♡ एक नया संसार ♡
अपडेट……..《 60 》
अब तक,,,,,,,
“ये क्या है?” दूसरे साये ने पहले साये के हाॅथ में बैग देख कर पूछा।
“इसमें मंत्री का लैपटाॅप है।” पहले साये ने कहा___”ये मुझे इस बेड के नीचे बने बाक्स में मिला है। मैने इसे अभी देखा नहीं है। हो सकता है कि इसमें भी पासवर्ड वाला चक्कर हो इस लिए इसे हम अपने साथ ही ले चलेंगे।”
“ये बहुत अच्छा हुआ।” दूसरे साए ने कहा___”मंत्री के लैपटाॅप में भी काफी कुछ मसाला मिल सकता है। ख़ैर, इन फाइलों को भी इस बैग में डाल लो। उसके बाद हमें तुरंत यहाॅ से निकलना है। अब यहाॅ पर ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं है।”
“ठीक है।” पहले साए ने कहने के साथ ही बैग को बेड पर रखा और दूसरे साये से फाइलें लेकर बैग में डाल लिया।
उसके बाद ये दोनो ही शातिर चोर जिस तरह छुपते छुपाते हुए यहाॅ बड़ी होशियारी से आए थे वैसे ही यहाॅ से निकल भी गए। बालकनी से जब दोनो नीचे ज़मीन पर उतर आए तो बालकनी में इनकी वो रस्सी ही फॅस गई। वो तो शुकर था कि इस तरफ आने वाले वो दोनो गनमैन इस तरफ आए ही नहीं। वरना उन्हें बालकनी की रेलिंग से झूलती हुई ये रस्सी ज़रूर दिख जाती और ये दोनो भी। ख़ैर दोनो ने किसी तरह उस रस्सी को निकाल ही लिया और फिर उसी रस्सी के द्वारा बाउण्ड्री वाल के उस पार भी चले गए। थोड़ी ही देर में वो दोनो अॅधेरे का लाभ उठाते हुए कहीं गायब से हो गए।
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अब आगे,,,,,,,
सुबह हुई।
मंत्री दिवाकर चौधरी एक विशेष दौरे पर गया हुआ था। किन्तु दौरे पर भी उसका पूरा ध्यान अपने जासूस उस हरीश राणे के फोन पर ही था। उसे पता था कि राणे बहुत जल्द उसे विराज और रितू के ठिकाने का पता फोन पर बताएगा। पिछला सारा दिन और फिर लगभग सारी रात गुज़र गई थी मगर हरीश राणे का फोन अब तक न आया था उसके पास। उसने सोचा कि संभव है कि विराज और रितू अभी हास्पिटल में ही अपनी बहन नीलम का इलाज़ करवा रहे होंगे। जिसके चलते वो लोग अभी अपने ठिकाने पर वापस न गए होंगे। शायद यही वजह होगी कि राणे ने उसे अब तक कोई फोन न किया था। ख़ैर उम्मीद पर तो दुनियाॅ कायम है। यही हाल चौधरी का था। पिछली शाम को ही वह दौरे पर निकल गया था। उसका प्रोग्राम पहले से ही फिक्स था। अतः दौरे से लौटने में उसे दूसरा दिन शुरू हो जाना था।
सुबह मंत्री की ऑख उसके मोबाइल फोन के बजने से ही खुली थी। उसने उठ कर टाइम देखा तो सुबह के साढ़े पाॅच बज रहे थे। मोबाइल की स्क्रीन पर हरीश राणे का नाम देख कर उसके होठों पर मुस्कान उभर आई, साथ ही चेहरे पर चमक भी पैदा हो गई। उसने बेहद खुशी के साथ काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगाया था और खुशी खुशी पूछा भी था कि ‘बोलो राणे सुबह सुबह खुश ख़बरी सुनने के बहुत उतावले हो रहे हैं हम’। उसकी इस बात पर राणे ने उधर से खुशी वाले लहजे में ही कहा था कि चौधरी साहब आपका काम संपन्न हो गया है। इस लिए आप जल्दी से अपने आवास पर आ जाइये।
हरीश राणे की ये बात सुन कर चौधरी खुशी से फूला नहीं समाया था। वह फोन पर ही सारी बात जान लेना चाहता था मगर राणे ने कहा कि आमने सामने बात करने का मज़ा ही कुछ और होगा। इस लिए आप आइये और अपने सभी साथियों को भी बुला लीजिएगा। उसके बाद ही तसल्ली से सारी बात बताई जाएगी। राणे की इस बात से मंत्री ने हॅसते हुए कहा था कि ठीक है राणे हम जल्द से जल्द पहुॅच रहे हैं।
मंत्री जब अपने दलबल के साथ वापस लौट कर गुनगुन स्थित अपने आवास पर आया तो उस वक्त सुबह के सात बज गए थे। उसने अपने साथियों को राणे से बात करने के बाद ही फोन पर अपने आवास पर आ जाने को कह दिया था। शानदार बॅगले के अंदर पहुॅचते ही मंत्री दिवाकर चौधरी को ड्राइंगरूम में अपने सभी साथी सोफों पर बैठे मिल गए। किन्तु हरीश राणे उसे कहीं नज़र न आया। ये देख कर उसके चेहरे पर चौकने के भाव उभरे। बाॅकी उसके साथी लोग तो सामान्य ही बैठे हुए थे।
“अरे अवधेश।” मंत्री ने सोफे पर बैठने के बाद अवधेश की तरफ देखते हुए कहा___”राणे कहाॅ गया भई? उसने तो हमें सुबह फोन करके जल्द से जल्द यहाॅ आने को कहा था और अब वह खुद ही यहाॅ नहीं है। कमाल है भाई, इन जासूसों का भी कुछ समझ नहीं आता। कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।”
“मैं तो यहीं हूॅ चौधरी साहब।” सहसा तभी हरीश राणे की चिर परिचित आवाज़ ड्राइंग रूम में गूॅजी___”और अपने साथ आपके लिए ऐसा तोहफा भी लेकर आया हूॅ कि आप उस तोहफ़े को देखेंगे तो यकीनन आप मुझ पर अपनी ये सारी दौलत लुटा देंगे।”
राणे की इस आवाज़ को सुन कर चौधरी ने पलट कर राणे की तरफ देखा। राणे के साथ साथ आ रहे जिन दो इंसानी चेहरों पर उसकी नज़र पड़ी उन्हें देख कर उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। यहाॅ पर एक अजीब बात ये भी हुई कि चौधरी के बाॅकी साथियों पर हरीश की इस बात का कोई भी प्रभाव न पड़ा था। वो तीनो ऐसे चुपचाप बैठे थे जैसे कि वो माटी के पुतले में तब्दील हो गए हों।
“ओह तो तुम यहीं हो।” राणे के साथ साथ उन दो चेहरों को भी देखते हुए चौधरी ने कहा___”हमें लगा कि हमें सीघ्र बुला कर तुम खुद ही गायब हो। ख़ैर, ये बताओ कि किस तोहफ़े की बात कर रहे थे तुम?”
“यही तो हैं।” राणे मुस्कुराते हुए अपने साथ आए उन दोनो की तरफ इशारा करते हुए कहा___”हाॅ चौधरी साहब, ये दोनो ही तो तोहफ़े हैं आपके लिए जिन्हें मैं अपने साथ लेकर आया हूॅ। क्या आपने इन दोनो को पहचाना नहीं?”
राणे की ये बात सुन कर चौधरी एकदम से चौंका। बड़े ग़ौर से उन दोनो को देखने लगा था वह। चौधरी जिन दो चेहरों को ग़ौर से देखे जा रहा था वो दोनो उसे इस संसार के सबसे खूबसूरत कपल नज़र आए। ऐसा लग रहा था जैसे वो दोनो सबसे अलग हों। इस वक्त वो दोनो चौधरी को देख कर मुस्कुरा रहे थे।
“ये दोनो खूबसूरत कपल कौन हैं भाई?” चौधरी के माॅथे पर उलझन के भाव आए थे___”और ये दोनो भला हमारे लिए तोहफे जैसे कैसे हो सकते हैं?”
“आप भी कमाल करते हैं चौधरी साहब।” हरीश राणे ने ठहाका लगा कर हॅसने के बाद कहा___”आप इन दोनो को नहीं पहचानते हैं? ये तो दुनियाॅ का सबसे बड़ा आश्चर्य है। अरे ये दोनो तो वही हैं चौधरी साहब जिन्होंने आपकी रातों की नींद हराम कर रखी थी। जी हाॅ, ये वही हैं जिन्होंने आपके बच्चों को अपने कब्जे में लिया हुआ था और उन वीडियोज के बल पर आपको भीगी बिल्ली बनाया हुआ था।”
“क्याऽऽऽ????” सोफे पर बैठा चौधरी राणे की इस बात को सुन कर इस तरह उछल पड़ा था जैसे अचानक ही उसके पिछवाड़े के निचले हिस्से की सोफे की पुश्त गर्म तवे में तब्दील हो गई हो। आश्चर्य से ऑखें फाड़े वह कुछ देर तक हकबकाया सा देखता रहा। फिर जैसे उसे होश आया तो अजीब भाव से बोला___”ये..ये दोनो वही हैं?? नहीं नहीं राणे….ये दोनो तो बहुत मासूम दिख रहे हैं, ये भला इतना बड़ा काण्ड कैसे कर सकते हैं?”
