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एक नया संसार - Erotic Incest Sex Story

एक नया संसार – Update 62 | Incest Story

♡ एक नया संसार ♡

अपडेट…….《 62 》

अब तक,,,,,,,

सारा दिन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दुनियाॅ से ही जा चुका हो। डायनिंग टेबल पर नास्ते के लिए परोसी गई थाली व प्लेट सब वैसी की वैसी ही रखी रह गई थी। किसी ने उस तरफ देखा तक न था और ना ही कोई अपने कमरे की तरफ गया था। बॅगले के नौकर चाकर तक संजीदा थे इस सबसे। अभय सिंह सुबह से अब तक हज़ारों बार जगदीश ओबराय को फोन लगा चुका था किन्तु उसका नंबर अभी भी नेटवर्क क्षेत्र के बाहर ही बता रहा था।

बड़ी मुश्किल से ही सही किन्तु वक्त अतिमंद्र गति से गुज़र ही गया। ट्रेन के निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुच गए। रुक्मिणी व करुणा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास व दुखी था। आधे घंटे बाद जब ट्रेन आई तो सब ट्रेन की तरफ लगभग भागते हुए बढ़े। ट्रेन में चढ़ कर हर कोई सीट पर बैठ चुका था। रिज़र्व सीटों पर औरतों और लड़कियों को बैठा दिया गया था। हलाॅकि रिज़र्व में पाच ही सीटें मिली थी। जिनमें गौरी रुक्मिणी करुणा निधी व दिव्या को बैठा दिया गया था। शगुन दिव्या के साथ ही बैठा हुआ था। जबकि पवन अभय व आशा ट्रेन के फर्श पर ही खड़े थे।

गौरी को रुक्मिणी व करुणा ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। सारा दिन रोती रही थी वो जिसकी वजह से उसकी ऑखें लाल सुर्ख पड़ चुकी थीं। चेहरे पर ऐसी वीरानी थी जैसे इस चेहरे ने कभी किसी तरह की खुशियो से भरी बहार को देखा ही न हो। कुछ ही समय बाद ट्रेन अपने गंतब्य स्थान के लिए चल पड़ी। ट्रेन के चल पड़ने से सबके मन में थोड़ी राहत के भाव उभर आए थे। आने वाले समय में किसके साथ क्या क्या होने वाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।

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अब आगे,,,,,,,

दूसरे दिन।

उस वक्त दोपहर हो चुकी थी।

अजय सिंह के इस विशाल फार्महाउस पर इस वक्त अलग ही नज़ारा था। ये दृष्य तो गौरी के स्वप्न की तरह ही था किन्तु उससे थोड़ा भिन्न ही था। लम्बे चौड़े फार्महाउस के बीचो बीच दो मंजिला बड़ा सा मकान बना हुआ था। चारों तरफ हरी हरी घाॅस से भरा हुआ विशाल मैदान तथा हर तरफ लगे हुए तरह तरह के पेड़ पौधे यहाॅ की खूबसूरती का एक बड़ा ही सुंदर नज़ारा पेश कर रहे थे। किन्तु इस वक्त इस खूबसूरत नज़ारे में भी जैसे ग्रहण सा लगा हुआ था। 

मैदान में लगे पेड़ पौधों के बीच का ही दृष्य था ये। कतार में लगे पेड़ों पर कई सारे लोग रस्सियों से बॅधे जकड़े हुए थे। विराज, रितू, आदित्य, नैना, सोनम, नीलम, बिंदिया, हरिया व शंकर आदि सब कतार से ही पेड़ों से रस्सियों द्वारा बॅधे हुए थे। विशाल मैदान में चारो तरफ काली वर्दी में तैनात गुंडे मवालियों जैसी शक्ल के काफी सारे लोग हाथों में बंदूखें लिए खड़े थे। मैदान में एक तरफ कुछ दूरी पर कई सारी गाड़ियाॅ भी खड़ी हुई थी।

उन्हीं पेड़ों की गहरी छाॅव में अजय सिंह एक कुर्सी पर बैठा हाॅथ में लिए हुए रिवाल्वर को बार बार अपनी उॅगली पर नचा रहा था। उसके पीछे उसका बेटा शिवा खड़ा था। उसकी कमर में भी एक रिवाल्वर ठुॅसा हुआ था। अजय सिंह की पत्नी यानी कि प्रतिमा भी अजय सिंह के पास ही खड़ी हुई थी। वातावरण में चारो तरफ एक अजीब सा भयावह सन्नाटा फैला हुआ था। 

“दोपहर तो हो चुकी है ठाकुर साहब।” तभी सहसा एक आदमी अजय सिंह के पास आता हुआ बोला____”किन्तु आपके बाॅकी शिकार तो अभी तक यहाॅ नहीं पहुॅचे। कहीं ऐसा तो नहीं कि वो लोग पुलिस के पास चले गए हों सहायता माॅगने के लिए? अगर ऐसा हुआ तो यकीन मानिए हमारे सारे किये कराए पर पानी फिर जाएगा और हम सब जेल के अंदर चक्की पीसते नज़र आएॅगे।”

“नहीं सहाय।” अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___”वो लोग पुलिस के पास जाने का सोच भी नहीं सकते हैं। वो जानते हैं कि अगर उन लोगों ने इस मामले में पुलिस को कुछ भी बताया तो उसका अंजाम बहुत ही खतरनाॅक हो सकता है। इस लिए तुम इस बात से बेफिक्र रहो। वो सब सिर के बल भागते दौड़ते हुए रेलवे स्टेशन से सीधा यहीं आएॅगे। उसके बाद क्या होगा ये समझाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।”

“हाॅ ये तो सही कहा आपने।” अभिजीत सहाय ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___”आज यहाॅ पर एक अनोखा इतिहास लिखा जाएगा। आने वाले बाॅकी शिकार यहाॅ आ तो जाएॅगे मगर तुरंत ही हमारे आदमियों द्वारा धर लिए जाएॅगे और फिर वो सब भी इन लोगों की तरह पेड़ों पर रस्सियों में बॅधे नज़र आने लगेंगे।”

“मुझसे तो अब बरदास्त ही नहीं हो रहा डैड।” शिवा अपने बाप के सामने आते हुए बोला____”एक एक पल कैसे काट रहा हूॅ ये सिर्फ मैं जानता हूॅ। मेरी ऑखों के सामने ही मेरी ये बहने रस्सियों में बॅधी पेड़ों पर चिपकी खड़ी हैं और आप मुझे कुछ करने ही नहीं दे रहे हैं।”

“बस थोड़ी देर और सब्र करो मेरे बेटे।” अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___”उसके बाद तुम्हें जो करना हो करते रहना। मज़ा तो तभी आएगा न जब बाॅकी के लोग भी यहाॅ पर हर तरह का तमाशा देखने के लिए पहुॅच जाएॅ।”

“ठीक है डैड।” शिवा ने मन मसोस कर कहा___”आप कहते हैं तो मैं थोड़ी देर और सब्र कर लेता हूॅ।”

“ये हुई न बात।” अजय सिंह मुस्कुराया, फिर सहाय की तरफ देखते हुए बोला___”अपने आदमियों को पूरी तरह से सतर्क रहने का अल्टीमेटम दे दिया है न सहाय तुमने?”

“डोन्ट वरी ठाकुर साहब।” अभिजीत सहाय ने कहा___”हमारे आदमी पूरी तरह से सतर्क हैं। उनकी नज़र से एक परिंदा भी यहाॅ से छूट कर नहीं जा सकेगा।”

“वेरी गुड।” अजय सिंह ने कहा____”उन लोगों के आते ही हमारे आदमी उन सबको धर लेंगे और फिर उन्हें भी इन लोगों की तरह यहाॅ के पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध देंगे। ये फाइनल गेम है सहाय और इस गेम का विनर सिर्फ और सिर्फ हम ही होंगे। असली खिलाड़ी वही है जो सामने वाले को पूरी तरह से पस्त करके उसे नेस्तनाबूत कर दे।”

अभी अजय सिंह ने इतना कहा ही था कि पीछे की तरफ से किसी के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं। चिल्लाने की आवाज़ें सुनते ही सबका ध्यान उस तरफ गया। कई सारे बंदूख धारियों से घिरे हुए अभय, पवन, गौरी, रुक्मिणी, करुणा, आशा, निधी, दिव्या व शगुन, इस तरफ ही चले आ रहे थे। ये सब देख कर अजय सिंह के साथ साथ सहाय, शिवा व प्रतिमा के होंठो पर जानदार मुस्कान उभर आई।

देखते ही देखते कुछ ही देर में सबको अलग अलग पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध दिया गया। रस्सियों में जकड़ी गौरी बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। उसकी नज़र जैसे ही रस्सियों में बॅधे अपने बेटे विराज पर पड़ी वैसे ही वह बुरी तरह तड़प कर रोने लगी थी। विराज के साथ साथ रितू नीलम सोनम आदित्य आदि को रस्सियों में बॅधे थे, किन्तु इस वक्त ये सब अचेत अवस्था में थे।

