हो रही थी। जैसे दोनों तैयार हो रही थी। अंदर से कभी, हंसी की आवाज़ गूंजती तो कभी, जल्दी जल्दी करने का शोर सुनाई देता था। जय ने बहुत कोशिश की पर उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था, की अंदर क्या चल रहा है। घड़ी में सात बजे, फिर साढ़े सात और अंततः रात के आठ बजे दरवाज़ा खुला। जय अब तक एक सिर्फ टी शर्ट और हाफ पैंट में था। जिसमे लम्बा तंबू बना हुआ था।
दरवाज़ा खुला तो अंदर से ममता और कविता देवियों की तरह बाहर आई। ममता ने गुलाबी और कविता ने लाल सारी पहनी हुई थी। दोनों के ब्लाउज पीछे से पूरे खुले थे, और सिर्फ धागे थे। वो आज भी किसी दुल्हन की ही तरह सजी हुई थी। बाहर आई तो अचानक से बिजली चली गयी। ममता और कविता साथ में खड़े थे। दोनों इस तरह बिजली कटने से घबरा गए थे। तभी जय की कड़क आवाज़ गूंजी,” तुम दोनों ने आज दिनभर हमको बहुत तड़पाया है, और आज रात तुम दोनों को इसके लिए सज़ा देंगे हम। दोनों सीधे कमरे में चले आओ।”
ममता और कविता एक दूसरे की ओर देखी फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ कमरे की ओर चल दी। जैसे ही दोनों कमरे में आई, तो देखा कमरे में चारों ओर खुशबूदार मोमबत्तियां जल रही थी। चारों ओर रोशनी हो रही थी, पर मोमबत्ती की रोशनी जैसे पूरा अंधेरा नहीं मिटाती वैसे ही थोड़ा सा अंधेरा भी था। जय लेकिन दिख नहीं रहा था। दोनों बिस्तर के करीब जा पहुंची, तभी कमरे का दरवाजा बंद हो गया। दोनों ने पलट के देखा तो जय वहां एक बॉक्सर में ही खड़ा था। एक बड़ा सा तंबू उसमें बना हुआ था। वो फिर दो कदम आगे बढ़ा, और कविता को अपने पास आने का इशारा किया। कविता किसी कंप्यूटरीकृत रोबोट की तरह उसके पास गई।