“लो भाई।” राणे फिर हॅसा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा___”अब तुम ही बताओ इन्हें।”
राणे की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर मैं चौधरी के क़रीब आ गया। मेरे साथ ही रितू दीदी भी आ गई।
“तुझे मंत्री किसने बना दिया चौधरी?” मैने सहसा तीखे भाव से कहा___”तुझमें तो इतनी भी समझ नहीं है कि मौजूदा हालात में तुम्हारे लिए तोहफे के रूप में राणे किसे ला सकता है? अगर समझ होती तो फौरन ही समझ जाता कि हम दोनो कौन हैं?”
“ज़बान को लगाम दे लड़के।” बुरी तरह तिलमिलाया हुआ चौधरी सहसा गुर्रा उठा___”तुझे पता नहीं है कि तू इस वक्त कहाॅ खड़ा है? हमसे इस लहजे में बात करने वालों का बहुत ही भयावह अंजाम होता है।”
“अंजाम का डर उन्हें होता है चौधरी।” मैने कहा___”जिन के पिछवाड़े में दम नहीं होता। तुझे तो इतना भी एहसास नहीं हो रहा कि तेरे आवास में आकर मैं तेरे ही सामने तुझसे इस लहजे में बात कैसे कर सकता हूॅ?”
“जब किसी की मौत आती है तो वो ऐसे ही तेरे जैसे अनाप शनाप बकने लगता है।” चौधरी ने कहा।
“तुझे क्या लगता है?” रितू दीदी ने कहा___”हम लोग तेरे सामने राणे की वजह से आए हैं? नहीं चौधरी, ये सब तो हमारा ही खेल है। हमने ही राणे के द्वारा फोन करवा के तुझे यहाॅ बलवाया है। तेरे ये सभी साथी इतनी देर से पुतले की तरह क्यों बैठे हैं क्या तुझे कुछ समझ नहीं आया?”
रितू दीदी की बात सुन कर चौधरी के मस्तिष्क में मानो एकाएक ही विष्फोट सा हुआ। दिमाग़ की सारी बत्तियाॅ रौशन हो उठी। सारी बातें बड़ी तेज़ी से उसके मन में चलने लगी। उसने अजीब भाव से अपने साथियों की तरफ देखा और फिर राणे की तरफ।
“खेल खत्म हो चुका है चौधरी साहब।” राणे तुरंत बोल उठा___”मैं तो कल ही इनके आदमियों के द्वारा पकड़ लिया गया था। उसके बाद इन लोगों ने मुझसे सब कुछ पूछ लिया और मुझे बताना ही पड़ा। मुझे भी इस बात का अंदेशा था कि आपके पीछे गुप्त रूप से कार्यवाही की जा रही है। अतः मैने सोचा कि अगर मैने आपके लिए काम किया तो निश्चय ही मैं भी कानून की चपेट में आ जाऊॅगा इस लिए मैंने वही रास्ता चुना जो सच्चा था और मेरे लिए बेहतर भी था।”
“गद्दार।” चौधरी पूरे क्रोध में बोल पड़ा___”अपनी सलामती के लिए तूने हमें फॅसवा दिया। तुझे ज़िंदा नहीं छोंड़ेंगे हम। तुम सबको अब मौत ही मिलेगी। तुम लोग अब यहाॅ से ज़िंदा वापस नहीं जा सकते।”
“जिनके दम पर तू हमें मौत देने की बात कर रहा है न वो सब तो पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं।” मैने सहसा झुक कर चौधरी की ऑखों में ऑखें डाल कर कहा___”और तेरे में इतना दम ही नहीं है कि तू मेरा बाल भी उखाड़ सके।”
मेरी इस बात से चौधरी को साॅप सा सूॅघ गया। अनुभवी आदमी था। उसे समझते देर न लगी कि जिस अंदाज़ से मैं उससे बात कर रहा था वो तभी संभव था जब वो कुछ भी कर पाने की पोजीशन में न हो। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि सहसा तभी बाहर से ढेर सारे पुलिस के आदमी अंदर दाखिल हुए। उन सभी पुलिस वालों के बीच से ही एसीपी रमाकान्त शुक्ला चलता हुआ हमारे पास आया।
“वेल डन इंस्पेक्टर रितू।” फिर उसने दीदी की तरफ देख कर कहा___”यकीनन तुम दोनो ने बहुत ही बड़ा काम किया है।” कहने के साथ ही एसीपी चौधरी की तरफ पलटा___”दुनियाॅ की कोई भी ताकत अब तुम्हें कानून की सलाखों के पीछे से नहीं निकाल सकती। तुम्हारे खिलाफ़ हमें इतने सबूत मिल चुके हैं कि अब तुम किसी भी कीमत पर बच नहीं सकते।”
“किन सबूतों की बात कर रहे हो आफीसर?” चौधरी ने हैरानी से कहा___”और ये इतनी सारी पुलिस फोर्स यहाॅ किस लिए लेकर आए हो तुम?”
“देखते जाओ चौधरी।” एसीपी ने कहा___”कुछ ही देर में सब कुछ पता चल जाएगा तुम्हें।”
पुलिस वालों को कदाचित पहले ही समझा दिया गया था कि क्या करना है। अतः वो यहाॅ आते ही अपने काम पर लग गए थे। चौधरी ये सब देख कर एकाएक बुरी तरह बौखला गया। उसके चेहरे पर डर व घबराहट के भाव उभर आए। चिंता व परेशानी के चलते पूरा चेहरा पसीने पसीने हो गया उसका। उसके साथियों का भी वही हाल था।
कुछ ही देर में वहाॅ पर पुलिस महकमे के कुछ और आला अधिकारी आ गए। चौधरी को कुछ भी करने का मौका न मिला। वो तो यही नहीं समझ पा रहा था कि इतनी सारी पुलिस फोर्स इतनी जल्दी यहाॅ कैसे आ गई? अंदर की तरफ गए हुए पुलिस वाले थोड़ी ही देर में बाहर आए और उन्होंने जो कुछ बताया उसे सुन कर चौधरी के सिर पर सारा आसमान भरभरा कर गिर गया। उसका चेहरा एकदम से निस्तेज पड़ गया।
लगभग एक घंटे की कठोर कार्यवाही के बाद आला अधिकारियों के साथ मंत्री को गिरफ्तार कर बॅगले से बाहर ले जाया जाने लगा। बाहर आते ही चौधरी ने देखा कि बाहर भीड़ जमा है। उस भीड़ में प्रेस व मीडिया के लोग थे जो मंत्री व पुलिस के आला अधिकारियों से तरह तरह के सवाल पूछने लगे थे। प्रेस व मीडिया वालों को संक्षेप में उनके सवालों के कुछ जवाब देकर चौधरी को लेकर पुलिस वाले चले गए। मंत्री के आवास को सील कर पुलिस सिक्योरिटी लगा दी गई।
ये मामला ही ऐसा था कि पलक झपकते ही मंत्री की गिरफ्तारी की ख़बर प्रदेश में हर तरफ फैल गई। मंत्री के चाहने वाले तथा पार्टी के उसके सहयोगियों ने विरोध प्रदर्शन तो किया किन्तु उस सबको पुलिस वालों ने सम्हाल लिया। मैं और रितू दीदी मंत्री के इस किस्से को खत्म करके वापस लौट आए थे। हरीश राणे को खुशी खुशी हमने छोंड़ दिया था। वो खुद भी इस सबसे खुश था कि उसने अच्छाई का साथ दिया। राणे जाते जाते हम लोगों के कान्टैक्ट नंबर ले गया था।
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उधर मंत्री के पकड़े जाने की ये ख़बर हवेली में अजय सिंह को भी हो गई। इस ख़बर ने अजय सिंह की हालत को लकवा मारने जैसी बना दिया। कुछ समय के लिए तो उसे ऐसा लगा जैसे इस संसार में अब कुछ बचा ही नहीं है बल्कि सब कुछ शून्य में ही खो गया है। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। विराज और रितू ने उसके लिए जैसे हर तरफ से रास्ता ही बंद कर दिया था। कहाॅ वह मंत्री के फोन द्वारा ये पता चलने का इन्तज़ार कर रहा था कि उसका भतीजा और उसकी बेटी आदि सब पकड़ लिए गए हैं और कहाॅ अब इस ख़बर ने उसके मुकम्मल वजूद को ही हिला कर रख दिया था।
अजय सिंह मंत्री के पकड़े जाने से चिंतित व परेशान तो था ही साथ ही वह इस बात के लिए भी बेहद परेशान हो गया था कि उसके दोस्तों ने अपने जिन आदमियों को उसकी सहायता के लिए भेजा था वो सब पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए थे। सुबह से फोन पर फोन आ रहे थे उसे। ये सब फोन उसके उन दोस्तों के ही थे। जो कह रहे थे कि उन्हें अपने आदमियों के पकड़े जाने का इतना दुख नहीं है बल्कि चिंता इस बात की है कि उनके वो सब आदमी पुलिस के सामने अपना मुह न खोल दें जिसकी वजह से वो सब भी कानून की चपेट में आ जाएॅ। अतः इससे बचने के लिए वो सब अजय सिंह से कोई न कोई समाधान चाह रहे थे। मगर अजय सिंह कुछ कहने की हालत में ही नहीं था। वो तो खुद भी अब मंत्री की वजह से असहाय सा हो गया था। मंत्री का कानूनन इस तरह पकड़े जाना उसके लिए बहुत बड़ी क्षति थी। क्योंकि अब उसे मंत्री पर ही भरोसा था कि वो उसे इस सारे खेल में जीत दिलाएगा। मगर अब सब कुछ जैसे स्वाहा हो चुका था।