“तो आख़िर तुम सब लोग यहाॅ पर मरने के लिए आ ही गए।” अजय सिंह उन सबके बीच ज़मीन पर चहल क़दमी करते हुए कठोर भाव से बोला___”वैसे क्या समझते थे तुम सब लोग कि मेरे क़हर से बचे रहोगे? हाहाहाहा ऐसा कभी नहीं हो सकता। जब तक मेरे द्वारा तुम सबको सज़ा नहीं मिल जाती तब तक तुम लोग किसी भी चीज़ से मुक्त नहीं हो सकते थे।”

“मेरे बेटे को कुछ मत करना।” सहसा गौरी ने रोते हुए कहा____”मैं आपके सामने हाॅथ जोड़ती हूॅ। भगवान के लिए उसे छोंड़ दो। उसके किये की सज़ा मुझे दे लो मगर मेरे बेटे को कुछ मत करना।”

“हाय! मेरी बुलबुल ये क्या हालत बना ली है तुमने?” अजय सिंह गौरी के क़रीब आते हुए चहका___”यकीन मानो तुम्हारी ये हालत देख कर मेरे दिल को बहुत दुख हो रहा है। अरे तुम तो मेरी जाने बहार हो डियर। कभी मेरे दिल के बारे में भी सोचा होता तो समझ में आता तुम्हें कि कोई किस क़दर चाहता है तुम्हें? मगर तुमने तो कभी मेरे बारे में सोचना तक गवारा न किया। आख़िर क्या कमी थी मुझमें? तुम्हारे उस अनपढ़ गवार पति से तो लाख गुना अच्छा था मैं। उससे कहीं ज्यादा अच्छी हैंसियत भी है मेरी। वो तो खेतों पर दिन रात काम करने वाला महज एक मजदूर था जबकि मैं तो यहाॅ का सम्पन्न राजा था। तुमको दुनियाॅ हर ऐशो आराम व सुख देता। मगर तुमको तो उस मजदूर से ही प्रेम था।”

“कोई भी इंसान धन दौलत से राजा नहीं बन जाता नीच इंसान।” गौरी का लहजा एकाएक कठोर हो उठा___”राजा बनने के लिए दूसरों के प्रति अपनी खुशियों का तथा अपने हर सुखों का त्याग करना पड़ता है। तुझमें तो सिर्फ एक ही खूबी है बेग़ैरत इंसान और वो है हर रिश्तों की मान मर्यादा का हनन करना। तेरे जैसे कुकर्मी के लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा ही हो सकती है।”

“उफ्फ।” अजय सिंह ने बुरा सा मुह बनाया___”मेरे प्रति इतनी घटिया बात कैसे सोच सकती हो तुम? अरे तुम कहती तो मैं तुम्हारे लिए खुद को पूरी तरह बदल भी देता मेरी जान। मैं वो सब बनने को तैयार हो जाता जो तुम मुझे बनने को कहती। मगर तुमने तो मुझसे इस बारे में कभी कुछ कहा ही नहीं। इसमे भला मेरा क्या कसूर है गौरी? मैं तो बस अपने दिल के हाॅथों मजबूर था और वही करता चला गया जो मेरा दिल कहता रहा था। मगर कोई बात नहीं डियर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम कहोगी तो मैं अब भी वैसा ही बन जाऊॅगा जैसा तुम कहोगी। ये समझ लो कि तुम्हारी स्वीकृति से सब कुछ एक पल में बदल जाएगा। कहने का मतलब ये कि तुम अगर अब भी मेरी हो जाओ तो ये सब लोग मेरे क़हर से बच जाएॅगे।”

“तू अपने और अपने इस सपोले के बारे में सोच हरामज़ादे।” होश में आते ही मेरी आवाज़ वातावरण में गूॅज उठी___”तू अगर ये समझता है कि तूने हम सबको रस्सियों में इस तरह बाॅध कर बहुत बड़ा तीर मार लिया है तो इस खुशफहमी में मत रह तू। दुनियाॅ की कोई भी ताकत तुझको मेरे हाॅथों मरने से बचा नहीं सकती।”

“तू अब कुछ नहीं कर सकता भतीजे।” अजय सिंह ने विराज की तरफ देखते हुए कहा___”तेरा सारा उछलना कूदना समाप्त हो चुका है। अब तक तुझे जो कुछ भी करना था वो सब कर लिया है तूने। अब तो मेरी बारी है और यकीन मान मैं अपनी बारी में अब कोई कसर नहीं छोंड़ूॅगा कुछ भी करने में। ख़ैर, अभी तो तुझे ये भी पता नहीं है कि मेरे एक ही झटके में तू और ये सब मेरी कैद में कैसे आ गए? तुझे पूछना चाहिए भतीजे कि मुझे तेरे ठिकाने का कैसे पता चला? और फिर कैसे तुम सब यहाॅ पहुॅच गए?”

अजय सिंह की इस बात पर सन्नाटा सा छा गया। ये सच था कि विराज एण्ड पार्टी को होश आते ही सबसे पहले उनके मन में यही सवाल उभरा था कि वो अचानक यहाॅ कैसे आ पहुॅचे हैं? एक के बाद एक सब कोई होश में आ चुका था। खुद को इस तरह रस्सियों में बॅधे देख वो सब बुरी तरह चौंके थे तथा बुरी तरह छटपटाने लगे थे। किन्तु जब यहाॅ के दृष्य व माहौल पर सबकी नज़र पड़ी तो जैसे सबके पैरों तले से ज़मीन ही गायब हो गई थी। विराज और रितू ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि मुम्बई से बाॅकी सब लोग भी यहाॅ आ चुके हैं और वो सब भी उनकी तरह रस्सियों से बॅधे हुए हैं।

“हाहाहाहाहा क्यों भतीजे ज़बान को लकवा क्यों मार गया तुम्हारे?” अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसा___”पूछ न कि ये सब कैसे हुआ? खुद को बड़ा तीसमारखां समझ रहा था न तू? अब पूछ कि ये सब कैसे हो गया? एक ही झटके में तू भी यहाॅ आ गया और मुम्बई में रह रहे तेरे ये सब चाहने वाले भी यहाॅ आ गए। होश में आने के बाद तुझे सबसे पहले यही पूछना चाहिए था।”

“तुम बताने के लिए इतना ही मरे जा रहे हो तो खुद ही बता दो।” आदित्य ने कहा____”वैसे मुझे पूरा यकीन है कि इसमें भी तेरे जैसे कूढ़मगज का अपना कोई दखल नहीं होगा।”

“इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता बेटा।” अजय सिंह ने कहा___”जंग में सेना का सारा ही योगदान होता है किन्तु जंग की जीत का सारा श्रेय राजा को ही जाता है। ख़ैर, अगर मेरा भतीजा ये जान जाए कि ये सब कैसे हुआ है तो यकीनन उसे दिल का दौरा पड़ जाएगा।”

“क्या मतलब??” मैं चकरा सा गया।

“छोटे को रस्सियों से मुक्त कर दो सहाय।” अजय सिंह ने अभिजीत सहाय की तरफ देखते हुए कहा___”मुझे लगता है कि ये खुद ही बताए तो ज्यादा बेहतर होगा।”

अजय सिंह की इस बात से हर कोई भौचक्का रह गया। सचमुच सबके पैरों के तले से ज़मीन खिसक गई किन्तु अभी भी बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई थी। उधर अजय सिंह के कहने पर अभिजीत सहाय ने एक आदमी को इशारा किया तो उसने जा कर अभय सिंह को रस्सियों से मुक्त कर दिया। रस्सी से छूटते ही अभय सिंह मुस्कुराया और फिर अपने कपड़ों को झाड़ता हुआ अजय सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया। 

अभय सिंह के होठों पर इस वक्त बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी। मैं ही क्या हम सब भी उसे इस तरह देख कर चकित थे। जबकि अभय सिंह कुछ देर हम सबकी तरफ उसी रहस्यमय मुस्कान के साथ देखता रहा।

“माफ़ करना राज।” अभय सिंह ने मेरी तरफ देखने के बाद माॅ की तरफ देखा___”आप भी मुझे माफ़ कीजिएगा भाभी जी। मगर मैं क्या करता? इस दुनियाॅ में हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही तो सोचता है।”

“अ..भय तुम।” गौरी के होठ बुरी तरह थरथरा कर रह गए, बोली___”तुमने ये सब किया है??”

