#49
चंपा- कौन था ये और तुझे कैसे जानता है
मैं- लम्बी कहानी है तू सुन नहीं पायेगी मैं बता नहीं पाउँगा
चंपा- तेरे सामने उसने मुझे पकड़ा तेरा खून नहीं खौला इतना निर्मोही हो गया तू
मैं- खून तो मेरा उस दिन से खौल रहा है . खून तो मेरा तब से उबल रहा है जब से मुझे मालूम हुआ की तेरे पेट में बच्चा है . ये तेरी खुशकिस्मती है जो मैं शांत हूँ, रही बात उस सूरजभान की तो मैं जानता हु मैं क्या कर सकता हूँ इसलिए खुद को रोका है .एक बार बेकाबू हुआ था आज तक पछतावा है मुझे. मेरे मन में बहुत सवाल है चंपा इतने की मैं पूछता रहूँगा तू जवाब देते देते थक जाएगी. फ़िलहाल मेरी इच्छा है की किसी तरह तेरा ब्याह हो जाये और तू यहाँ से राजी ख़ुशी निकल जाये मैं नहीं चाहता की एक और लाली की लाश पेड़ पर टंगी मिले.
चंपा फिर कुछ नहीं बोली. तनहा दिल लिए हम दोनों वापिस घर आये. मैंने उस से चाय बनाने को कहा और हाथ मुह धोनेचला गया . चबूतरे पर बैठ कर मैं चुसकिया ले रहा था की भैया आ गए.
मैं- आपसे मिलने की ही सोच रहा था मैं .
भैया- हाँ छोटे बता क्या कहना था .
मैं- मुझे कुछ पैसे चाहिए थे .
भैया ने दस दस के नोटों की गद्दी निकाली और मुझे दे दी .
मैं- पचास वाली की जरूरत है भाई
भैया ने एक बार मेरी तरफ देखा और बोले- हाँ क्यों नहीं
भैया ने बड़े नोटों की गद्दी मुझे दी.
मैं- एक बात पूछनी थी
भैया- पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है जो मन में है सीधा कह न
मैं- सूरजभान से माफ़ी मांगने की क्या जरुरत आन पड़ी थी आपको . आप जानते है की मेरा भाई मेरा गुरुर है और मेरी वजह से मेरे भाई को झुकना पड़े ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझे
भैया- तू भी न छोटी छोटी बातो को दिल से लगा लेता है . हम व्यापारी आदमी है . हमें अपना रसूख देखना है हम लोग समय आने पर लोगो को झुकाते है . एक बार बात आई गयी करने के हमें भविष्य में फायदे मिलेंगे.
भैया झूठ बोल रहे थे मैं एक पल में जान गया था . मेरा भाई , मेरा बाप जिनके आगे दुनिया झुकती थी वो किसी के आगे हाथ जोड़ दे. मामला कुछ और ही था . पर मैं भैया के आगे कुछ नहीं बोला.
मैं- भैया , वो चंपा की तबियत कुछ ठीक नहीं है आप की आज्ञा हो तो मैं उसे शहर के डॉक्टर को दिखा लाऊ
भैया- ये कोई पूछने की बात है . जायेगा तो तेरा कन्धा भी दिखा आना
मैंने हाँ में सर हिलाया . तभी भाभी ने भैया को आवाज दी तो वो चले गए .
मेरा दिल कर रहा था की मैं मंगू से पुछु पर चाह कर भी हिम्मत नहीं कर पाया. अँधेरा घिरने लगा था मैंने शाल ओढा और अलाव जला कर बैठ गया . सामने बहुत सी समस्या थी सूरजभान ने मेरी फासले डुबाने को नहर तोड़ दी. मेरे साथ और भी गाँव वालो का नुकसान हुआ था . मैंने सोचा की इस मामले को पांच गाँवो की महापंचायत में उठाऊ पर सूरजभान धूर्त था वो साला साफ़ मुकर जाता और मेरे पास सबूत नहीं था .
जमीनों की रखवाली के लिए मजदुर लगा नहीं सकता था क्योंकि उस हमलावर के खौफ से कोई तैयार नहीं था जान सबको प्यारी थी. आज से चांदनी राते शुरू हो रही थी जितने भी हमले हुए थे इन चांदनी रातो में हुए थे . क्या ये सिलसिला फिर से शुरू होगा ये सोच कर मेरी झुरझुरी छूट गयी .