प्रतिमा और शिवा सुबह से उसके पास ही थे। इस वक्त दोपहर हो चुकी थी। अजय सिंह अकेला ही ड्राइंग रूम में गुमसुम सा बैठा था। प्रतिमा किसी काम से बाहर गई हुई थी। शिवा अपने कमरे में था। सोफे पर बैठा अजय सिंह शिगार पे शिकार फूके जा रहा था। सविता जो उसकी घरेलू नौकरानी थी उसने उसे अब तक जाने कितनी बार चाय बना कर पिलाया था। हालात की गंभीरता का उसे भी एहसास था। उसे इस हवेली का सब कुछ पता था किन्तु उसने कभी इस मामले में हवेली के किसी भी सदस्य से कोई बात नहीं की थी। उसे पता था कि इस बारे में बात करने का सबसे पहले तो उसका कोई हक़ ही नहीं है दूसरी बात उसकी बातों को कोई सुनना पसंद भी नहीं करता।
सारी बातों को सोचते सोचते अजय सिंह इतना परेशान हो चुका था कि उसका सिर दर्द करने लगा था। वह उठा और सविता को आवाज़ दे कर कहा कि वो उसके सिर की बढ़िया से मालिश कर दे। ये कह कर अजय सिंह अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। सविता चालीस के आस पास की साॅवली सी औरत थी। उसका पति उसे बरसों पहले छोंड़ कर चला गया था। सविता और उसका पति पहले खेतों पर ही काम करते थे। बाद में उसका पति जब वापस लौट कर न आया तो गजेन्द्र सिंह ने उसे हवेली के काम धाम पर लगा लिया। सविता को हवेली में रहते हुए लगभग दस साल हो गए थे। उसने इस हवेली के अंदर अब तक क्या क्या हुआ सब कुछ देखा सुना था। मगर उसने कभी इस बारे में कोई दखलअंदाज़ी न की थी। उसे ये भी पता था कि अजय सिंह का परिवार कैसा है तथा ये भी कि ये रिश्तों को नहीं मानते। उसने शिवा को अपनी ऑखों से अपनी ही माॅ को संभोग करते देखा था। उस दिन उसे लगा था कि कलियुग वाकई आ चुका है।
अजय सिंह ने सविता के साथ जाने कितनी बार संभोग किया था इसका उसे खुद पता नहीं था। कई बार वह पेट से भी हुई थी किन्तु अजय सिंह ने हर बार उसके पेट से अपना बीज गिरवा दिया था। सविता ने परिस्थितियों के साथ पहले ही समझौता कर लिया था। उसका अपना कोई नहीं था। रितू व नीलम को वो अपनी ही बेटी की तरह मानती थी और हमेशा दुवा किया करती थी कि वो दोनो खुश रहें। रितू व नीलम भी उसे बहुत इज्ज़त व सम्मान देती थीं। उन दोनो ने कभी उसे नौकरानी नहीं समझा था। बल्कि हमेशा उसे काकी ही कहती थी। हलाॅकि शिवा का ब्यौहार अपने बाप की तरह ही था। किन्तु सविता के साथ ज़बरदस्ती करने की हिम्मत उसमे कभी न हुई थी। सविता एक तंदुरुस्त तबीयत की औरत थी। मेहनत कर करके वह बेहद मजबूत हो गई थी। वह दिखती भी ऐसी थी कि शिवा जैसा छोकरा उससे ज़बरदस्ती करने की हिम्मत कर ही नहीं सकता था। पिछले कुछ सालों से अजय सिंह ने सविता को भोगना बंद कर दिया था। इस बात से सविता को राहत महसूस हुई थी। अजय सिंह के सविता के साथ संबंधों की जानकारी प्रतिमा को शुरू से ही थी। किन्तु उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी।
थोड़ी ही देर में सविता अपने हाॅथ में एक कटोरी लिए अजय सिंह के कमरे में दाखिल हुई। कटोरी में शुद्ध सरसो का तेल था। कमरे में पहुॅचते ही सविता ने देखा कि अजय सिंह बेड पर लेटा हुआ है। आज काफी समय बाद अकेले कमरे में अजय सिंह के पास आते हुए सविता को थोड़ा असहज सा लगा। किन्तु उसे पता था कि मालिश तो उसे करनी ही पड़ेगी और अगर अजय सिंह ने उसके साथ संभोग करने की इच्छा ज़ाहिर की तो उसे उसकी वो इच्छा भी पूरी करनी पड़ेगी।
अजय सिंह की नज़र हाॅथ में कटोरी लिए आई सविता पर पड़ी तो उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। पहले की अपेक्षा सविता का जिस्म काफी आकर्षक सा हो गया था। हर अंग अपनी जगह सही से ढला हुआ था। ऊम्र का असर उसके सिर के बालों से दिख रहा था। बाॅकी उसका समूचा जिस्म कसा हुआ था। सीने के उभार प्रतिमा से कतई कम न थे। ब्लाऊज फाड़ कर बाहर आने को आतुर थे। अजय सिंह को ग़ौर से अपनी तरफ देखते देख सविता के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई।
“चलिए मालिक।” फिर उसने खुद को सामान्य बनाते हुए कहा___”आपके माॅथे पर मालिश कर देती हूॅ।”
“ओह हाॅ हाॅ।” अजय सिंह उसकी बात सुनते ही कुछ झेंप सा गया___”इस वक्त मालिश की वाकई बहुत ज़रूरत है सविता। प्रतिमा बाहर गई हुई है वरना तुम्हें तक़लीफ न देता। वो खुद भी बहुत अच्छी मालिश कर लेती है।”
“कोई बात नहीं मालिक।” सविता ने बेड के क़रीब आते हुए कहा___”मैं तो अक्सर मालकिन की मालिश करती ही रहती हूॅ। आज आपकी भी कर देती हूॅ। चलिए लेट जाइये अब।”
“इन कपड़ों को उतार दूॅ क्या?” अजय सिंह ने अपने बदन के ऊपर पहने कपड़ों की तरफ दःखते हुए कहा।
“मालिश तो माॅथे पर करनी है न मालिक।” सविता ने जल्दी से कहा___”कपड़े उतारने की क्या ज़रूरत है?”
“बात तो ठीक ही है तुम्हारी।” अजय सिंह कहने के साथ ही मुस्कुराया___”पर अगर पूरे बदन की मालिश कर दोगी तो क्या बुराई है? मुझे भी तो पता चले कि तुम अपनी मालकिन की किस तरह से मालिश किया करती हो?”
अजय सिंह की बात सुन कर सविता को साॅप सा सूॅघ गया। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। ऐसा नहीं था कि उसने अजय सिंह को बिना कपड़ों के देखा नहीं था बल्कि उसने तो इसके पहले न जाने कितनी बार खुद बिना कपड़ों के उसके साथ संभोग किया था किन्तु एक दो सालों से ये रिश्ता लगभग मिट सा गया था। इस लिए उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं आज फिर ऐसे हालात न बन जाएॅ कि उसे संभोग करना पढ़ जाए। दूसरी बात ये भी थी कि अब वो किसी सूरत में नहीं चाहती थी कि वो इस आदमी के साथ वो सब करे। उसने मन ही मन ईश्वर को याद किया कि उसे इस परिस्थिति से बचाए।
उसकी इस फरियाद को मानो ईश्वर ने सुन भी लिया, क्योंकि तभी कमरे में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्डलाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी। फोन के बजने से अजय सिंह के चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे। फिर उसने बेड के किनारे पर खिसक कर फोन के रिसीवर को उठा कर कान से लगाते ही हैलो कहा।
“………….।” उधर से जाने क्या कहा गया। किन्तु इतना ज़रूर हुआ कि उसके चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव उभरे और फिर सहसा उसने पलट कर सविता को कमरे से चले जाने को कहा। उसके इस तरह चले जाने का सुन कर पहले तो सविता चौंकी फिर जल्द ही वापस कमरे से बाहर की तरफ चल पड़ी।
कमरे से बाहर आते ही सविता ने राहत की साॅस ली और फिर किचेन की तरफ बढ़ गई। किचेन में उसने तेल की कटोरी को रखा और फिर किचेन से बाहर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ गई। ड्राइंगरूम में आते ही उसकी नज़र मालकिन यानी की प्रतिमा पर पड़ी जो एक तरफ टेबल पर ही रखे फोन के रिसीवर को कान से लगाए खड़ी थी। उसका चेहरा दूसरी तरफ था। सविता अपनी मालकिन को देख कर वापस अंदर की तरफ चली गई।
उधर कमरे में अजय सिंह काफी देर तक किसी से बात करता रहा। उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवागमन चालू था। ख़ैर कुछ देर बाद उसने अपने कान से हटा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रख दिया। रिसीवर रखने के बाद उसने एक गहरी साॅस ली और फिर सहसा जाने क्या सोच कर मुस्कुरा उठा।
अभी अजय सिंह मुस्कुरा ही रहा था कि तभी कमरे में प्रतिमा दाखिल हुई। प्रतिमा को देख कर अजय सिंह की मुस्कान और गहरी हो गई। उसके होठों पर फैली इस मुस्कान को देख कर प्रतिमा के होठों पर भी मुस्कान फैल गई।
“क्या बात है जनाब।” फिर प्रतिमा ने उसके समीप आते हुए कहा___”बहुत मुस्कुरा रहे हो। कारून का कोई ख़जाना मिल गया है क्या?”