“करने वाले तो बड़े भइया ही हैं भाभी।” अभय सिंह ने मुस्कुरा कर कहा___”मैने तो सिर्फ इन्हें फोन पर राज के ठिकाने के बारे में बताया था। आप सब समझ सकते हैं कि राज के ठिकाने का पता चल जाने के बाद बड़े भइया के लिए ये सब कर लेना कितना आसान रहा होगा।”

“नहींऽऽऽ।” गौरी के कुछ बोलने से पहले ही करुणा बुरी तरह रोते हुए चीख पड़ी____”आप ऐसा नहीं कर सकते। आप ऐसे नीच इंसान का साथ कैसे दे सकते हैं जिसके बेटे ने खुद आपकी पत्नी व बेटी के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी? नहीं नहीं, आप इस नीच आदमी की तरह नहीं हो सकते। भगवान के लिए कह दीजिए कि ये सब आपने नहीं किया।”

हम सब अभय सिंह की इस बात से हक्के बक्के थे। मुख से कोई बोल ही नहीं फूट रहा था। अभय सिंह का इस तरह पलटी मारना हम सबके लिए यकीनन अविश्वसनीय था। किन्तु सच्चाई तो अब सबके सामने ही थी। उसे कैसे कोई नकार सकता था?

“वाह अभय।” गौरी ने हताश भाव से कहा___”क्या खूब बेटे होने का फर्ज़ निभाया है तुमने। कल तक तो बड़ा कह रहे थे कि तुमने हमेशा मुझे अपनी माॅ की तरह समझा है। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि एक झटके में तुम फरिश्ता से राक्षस बन गए? आख़िर मैंने या मेरे बच्चों ने ऐसा क्या बुरा कर दिया था तुम्हारा कि तुमने हम सबको इस आदमी के सामने ला कर इस तरह खड़ा कर दिया?”

“मैने कहा न भाभी।” अभय सिंह ने कहा___”हर कोई सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है। बड़े भइया ने अपने बारे में सोचा था इस लिए उन्होंने वो सब किया। किन्तु क्या किसी ने मेरे बारे में सोचा कभी? भगवान ने एक बेटा दिया वो भी दिमाग़ से डिस्टर्ब। आपके बेटे को अरबपति आदमी ने अपनी संपूर्ण दौलत से नवाज दिया। इस लिए आप भी खुश हो गए। मगर मेरा क्या??? मेरा तो कहीं कोई महत्व ही न रह गया। दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा है, उसका क्या भविष्य हो सकता है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। इस लिए मैने बहुत सोच समझ कर एक सौदा किया।”

“स सौदा???” गौरी के होंठ काॅपे। हम सब के चेहरों पर भी गहन उलझन के भाव उभर आए।

“हाॅ भाभी।” अभय सिंह ने कहा____”मैने बड़े भइया को फोन लगाया और उनसे कहा कि अगर आपको इस जंग में जीत हासिल करनी है तो आपको मेरा कहना मानना पड़ेगा। वरना आप किसी भी तरह से इस जंग में जीत नहीं पाएॅगे। क्योंकि इनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी तो विराज के पास रखा इनका वो सब ग़ैर कानूनी सामान है। उस सामान के तहत विराज इन्हें जब चाहे कानून की गिरफ्त में जीवन भर के लिए डलवा सकता है। ये बात इन्हें भी अच्छी तरह पता है। तब इन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस जंग में क्या कर सकता हूॅ? मैने बताया कि इनका सारा ग़ैर कानूनी सामान आज की तारीख़ में मेरे कब्जे में है। इस सामान की कीमत ये होगी कि ये मेरे बेटे का बेहतर से बेहतर इलाज़ करवाएॅगे, साथ ही ज़मीन जायदाद में आधा हक़ मेरा होगा। इन्हें मेरा वो सौदा मंजूर था, इस लिए बात को आगे बढ़ा दिया गया। ये उसी का नतीजा है कि आज आप सब यहाॅ हैं। कल जगदीश ओबराय का फोन इसी लिए नहीं लग रहा था क्योंकि मैं ग़लत नंबर पर काल लगा रहा था। मैं नहीं चाहता था कि उस सिचुएशन में जगदीश वहाॅ आ जाए और मेरे काम में कोई अड़चन आ जाए। ये मेरी ही स्कीम थी कि सुबह नास्ते के समय में बड़े भइया विराज के फोन से पवन के फोन पर काल करें ताकि वैसे हालात बन जाएॅ। हलाॅकि जैसा मैने सोचा था उससे बेहतर ही माहौल बन गया था। क्योंकि पवन ने अपने मोबाइल का स्पीकर खुद ही ऑन कर दिया था।”

“ओह तो तुमने सिर्फ इस वजह से हम सबके साथ इतना बड़ा धोखा किया है।” गौरी ने कहा____”तुम्हें क्या लगता है कि अभय जिस आदमी के साथ तुमने हम सबका सौदा किया है वो आदमी तुम्हारे लिए इतना कुछ करेगा? अरे जिसने ज़मीन जायदाद के लिए अपने माॅ बाप व भाई तक को जान से मार दिया वो तुम्हें भी तो मार सकता है। रही बात तुम्हारे बेटे के इलाज़ की तो वो हम भी करवा देते। मैने तो इस बारे में सोच भी लिया था। याद करो मैने ही इस बात के लिए ज़ोर दिया था कि तुम खुद की समस्या को भी दूर कर लो। मैने जगदीश भाई साहब से बात की और फिर तुम्हारा इलाज हुआ। मैं नहीं जातनी कि इस सबके बाद भी तुम्हारे अंदर ये बात कैसे आ गई कि हम सबको एक ही झटके में इस तरह मौत के मुह में डाल दिया जाए?”

गौरी की ये बातें सुन कर अभय सिंह तुरंत कुछ बोल न सका। कदाचित गौरी की इस बात ने उसे सोचने पर मजबूर किया कि “एक तो अजय सिंह अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद से गुज़र सकता है दूसरी ये कि वो खुद उसके बेटे के बेहतर इलाज़ के बारे में सोचे बैठी थी”। इधर अभय सिंह को एकदम से चुप हो जाते देख अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका।

“ये औरत तुझे बरगलाने की कोशिश कर रही है छोटे।” अजय सिंह ने तपाक से कहा___”ये ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती जिसकी इस वक्त ये बातें गढ़ रही है। तुम्हारे बेटे का बेहतर इलाज़ मैं करवाऊॅगा। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ज्यादा उचित होगा कि मैंने तो इस बारे में शुरूआत भी कर दी है। तुम अपने बच्चे के लिए बिलकुल भी फिक्र मत करो छोटे। उसका इलाज़ मैं खुद विदेश में करवाऊॅगा।”

“तुम अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो अभय।” गौरी ने कहा___”ईश्वर जानता है कि मैने या मेरे मरहूम पति ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा था। हॅसते खेलते घर में आग लगाने वाला तो सिर्फ यही एक शख्स था। इतना तो अब तुम भी समझ ही गए हो कि इसने अपनी खुशी के लिए तथा अपने स्वार्थ के लिए हम सबके साथ क्या कुछ नहीं किया है। ज़मीन जायदाद और हवेली को हड़पने के चक्कर में इसने अपने ही भाई को ज़हरीले सर्प से डसवा कर मार डाला। उसके बाद अपनी करतूत को छुपाने के लिए इसने माॅ बाबू जी का एक्सीडेन्ट करवाया। आज जब ईश्वर ने इंसाफ किया तो तिलमिला उठा ये। मैं हैरान हूॅ कि तुम सब कुछ जानते बूझते हुए भी इसका साथ देने के लिए अथवा इससे इस तरह का सौदा कैसे कर बैठे? हमें इस बात का दुख नहीं है कि तुमने हम सबको धोखा दिया और फिर यहाॅ ले आए। क्योंकि जीवन में इतना कुछ पा लिया है और सहन कर लिया है कि अब किसी बात से कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता। किन्तु हाॅ इस सबके बाद भी तुम्हारे प्रति यही दिल करता है कि तुम ऐसी मुसीबत में न फॅस जाओ जिसके तहत एक बार फिर से ये कहानी दोहरा दी जाए।”

“माॅ की बात सही है चाचा जी।” सहसा मैने भी इस बीच हस्ताक्षेप किया____”दूसरी बात, आपको क्या लगता है कि मैं ये सब अपने हक़ को पाने के लिए कर रहा हूॅ?? नहीं चाचू, आप तो देख ही चुके हैं कि आज के समय में मैं अगर चाहूॅ तो इस पूरे गाॅव को एक पल में खरीद लूॅ। बात ज़मीन जायदाद या किसी प्रापर्टी की नहीं है बल्कि बात है अपने साथ हुए अन्याय की और अत्याचार की। सवाल उठता है कि आख़िर इन्हें किस चीज़ की कमी थी? दादा जी की ज़मीन जायदाद में तो उनके सभी बेटों का बराबर ही हक़ था। ज़मीनों में रात दिन खून पसीना बहा कर मेरे पिता जी ने एक मामूली से घर को इतनी बड़ी हवेली में तब्दील कर दिया। घर में हर सुख सुविधाएॅ हो गईं, यहाॅ तक कि मेरे ही पिता जी के खून पसीने की कमाई से इनके खुद के कारोबार की बुनियाद भी रखी गई। बदले में इन्होंने कभी कुछ दिया नहीं था और ना ही किसी ने इनसे कुछ पाने की आशा की थी कभी। अब सवाल ये उठता है कि ऐसी क्या वजह थी कि इन्होंने एक हॅसते खेलते परिवार को ख़ाक में मिला दिला? अगर इन्हें ज़मीन जायदाद की इतनी ही भूॅख थी तो खुल के कहते। मुझे पूरा यकीन है कि उस समय मेरे पिता जी इनकी भूॅख को शान्त करने की पूरी कोशिश करते। भले ही उन्हें अपने बीवी बच्चों को लेकर घर से निकल जाना पड़ता।”