“खाने में क्या बनाऊ कबीर ” चंपा ने मुझसे पूछा तो मेरी तन्द्रा टूटी.
मैं- भूख नहीं है
चंपा मेरे पास बैठी और बोली- जानती हु तू मेरी वजह से परेशां है .
मैं- तेरी वजह से क्यों परेशां होने लगा मैं. मुझे और भी बहुत समस्या है .
चंपा- तेरा हक़ बनता है मुझसे नाराज होने का .
मैं- मेरे हक़ की बात करती है तू . मेरा हक़ था तेरी दोस्ती का मैं अपनी दोस्ती निभा रहा हूँ. मरते दम तक निभाऊंगा .
सर में दर्द हो रहा था तो मैं बिस्तर में घुस गया . न जाने कितनी देर बाद मेरी आँख खुली . कमरे में घुप्प अँधेरा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं पानी के लिए मटके के पास गया . पानी पी ही रहा था की मुझे लगा खिड़की पर कोई है . इतनी रात में हमारी खिड़की पर कौन हो सकता है . मैंने चुपचाप दबे पाँव दरवाजा खोला और खिड़की के पास गया . वहां कोई नहीं था सिवाय सन सनाती सर्द हवा के.
मैं अच्छी तरह से जानता था की मेरा वहम तो कतई नहीं था . चूँकि आज बिजली नही थी तो मुझे दिक्कत हो रही थी अँधेरे में देखने के लिए. तभी भैंसों की चिंघाड़ से मेरे कान सतर्क हो गए. मैं तुरंत उस तरफ भागा ये हमारे पड़ोसियों का तबेला था . मैंने देखा की तबेले का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर एक भैंस दर्द से बिलख रही थी उस पर कोई झुका हुआ था .
“बस बहुत हुआ . बहुत खून पी लिया तूने अब और नहीं ” मैंने कहा
वो जो भी था उसने पलट कर मुझे देखा और उसकी लाल आँखे मुझे ऊपर से निचे तक देखने लगी.
“तू जो भी है जैसा भी है . मैं उम्मीद करता हूँ की तू मेरी बात समझ रहा होगा. आज मैं तुझे जाने नहीं दूंगा. आज की रात तू मुझसे मुकाबला कर या तो तू नहीं या मैं नहीं ” मैंने जोर देकर कहा.
वो शक्श दो पल मेरे करीब आकर मुझे देखता रहा और फिर उसने दूसरी तरफ छलांग लगा ही दी थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
मैं- नहीं . बिलकुल नहीं .
मै पहले ही गुस्से से भरा था ऊपर से इसकी ही तो तलाश थी मुझे . इसे अगर आज जाने देता तो फिर ये किसी न किसी को मारता . मैंने खीच कर मुक्का उसकी नाक पर मारा . वो कुछ कदम पीछे सरका और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन पकड़ ली. उसकी मजबूत पकड़ मेरी सांसो को रोकने लगी. मैं छुटने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर नाकामी ही मिली मैंने उसके पेट पर लात मारी उसने मुझे हवा में फेंक दिया.
पर आज मैं कोई मौका उसे नहीं देना चाहता था . मैंने उसका पैर पकड़ा और उसे पीछे की तरफ खींचा . इसी बीच उसके नाखून मेरी शर्ट को फाड़ गए. वो भागता इस से पहले ही मैंने उसे पटक दिया. तबेले का दरवाजा जोर की आवाज करते हुए टूट कर बिखर गया. हम दोनों गली में आ गए. वो उठ खड़ा हुआ उसने अपने कंधे चटकाए और दो तीन मुक्के मारे मेरे सीने पर. मुझे महसूस हुई उसकी ताकत .
पर आज कबीर ने ठान लिया था की इस किस्से को यही ख़त्म करना है .
मैं- चाहे जितनी कोशिश कर ले आज या तो तू नहीं या मैं नहीं.
इस बार मैंने उसे उठा कर फेंका तो वो बैलगाड़ी के पहिये में लगे लोहे के टुकड़े से जा टकराया. जोर से चीखा वो .
मैं- जिनको तूने मारा वो भी ऐसे ही चीखे होंगे न.
मैं उसके पास गया और उसके पाँव को मरोड़ने लगा. पर तभी साला गजब ही हो गया.