“ऐसा ही समझो डियर।” अजय सिंह कहने के साथ ही आलमारी की तरफ बढ़ा, फिर बोला___”बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि कारून का ख़जाना भी उसके सामने कुछ नहीं है।”
“ओह ऐसा क्या?” प्रतिमा की ऑखें फैली___”ज़रा मुझे भी तो बताओ कि ऐसा कौन सा ख़जाना मिल गया है जिसके सामने कारून के ख़जाने की कोई औकात ही नहीं है।”
“ज़रूर बताऊॅगा प्रतिमा।” आलमारी से कोट निकालने के बाद अजय सिंह ने कहा___”पहले ख़जाने को मेरे हाॅथ तो लगने दो।”
“क्या मतलब??” प्रतिमा के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे___”क्या वो ख़जाना अभी तुम्हारे हाॅथ नहीं लगा है?”
“लग जाएगा माई डियर।” अजय सिंह ने कोट पहनते हुए कहा___”और इस ख़जाने को मेरे हाथ लगने से ब्रम्हा भी नहीं रोंक पाएॅगे।”
“बड़ी अजीब बातें कर रहे हो आज।” प्रतिमा ने सहसा तिरछी नज़रों से देखते हुए कहा___”कहीं तुम्हारे इस ख़जाने का संबंध रितू अथवा विराज से तो नहीं है?”
“ज्यादा दिमाग़ मत चलाओ प्रतिमा।” अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा___”बस समय का इन्तज़ार करो। ख़ैर, मैं ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूॅ शाम तक लौटूॅगा। शिवा से कहना वो कहीं बाहर न जाए बल्कि हवेली में ही रहे।”
प्रतिमा की प्रतिक्रिया सुने बिना ही अजय सिंह कमरे से बाहर निकल गया। उसके जाते ही प्रतिमा के चेहरे पर सहसा गहन पीड़ा के भाव उभरे और फिर एकाएक ही उसकी ऑखें छलक पड़ीं। आगे बढ़ कर वह बेड पर धम्म से बैठ गई। उसके मनो मस्तिष्क में ऑधियाॅ सी चलने लगी थी।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के अपने साथियों सहित पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने की सूचना मैने मंत्री के बेटे सूरज चौधरी व उसके तीनो साथियों को भी दे दी। चारो इस ख़बर को सुन कर बिलकुल असहाय से हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्मों में जान ही न रह गई हो। चारो की हालत वैसे भी बहुत ही दयनीय हो चुकी थी। भरपेट खाना न मिलने की वजह से तथा शारीरिक व मानसिक यातनाओं के चलते वो चारो ही बेहद कमज़ोर लगने लगे थे। दूसरे कमरे में मंत्री की बेटी को भी रितू दीदी ने उसके बाप के संबंध में सूचित कर दिया था। रचना चौधरी इस ख़बर से बुत बन कर रह गई थी। किन्तु जब उसके मुख से लफ्ज़ निकले तो बड़े अजीब थे। उसका कहना था कि मेरे बाप भाई ने जितने पाप कर्म किये थे उसका अंजाम तो यही होना था न।
सूरज चौधरी व उसके तीनो दोस्त हर तरह से टूट चुके थे। मौत की भीख माॅग रहे थे चारो मगर मौत मिलना इतना आसान नहीं था। इस बीच मैने फैंसला किया कि इन सबको यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। उन चारो की हालत देख कर मुझे इस बात का बोध हो चुका था कि वो पश्चाताप की आग में जल रहे हैं। बड़े से बड़े अपराध के लिए भी इंसान को क्षमा कर दिया जाता है और उसे सुधरने का एक मौका दिया जाता है। दूसरी बात, ये सब करके मुझे मेरी विधी तो मिलनी नहीं थी। उसके साथ हुए अत्याचार का मैने बदला ले लिया था इन लोगों से।
उन चारों को आज़ाद कर देने वाले मेरे फैंसले से थोड़ी न नुकुर के बाद आख़िर सब राज़ी हो गए थे। किन्तु सवाल ये था कि वो आज़ाद होने के बाद जाएॅगे कहाॅ? क्योंकि मंत्री का बॅगला तो पुलिस द्वारा सील कर दिया गया था। इस सवाल का जवाब रितू दीदी ने दिया, ये कह कर कि ये सब चिमनी में अपने पुश्तैनी घर जा सकते हैं। रितू दीदी की इस बात से समस्या का समाधान हो चुका था। अतः अब यही फैंसला हुआ कि इन सबको बेहोश करके चिमनी भेज दिया जाए।
मैने मौसा जी को फोन करके सारी बात बताई और उनसे आग्रह किया कि क्या वो इन चारो को चिमनी भेजने का काम करवा सकते हैं? मेरी इस बात पर वो हॅस कर बोले इसमें संकोच की क्या बात है बेटा? थोड़ी ही देर में केशव जी अपने कुछ आदमियों को लेकर हमारे पास आ गए। मैने और आदित्य ने चारो को बेहोश कर दिया और केशव की गाड़ी में उन सबको डलवा दिया। उनके साथ ही रचना को भी बेहोश करके डाल दिया था। ये सब होने के बाद केशव जी अपने आदमियों के साथ चिमनी गाॅव के लिए निकल गए।
उन सबको आज़ाद करने के बाद मन को थोड़ा शान्ति सी मिल गई थी। इस वक्त ड्राइंग रूम में मैं रितू दीदी तथा आदित्य बैठे हुए थे। नैना बुआ व सोनम दीदी नीलम के पास उसके कमरे में थीं।
“चलो मंत्री और उसके बच्चों से छुटकारा मिल गया आख़िर।” सहसा आदित्य ने कहा___”अब हम सारा फोकस तुम्हारे ताऊ पर लगा सकते हैं। वैसे मुझे तो लगता है कि अब हमें खुल कर हवेली में उसके सामने ही चले जाना चाहिए और फिर उन सबका भी काम तमाम कर देना चाहिए। अजय सिंह मौजूदा हालात में कुछ भी कर सकने की पोजीशन में नहीं है। उसकी आख़िरी उम्मीद निःसंदेह मंत्री ही था जोकि अब वो भी कानून की लम्बी चपेट में आ चुका है। दूसरी बात उसके जितने भी आदमी थे उन सबको भी पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अजय सिंह निहत्था व असहाय अवस्था में है। हम बड़ी आसानी से उसे लपेटे में ले सकते हैं और उसका हिसाब किताब कर सकते हैं।”
“इस बात का एहसास तो उसे भी हो ही गया होगा मेरे यार।” मैने कहा___”वो भी इस बात को समझता होगा कि मौजूदा हालात में हम उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे? इस लिए वो पूरी कोशिश करेगा कि वो हमारी सोच को सही साबित न होने दे। यानी कि वो कुछ ऐसा ज़रूर करेगा जिससे हम उसके सामने इस तरह न जा सकें जिस तरह की तुम बात कर रहे हो।”
“राज बिलकुल सही कह रहा है आदित्य।” रितू दीदी ने गहरी साॅस लेकर कहा___”मैं अपने डैड को बहुत अच्छी तरह से जानती हूॅ। वो इस परिस्थिति में भी कोई ऐसा जुगाड़ कर ही लेंगे कि हम उनके पास इस तरह से उनका तिया पाॅचा करने न पहुॅच सकें।”
“तुम्हारे हिसाब से वो ऐसा क्या जुगाड़ कर सकता है अब?” आदित्य ने पूछा___”जबकि मौजूदा हालात साफ शब्दों में बता रहे हैं कि वो अब कुछ भी करने की पोजीशन में नहीं रह गया है।”
“इस बारे में मैं कुछ कह नहीं सकती।” रितू दीदी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___”किन्तु उनके संबंध कई ऐसे लोगों से रहे हैं अथवा ये कहूॅ कि हैं जो ऊॅचे दर्ज़े के अपराधी हैं। अतः संभव है कि डैड अपने ऐसे ही किन्हीं अपराधी दोस्तों से मौजूदा हालात में मदद की गुहार लगाएॅ।”
“चलो ये मान लिया कि तुम्हारे डैड के ऐसे लोगों से संबंध हैं और वो उन लोगों से इस समय मदद माॅग सकते हैं।” आदित्य ने कहा___”किन्तु यहाॅ पर मैं एक सलाह देना चाहता हूॅ, और वो सलाह ये है कि तुम्हारे डैड को उस आधार पर भी तो बड़ी आसानी से भीगी बिल्ली बना कर अपने पास बुलाया जा सकता है जो आधार इस वक्त राज के पास मौजूद है, यानी कि अजय सिंह का ग़ैर कानूनी सामान। उस सामान के आधार पर अजय सिंह यकीनन भीगी बिल्ली बन कर हमारे पास खुद ही आ जाएगा।”
“ऐसा नहीं हो सकता आदी।” मैने कहा___”क्योंकि अब तक ये बात मेरे ताऊ को भी ताई के समझाने पर समझ आ ही गई होगी कि मैं उन्हें उनके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई क्षति नहीं पहुॅचाना चाहता बल्कि अपने बलबूते पर ही अपने व अपने परिवार के साथ हुए हर अत्याचार का बदला लेना चाहता हूॅ। अगर मुझे उस सामान के आधार पर ही अपने ताऊ का क्रियाकर्म करना होता तो मैं ये काम बहुत पहले ही कर चुका होता। इस लिए इस बात पर सोचने का कोई मतलब ही नहीं है दोस्त।”
“मैं तुम्हारी बातों से पूर्णतया सहमत हूॅ।” आदित्य ने कहा___”किन्तु उन्हें ये भी तो पता होगा न कि अगर तुम अपने बलबूते पर अपने ताऊ का कोई भी बाल बाॅका न कर पाए तो फिर तुम्हारे पास अंतिम चारा वो ग़ैर कानूनी सामान ही तो होगा। यानी कि तुम उस सामान के आधार पर ही आख़िरी चारे के रूप में अपने ताऊ का काम तमाम करोगे। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अगर तुम उसी ग़ैर कानूनी सामान की धमकी देकर अपने ताऊ को भीगी बिल्ली बना कर अपने पास आने पर मजबूर करोगे तो वो यही समझेंगे कि शायद तुम्हारे पास अब यही एक चारा रह गया था जिसके तहत तुमने अजय सिंह के उस ग़ैर कानूनी सामान का सहारा लिया है और उसे अपने पास इस तरह बुला रहे हो।”
“मनोविज्ञान की दृष्टि से तुम्हारा ये सोच कर कहना यकीनन सही है।” मैने कहा___”किन्तु मत भूलो कि उस तरफ बड़ी माॅ हैं जो खुद दिमाग़ के मामले में हम सबसे बीस ही हैं। कहने का मतलब ये कि सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद वो इसी नतीजे पर पहुॅचेंगी कि इतना कुछ होने के बाद तो हमारा पक्ष पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गया है, तो फिर अचानक ये गैर कानूनी सामान को आधार बना कर अजय सिंह को हम क्यों अपने पास बुला रहे हैं?”