“देखो तो।” अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह भिन्ना गया था, बोला____”साला आज का छोकरा, कैसी भाषणबाज़ी कर रहा है। इसे तो इतनी भी तमीज़ नहीं है कि जब बड़े आपस में बात कर रहे हों तो बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए।”

“और जब बड़े ही पाप करने की हर सीमा लाॅघ जाएॅ तो उसका क्या?” सहसा रितू दीदी बोल पड़ीं____”इस लड़ाई में किसके साथ क्या होगा इस बात का फैंसला तो ऊपर वाला कर ही देगा। किन्तु यहाॅ पर मैं भी ये कहना चाहती हूॅ कि दुनियाॅ में ऐसा कौन सा बाप है जो अपनी ही बेटियों को अपने नीचे सुलाने का तसव्वुर भी करता हो? आप कहते हैं कि राज को तमीज़ नहीं है बात करने की। जबकि सच्चाई तो ये है कि तमीज़, मान मर्यादा, इज्ज़त इन सब चीज़ों का अगर किसी में हद से ज्यादा अभाव है तो वो सिर्फ और सिर्फ आप में है। इस जन्म में तो किसी तरह ये जीवन काटना ही होगा मुझे, क्योंकि मैने अपना ये जीवन अपने सच्चे भाई राज की सुरक्षा में अर्पण कर दिया है। किन्तु मरने के बाद ईश्वर से सिर्फ यही फरियाद करूॅगी कि किसी ग़रीब बाप की औलाद बना देना मगर आप जैसे किसी पापी की औलाद न बनाना।” कहते कहते रितू दीदी की ऑखें छलक पड़ी थीं, फिर वो अभय सिंह की तरफ देखते हुए बोलीं___”आपसे ये उम्मीद नहीं थी चाचू कि आप अपने बेटे के बेहतर इलाज़ के स्वार्थ में अपने इस नीच व घटिया भाई का साथ देंगे। इससे अच्छा तो यही होता कि आपका बेटा जीवन भर वैसा ही रहा आता।”

“तुम ठीक कहती हो रितू।” करुणा ने रोते हुए कहा___”मेरा बेटा ऐसे ही अच्छा है। मुझे इसका कोई इलाज विलाज नहीं करवाना। इस नीच आदमी के पैसे का एक आना भी अपने बेटे पर नहीं लगाना चाहती मैं।” कहने के साथ ही करुणा ने अभय सिंह की तरफ देखा और फिर बोली____”कितना अभिमान था मुझे कि कम से कम मेरा पति अपने मॅझले भाई की तरह नेक दिल तो है। मगर आज आपने मेरे उस अभिमान को चकनाचूर कर दिया है अभय सिंह। किन्तु एक बात कान खोल कर सुन लो, ये मेरा बेटा है। मैं इसे खुद जान से मार देना पसंद करूॅगी मगर इस आदमी के पाप का पैसा इस पर नहीं लगाऊॅगी। और अगर आपने मुझे मजबूर किया तो देख लेना अच्छा नहीं होगा। मैं अपने बच्चों के साथ खुद ज़हर खा कर जान दे दूॅगी।”

“नहींऽऽऽ करुणा नहीं।” अभय सिंह पूरी शक्ति से चीख़ पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोला____”तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी। मुझसे ग़लती हो गई करुणा, प्लीज मुझे माफ़ कर दो। मेरी मति मारी गई थी जो मैने इस आदमी के साथ ऐसा सौदा कर लिया।” कहने के साथ ही अभय सिंह गौरी की तरफ बढ़ा फिर बोला____”मुझे माफ़ कर दो भाभी। आपने मेरे लिए इतना कुछ किया और मेरी जानकारी के बिना भी मेरे बेटे के इलाज़ करवाने का सोचा, और मैं मूरख आप ही के साथ इतना बड़ा पाप कर बैठा। हे भगवान! तू मुझे इस सबके लिए माफ़ न करना।”

अभय सिंह को इस तरह पलटी खाते देख अजय सिंह भौचक्का सा रह गया। किन्तु फिर जल्द ही सम्हल भी गया वह। कदाचित उसे अंदेशा था कि अभय सिंह अपनी बातों से मुकर जाएगा। अतः उसने फौरन ही सहाय की तरफ देखते हुए कहा____”इस नामुराद को फौरन रस्सियों में बाॅधो सहाय। मुझे पता था ये अपनी बात पर कायम नहीं रह पाएगा। शायद इसका भी इन लोगों के साथ ही मरना लिखा है तो यही सही।”

अजय सिंह की बात सुन कर सहाय फौरन ही हरकत में आया। उसने अपने आदमियों को भी इशारा किया और खुद भी अभय सिंह की तरफ लपका। उधर अजय सिंह की ये बात अभय सिंह के भी कानों में पड़ चुकी थी। जैसे ही सहाय उसके पीछे पहुॅचा वैसे ही अभय सिंह तेज़ी से पलटा और पलक झपकते ही उसने एक हाथ से सहाय को उसकी गर्दन से पकड़ कर अपनी बाहों में कसा और दूसरे हाथ में लिए रिवाल्वर को उसकी कनपटी पर रख दिया।

अजय सिंह ये देख कर हक्का बक्का रह गया। उसे समझ न आया कि अभय सिंह के पास रिवाल्वर कहाॅ से और कब आ गया? उधर अभय सिंह के बंधनों में जकड़ा अभिजीत सहाय उससे छूटने के लिए छटपटाए जा रहा था।

“अपने आदमियों से कह सहाय।” अभय सिंह ने खतरनाक भाव से कहा___”कि ये सब अपने अपने हथियार फेंक दें और फिर इन सब को रस्सियों के बंधन से मुक्त कर दें। वरना तेरा काम तमाम करने में मुझे ज़रा भी समय नहीं लगेगा।”

“फ..फेंक दो।” मौत के डर से थरथराता हुआ सहाय एकदम से चीखा____”अपने अपने हथियार फेंक दो और वही करो जो इसने कहा है।”

“कोई भी अपने हथियार नहीं फेंकेगा सहाय।” अजय सिंह ने कहा___”और हाॅ डरो मत। ये तुम्हें कुछ नहीं करेगा।”

“मैं मरना नहीं चाहता ठाकुर साहब।” सहाय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___”इस आदमी का लहजा बता रहा है कि ये इस वक्त कुछ भी कर सकता है। हाॅ ठाकुर साहब अगर मैने अपने आदमियों को हथियार फेंकने के लिए नहीं कहा तो ये मुझे खत्म कर देगा।”

“बड़े भइया।” अभय सिंह गुर्राया____”आजमाने की कोशिश मत करो। समय की नज़ाकत को देख कर काम करो। और हाॅ एक बात याद रखो, मुझे मरने का कोई डर नहीं है। अब तो बस हर जगह मुझे मौत ही मौत दिखाई दे रही है। इस लिए अगर भलाई चाहते हो तो वही करो जो मैने कहा है।”

अजय सिंह अपने छोटे भाई के गुस्से से भलीभाॅति परिचित था। इस लिए उसने उसका कहा मानने में ही अपनी भलाई समझी। वो देख रहा था कि इस वक्य अभय सिंह सहाय को अपने आगे किये हुए है और हर तरफ उसकी पैनी नज़र है। छोटी सी एक ग़लती सहाय का भेजा उड़ा सकती थी और सहाय के मर जाने से उसके आदमी उसका कोई आदेश नहीं मानेंगे।

बहुत ही मजबूर व लाचार भाव से अजय सिंह ने एक बार सबकी तरफ देखा उसके बाद उसने सभी गनमैनों की तरफ देखते हुए हाॅ में अपने सिर को हिलाया। प्रतिमा व शिवा ये सब देख कर बुरी तरह आतंकित से नज़र आने लगे थे। ख़ैर अजय सिंह के इशारे से सभी गनमैनों ने अपने हथियार फेंक दिये।

“अब इन सबके बंधनों को भी खोलो।” अभय सिंह ने गनमैनों को हुक्म सा दिया।

अजय सिंह का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से दौड़ रहा था। वो जानता था कि ऐसे में वह जीती हुई बाज़ी हार जाएगा। अतः वह कोई न कोई जुगत लगाने में लगा हुआ था। उधर अभय सिंह के कहने पर कुछ गनमैन आगे बढ़े और सबके बंधनों को खोलने लगे।