“अरे तो उनके नतीजों से हमें क्या लेना देना भाई?” आदित्य ने कहा___”वो सारे हालातों पर ग़ौर करके क्या नतीजा निकालती हैं इससे हमें क्या फर्क़ पड़ता है? हमें तो अपने काम से मतलब है, फिर चाहे वो जैसे भी हो।”
“और मेरे सिद्धान्तों व उसूलों का क्या?” मैने आदित्य की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा___”हम सच्चाई व धर्म की राह पर चल रहे हैं दोस्त। हम भले ही अब तक धोखे से या किसी चाल से यहाॅ तक पहुॅचे हैं किन्तु प्यार व जंग में ये जायज था। मगर यहाॅ पर एक नियम अथवा एक सिद्धान्त तो मैंने उन्हें जता ही दिया था कि मैं अजय सिंह के खिलाफ उसके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई ऐक्शन नहीं लूॅगा, बल्कि सब कुछ अपने बलबूते पर ही करूॅगा। इस बात को मैं अब तक निभाता भी आया हूॅ और आगे भी इसे निभाना चाहता हूॅ। ये मेरे जिगर व मेरी मर्दानगी का सबूत भी होगा भाई कि मैने अपने बलबूते पर ही सब कुछ किया। इसके विपरीत अगर मैने जंग के आख़िर में ये क़दम उठाया तो फिर मेरी साख़ का क्या औचित्य रह जाएगा? मेरा ताऊ इस बात को भले ही न समझ पाए मगर मुझे यकीन है कि मेरी इस मनोभावना को बड़ी माॅ ज़रूर समझेंगी, और मैं चाहता भी हूॅ कि उनके मन में मेरे कैरेक्टर का ये मैसेज जाए। दूसरी बात, हमे ऐसा करने की ज़रूरत भी क्या है दोस्त? आप दोनो के रहते तो मैं सारी दुनिया को फतह कर सकता हूॅ।”
“एक सच्चा इंसान तथा एक सच्चा वीर ऐसा ही होना चाहिए।” सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों देखते हुए कहा___”मुझे तुझ पर नाज़ है मेरे भाई। मेरा दिल करता है कि तेरे लिए अपनी अंतिम साॅस तक निसार कर दूॅ।”
“ऐसा मत कहिए दीदी।” मैने सहसा भावुकतावश उनकी तरफ देखते हुए कहा___”अभी तो हम सबको एक साथ बहुत सारी खुशियाॅ बाॅटनी हैं। इस सबके बाद हम एक नये संसार का शुभारम्भ करेंगे। उस नये संसार में बेपनाह प्यार और बेपनाह खुशियाॅ होंगी।”
“और मुझे अपनी उन खुशियों से किनारा कर दोगे क्या तुम लोग?” आदित्य मुस्कुराते हुए बोल पड़ा___”ऐसा सोचना भी मत राज। वरना देख लेना तुम्हारे घर के बाहर धरना देकर बैठ जाऊॅगा।”
“ऐसा मत करना दोस्त।” मैने मुस्कुराते हुए कहा___”गाॅव के लोग धरने के रूप में एक ही आदमी को बैठा देखेंगे तो उसे कुछ और ही समझ लेंगे।”
“ओ हैलो।” आदित्य ने ऑखें दिखाई___”क्या मतलब है तुम्हारा? क्या समझ लेंगे गाॅव के लोग___भिखारी?? चल कोई बात नहीं यार। तुम्हारे लिए ये भी बन जाऊॅगा।”
“तुम्हें बाहर धरने पर बैठने की ज़रूरत नहीं है आदित्य।” रितू दीदी ने कहा___”रक्षाबंधन आने वाला है। इतने वर्षों में पहली बार मैं राज को राखी बाधूॅगी। राज की तरह तुम भी मेरे भाई ही हो। मैं और भी बहुत खुश हो जाऊॅगी कि तुम्हारे जैसा एक नेक दिल इंसान मेरा भाई बन जाएगा।”
“कितनी सुंदर बात कही है तुमने।” आदित्य सहसा किसी गहरे ख़यालों में खोता नज़र आया___”तुम्हारे ही जैसी एक बहन थी मेरी___प्रतीक्षा। मेरी लाडली थी वो, हर साल रक्षाबंधन के दिन मेरी कलाई पर एक साथ ढेर सारी राखियाॅ बाॅध देती थी। फिर कहती कि सभी राखियों का वो अलग अलग पैसा लेगी मुझसे।” कहने के साथ ही आदित्य की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोला___”मगर चार साल पहले अपने प्यार में धोखा खाने की वजह से उसने खुदखुशी की कोशिश की। दो मंजिला मकान की छत से कूद गई वो। हास्पिटल में इलाज चला मगर डाक्टर ने बताया कि वो कोमा में जा चुकी है। आज चार साल हो गए। आज भी वो लाश बनी पड़ी है। जिस लड़के ने उसे धोखा दिया था उसे ऐसी सज़ा दी थी मैने कि वो किसी भी लड़की से संबंध बनाने का सोच ही नहीं सकता अब।”
आदित्य की ये बातें सुन कर मैं और रितू दीदी भी सीरियस हो गए। रितू दीदी उठ कर आदित्य के पास गई और उसे अपने से छुपका लिया। मैं खुद भी आदित्य की दूसरी तरफ बैठ कर उसके कंधे को थपथपा रहा था।
“दुखी मत हो आदित्य।” रितू दीदी ने कहा___”प्रतीक्षा जल्द ही ठीक हो जाएगी। चलो अब शान्त हो जाओ। देखो ये ईश्वर का विधान ही तो था कि मैं तुम्हारी बहन के रूप में तुम्हें मिली और चार साल से सूनी पड़ी तुम्हारी कलाई में राखी भी बाधूॅगी।”
“भगवान का बहुत बहुत शुक्रिया।” आदित्य ने रितू दीदी से अलग होते हुए ऊपर की तरफ सिर करके कहा___”जो उसने मुझे बहन के रूप में मेरी प्रतीक्षा को मेरे पास भेज दिया। मैं तुमसे यही कहूॅगा रितू कि तुम भी प्रतीक्षा की तरह मेरी कलाई पर ढेर सारी राखियाॅ बाॅधना।”
“जैसी तुम्हारी इच्छा।” दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___”तुम दोनो बैठो मैं ज़रा काकी(बिंदिया) को चाय बनाने के लिए कहने जा रही हूॅ।”
“ठीक है।” आदित्य ने कहा। उसके बाद रितू दीदी उठ कर अंदर की तरफ चली गईं। जबकि मैं और आदित्य वहीं बैठे रहे।
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उधर मुम्बई में।
जगदीश ओबराय बॅगले के बाहर लान में एक तरफ हरी हरी विदेशी घाॅस के बीचो बीच रखी कुर्सी पर बैठा शाम का अखबार पढ़ रहा था। इस वक्त वह यहाॅ पर अकेला ही था। उसके सामने की बाॅकी सभी कुर्सियाॅ खाली थी। तभी मेन गेट से अंदर आती हुई एक कार की आवाज़ से उसका ध्यान मेन गेट की तरफ गया।
मेन गेट से अंदर दाखिल हुई कार चलते हुए सीधा पोर्च में जाकर रुकी। कार के रुकते ही पैसेंजर सीट की तरफ का गेट खुला और अभय सिंह अपने पैर पोर्च के फर्श पर रखते हुए बाहर निकला। बाहर आते ही उसने लान में एक तरफ कुर्सी में बैठे जगदीश ओबराय की तरफ देखा। जगदीश ओबराय को देखते ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई और वह उस तरफ ही बढ़ता चला गया।
“कहो भाई क्या कहा डाक्टर ने?” अभय के कुर्सी पर बैठते ही जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा___”वैसे तुम्हारे चेहरे की चमक देख कर ज़ाहिर हो रहा है कि रिपोर्ट पाॅजिटिव ही है।”
“बिलकुल सही कहा आपने भाई साहब।” अभय सिंह ने खुशी से कहा___”रिपोर्ट एकदम सही है। बस कुछ ही दिनों में सब कुछ सही हो जाएगा और ये सब आपकी वजह से ही संभव हो सका है। इसके लिए मैं आपका हमेशा आभारी रहूॅगा।”
“अरे इसमें मेरा आभारी रहने की क्या बात है भई?” जगदीश ओबराय ने कहा___”सब कुछ करने वाला तो ऊपरवाला है। हम तो बस माध्यम ही होते हैं।”
“ऊपरवाले को भी तो कुछ करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता ही पड़ती है भाई साहब।” अभय सिंह ने कहा____”ये उसी का नतीजा है कि आप इस सबके लिए माध्यम बने और ये सब हुआ वरना अब तक जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तो हम में से कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था।”
“पर इसमें भी सबसे बड़ा योगदान गौरी बहन का है अभय भाई।” जगदीश ओबराय ने कहा___”उसने करुणा बहन से कुरेद कुरेद कर तथा ज़बरदस्ती पूछा था और तब करुणा ने बताया कि तुममें समस्या क्या है? गौरी बहन ने वो बात बहाने से ही सही किन्तु मुझसे कही। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तुम में ये समस्या हो सकती है। तुम भी अपने बिना मतलब के स्वाभिमान व शर्म के चलते इस बारे में किसी से कहना नहीं चाहते थे। बेकार की सोच और बेकार के सिद्धान्त लिए बैठे थे। तुम्हें अपनी पत्नी की इच्छाओं का खुशियों का कोई ख़याल ही नहीं था। ख़ैर, जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। अब खुशी की बात ये है कि तुम फिजिकली अब कुछ ही दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाओगे और तुम्हारे पति पत्नी के रिश्तों के बीच फिर से खुशियाॅ भी आ जाएॅगी।”
“सचमुच गौरी भाभी को सबका ख़याल रहता है।” अभय सिंह ने मुग्ध भाव से कहा___”वो यकीनन देवी हैं भाई साहब। कभी कभी सोचा करता हूॅ कि इतने अच्छे लोगों के साथ ईश्वर ऐसा अन्याय कैसे कर देता है? भला क्या बिगाड़ा था किसी का उन्होंने?”