अभय सिंह पूरी तरह सतर्क था। वह सहाय की कनपटी पर रिवाल्वर सटाए हर तरफ देख रहा था। किन्तु ज्यादा देर तक उसकी सतर्कता उसके काम न आ सकी। अचानक ही एक तरफ से धाॅय की आवाज़ हुई थी और फिर अभय सिंह के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। रिवाल्वर की गोली सीधा उसके कान को छू कर गुज़र गई थी। गर्म गर्म शोला कान की लौ को मानो भीषण तपिश देकर गुज़रा था। जिसका असर ये हुआ कि अभय सिंह छिटक कर दूर हट गया था। रिवाल्वर जाने कब उसके हाॅथ से निकल गया था। सहाय उसकी गिरफ्त से छूटते ही एक तरफ को सरपट भागा था।

इधर अभय सिंह के साथ हुए इस हादसे ने अजय सिंह के पलड़े को पुनः मजबूत करने की राह पकड़ ली। सबके बंधनों को छुड़ाने में लगे गनमैन इस हादसे के होते ही फौरन अपनी अपनी गन्स की तरफ लपके। उधर आदित्य, रितू, मैं और पवन जल्दी जल्दी अपने बंधन खोलते जा रहे थे। दरअसल जो गनमैन हमारे बंधनों को खोल रहे थे वो इस हादसे के होते ही उसे वैसी ही हालत में छोंड़ कर अपने अपने हथियारों की तरफ दौड़ पड़े थे।

उधर अभय सिंह जब तक खुद को सम्हालता अजय सिंह उसके पास पहुॅच चुका था। उसने ज़ोर की लात अभय सिंह के पेट में मारी। अभय सिंह लहराता हुआ दूर जा कर गिरा। अजय सिंह इस वक्त हिंसक जानवर की तरह लग रहा था। अफरा तफरी के माहौल को देख कर शिवा का भी दिमाग़ चल गया। वह फौरन ही इधर उधर देखने लगा। तत्काल ही उसकी नज़र सोनम पर पड़ी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। सोनम के पास पहुॅच कर उसने बेख़ौफ होकर उसकी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया फिर बोला___”आओ मेरी जान। हम भी अपना प्रोग्राम बनाते हैं। सोचा था कि दिल की बात मान कर इस सबसे तौबा कर लूॅगा। मगर कदाचित ये मेरी किस्मत में ही नहीं है।”

“छोंड़ दे मुझे।” सोनम ने अपनी कलाई को उससे छुड़ाते हुए कहा____”तेरे जैसा घटियाॅ इंसान तो सारे संसार में भी न होगा। अपनी ही बहन के बारे में इतना गंदा सोचने में तुझे ज़रा भी शर्म नहीं आती।”

“यही तो बात है सोनम।” शिवा अपने से बड़ी ऊम्र की बहन को पूरी ढिठाई से उसके नाम से संबोधित करते हुए कहा___”जब मुझे पता चला कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो मैने भी सोचा चलो अच्छा ही हुआ। दुनियाॅ की एक हसींन लड़की से अगर मेरी शादी हो जाएगी तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। मगर जल्द ही समझ में आ गया कि प्यार मोहब्बत साली होती ही उसी से है जो हमें कभी मिलने वाला नहीं होता। मुझे लगा यार इससे अच्छा तो वही था जबकि मैं सिर्फ रासलीला से ही खुश रहता था।”

“मुझे तेरी ये बकवास नहीं सुननी कमीने।” सोनम ने गुस्से में कहा____”मैं कहती हूॅ छोंड़ दे मेरा हाॅथ वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।”

“पर अगर तुम चाहो तो मैं अब भी बदल सकता हूॅ।” शिवा ने उसकी बात पर ध्यान दिये बिना ही बोला___”हाॅ सोनम, तुम मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर लो और मुझसे शादी कर लो। हलाॅकि मैं जानता हूॅ कि हम दोनो के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए एग्री नहीं होंगे। इस लिए हम कहीं दूर चले जाएॅगे। वहीं कहीं एक नया संसार बसाएॅगे। मैने तो सबकुछ सोच भी लिया है सोनम। तुम किसी भी बात की चिन्ता मत करो। धन दौलत बहुत है, उसी में हम जीवन भर ऐश करेंगे। क्या कहती हो…आहहहहह।”

अभी शिवा का वाक्य पूरा ही हुआ था कि तभी उसके गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा था। उसके कान एकदम से झनझना कर रह गए थे। अपने गाल को सहलाता हुआ शिवा जब सीधा हुआ तो उसकी नज़र विराज पर पड़ी। विराज को देखते ही उसकी नानी मर गई।

“इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा बेटा।” मैने उसकी ऑखों में झाॅकते हुए कहा___”सुना है मुझसे दो दो हाॅथ करने के लिए बड़ा फुदकता था तू। अब आ गया हूॅ सामने तो हो जाए दो दो हाॅथ? क्या कहता है?”

“सब वक्त वक्त की बातें हैं भाई।” शिवा ने सहसा फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____”हो सकता है कि मैं पहले भी तुमसे दो दो हाॅथ करने के काबिल न रहा होऊॅ किन्तु फिर भी दो दो हाॅथ करने की हिमाकत ज़रूर करता मगर अब वो बात नहीं रह गई।”

“क्यों क्या हुआ?” मैने मुस्कुरा कर कहा___”शेर का सामना होते ही सारी हेकड़ी निकल गई?”

“हेकड़ी तो अभी भी है भाई।” शिवा ने कहा___”मगर जैसा कि मैने कहा न कि अब वो बात नहीं रह गई। अब तो बस बात ये है कि किसी से इश्क़ हुआ और हम खुद ही मर गए। अब अगर तुम एक मरे हुए को मारना चाहते हो तो ठीक है लो हाज़िर हूॅ, जो जी में आए कर लो। वादा करता हूॅ कि उफ्फ तक नहीं करूॅगा।”

शिवा की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह हैरान रह गया। मुझे समझ न आया कि ये बद्जात बोल क्या रहा है। जबकि मेरी उलझन को देखते हुए सोनम दीदी ने कहा___”ये कमीना कहता है कि ये मुझसे प्यार करता है और अब शादी भी करना चाहता है।”

“क्याऽऽऽ?????” सोनम दीदी की बात सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। आश्चर्य से शिवा की तरफ देखते हुए बोला___”आख़िर गंदा खून कर भी क्या सकता है? जिसका बाप हमेशा अपने ही घर की बहू बेटियों पर नीयत ख़राब करता रहा हो उसका बेटा भला कैसे दूध का धुला हुआ हो जाएगा?”

“इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है भाई।” शिवा ने कहा___”क्योंकि इश्क़ जब किसी के सिर चढ़ जाता है न तो फिर उसे ब्रम्हा भी नहीं समझा सकता। अतः तुम इस चक्कर में मत पड़ो। बल्कि उस चक्कर में पड़ो जिसके लिए तुम्हें पड़ना चाहिए। इस वक्त तुम खुद के साथ साथ अपने लोगों की जान की फिक्र करो। एक बात और, मेरी तरफ से बेफिक्र रहना।”

शिवा ने इतना कहा और फिर बड़े ही करुण भाव से सोनम की तरफ देखा। उसके बाद वह एक पल के लिए भी उस जगह नहीं रुका। मैं उसकी इस विचित्र सी हरकत से तथा उसकी बातों से बुरी तरह चकित था। तभी वातावरण में गोलियाॅ चलने की आवाज़ें आने लगी। मैं एकदम से फिरकिनी की मानिंद घूमा।

आदित्य, रितू दीदी व पवन के हाॅथों में गनें थी और वो अधाधुंध गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। पवन का तो निशाना ही नहीं लग रहा था। ये देख कर मैं मुस्कुराया। साले ने जीवन में कभी खिलौने का तमंचा तक न देखा था और आज दोस्ती के लिए गन लिए मौत का ताण्डव कर रहा था। मैने चारो तरफ देखा, मुझे औरतों में कहीं कोई दिखाई न दिया। ये देख कर मैं बुरी तरह चौंक गया। मन में सवाल उभरा कि ये सब कहाॅ गईं? कहीं किसी को कुछ हो तो नहीं गया। मैं सोनम दीदी को छोंड़ कर एक तरफ को भागा।

रितू दीदी, आदित्य व पवन पेड़ों की ओट में पोजीशन लिए हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, अभय चाचा, व सहाय कहीं दिख नहीं रहे थे। संभव है उन्होंने भी किसी पेड़ की ओट में पोजीशन लिया हुआ था। मैं छिपते छिपाते हुए फार्महाउस की इमारत के पिछले भाग में आ गया। यहाॅ आ कर मैने चारों तरफ देखा। कहीं कोई नहीं था। नीचे ज़मीन पर मरे हुए गनमैन अपने ही खून में नहाए पड़े थे।

माॅ लोगों को कहीं न देख कर मैं बहुत ज्यादा चिंतित व परेशान हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इतना जल्दी कहाॅ चले गए? मैं इमारत के पिछले भाग से निकल कर सामने की तरफ आया ही था कि तभी धाॅय की आवाज़ हुई। कहीं से गोली चली थी जो कि मेरे दाहिने बाजू को छू कर निकल गई थी। मैं इस सबसे बेखबर सा हो गया था। मेरे ज़हन में सिर्फ माॅ लोगों का ही ख़याल तारी था।

गोली की आवाज़ से तथा अपनी बाजू में उसकी छुवन से मैं बुरी तरह उछल पड़ा था और इसी उछलाहट में मैं फौरन ही एक पेड़ की ओट में आ गया। ओट से सिर निकाल कर मैंने आस पास का बारीकी से मुआयना किया। तभी मेरे कानों में इमारत के अंदर से कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी। मैं आवाज़ों को सुनने के लिए ग़ौर से ध्यान लगाया। तभी मेरे कानों में मेरी माॅ की आवाज़ पड़ी। वो कह रही थी____”मुझे बाहर जाने दो। वहाॅ मेरा बेटा गोलियों के बीच में खड़ा है और तुम सब कहती हो कि मैं यहीं पर रहूॅ। अरे मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मेरे ज़िन्दा रहने का क्या मतलब रह जाएगा?”

मैं सब समझ गया। मतलब माॅ लोग सब इमारत के अंदर हैं और शायद सुरक्षित भी हैं। वरना वो ऐसी बात उन लोगों को न कहतीं। ये सोच कर मैं फौरन ही जम्प मार कर दूसरे पेड़ की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही एकदम से गोलियों की आवाज़ें आने लगीं। किसी तरह बचते बचते मैं आदित्य के पास पहुॅच ही गया। आदित्य ने मुझे देखा तो इशारे से ही पूछा बाॅकी सब कैसे हैं? तो मैने बताया सब ठीक हैं।

अभी मैं आदित्य को इशारे से ये बताया ही था कि तभी सोनम दीदी की चीख़ गूज उठी। ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई मार रहा हो। मैने फौरन ही उस तरफ देखने की कोशिश की। बाॅई तरफ अजय सिंह सोनम दीदी को उनके सिर के बालों से पकड़े घसीटते हुए लिए आ रहे थे। उनके एक हाॅथ में रिवाल्वर भी था। ये देख कर मैं सकते में आ गया।

“अगर इस लड़की को ज़िन्दा देखना चाहते हो तो तुम सब सामने आ जाओ।” अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___”और हाॅ अपने अपने हथियार फेंक कर ही आना, वरना मैं इस लड़की को गोली मार दूॅगा।”

अजय सिंह की इस धमकी पर हम में से कोई कुछ न बोला। कुछ पलों तक अजय सिंह इधर उधर देखते हुए खड़ा रहा। उसके बाद फिर बोला___”मैं सिर्फ तीन तक गिनूॅगा। अगर मेरे तीन गिनने तक तुम लोग मेरे सामने नहीं आए तो समझ लो ये लड़की अपनी जिंदगी से हाॅथ धो बैठेगी।”

अजय सिंह ने गिनना शुरू कर दिया। पेड़ों की ओट में छुपे हम सब को बाहर निकलना अब अनिवार्य था। अजय सिंह ने जैसे ही तीन कहा हम सब उसके सामने आ गए। हम लोगों को देख कर अजय सिंह मुस्कुराया किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव खतरनाॅक रूप से बदले। उसने रिवाल्वर वाला हाॅथ उठाया और बिना कुछ कहे फायर कर दिया। गोली सीधा रितू दीदी के पेट में लगी। फिज़ा में रितू दीदी की हृदयविदारक चीख़ गूॅज गई।

अजय सिंह से अचानक इस कृत्य की कल्पना हम में से किसी ने न की थी। उधर पेट में गोली लगते ही रितू दीदी कटे हुए वृक्ष की तरह लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिरने लगी। मैं बिजली की सी तेज़ी से उनकी तरफ लपका। रितू दीदी को बाॅहों में सम्हाले मैं बुरी तरह रोते हुए चीखने लगा। वो मेरी बाॅहों में थीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के असहनीय भाव थे किन्तु ऑखें मुझ पर स्थिर थीं।

“दीदी, ये क्या हो गया दीदी?” मैं उन्हें सम्हालते हुए वहीं ज़मीन पर उकड़ू सा बैठ गया____”नहीं नहीं, आपको कुछ नहीं हो सकता।”

“अभी जंग खत्म नहीं हुई पगले।” रितू दीदी ने पीड़ित भाव से कहा____”अभी तो इस धरती पर वो इंसान जीवित है जिसने अपना आख़िरी सबूत ये दे दिया है कि उसके दिल में किसी के लिए भी कोई रहम अथवा प्यार नहीं है। ऐसे इंसान को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।”

“मैं उसे ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा दीदी।” मैने सिसकते हुए कहा___”बस आप को कुछ नहीं होना चाहिए। मैं आपको खोना नहीं चाहता।”

“होनी को कौन टाल सकता है राज?” दीदी ने सहसा मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___”बड़ी आरज़ू थी कि जीवन भर तेरे साथ रहूॅगी। तुझे खुद से दूर नहीं जाने दूॅगी। मगर देख ले, आज खुद ही तुझसे दूर जा रही हूॅ।”

“नहीं नहीं।” मैने उन्हें खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रोते हुए बोला___”आप कहीं नहीं जा रही हैं। मैं आपको कहीं जाने भी नहीं दूॅगा। मुझे मेरी दीदी सही सलामत चाहिए। मैं आपके बिना जी नहीं पाऊॅगा।”

“इतना प्यार मत दिखा राज।” रितू दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई____”वरना मरने के बाद भी मुझे शान्ति नहीं मिलेगी। ख़ैर, अभी तू जा मेरे भाई। वरना वो राक्षस फिर किसी को गोली मार देगा। देख तुझे मेरी कसम है, तू जा राज।”

दीदी की कसम ने मुझे मजबूर कर दिया। मैं भारी मन से उन्हें वहीं पर छोंड़ कर पलटा। इधर रितू के साथ हुए इस हादसे ने आदित्य पवन व अभय चाचा को भी अचेत सा कर दिया था। वो सब ठगे से ऑखें फाड़े देखे जा रहे थे।

“अपनी ज़िद व अपने अहंकार में किस किस को मारोगे अजय?” सहसा इस बीच प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए बेहद ही करुण भाव से रोते हुए कहा___”उस दिन भी तुमने नीलम को जान से मार ही दिया था और आज एक और बेटी को जान से मार दिया। आख़िर किस किस को जान से मारोगे तुम? ये दौलत ये ज़मीन जायदाद किसके भोगने के लिए बनाई है तुमने? मुझे भी मार दो, अपनी ऑखों के सामने अपनी बेटियों को इस तरह मरते देख कर भला कैसे चैन से जी पाऊॅगी मैं?”

“ये मेरी कोई नहीं लगती प्रतिमा।” अजय सिंह गुर्राया___”अगर लगती तो आज ये अपने बाप के साथ खड़ी होती ना कि अपने बाप के दुश्मनों के साथ।”

“तो क्या ग़लत किया इन्होंने?” प्रतिमा ने बिफरे हुए लहजे से कहा___”अरे इन लोगों ने तो वही किया जो हर लड़की को करना चाहिए। अपने इज्ज़त और सम्मान की रक्षा करना हर लड़की या औरत का धर्म है। तुम तो उसके बाप हो न, तुम्हें तो खुद अपने घर की इज्ज़त की हर तरह से रक्षा करना चाहिए थी। मगर तुम तो खुद ही अपनी ही बहू बहन व बेटियों की अस्मत को लूटने वाले बन गए।”

“ये तुम कौन सी भाषा बोल रही हो प्रतिमा?” अजय सिंह की ऑखें फैली____”आज तुम्हारे मुख से ऐसी बातें कैसे निकलने लगीं? क्या सब कुछ भूल गई हो तुम? तुम तो खुद भी उतनी ही गुनहगार हो जितना कि तुम इस वक्त मुझे समझ रही हो। इस लिए ऐसी बात मत करो, क्योंकि ये सब तुम पर शोभा नहीं देती हैं।”