“एक नये अध्याय को शुरू करने के लिए पुराने ख़राब हो चुके अध्याय को खत्म करना ही पड़ता है।” जगदीश ओबराय ने कहा___”हम आम इंसान ईश्वर के क्रिया कलाप को समझ नहीं पाते हैं जबकि सबसे ज्यादा उसे ही पता होता है कि हमारे लिए क्या अच्छा हो सकता है? ईश्वर ने मेरे साथ क्या कुछ नहीं कर दिया है। आज से पहले अरब पति होते हुए भी मैं इतनी बड़ी सल्तनत में अकेला था किन्तु आज मेरे पास गौरी जैसी बहन है और विराज व निधी जैसे मेरे बच्चे हैं। उनके साथ साथ तुम सब भी मिल गए। इन सभी रिश्तों में मुझे प्यार व सम्मान हद से ज्यादा मिल रहा है। अब इससे ज्यादा क्या चाहिए मुझे? इस दुनियाॅ में हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएॅगे? सब कुछ यहीं रह जाएगा, असली दौलत व असली सुख तो इन्हीं में है। आज ईश्वर के इस न्याय से मैं बहुत खुश हूॅ।”
“सही कहा आपने भाई साहब।” अभय सिंह ने कहा___”काश हर इंसान आप जैसी सोच वाला हो जाए तो ये संसार कितना खूबसूरत हो जाए। एक मेरे बड़े भाई साहब हैं जिन्होंने अपने मतलब के लिए हर रिश्ते की बलि चढ़ा दी तथा अपनों के साथ इतना बड़ा अत्याचार कर डाला। क्या उन्हें ये बात नहीं पता होगी कि उन्होंने जिन चीज़ों के लिए ये सब किया वो चीज़ें मरने के बाद उनके साथ नहीं जाएॅगी। बल्कि उनके इस कर्म से उनके मरने के बाद भी लोग उन्हें बुरा भला ही कहेंगे।”
“इस संसार में हर तरह के इंसानों का होना ज़रूरी है अभय।” जगदीश ने कहा___”ईश्वर हर तरह के प्राणियों की रचना करता है, फिर उन्हीं के द्वारा खेल भी रचाता है और उस खेल का आनंद भी लेता है। उसने हम इंसानो के लिए नियम बनाए और उन नियमों पर चलने के लिए उसने समय समय पर हमें किसी न किसी माध्यम से रास्ता भी बताया। ख़ैर ये प्रसंग तो बहुत बड़ा है भई, इसे समझना और इस पर अमल करना बहुत कठिन है। तुम बताओ क्या कहा डाक्टर ने?”
“बाॅकी का तो आपको पता ही है।” अभय सिंह ने कहा___”उस दिन की रिपोर्ट के अनुसार इलाज शुरू हो चुका था। आज उसने टेस्ट लिया तो रिजल्ट बेहतर निकला। उसने बताया कि बहुत जल्द पहले जैसी बात हो जाएगी।”
“चलो ये तो अच्छी बात है।” जगदीश ओबराय ने कहा___”तुम भी ज़रा संजम और संयम का ख़याल रखना और दवा दारू समय समय पर करते रहना। ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
“जी बिलकुल।” अभय सिंह ने कहा___”अच्छा भाई साहब मैं ज़रा आज की दवाइयों को अंदर रख कर आता हूॅ। वो अभी कार में ही रखी हुई हैं।”
“ओह हाॅ।” जगदीश ओबराय ने कहा___”और हाॅ अंदर गौरी बहन से कहना ज़रा गरमा गरम चाय तो बना कर पिलाए।”
जगदीश ओबराय की बात सुन कर अभय सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया और कुर्सी से उठ कर कार की तरफ बढ़ गया। कार से उसने एक प्लास्टिक की थैली निकाली और उसे लेकर बॅगले के अंदर चला गया।
वहीं एक तरफ निधी के कमरे में निधी और आशा बेड पर बैठी हुई थी। पिछले दिन हुई बातचीत से निधी आशा के सामने आने से थोड़ा असहज सा महसूस करती थी, किन्तु आशा के समझाने पर उसकी झिझक व शर्म बहुत हद तक दूर हो गई थी। आशा पहले भी ज्यादातर उसके पास ही रहती थी किन्तु जब से उसके सामने ये बात खुल गई थी कि निधी विराज से प्यार करती है तब से वो और भी निधी के समीप ही रहती थी। आशा उमर में रितू जैसी ही थी तथा एक समझदार व सुलझी हुई लड़की थी इस लिए वो निधी को एक पल के लिए उदास या मायूस नहीं होने देती थी।
आशा के ही पूछने पर निधी ने उसे बताया कि कैसे उसे अपने भाई से प्यार हुआ और कैसे उसने अपने उस प्यार को विराज के सामने उजागर भी किया था। आशा सारी बातें सुन कर हैरान थी। सबसे ज्यादा इस बात पर कि निधी ने विराज से अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया है। ये अलग बात है कि विराज ने इसे अनुचित व ग़लत कहते हुए उसे इस संबंध में समझाया था। उसने उसे ये भी समझाया था कि इस रिश्ते को दुनियाॅ वाले कभी स्वीकार नहीं कर सकते और ना ही उसके घर वाले। विराज अपनी इस लाडली को जी जान से चाहता था किन्तु एक बहन भाई के रूप में। वो नहीं चाहता था कि उसकी कठोरता से निधी को ज्यादा दुख पहुॅचे। छोटी ऊम्र का आकर्शण कभी कभी ज़िद के चलते इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि अगर उसे समय रहते सम्हाला न गया तो परिणाम गंभीर भी निकल आते हैं।
शुरू शुरू में आशा को भी यही लगा था कि निधी अपने भाई पर महज आकर्षित है। किन्तु जब उसने निधी से इस संबंध में सारी बातों को जाना और उसकी डायरी के हर पेज पर दिल को झकझोर कर रख देने वाले मजमून को पढ़ा तो उसे महसूस हुआ कि ये महज आकर्शण नहीं है बल्कि ये बेपनाह मोहब्बत का प्रत्यक्ष सबूत है। आशा ने निधी की इजाज़त से ही उसकी डायरी को पढ़ना शुरू किया था। यूॅ तो डायरी में लिखी हर बात अपने आप में निधी की तड़प बयां करती थी किन्तु निधी के द्वारा लिखी गई ग़ज़लें ऐसी थीं जो आशा के दिल को बुरी तरह तड़पा देती थी। उसे ऐसा लगता जैसे ग़ज़ल की हर बात में उसी का हाले दिल बयां किया गया है। निधी अपने आपको बहलाने के लिए ज्यादातर किताबों में ही डूबी रहती थी। आशा उसकी पढ़ाई में कोई हस्ताक्षेप नहीं करती थी। किन्तु उसे भी पता था कि किसी चीज़ में अति हानिकारक होती है। इस लिए वो निधी का हर तरह से ख़याल भी रखती थी। इस वक्त भी वह उसके लिए चाय लेकर आई थी।
निधी ने चाय पिया और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद वह फिर से किताबों में डूब गई थी। जबकि आशा बेड पर सिरहाने की तरफ रखे पिल्लो के नीचे से निधी की डायरी निकाल कर उसे पढ़ने लगी थी। उसमें एक ग़ज़ल थी जिसे वो बार बार पढ़े जा रही थी।
अब किसी भी बात का यूॅ मशवरा न दे कोई।
इश्क़ गुनाहे अजीम नहीं तो सज़ा न दे कोई।।
अज़ाब तो मोहब्बत के साथ ही मिल जाते हैं,
फिर ग़मों को हमारे घर का पता न दे कोई।।
कैसे समझाएॅ के ऑधियों के बस का भी नहीं,
ये तो दिल के चिराग़ हैं इन्हें हवा न दे कोई।।
दिल की चोंट तो दिलबर से ही रफू होती है,
बेवजह इस दिल की अब दवा न दे कोई।।
इस लिए अपने दिल को समझा लिया हमने,
सरे राह मेरे महबूब का सिर झुका न दे कोई।।
आग लगे इस इश्क़ को के इसकी वजह से,
परेशां हो के मुझको कहीं भुला न दे कोई।।
आशा ने इस ग़ज़ल को बार बार पढ़ा। उसके दिल में अजीब सी हचचल होने लगी थी। काफी देर तक वो उसके बारे में सोचती रही। वो हैरान भी थी कि निधी इतना कुछ कैसे लिख सकती है? पर सबूत तो उसकी ऑखों के सामने ही था। आशा ने निधी से पूछा भी था कि ये किस शायर की लिखी हुई ग़ज़ल है, जवाब में निधी ने बस मुस्कुरा दिया था। जब आशा ने ज़ोर दिया तो उसने बताया कि ये उसके ही दिल की आवाज़ है जिसे उसने शब्दों में पिरो कर ग़ज़ल का रूप दे दिया है। निधी की इस बात पर आशा सोचों में गुम हो गई। फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला। उसकी नज़र डायरी के दाहिने वाले पेज़ पर लिखी एक और ग़ज़ल पर पड़ी। उसने उस ग़ज़ल को भी पढ़ना शुरू किया।
दिल तो दरिया ही था इक ग़म भी समंदर हो गया।
फक़त दर्द से फाॅसला था वो भी मयस्सर हो गया।।
हर वक्त ज़हन में अब उनका ही ख़याल तारी है,
मेरी पलकों के तले हर ख़्वाब सिकंदर हो गया।।
इसके पहले तो बहारे गुल का हर मौसम हरा रहा,
अब खिज़ां क्या आई के हर बाग़ बंज़र हो गया।।
मेरी ज़रा सी आह पर तड़प उठते थे कुछ लोग,
आजकल तो मोम का हर पुतला पत्थर हो गया।।
कितनी हसीं थी ज़िन्दगी मरीज़-ए-दिल से पहले,
अब तो नज़र के सामने बस वीरां मंज़र हो गया।।
अपनी बेबसी का ज़िक्र भला करें भी तो किससे,
बस छुप छुप के रोना ही अपना मुकद्दर हो गया।।
इस ग़ज़ल को पढ़ कर आशा के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दिल में इक हूक सी उठी जिसने उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसुओं का सैलाब सा ला दिया। उसने पलट कर चुपके से निधी की तरफ देखा। निधी पूर्व की भाॅति ही किताबों में खोई हुई थी। ये देख कर आशा को ऐसा लगा जैसे उसका दिल एकदम से धड़कना बंद कर देगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर के प्रबल वेग में मचलने लगे जज़्बातों को सम्हाला और फिर डायरी को बंद कर बेड पर चुपचाप ऑखें बंद करके लेट गई। दिलो दिमाग़ एकदम से शून्य सा हो गया था उसका। उसे निधी के दर्द का बखूबी एहसास हो चुका था। किन्तु दिमाग़ में ये सवाल ताण्डव सा करने लगा कि कोई लड़की इस हद तक कैसे किसी को चाह सकती है कि उसके प्रेम में इस तरह बावरी सी होकर ग़ज़ल व कविता लिखने लग जाए? मन ही मन जाने क्या क्या सोचते हुए आशा को पता ही नहीं चला कि कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया था।
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अजय सिंह तेज़ रफ्तार से कार चलाते हुए शहर की तरफ जा रहा था। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर सी कठोरता विद्यमान थी। उसकी नज़र बार बार कार के अंदर लगे बैक मिरर पर पड़ जाती थी। वह काफी समय से देख रहा था कि उसके पीछे लगभग सौ मीटर के फाॅसले पर एक जीप लगी हुई है। पहले उसे लगा था कि शायद कोई लोकल आदमी होगा जो उसकी तरह ही शहर जा रहा है किन्तु फिर जाने क्या सोच कर अजय सिंह ने उसे परखने का सोचा था? अजय सिंह ने कई बार अपनी कार की रफ्तार को धीमा किया था, ये सोच कर कि पीछे आने वाली जीप उसे ओवरटेक करके उसके आगे निकल जाएगी मगर ऐसा एक बार भी नहीं हुआ था। बल्कि उसकी कार के धीमा होते ही उस जीप की रफ्तार भी धीमी हो जाती थी।
अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि पीछे लगी जीप वास्तव में उसका पीछा कर रही है। इस बात के समझते ही उसे ये भी समझ आ गया कि संभव है ऐसा उसके साथ अब से पहले भी हो चुका हो। उसके मस्तिष्क में दो नाम आए रितू और विराज। यकीनन इन दोनो ने उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखने के लिए कोई आदमी उसके पीछे लगा रखा था। अजय सिंह को अब सब समझ आ गया था कि क्यों वो बार बार मात खा रहा था अपने दुश्मन से। उसके दुश्मन को उसकी हर ख़बर रहती थी तभी तो वो उससे चार क़दम आगे रहता था। अजय सिंह को अपने आप पर बेहद गुस्सा भी आया कि उसने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा था? जबकि ये एक अहम बात थी। उसकी बेटी के लिए ये सब करना महज बाएॅ हाथ का खेल था। वो एक पुलिस वाली थी, जिसके तहत मुजरिमों को खोजने के लिए उसके अपने गुप्त मुखबिर होना लाजमी बात थी। किन्तु अब भला इस बारे में सोचने का क्या फायदा था? जो होना था वो तो हो ही चुका था, मगर अब जो होने वाला था ये उसने सोच लिया था।
अजय सिंह ने अपने पीछे लगी उस जीप को चकमा देने का मन बना लिया था। अब वो अपनी गतिविधियों की जानकारी अपने दुश्मन तक नहीं पहुॅचने देना चाहता था। उसने कार को तेज़ रफ्तार से दौड़ा दिया और कुछ ही समय में शहर के अंदर दाखिल हो गया। बैक मिरर पर उसकी नज़र बराबर थी। वो देख रहा था कि पीछे लगी जीप भी उसी रफ्तार से आ रही थी। अजय सिंह को पता था कि उस जीप को चकमा देने का काम वो शहर में ही कर सकता था। क्योंकि यहाॅ पर आबादी थी तथा कई सारे रास्ते थे जहाॅ पर पल में गुम हो सकता था। अजय सिंह ने ऐसा ही किया, यानी शहर में दाखिल होते ही कई सारे रास्तों से चलते हुए पीछे लगी जीप की पहुॅच से दूर हो गया। इस बीच उसने किसी से फोन पर बात भी की थी।
थोड़ी ही देर में अजय सिंह ने कार को सड़क के किनारे रोंक दिया। वह बैक मिरर पर अभी भी देख रहा था। लगभग दस मिनट गुज़र गए। पीछे लगी जीप का कहीं कोई पता न था। अलबत्ता इस बीच एक कार ज़रूर उसके सामने आकर रुकी। कार से एक साधारण कद काठी का आदमी बाहर निकला और चल कर अजय सिंह के पास आया। उस आदमी को देख कर अजय सिंह अपनी कार से नीचे उतरा। अजय सिंह के उतरते ही वो आदमी अजय सिंह की कार में बैठ गया। कार में बैठते ही उसने कार को आगे पीछे करके यू टर्न लिया और वहाॅ से चला गया। उस आदमी से अजय सिंह ने कोई बात न की थी, शायद उसने फोन पर ही उसे सब कुछ समझा दिया था। ख़ैर उस आदमी के जाते ही अजय सिंह भी उस आदमी की कार के पास पहुॅचा और कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार को आगे बढ़ा दिया।
कुछ ही समय में अजय सिंह की ये कार जिस जगह रुकी उसके बाएॅ तरफ एक ऊॅची सी बिल्डिंग थी। ये बिल्डिंग पाॅच मंजिला थी। नीचे के ग्राउंड फ्लोर पर कई दुकानें थी जबकि दूसरे फ्लोर पर बिल्डिंग की बाहरी दीवार पर स्टील के बड़े बड़े अच्छरों से “दा जिम” लिखा था। बाॅकी के ऊपरी फ्लोर पर कुछ और भी चीज़ें थीं जिनका ज़िक्र करना यहाॅ ज़रूरी नहीं है।
कार से उतर कर अजय सिंह उसी बिल्डिंग की तरफ बढ़ चला। बिल्डिंग के ऊपरी फ्लोर पर जाने के लिए दोनो तरफ की दुकानों के बीच एक बड़ा सा चैनल गेट लगा था। उस चैनल गेट से ही सीढ़ियाॅ लगी थी। अजय सिंह तेज़ तेज़ क़दमों से चलता हुआ उस चैनल गेट के पास पहुॅचा और फिर सीढ़ियाॅ पर चढ़ता हुआ ऊपर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में वो दूसरे फ्लोर यानी कि दा जिम वाले हिस्से के एक बड़े से मीटिंग हाल में दाखिल हुआ। मीटिंग हाल में पहले से ही कुछ गिनती के लोग बैठे हुए थे।
“हैलो फ्रैण्ड्स।” अजय सिंह उन सबकी तरफ देखते हुए कहा और फिर फ्रंट की मुख्य कुर्सी पर बैठ गया।
“अच्छा हुआ ठाकुर साहब।” उनमे से एक ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___”कि आपने ये मीटिंग की और हम सबको यहाॅ बुला लिया। हम खुद भी चाहते थे कि सामने बैठ कर इस बारे में तसल्ली से बात करें। हम सबने आपकी मदद के लिए अपने अपने आदमियों को आपके पास भेजा था किन्तु उस दिन के हादसे में हमारे वो सब आदमी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। ये हमारे लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं हुआ है। आप समझ सकते हैं कि पुलिस के पास पत्थरों का भी मुह खुलवा लेने की कूवत होती है। इस लिए अगर हमारे आदमियों ने पुलिस के सामने अपना अपना मुह खोल दिया तो उसका अंजाम यही होगा कि बहुत जल्द हम सब भी पुलिस के द्वारा धर लिये जाएॅगे।”
“मामला वाकई बेहद गंभीर हो गया है कमलकान्त।” अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया, फिर बोला___”इस मामले को हम बड़ी आसानी से सुलझा लेते मगर आज मंत्री जी की गिरफ्तारी से बहुत बड़ा झटका लगा है। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि मंत्री जैसा चतुर व शातिर इंसान इस तरह पलक झपकते ही पुलिस के द्वारा धर लिया जाएगा। ख़ैर, आप सब चिंता न करें, क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि पुलिस उन सबको छोंड़ देगी।”
“क्याऽऽऽ???” मीटिंग हाल में बैठे वो सब इस बात को सुन कर उछल पड़े थे, एक अन्य बोला___”ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ठाकुर साहब? जबकि ये असंभव बात है। पुलिस भला ऐसे संगीन अपराधियों को कैसे छोंड़ देगी?”