“मैं मानती हूॅ कि मैं इस सबमें बराबर की गुनहगार हूॅ अजय।” प्रतिमा ने कहा___”मगर ये भी एक सच है कि इस सबके लिए भी सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो। मैं तो तुमसे अंधाधुंध प्यार ही करती थी। किन्तु अपने मतलब के लिए तुमने ही मुझे ऐसे काम को करने के लिए प्रेरित किया था। तुम्हारे प्यार में अच्छा बुरा ऊॅच नीच कभी नहीं सोचा मैने। सिर्फ यही सोचा कि मेरे किसी भी काम से सिर्फ तुम खुश रहो। मगर अब ये जो कुछ भी हो रहा है उसने मुझे इस बात का एहसास करा दिया है कि तुमने कभी मुझे प्यार किया ही नहीं था। तुम्हें तो सिर्फ खुद से और अपनी ख़्वाहिशों से ही प्यार था। अगर ऐसा न होता तो आज तुम इस तरह अपनों के दुश्मन न बन गए होते और ना ही इस तरह क्रूरता से अपनी ही बेटियों को जान से मार देने का सोचते। ख़ैर, देर से ही सही मगर मैं ये स्वीकार कर चुकी हूॅ कि मैंने तुम्हारे प्यार के चलते सबके साथ ऐसा गुनाह व पाप किया है जो कदाचित माफ़ी के लायक हो ही नहीं सकता है। मुझे भी किसी से माफ़ी की इच्छा नहीं है। इतना कुछ होने के बाद तो वैसे भी अब जीने का दिल नहीं करता। मेरा वजूद इतना घिनौना हो चुका है कि दुनिया का गिरा से गिरा हुआ इंसान भी कदाचित मेरी तरफ देखना भी पसंद न करे। किन्तु सुना है पश्चाताप करने से और नेक काम करने से मन को शान्ति मिलती है। इसी लिए मैने पश्चाताप के रूप में वो किया जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था।”

“क्या मतलब???” अजय सिंह चौंका____”क..क्या किया है तुमने?”

“अब तक तो दिमाग़ पर दिल ही हावी था अजय।” प्रतिमा ने कहा___”मगर जब दिल ही टूट कर बिखर गया तो दिमाग़ का ज़ोर पड़ ही गया उस पर। उस शाम जब तुम फोन पर अभय से बातें कर रहे थे तब मैने भी ड्राइंग रूम में रखे फोन पर तुम दोनो की बातें सुनी थी। तुम तो जानते हो कि वो दोनो ही फोन एक ही हैं। अगर एक पर किसी का फोन आएगा तो उस दूसरे फोन के माध्यम से भी दूसरा ब्यक्ति पहले वाले फोन पर हो रही बातचीत को बड़े आराम से सुन सकता है। ख़ैर तुम दोनो की बातें सुनी मैने और तब मुझे पूरी तरह समझ आ गया कि सारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ लुटाने वाली मैं कितनी पापिन थी जो कभी तुम्हारी खुशियों के सिवा किसी और पर होते अत्याचार को न देख सकी थी। तुमने अभय को विश्वास दिलाया कि तुम उसके बेटे का बेहतर इलाज़ करवाओगे और ज़मीन जायदाद में आधा हिस्सा भी दोगे। बदले में तुम्हें तुम्हारा वो ग़ैर कानूनी सामान व विराज के सभी चाहने वाले अपने पास चाहिए। अभय तो अपने बेटे के लिए अपना विवेक खो कर यकीन के साथ तुमसे इतना बड़ा सौदा कर बैठा जबकि मैं जानती थी कि तुम वैसा कभी नहीं करोगे जिस बात के लिए तुमने अभय को विश्वास दिलाया था। अपना मतलब निकल जाने के बाद तुम वही करोगे जो सबके साथ करना चाहते हो। मैं हैरान थी कि पढ़ा लिखा अभय इतनी बड़ी बेवकूफी व अपनों के साथ सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच कर इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है? लेकिन जल्द ही मुझे समझ आया कि भाई किसका है। मेरे दिमाग़ में ये बात भी आई कि संभव है कि अभय ने कोई दूर की कौड़ी सोची हुई है। कहने का मतलब ये कि इस जंग में अगर तुम्हारे साथ साथ मैं व हमारा बेटा मारे गए या कानून की चपेट में आ गए तो ये विराज को भी किसी तरह अपने रास्ते से हटा देगा। उस सूरत में सारी ज़मीन जायदाद का ये अकेला हक़दार हो जाएगा। ये सब बातें सोच कर मुझे एहसास हुआ कि जिसने इस सारी ज़मीन जायदाद को हीरे की शक्ल दी तथा जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं था उसे उसके भाई ने तो पहले ही मिटा दिया था और अब एक और भाई आ गया उसी इतिहास को दोहराने के लिए। मुझे पहली बार गौरी के बारे में सोच कर उस पर तरस आया। एकाएक ही मेरा हृदय झनझना उठा। अंदर कहीं से कोई बड़े ज़ोर से चीख कर कहा ‘इस बेचारी ने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से इसके साथ इतना कुछ हो गया?’ इंसान को बदलने के लिए सिर्फ एक ही मामूली सी चीज़ काफी होती है। अगर हम किसी के बारे में एक बार इस तरह से सोच लें तो फिर बहुत मुमकिन है कि फिर हमें उसकी अथवा अपनी वास्तविकता का बोध होने लगता है। वही हुआ मेरे साथ। हृदय परिवर्तन तो अपनी बेटी के साथ हुए हादसे से ही होने लगा था किन्तु उस फोन की वजह से पूरी तरह से ही हो गया। सारी बातों को सोचने के बाद मैने फैंसला कर लिया कि अब वो नहीं होंने दूॅगी जिसके लिए तुमने एक हॅसते खेलते परिवार की बलि चढ़ाई थी। हाॅ अजय, जैसे अभय ने अपने स्वार्थ के लिए अपनों के साथ विश्वासघात कर तुमसे वो सौदा किया उसी तरह मैने भी एक फोन किया।”

“क्या मतलब??” अजय सिंह बुरी तरह चौंका___”कैसा फोन किया तुमने?”

“मेरे पास विराज का नंबर नहीं था।” प्रतिमा ने कहा___”और मेरी बेटी मेरा फोन उठाती ही नहीं थी। तब मैने सीधा पुलिस कमिश्नर को फोन किया। पुलिस कमिश्नर को इस लिए क्योंकि मौजूदा वक्त में जो कुछ भी हुआ उससे ये बात साबित हो चुकी थी कि रितू अपने पुलिस महकमें की सह पर ही वो सब कर रही थी। हलाॅकि मैं पूरी तरह श्योर नहीं थी। किन्तु फिर भी मैने एक बार कमिश्नर से बात करने का ही सोचा और फिर उन्हें फोन लगाया। फोन पर मैने कमिश्नर से साफ साफ शब्दों में बता दिया कि सिचुएशन क्या है। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे एक बार विराज से बात करना है। उन्होंने मेरी बातों को बारीकी से सोचा समझा और फिर रितू को फोन किया और उससे विराज का नंबर लेकर मुझे दिया।”

“उस वक्त मैं और आदित्य बाहर घूमने गए थे जब मेरे फोन पर बड़ी माॅ का फोन आया था।” बड़ी माॅ की बात खत्म होते ही मैने तुरंत कहा___”इन्होंने मुझे फोन पर सारी बातें बता दी। हलाॅकि मुझे शुरू शुरू में इनकी बात पर ज़रा भी यकीन न हुआ। क्योंकि मैं सोच ही नहीं सकता था कि अभय चाचा हमारे साथ ऐसा कर सकते हैं। तब इन्होंने कहा कि ये अपनी बातों का सबूत तो नहीं दे सकती हैं मगर मैं खुद इस बात की जाॅच पड़ताल तो कर ही सकता हूॅ। दूसरी बात मुझे भी कहीं न कहीं लग रहा था कि अपनी बेटी के साथ हुए हादसे के चलते बड़ी माॅ में कुछ तो परिवर्तन आना ही चाहिए था। ख़ैर, इनकी ख़बर के बाद मैने भी वहाॅ पर रितू दीदी आदि को सब कुछ बता दिया और रात में ये सब होने का इंतज़ार करने के लिए कह दिया। वहीं मैने मुम्बई में भी पवन को फोन कर दिया था। उसे मैने समझाया था कि वो इस बारे में किसी से कुछ न कहे किन्तु अगर बड़े पापा का फोन उसके पास आए तो वो फोन का स्पीकर ऑन करके ज़रूर सबको इनकी बात सुनाए। क्योंकि उसके बाद तो उन्हें यहाॅ आना ही था। मैं भी अब खुल के इनके सामने आना चाहता था। किन्तु ये सब बहुत ही ज्यादा खतरनाक भी था। क्योंकि इससे किसी को भी कुछ भी हो सकता था। ख़ैर रितू दीदी ने कमिश्नर से बात की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया और पुलिस प्रोटेक्शन की माॅग भी की। कमिश्नर ने हमें बेफिक्र रहने को कहा। कल रात जब आप अपने दलबल के साथ हमारे ठिकाने पर पहुॅचे तब हम सब जाग रहे थे। आप ये समझ रहे हैं कि आप बड़ी आसानी से हम सबको बेहोश कर यहाॅ ले आए जबकि सच्चाई तो यही है कि आपका काम हमने खुद आसान किया था। वरना आप ही सोचिए कि ऐसे आलम में इतने लापरवाह हम कैसे हो जाएॅगे कि कोई आए और हम सबको बड़ी सहजता से बेहोश करके अपने साथ जहाॅ चाहे ले जाए। जबकि मैं चाहता तो उसी वक्त आप और आपके सभी आदमी मौत के घाट उतर चुके होते। मगर मैने अपने दोस्त शेखर के मौसा जी को उस रात वहाॅ पर सिक्योरिटी रखने से मना कर दिया था। उसके बाद क्या हुआ वो तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं।”