“उसकी एक ठोस वजह है।” अजय सिंह ने कहा___”इस शहर की पुलिस का सारा महकमा भले ही बदल गया था किन्तु इस बात को गुज़रे हुए काफी समय हो गया है। इस देश में ऐसे पुलिस वालों की कमी नहीं है जिनका इमान थोड़े से पैसों के लिए डगमगा जाता है। कहने का मतलब ये कि पुलिस महकमे में एक खास पुलिसिया ऐसा ही है जिसका इमान हमने पैसे से डगमगा दिया है। उसी ने हमे फोन पर इस सबके बारे में जानकारी दी थी।”
“क..कैसी जानकारी ठाकुर साहब?” कमलकान्त के चेहरे पर हैरानी के भाव आए।
“यही कि पुलिस ने हमारे जिन आदमियों को गिरफ्तार किया था।” अजय सिंह ने कहा___”उनके खिलाफ कोई केस फाइल नहीं किया गया है अब तक और महकमे के अंदर का माहौल भी यही ज़ाहिर कर रहा है कि आगे भी अभी उन पर कोई केस फाइल होने की संभावना नहीं है। दरअसल पुलिस डिपार्टमेंट अभी मंत्री की गिरफ्तारी पर ज्यादा ज़ोर दे रहा है। पुलिसिये ने बताया कि एसीपी रमाकान्त शुक्ला को केन्द्र से भेजा गया था मंत्री और उसके साथियों के खिलाफ़ गुप्तरूप से सबूत इकट्ठा कर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए। ताकि इस प्रदेश से गंदगी दूर हो सके।”
“वो सब तो ठीक है ठाकुर साहब।” अभिजीत सहाय नाम का आदमी बोल पड़ा___”लेकिन इससे ये तो साबित नहीं होता कि मंत्री की वजह से पुलिस हमारे आदमियों पर कोई केस फाइल नहीं करेगी। बल्कि पुलिस का तो काम ही यही है मुजरिमों को सज़ा दिलाना। अतः देर सवेर पुलिस अपना काम ज़रूर करेगी।”
“पूरी बात तो सुनो भाई।” अजय सिंह बोला___”एसीपी मंत्री तथा मंत्री के साथियों को लेकर यहाॅ से जा चुका है। उनका फैसला अब अदालत में होगा और ज़ाहिर है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर उन सबको संगीन से संगीन सज़ा होगी। एसीपी का काम सिर्फ इतना ही था यानी अब यहाॅ पर वो नहीं आएगा। उसी पुलिसिये ने बताया था कि पुलिस कमिश्नर की उसने बातें सुनी थी जो वो मेरी बेटी से कर रहे थे। मामला ये है कि ये सारा फसाद रितू और विराज ने पुलिस कमिश्नर की सहमति से ही किया था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि कमिश्नर की बातों से ये पता चला है कि उसे इस बात की जानकारी विराज या रितू द्वारा नहीं दी गई है कि उनके पास हमारे खिलाफ ऐसा डायनामाइट सबूत है जिसके बेस पर वो हमे जब चाहे कानून की चपेट में ला सकते हैं। कहने का मतलब ये कि कमिश्नर की समझ में मामला यही है कि ये महज एक पारिवारिक मामला है जिसमें हमने विराज व उसकी फैमिली के साथ ग़लत किया है, जिसके लिए वह हमसे अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहा है। विराज का साथ रितू दे रही है जो कि कमिश्नर की सहमति पर ही है। अब सोचने वाली बात ये है कि जब कमिश्नर को इस बारे में पता ही नहीं है कि हम क्या धंधा करते हैं तो फिर भला वो हमारे आदमियों किस बारे में पूछताॅछ करेगा? और अगर करेगा भी तो वो यही कहेंगे कि उन लोगों को हमने किराए पर हायर किया था। यानी उनमे से कोई आप लोगों का नाम नहीं लेगा। रही बात उस हादसे की जिसके कारण वो गिरफ्तार किये गए थे तो वो भी रितू की ही वजह से हुआ था। उस हादसे में ग़ैर कानूनी तरीके से हमारा साथ देने के लिए उन लोगों को सज़ा के तौर पर थोड़ी बहुत सज़ा मिल सकती है अथवा ज़ुर्माना भरवा कर उन्हें छोंड दिया जा सकता है।”
“अगर ऐसा है।” कमलकान्त बोला___”तब तो ठीक है ठाकुर साहब। हम किसी तरह से अपने आदमियों को छुड़ाने की कोशिश कर लेंगे। किन्तु आपसे गुजारिश है ऐसा फिर न हो।”
“ऐसा भी इसी लिए हो गया कमलकान्त।” अजय सिंह ने पुरज़ोर लहजे में कहा___”क्योंकि हमें उस सबकी ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। हलाॅकि वो हमारी ग़लती थी। हमें इस बात की तरफ भी ध्यान देना चाहिए था कि दुश्मन की तरफ हमारी बेटी है जो एक पुलिस वाली है और वो इस सबके लिए अपने पुलिस महकमे का सहारा ले सकती है। ख़ैर, छोंड़िये इस बात को। हमने वकील से बात कर ली है वो सब आदमी बहुत जल्द छूट जाएॅगे।”
“अब आगे का क्या प्रोग्राम है आपका?” अभिजीत सहाय ने कहा___”उस हादसे की वजह से जीती हुई बाज़ी आप हार गए थे। इस लिए इसके आगे क्या करने का सोचा है आपने?”
“कहते हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।” अजय सिंह ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ से कहा___”हार जीत जंग करने वाले हर ब्यक्ति के हिस्से में आती है। कभी वह हारता है तो कभी जीतता भी है। कहने का मतलब ये कि दुर्भाग्य की वजह से अब तक हम हारते ही आए थे मगर अब ऐसा नहीं होगा।”
“क्या मतलब है आपका?” कमलकान्त के माॅथे पर शिकन उभरी, बोला___”आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि आपके पास अपने दुश्मन के खिलाफ कोई बहुत बड़ा सबूत लग गया है जिसके तहत आप अपने दुश्मन को बड़ी आसानी से अपने पंजे पर दबोच लेंगे।”
“बिलकुल सही कहा कमलकान्त।” अजय सिंह के चेहरे पर चमक थी, बोला___”ऐसा ही हुआ है। उसने हमारे साथ बहुत खेल खेला अब एक खेल हम भी दिखाएॅगे उसे। एक ऐसा खेल जिसके बारे में उसने ख़्वाब में नहीं सोचा होगा। सबके सब एक ही झटके में हमारे क़दमों तले पालतू कुत्तों की तरह दुम हिलाते नज़र आएॅगे।”
“ऐसी क्या बात हो गई है ठाकुर साहब?” अभिजीत के चेहरे पर हैरानी थी___”जिसके तहत आप इतनी दृढ़ता व इतने विश्वास के साथ कह रहे कि सबके सब आपके पैरों तले आ जाएॅगे?”
“बस देखते जाओ सहाय।” अजय सिंह ने प्रभावशाली लहजे में कहा___”सब कुछ बहुत जल्द समझ आ जाएगा। ख़ैर, हम ये कह रहे हैं कि हमें इसी वक्त वैसे ही कुछ आदमी चाहिए जैसे आप लोगों ने हमारी मदद के लिए भेजे थे।”
अजय सिंह की इस बात पर वहाॅ बैठे सभी लोग कुछ देर तक तो चकित भाव से उसे देखते रहे फिर उन लोगों सहमति में सिर हिलाया। कुछ देर बाद ही मीटिंग खत्म हो गई। अजय सिंह के उठते ही बाॅकी सब भी अपने अपने रास्तों पर चले गए।
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