“चलो अच्छा हुआ कि तुमने खुद ही ये सब बता दिया।” अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे से कहने के साथ ही बड़ी माॅ की तरफ देखा___”पर तुमने ये सब करके अच्छा नहीं किया प्रतिमा और इसके लिए तुम्हें मौत से कम सज़ा तो हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती।”

“कितनी आश्चर्य की बात है न अजय।” प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___”इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारा हृदय परिवर्तन नहीं हुआ। तुम्हें ज़रा भी एहसास नहीं हुआ कि ये जो कुछ भी तुमने किया है वो कितना ग़लत था। बल्कि अभी भी तुम वही सब करने पर आमादा हो जिसका नतीजा तुम्हारे लिए किसी भी सूरत में अच्छा नहीं हो सकता। आज तुम्हारी इस हालत को देख कर सचमुच मुझे तरस आ रहा है। आज मैं ये सोचने पर मजबूर हूॅ कि पच्चीस साल पहले मैने तुममे ऐसा क्या देखा था कि तुमसे इस क़दर प्यार कर बैठी थी? तुम किसी के नहीं हो सकते अजय, तुम अकेले ही ऐसी मौत मरोगे जिसकी लाश पर कीड़े पड़ेंगे।”

“हरामज़ादी कुतिया।” गुस्से में तिलमिलाए हुए अजय सिंह ने बड़ी तेज़ी से अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को ऊपर हवा में उठाया और फिर___धाॅय।

प्रतिमा के सबसे क़रीब अभय सिंह ही था। माहौल की नज़ाकत का जैसे उसे बखूबी एहसास था तभी तो उन्होंने गोली के चलते ही जम्प लगाई थी। किन्तु गोली की स्पीड ने अपना काम तमाम करने में कोई कसर न छोंड़ी थी। प्रतिमा को बचाने के चक्कर में गोली अभय सिंह के कंधे पर जा लगी थी। फिज़ा में अभय सिंह की दर्द से डूबी चीख़ निकल गई थी। अभय सिंह प्रतिमा को लिए ज़मीन पर उलटता चला गया था। 

इधर इस नज़ारे को देख कर मैने भी अजय सिंह पर जम्प लगाई थी। मगर मेरे जम्प लगाने से पहले ही उसने एक और फायर कर दिया था। जिसका नतीजा ये हुआ कि इस बार गोली अभय सिंह के पेट में लगी थी। उस वक्त वो जल्दी से उठने की कोशिश कर रहा था तभी गोली आकर उसके पेट में लग गई थी। एक साथ कई चीखें फिज़ा में गूॅज गई थी। इधर तीसरा फायर करने से पहले ही मैं अजय सिंह के ऊपर आ गिरा था। इस गुत्थम गुत्था में सोनम दीदी भी लोट पोट हो गई थीं। अजय सिंह की पकड़ से छूटते ही सोनम दीदी अभय सिंह व प्रतिमा की तरफ चिल्लाते हुए दौड़ पड़ी थी।

इधर मैने अजय सिंह के उस हाॅथ में एक कराट मारी जिसमें वो रिवाल्वर लिये हुए था। कराट लगते ही अजय सिंह के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर गिर गया। मैने उस पर लात घूॅसों की बरसात कर दी। अजय सिंह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाने लगा। वह खुद भी हाॅथ पैर चला रहा था किन्तु सब ब्यर्थ। मैं उसके ऊपर से उठा और फिर उसे उठा कर पूरी ताकत से दूर फेंक दिया। हवा में लहराते हुए अजय सिंह दूर जा कर गिरा।

जहाॅ पर अजय सिंह गिरा था वहीं पर एक गन पड़ी थी। जिसे देख कर वह अपना हर दर्द भूल गया और झपट कर उसने उस गन को उठा लिया। तभी फिज़ा में पुलिस सायरन की आवाज़ गूॅजने लगी। अजय सिंह गन लेकर तुरंत पलटा और मेरी तरफ देखते हुए गन को ऊपर करने लगा। इससे पहले की वह गन का ट्रिगर दबा पाता कहीं से एक साथ दो फायर हुए। एक गोली सीधा अजय सिंह के सीने में दिल वाले स्थान पर लगी जबकि दूसरी उसके थोड़ा नीचे। पलक झपकते ही उन दोनो जगहों से खून की धार फूट पड़ी और अजय सिंह कटे हुए बृक्ष की भाॅति लहरा कर ज़मीन पर गिरा और फिर एकदम से शान्त पड़ गया।

फायर की आवाज़ से मैं बिजली की तरह पलटा था। अजय सिंह के दाहिनी तरफ कुछ ही दूरी पर शिवा रिवाल्वर लिए खड़ा था। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे। मैं उसे चकित भाव से देखे जा रहा था। जबकि वह अपने बाप को मारने के बाद पलटा और मेरी तरफ देखते हुए बोला____”अपने हाॅथ इस पापी के खून से मत रॅगो भाई। इसे इससे बड़ी सज़ा और क्या मिलेगी कि इसने जिसे सबसे ज्यादा प्यार किया उसी ने इसकी साॅसें छीन ली। नफ़रत के इस पुजारी को मर ही जाना चाहिए था।”

“मगर तूने..।” मेरा वाक्य अधूरा रह गया।

“कुछ मत कहिए भाई।” शिवा की आवाज़ लड़खड़ा गई, बोला___”मैं नहीं जानता कि मुझसे ये सब कैसे हो गया। मगर अंदर से कोई कह रहा है कि बहुत अच्छा किया तुमने। माॅ बाप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार व स्वावलम्बी बनने की सीख देते हैं मगर मेरे इस बाप ने तो मुझे अपनी ही तरह बनने की सीख दी। ख़ैर छोंड़िये भाई, मुझे भी अब खुशी हो रही है कि मैने आज कोई अच्छा काम किया है। ये नियति मैने खुद चुनी है। अपने बाप के कत्ल के इल्ज़ाम में या तो मुझे फाॅसी हो जाएगी या फिर ऊम्र कैद। किसी से बेपनाह इश्क़ भी हुआ मगर सिर्फ मुझे ऊम्र भर तड़पाने के लिए। मैने अपने इस छोटे से जीवन में ही इतने ऊॅचे दर्ज़े के पाप किये हैं जिसके लिए ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा।”

“ये तू कैसी बकवास कर रहा पगले?” उसकी बातें सुन मेरा गला रुॅध सा गया। जाने क्यों इस वक्त वो मुझे बहुत प्यारा सा लगा जिसके लिए मेरा दिल रोने लग गया था। हलाॅकि उसने भी अपने बाप की तरह हमें जलील करने में कोई कसर न छोंड़ी थी।

“जाइये भाई।” तभी शिवा ने कहा____”अब तो सब खेल खत्म हो गया है। पुलिस भी आ गई है और अब वो मुझे कानूनन फाॅसी के फंदे पर झुलाने के लिए यहाॅ से ले जाएगी। सबकी देख भाल करना भाई, और सबको ढेर सारी खुशियाॅ देना। एक नया संसार बनाइये और उसमें सबको खुश रखिये।”

अभी शिवा अपनी इन बातों से मुझे चकित ही किये था कि हर तरफ पुलिस के आदमी फैलते हुए आ गए। मेरी नज़र दूर से ही कमिश्नर पर पड़ी। मैने पलट कर देखा तो शिवा अपने बाप के मृत शरीर के पास ही अपने हाॅथ में रिवाल्वर लिए बैठ गया था। मतलब साफ था कि वो पुलिस को दिखाना चाहता था कि उसने खुद ही अपने बाप का खून किया है और अब पुलिस को उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए। बड़ी अजीब बात थी वो चाहता तो खुद को बचा भी सकता था। क्योंकि खून करते हुए पुलिस ने उसे देखा ही नहीं था और हम लोग ये बात पुलिस को बताने के बारे में सोच भी सकते थे या नहीं भी।

कमिश्नर जब शिवा के पास पहुॅचा तो शिवा उसकी तरफ देख कर बोला___”अच्छा हुआ कि आप आ गए। आज इस पापी को इसके ही पापी बेटे ने मौत के घाट उतार दिया है। लीजिए अब मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।”

शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।

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